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विक्रम बेताल की दीवान की मृत्यु कहानी में पुण्यपुर के राजा यशकेतु के बारे में बताया गया है कि कैसे वो हमेशा भोग में लीन रहते थे और उनका सारा राज-पाठ उनके दीवान सत्यमणि को देखना पड़ता था। इसकी वजह उनके राज्य के लोग उनकी बहुत निंदा करते थे। एक दिन राजा ने राजा गंधर्व विद्याधर की मृगांकवती से विवाह करने के लिए प्रस्ताव रखा लेकिन राजकुमारी ने विवाह के लिए एक शर्त रखी। राजा ने उस शर्त को जीता और उनसे राज्य में धूमधाम से शादी की। लेकिन जैसे उन्होंने अपनी सारी आप बीती अपने दीवान को बताई, तो उसकी मृत्यु हो गई। कहानी के अंत में जानें आखिर दीवान की मौत क्यों हुई।
राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर से बेताल को पकड़ने के लिए बहुत प्रयास किया और अंत में उसे पकड़ लिया और पीठ पर लादकर योगी के पास ले जाने लगा, तभी बेताल ने एक और कहानी सुनाना शुरू कर दिया।
बहुत पहले की बात है, पुण्यपुर नाम के राज्य में यशकेतु नाम के राजा रहते थे। उनके साथ सत्यमणि नाम का एक दीवान भी था। वह बहुत ही समझदार और होशियार मंत्री था। वही राजा का सारा राज-पाठ संभालने का काम करता था। राजा भी अपने सारे काम उस मंत्री के भरोसे छोड़कर भोग-विलास में लिप्त रहता था।
राजा के इस प्रकार विलासी जीवन जीने की वजह से उनके राज्य की धन राशि कम होने लगी। राजा की प्रजा भी उनसे बहुत दुःखी रहने लगी थी। ये बातें जब दीवान को पता चली कि उनकी प्रजा उनसे नाराज है, तो वह बहुत दुःखी हुआ। फिर उसे ये भी पता चला की प्रजा राजा के साथ उसकी भी निंदा कर रही है, तो वह और भी दुःखी हुआ। मंत्री सत्यमणि ने अपने आप को संभालने के लिए तीर्थयात्रा पर जाने के लिए सोचा। इसके लिए उसने राजा से इजाजत मांगी और फिर यात्रा पर निकल गया।
रास्ते में चलते हुए सत्यमणि को समुद्र तट दिखा। दिन ढल गया था इसलिए उसने सोचा कि रात यही बिताते हैं। इसके पास वह एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा। देर रात उसकी आंख खुली, तो उसने देखा की समुद्र से एक चमकदार पेड़ निकल रहा है। उस पेड़ पर कई तरह के सोने-चांदी के आभूषण और हीरे-जेवरात लगे हैं। उसी पेड़ पर एक खूबसूरत लड़की बैठी थी, जो वीणा बजा रही थी। ये सब देखकर सत्यमणि को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। कुछ देर बाद वह पेड़ और लड़की दोनों गायब हो गए। ये देखने के बाद वह बदहवास होकर अपने राज्य भाग गया।
जब वह अपने नगर पहुंचा, तो उसने देखा कि वो यहां मौजूद नहीं था इस वजह से राजा के सभी लालच छूट गए हैं। सत्यमणि ने अपनी पूरी कहानी राजा को सुनाई। उसकी बातों को सुनने के बाद राजा के मन में उस लड़की को हासिल करने का लालच जाग गया। उसने अपने राज्य की सभी जिम्मेदारी दीवान को दे दी और वह साधु का भेष अपना कर उस समुद्र तट पर पहुंच गया।
रात हो गई और राजा को भी वह चमकदार हीरे-मोती से जड़ा हुआ पेड़ दिखाई दिया और उस पर वह लड़की भी बैठी हुई थी। राजा तुरंत पानी में तैरकर उस लड़की के पहुंच गए और उसे अपने बारे में बताने लगा। फिर उन्होंने लड़की से उसके बारे में पूछा। लड़की ने बताया –
“मेरा नाम मृगांकवती है और मेरे पिता राजा गंधर्व विद्याधर है।”
