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बेताल पच्चीसी की कहानियों में ये पंद्रहवीं कहानी है। यह कहानी एक राजा वीरकेतु, धनवान साहूकार रत्नदत्त की पुत्री रत्नावती और एक चोर के बारे में है। साहूकार अपनी बेटी रत्नावती के विवाह को लेकर चिंतित था, वहीं राजा वीरकेतु नगर में लगातार हो रही चोरियों से परेशान था। एक चोर ने नगर में चोरी करके सबको परेशान कर रखा था। लेकिन उसी चोर से रत्नावती को प्रेम हो गया। जब राजा ने उस चोर को अपनी समझदारी से पकड़ लिया और उसे फांसी की सजा सुना दी तो रत्नावती को बहुत दु:ख हुआ और वह राजमहल पहुंच गई ताकि राजा से चोर को छोड़ने की विनती कर सके। फांसी के वक्त चोर रोया और फिर जोर से हंसने लगा। जब वह चमत्कार से फिर से जिंदा हुआ, उसने फिर वही काम किया। कहानी के अंत में राजा विक्रम ने बताया आखिर इसके पीछे का कारण क्या था।
सालों पहले अयोध्या शहर में वीरकेतु नाम के राजा का शासन चलता था। उसी राज्य में एक धनवान साहूकार भी रहा करता था, जिसका नाम रत्नदत्त था। उस साहूकार की एक खूबसूरत पुत्री थी, जिसका नाम रत्नावती था। रत्नावती के लिए शादी के कई रिश्ते आते थे, लेकिन वह किसी से भी शादी करने के लिए हां नहीं कहती थी। इसी वजह से साहूकार हमेशा चिंता में रहता था। रत्नावती को विवाह के लिए सिर्फ सुंदर और धनी व्यक्ति नहीं बल्कि बुद्धिमान और ताकतवर व्यक्ति भी चाहिए था।
एक तरफ जहाँ साहूकार अपनी बेटी की वजह से परेशान था, वहीं दूसरी तरफ शहर में चोरी के मामले बढ़ने लगे थे और साहूकार को इस बात की भी चिंता होने लगी कि कहीं उसका सारा धन चोरी न हो जाए। उस दौरान रत्नावती की मुलाकात उस चोर से हो जाती है, जो नगर में चोरी कर रहा था। रत्नावती को लोगों के घरों में फल तोड़कर खाने में बहुत मजा आता था। उस चोर ने रत्नावती को आम चुराना सिखा दिया। रत्नावती चोर की इस कला से बहुत प्रसन्न हो गई और उससे रोज मिलने लगी। समय के साथ उसे उस चोर से प्यार हो गया।
चोर जब भी चोरी करने जाता है, उससे पहले वो रत्नावती से मिलने जाता था। वहीं, नगर में चोरी के मामले इतने बढ़ गए कि राजा ने सभी मंत्रियों और पहरेदारों को फटकार लगाते हुए कहा –
“शहर में हर दिन चोरी के मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन न कोई मंत्री कुछ कर रहा है और न कोई पहरेदार उसे पकड़ने की योजना बना पा रहा है।”
इसके बाद राजा ने खुद से चोर को पकड़ने का निर्णय का लिया। राजा हर रात अब नगर में घूमने लगा।
एक दिन राजा ने रात में देखा कि किसी के घर की खिड़की से कोई कूद कर जा रहा है। राजा उस व्यक्ति का पीछा करने लगा। राजा जैसे ही चोर के पास पहुंचा तो उन्हें चोर ने देखा और बोला, “अरे! मैंने तो सोचा था मैं ही एक अकेला चोर हूं। तुम भी यहां चोरी करने आए हो।” राजा ने कुछ नहीं बोला। चोर ने फिर से कहा, “तुम भी चोरी करने आए हो और मैं भी तो तुम्हें मुझसे डरने की जरूरत नहीं है। तुम मेरे दोस्त हो।” इसके बाद चोर राजा वीरकेतु को अपने घर चलने के लिए आग्रह करता है। राजा उसका निमंत्रण स्वीकार कर लेता है।
राजा को चोर अपनी गुफा में लेकर जाता है, उस जगह उसने सारा चोरी किया हुआ धन छुपाया था। राजा, गुफा में इतना सारा धन और सारी सुविधाएं देखकर बहुत हैरान हुआ। राजा ने फिर चोर से पूछा, “तुमने इतना सारा धन यहां रखा हुआ, तुम्हें चोरी करते समय डर नहीं लगता है।” चोर तेजी से हंसने लगा और बोला –
“राजा वीरकेतु की सेना में कोई भी बहादुर नहीं है और न कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से अपना काम का रहा है। यदि कोई एक भी व्यक्ति अपना काम पूरी ईमानदारी से करता है, तो मुझे पकड़ना इतना कठिन नहीं है। एक अकेला चोर राजा की पूरी सेना के सामने बहादुर पड़ गया और राजा की सेना में कोई साहसी योद्धा नहीं है।”
राजा ने जब ये सुना तो उन्होंने अपनी तलवार निकाली और चोर से लड़ने लगा और उसे हराकर अपना बंदी बना लिया।
