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पेरेंटिंग संतोषजनक तो है ही, पर यह चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है। पेरेंट्स के लिए, उम्र के अनुसार शिशु का चेकअप करवाते रहना जरूरी है। खासकर पहले वर्ष में यह और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि बच्चे के जीवन के सामान्य बढ़त और विकास में यह एक नाजुक कड़ी होती है। इस दौरान आपके डॉक्टर भी आपके बच्चे के विकास पर नजर रखना चाहेंगे।
डॉक्टर आमतौर पर, जन्म के तुरंत बाद, जन्म के 3 से 5 दिनों के बाद और फिर नियमित रूप से पहले, दूसरे, चौथे, छठे, नवें और बारहवें महीने में चेकअप करवाने की सलाह देते हैं। हालांकि अलग-अलग पीडियाट्रिशन के शेड्यूल में थोड़े बहुत बदलाव हो सकते हैं। इन सुव्यवस्थित शेड्यूल्ड चेकअप में आमतौर पर बच्चों के विकास, बढ़ोतरी, खानपान के साथ-साथ और भी कई चीजों की जांच की जाती है।
हम आपको बच्चे के नियमित चेकअप को शेड्यूल करने की सलाह देंगे। शिशुओं की जांच निम्नलिखित कारणों से जरूरी होती है:
आपके डॉक्टर समय-समय पर बच्चे की पूरी शारीरिक जांच करेंगे, जिसमें लंबाई और वजन की जांच शामिल है। इससे बच्चे के सामान्य विकास और बढ़ोतरी के बारे में पता चलता है।
आपके डॉक्टर आपके परिवार की मेडिकल हिस्ट्री के बारे में भी जानना चाहेंगे, ताकि बच्चे की किसी बीमारी के मामले में किसी छिपे हुए वंशानुगत कारण का पता लगाया जा सके।
इन नियमित चेकअप के दौरान, माता-पिता बच्चे के विकास को लेकर होने वाली चिंताओं के बारे में बात कर सकते हैं और अपने दुविधा को दूर कर सकते हैं।
नियमित जांच से माता-पिता को उनके बच्चे की आयु के अनुसार रूटीन वैक्सीनेशन के नियम को बनाए रखने में मदद मिलती है, इसलिए यह चेकअप जरूरी है।
बच्चे का नियमित चेकअप करने से, आपके डॉक्टर को पहले के किसी चेकअप के दौरान दिखने वाली किसी जटिलता की जांच करने का मौका मिलता है।
बच्चे के जन्म के बाद, जल्द ही आपके डॉक्टर उसके हेल्थ रिकॉर्ड की बुकलेट बना सकते हैं। आपके बच्चे का हेल्थ रिकॉर्ड बच्चे के विकास और उसकी कुशलता के रिकॉर्ड को मेंटेन करने का एक माध्यम हो सकता है। इसमें उम्र के अनुसार बच्चे के चेकअप के लिए एक शेड्यूल भी हो सकता है। बच्चे के हर चेकअप के समय आपके डॉक्टर बच्चे के वजन, कद, वैक्सीनेशन और स्वास्थ्य की दूसरी महत्वपूर्ण जानकारियां बुकलेट में रिकॉर्ड कर सकते हैं।
आपके पीडियाट्रिशन, बच्चे के जन्म के बाद जल्द ही एक संपूर्ण शारीरिक जांच कर सकते हैं, ताकि महत्वपूर्ण संकेतों, नवजात के सामान्य रिफ्लेक्स, सजगता, स्किन टोन और कूल्हों की स्थिरता की जांच करके बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य और उचित प्रतिक्रिया को सुनिश्चित किया जा सके। अन्य चीजें, जिनकी आपके डॉक्टर जांच कर सकते हैं, वे इस प्रकार हैं:
आपके डॉक्टर ओएई (ऑटोअकौस्टिक एमिशन) और एबीआर (ऑडिटरी ब्रेंस्टम रिस्पांस) नामक दो अलग जांच करके इस बात को कंफर्म कर सकते हैं, कि उसकी सुनने की क्षमता बिल्कुल ठीक है। ओएई टेस्ट में बच्चे के कान में एक माइक्रोफोन और एक छोटा ईयरफोन डाला जाता है, ताकि उसके ईयर कैनाल में आवाज के रिफ्लेक्शन का पता लगाया जा सके। एबीआर टेस्ट में बच्चे के सिर पर इलेक्ट्रोड्स लगाए जाते हैं, ताकि आवाज के प्रति सुनने वाली नस की प्रतिक्रिया का पता लगाया जा सके। ये दोनों ही टेस्ट बहरेपन का पता लगा सकते हैं।