राजा ने लड़की के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। इस पर राजकुमारी मृगांकवती ने कहा –
“आप जैसे साहसी राजा की पत्नी बनकर मुझे गर्व होगा और मेरी जिंदगी सफल हो जाएगी, लेकिन विवाह करने के लिए मेरी एक शर्त है। मैं हर कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की चतुर्दशी और अष्टमी को एक राक्षस के पास जाती हूं और वो मुझे खा जाता है। आपको उसका वध करना होगा।”
राजा इस शर्त को मान जाते हैं।
जब चतुर्दशी आई, तो मृगांकवती रात में बाहर निकली और राजा भी छुपकर उस राक्षस का इंतजार करने लगा। कुछ समय बाद राक्षस वहां आ गया और राजकुमारी को निगल गया। राजा ने तुरंत राक्षस पर हमला कर दिया और तलवार से उसके पेट पर वार करके मृगांकवती को जिंदा बाहर निकाल लिया। राजा ने उनसे पूछा ये सब क्यों हो रहा है। इस पर मृगांकवती ने जवाब दिया –
“मैं हर अष्टमी और चतुर्दशी को इस जगह पर महादेव की पूजा करने आती थी और जब तक मैं वापस घर नहीं जाती तब तक मेरे पिता खाना नहीं खाते थे। लेकिन एक बार मुझे महल पहुंचने में देर हो गई, तो पिताजी ने मुझे ज्यादा देर तक भूखा रहने की वजह से गुस्से में एक श्राप दिया। श्राप ये था कि मैं जब भी चतुर्दशी के दिन शिव जी पूजा करने जाऊंगी तो राक्षस मुझे खा लेगा और मैं उसका पेट चीरकर बाहर निकल आया करूंगी।
जब मैंने पिता जी से इस श्राप से मुक्ति देने के लिए कहा, तो उन्होंने बताया कि जब पुण्यपुर के राजा आकर उस राक्षस को मार डालेंगे तब मेरा यह श्राप खत्म हो जाएगा। मृगांकवती के श्रापमुक्त होते ही राजा यशकेतु उसे अपने राज्य ले गए और वहां बहुत शानदार तरीके से उससे विवाह किया। इसके बाद राजा ने ये सारी कहानी अपने दीवान को बताई और ये सब सुनने के बाद उसकी मौत हो गई।
यह कहकर बेताल ने कहानी खत्म कर दी और विक्रम से पूछा –
“अब तू बता कि राजा की कहानी सुनने के बाद दीवान की मृत्यु क्यों हुई और याद रखना कि सही उत्तर जानते हुए भी चुप रहने पर तेरे सिर के टुकड़े हो जाएंगे।”
विक्रम ने जवाब में कहा –
“दीवान की मृत्यु इसलिए हुई, क्योंकि उसे लगा कि राजा एक बार फिर से महिला के लोभ में आ गए और अब फिर से राज्य बर्बाद हो जाएगा। उस लड़की के बारे में राजा को नहीं बताना ही सही रहता।”
राजा विक्रम का जवाब सुनते ही बेताल फिर से उनके कंधे से उड़कर पेड़ पर जाकर लटक गया।
दीवान की मृत्यु कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी भी इंसान को इतना भावुक नहीं होना चाहिए कि वह अपना सब कुछ खो दे। व्यक्ति को परिस्थिति के अनुसार और अपनी जरूरतों को देखते हुए हर काम करना चाहिए।
इस कहानी का प्रकार बेताल पचीसी की कहानियों में आता है। ये राजा विक्रमादित्य-बेताल की मशहूर कहानियों में से एक है।
दीवान की मृत्यु कहानी की नैतिकता ये है कि अपने काम को कभी इतना हावी नहीं होने देना चाहिए कि जीवन पर संकट आ जाए।
राजा से विवाह करने के लिए राजकुमारी मृगांकवती ने राजा से चतुर्दशी के दिन उसे निगल जाने वाले राक्षस का वध करने की शर्त रखी थी।
इस कहानी से ये निष्कर्ष सामने आता है कि खुद के दुःख में इतना लीन नहीं होना चाहिए कि सब कुछ बर्बाद हो जाए। सुख हो या दुःख उससे जीवन को बहुत अधिक प्रभावित न होने देने में ही समझदारी है।
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