चोर को आश्चर्य हुआ और थोड़ी देर बाद उसे समझ आया कि राजा वीरकेतु ही भेष बदलकर उसके साथ थे। राजा उस चोर को अपने साथ महल ले गया और वहां पर उन्होंने चोर फांसी की सजा सुनाई। चोर के पकडे जाने की खबर जैसे ही नगर में फैली, रत्नावती ये जानकर बहुत दुखी और परेशान हो गई। उसे ये भी मालूम पड़ा कि जो चोर पूरी नगर में चोरी कर रहा था, उसने ही उसे आम चुराना सिखाया था। परेशान रत्नावती तुरंत अपने पिता साहूकार रत्नदत्त के पास पहुंची और बोली, “पिता जी, जिस व्यक्ति को मैंने मन से अपना पति मान लिया है, राजा ने उसे पकड़ लिया और उसे फांसी की सजा सुनाई है। आप उसे बचाने के लिए कुछ कीजिए।” रत्नदत्त अपनी पुत्री को बातों को पहले तो समझ नहीं पता है लेकिन बाद में रत्नावती उसे चोर से हुई मुलाकात और सारी कहानी के बारे में बताती है और साथ में ये भी कहती है कि वह चोर के बिना नहीं रह सकती।
रत्नदत्त पहले तो अपनी पुत्री को समझाने का प्रयास किया। पर जब उसने उसकी एक बात नहीं सुनी तो वह एक मजबूर पिता बनकर राजा के पास पहुंचा। उसने राजा से कहा कि उसकी पुत्री चोर को बहुत चाहती है। यदि उसे फांसी मिली, तो मेरी बेटी भी अपनी जान दे देगी। साहूकार अपनी बेटी के प्यार के लिए राजा को सोने के सिक्के और चोरी किया हुआ सारा धन देने को तैयार था, लेकिन राजा ने उसकी बात नहीं मानी। थोड़ी देर बाद रत्नावती राजमहल पहुंचती है। वो भी राजा से विनती करती है, लेकिन रजा अपने फैसले पर अड़ा रहता है और जल्लाद से चोर को फांसी देने के लिए कहता है।
चोर को जैसे ही फांसी मिलने वाली होती है, पहले तो वह रोता है और बाद में जोर-जोर से हंसने लगता है। चोर को फांसी मिलते ही रत्नावती भी अपनी जान देने की कोशिश करती है। उस समय आकाशवाणी होती है। भगवान रत्नावती से कहते हैं, “हे बेटी ! तुम्हारा प्यार बहुत शुद्ध है। तुम्हारा ये प्रेम देखकर हम बहुत प्रसन्न हुए। तुम मुझसे कुछ भी मांग सकती हो। रत्नावती कहती है, “मेरे पिता का कोई बेटा नहीं है, आप उन्हें सौ बेटों का वरदान दें।” एक बार फिर से आकाशवाणी होती है, “ऐसा जरूर होगा, लेकिन तुम कोई और भी वरदान मांग सकती हो।” रत्नावती ने कहा, “मैं उस चोर से बहुत प्रेम करती हूं, हो सके तो उसे जीवित कर दिया जाए।” रत्नावती के वरदान मांगने के बाद चोर फिर से जिंदा हो जाता है।
इतना सब होते देखकर राजा को बहुत हैरानी होती है। चोर जिंदा होने के बाद एक बार फिर से रोता है और बाद में जोर से हंसने लगता है। तभी राजा चोर से कहने लगता है, यदि तुम फिर से चोरी न करने का वादा करते हो, तो मैं तुम्हे राज्य का सेनापति बना सकता हूं। चोर खुश होकर राजा की बात मान लेता है।
बेताल इतनी कहानी सुनाते ही चुप हो गया और उसने राजा विक्रमादित्य से पूछा –
“हे राजन! बताओ कि वो चोर फांसी से पहले और जिंदा होने के बाद पहले रोया और बाद में तेज-तेज हंसा क्यों।”
राजा ने जवाब में कहा –
“सुनो बेताल, चोर इसलिए दुखी हुआ क्योंकि उसने जिंदगी भर सिर्फ चोरी ही की, इसके बावजूद भी इतनी खूबूसरत लड़की उसके लिए अपनी जान देने को तैयार हो गई। बाद में हंसा इसलिए क्योंकि उसने सोचा ऐसी खूबसूरत लड़की जिससे कोई भी राजकुमार विवाह कर सकता था, लेकिन उसे पसंद भी एक चोर ही आया। जब चोर दोबारा जिंदा हुआ तो वह भगवान द्वारा फिर से जीवन मिलने पर रोया और बाद में भगवान का ही खेल देखकर हंसने लगा।”
सही जवाब मिलते ही बेताल फिर से उड़कर किसी पेड़ पर लटक गया।
चोर हंसने से पहले क्यों रोया कहानी में यह सीख मिलती है कि सच्चे प्यार में बहुत ताकत होती है जो आपको भगवान से भी वापस मांग लाती है।
यह कहानी विक्रम-बेताल की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जो बहुत रोचक कहानियां हैं।
इस कहानी का नैतिक यह है कि अगर प्रेम सच्चा हो तो उसमें बहुत ताकत होती है और वो आपको किसी भी मुसीबत से बचा सकता है।
यदि हम जीवन में सही इंसान का चुनाव करते हैं, तो हमें आगे गलतियां करने की कम गुंजाईश रहती है और साथ ही सच्चाई और मेहनत के रास्ते पर चलने से भी आपके बुरे कर्मों की सजा कम हो जाती है।
चोर हंसने से पहले क्यों रोया कहानी का निष्कर्ष यह है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे दिल से किसी को चाहता है, तो वह उसकी जान बचाने के कुछ भी कर सकता है। साथ में यह भी बताया गया है कि यदि आप हमेशा सच और मेहनत के रास्ते पर चलते हैं, तो जीवन में आने वाली हर परिस्थिति का सामना आसानी से कर सकते हैं।
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