बच्चे के मेटाबॉलिक स्क्रीनिंग में बच्चे की एड़ी से खून का नमूना लिया जाता है और उसकी जांच करके सिकल-सेल डिजीज और हाइपोथाइरॉएडिज्म जैसी वंशानुगत बीमारियों का पता लगाया जाता है।
जन्म के बाद आपके बच्चे को हेपेटाइटिस बी की पहली खुराक दी जाती है।
आपके डॉक्टर, जन्म के बाद लगभग एक सप्ताह के अंदर चेकअप के लिए बच्चे को लाने को कहेंगे। बच्चे के सही विकास को सुनिश्चित करने के लिए 2 सप्ताह में शिशु की जांच आमतौर पर की जाती है।
इस पड़ाव पर, डॉक्टर बच्चे के वजन की जांच करके यह पता लगाते हैं, कि वह ठीक तरह से दूध पी रहा है या नहीं।
आपके डॉक्टर, संभवतः बच्चे की शारीरिक जांच करेंगे। वे बच्चे की लंबाई देखेंगे और एक ग्रोथ चार्ट पर उसे नोट करेंगे। वे बच्चे के सिर के घेरे को भी माप सकते हैं।
आपके बच्चे को बीसीजी की वैक्सीन लगाई जा सकती है। वह ओपीवी (ओरल पोलियो वैक्सीन) की पहली खुराक भी ले सकता है।
आपके बच्चे के डॉक्टर कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट भी कर सकते हैं, ताकि बच्चे के विकास संबंधी व्यवहार की जांच की जा सके, जैसे मुस्कुराना, किलकारी मारना आदि सही तरह से हो रहे हैं या नहीं। वे बच्चे के बारे में आपसे कुछ सवाल भी पूछ सकते हैं और बच्चे की गतिविधियों और प्रतिक्रियाओं को लेकर आपके नजरिए के माध्यम से किसी संभव व्यावहारिक परेशानी का पता लगा सकते हैं।
आपके बच्चे के पहले महीने के चेकअप के दौरान, आपके डॉक्टर कुछ बेसिक जांच करेंगे, माप लेंगे, विकास देखेंगे और मनोसामाजिक विकास की जांच करेंगे।
डॉक्टर फिर से बच्चे का वजन चेक करेंगे और उसे ग्रोथ चार्ट पर अंकित करेंगे। अधिकतर नवजात शिशु विकास के एक पैटर्न को फॉलो करते हैं। ग्रोथ चार्ट पर बच्चे के वजन पर नजर रखकर आपके डॉक्टर को यह पता लगाने में मदद मिलती है, कि बच्चा पैटर्न के अनुसार बढ़ रहा है या नहीं।
डॉक्टर आपके बच्चे की सिर से लेकर पैर तक पूरी शारीरिक जांच करेंगे, जिसमें उसकी आंखें, कान, त्वचा का रंग, फेफड़े, हृदय, पेट, जननांग, कूल्हे और पैर भी शामिल हैं। इनसे यह पता चल पाता है, कि सभी अंग स्वस्थ हैं। डॉक्टर फॉन्टेनल्स नामक बच्चे के सर पर मौजूद मुलायम स्पॉट और बच्चे के सिर की आकृति की जांच भी कर सकते हैं, ताकि उसकी सही गोलाई की जांच हो सके।
आपके बच्चे को हेपेटाइटिस बी वैक्सीन की दूसरी खुराक दी जा सकती है।
2 महीने के शिशु के चेकअप में आमतौर पर बच्चे के शरीर की जांच की जाती है, जिसमें आंखों का चेकअप, बेसिक मापदंड और व्यवहारिक विकास की जांच आदि शामिल है।
डॉक्टर, बच्चे के वजन की जांच कर सकते हैं, ताकि यह पता लग सके, कि जन्म के बाद के शुरुआती दिनों में वजन घटने के बाद, बच्चे का वजन जन्म के समय के वजन के बराबर हुआ है या नहीं। वह बच्चे की लंबाई भी माप सकते हैं। उसके विकास के बारे में जानने के लिए, वे बच्चे के व्यवहार को लेकर आप से कुछ सवाल पूछ सकते हैं, जैसे – आवाज के प्रति बच्चे का सजगता, मूवमेंट और एक्शन, रोना और फीडिंग पैटर्न आदि।
इस पड़ाव पर आपके बच्चे को नीचे दी गई वैक्सीन लगाई जा सकती हैं:
इस पड़ाव पर, आपको बच्चे को एक और चेकअप के लिए डॉक्टर के पास लेकर जाना पड़ सकता है, जिसमें आमतौर पर शारीरिक स्क्रीनिंग, माप लेना, विकास और व्यवहार संबंधी अवलोकन आदि शामिल हैं।
आपका डॉक्टर, बच्चे के पैर पर हेमाटोक्रिट या हेमोग्लोबिन स्क्रीनिंग कर सकते हैं, ताकि आपके बच्चे में आयरन की कमी और इससे होने वाली एनीमिया की स्थिति का पता लगाया जा सके।
आपके बच्चे को नीचे दी गई वैक्सीन लगाई जाएंगी:
इस उम्र में, आमतौर पर बच्चे का व्यक्तित्व दिखने लगता है। इस दौरान चेकअप कराने से शारीरिक और व्यावहारिक समस्याओं का जल्द पता लगाया जा सकता है और उसमें सुधार करने के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं।
बच्चे के 6 महीने की उम्र में होने वाले चेकअप में बच्चे की लंबाई और वजन की जांच शामिल है।
इस दौरान अक्सर पेरेंट्स डॉक्टर से बच्चे के सामाजिक और व्यवहारिक विकास के पड़ावों से संबंधित सवाल पूछते हुए पाए जाते हैं। आपके मन में भी बच्चे के भोजन में ठोस आहार को शामिल करने को लेकर सवाल उठ सकते हैं, जिनके बारे में आपको डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। आपके डॉक्टर भी आपसे कुछ खास सवाल पूछ सकते हैं, जैसे कि, क्या आपका बच्चा गर्दन को सीधा रख सकता है, क्या वह करवट ले सकता है, क्या वह सहारे या बिना सहारे के बैठ सकता है और मोटर स्किल से संबंधित कुछ अन्य सवाल।
डॉक्टर बच्चे के शारीरिक विकास की जांच करके और ग्रोथ चार्ट का विश्लेषण करके विकास का पता लगा सकते हैं, ताकि यह पता चल सके कि बच्चा ग्रोथ चार्ट के अनुसार नियमित रूप से बढ़ रहा है या नहीं।
आपके बच्चे को निम्नलिखित वैक्सीन दी जा सकती हैं:
9 महीने की उम्र में किए जाने वाले चेकअप में शारीरिक जांच, माप को रिकॉर्ड करना और मनोसामाजिक जांच करने की सामान्य प्रक्रियाएं शामिल होती हैं। अगर चिंता का कोई कारण मौजूद हो, तो डॉक्टर फॉलोअप के लिए 10 महीने की उम्र में भी चेकअप कराने को कह सकते हैं।
अब तक आपका बच्चा, अपनी उम्र के विकास संबंधी कई पड़ावों को पार कर चुका होगा। डॉक्टर आपके बच्चे के विकास को ट्रैक करने के लिए, कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट कर सकते हैं।
अगर आपके बच्चे को अब तक हेपेटाइटिस बी की आखिरी खुराक नहीं दी गई है, तो वह उसे अब दी जा सकती है।
अब तक आपके बच्चे का पहला दाँत आ चुका होगा। डॉक्टर आपके बच्चे का पहला डेंटल चेकअप करेंगे और बच्चे के ओरल हेल्थ की जांच करेंगे।
इस उम्र में डॉक्टर एक ब्लड टेस्ट की सलाह दे सकते हैं, ताकि बच्चे के शरीर में आयरन के स्तर की जांच की जा सके। साथ ही वे एक लीड स्क्रीनिंग की सलाह भी दे सकते हैं, इससे बच्चे के लीड से संपर्क की संभावना के बारे में पता लगाया जा सकता है, जो कि उसके विकास के लिए हानिकारक हो सकता है।
आपके बच्चे के पहले जन्मदिन के उत्सव के बाद आपको एक और चेकअप के लिए जाना पड़ सकता है, जो कि अब तक के आपके आम जांच की तरह ही होगा और उसमें निम्नलिखित जांच शामिल होंगे:
डॉक्टर सामान्य विकास को ट्रैक करने के लिए, रूटीन शारीरिक जांच करेंगे।
एक और बार आपके बच्चे का ओरल चेकअप किया जाएगा, ताकि दांतों की सड़न की संभावना से बचाव हो सके और मसूड़ों और शुरुआती दांतों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहे।
आपके बच्चे को एचआईबी वैक्सीन और पीसीवी की चौथी खुराक और मम्प्स, मीजल्स और रूबेला वैक्सीन (एमएमआर) की पहली खुराक दी जा सकती है।
शुरुआती महीनों में माता-पिता को बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की चिंताएं हो सकती हैं। ये चाहे कितने भी गैर जरूरी क्यों ना लगे, माता-पिता को अपने बच्चे से संबंधित किसी भी तरह की समस्या या दुविधा के प्रति सवाल करने में हिचकना नहीं चाहिए। नवजात समय के दौरान कोई भी समस्या चाहे कितनी भी छोटी क्यों ना हो, उस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत होती है। क्योंकि मामूली समस्याएं भी कई बार जल्द ही गंभीर मामलों में बदल जाती हैं।
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