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विक्रम बेताल की कहानी: पत्नी किसकी | Story of Vikram Betal: Whose Wife In Hindi

इस कहानी में धर्मपुर गांव में गंधर्वसेन नाम का लड़का रहता था। एक दिन उसे एक धोबी की बेटी से प्रेम हो जाता है। उसका दोस्त देवदत्त अपने मित्र के लिए उस लड़की को ढूंढ़कर दोनों का विवाह करवा देता है। लेकिन शादी से पहले गंधर्वसेन हर रोज माँ काली के मंदिर जाया करता था, उसने माँ को वचन दिया था यदि उस लड़की से शादी हो गई तो वह अपने सिर की बलि देगा। इसी अनुसार कहानी बढ़ती है और अंत में लड़की द्वारा की गई एक भूल की वजह से यह सवाल सामने आता है कि आखिर पत्नी किसकी?

कहानी के पात्र (Characters Of The Story)

  • गंधर्वसेन
  • देवदत्त (गंधर्वसेन का दोस्त)
  • गंधर्वसेन की पत्नी

विक्रम बेताल की कहानी: पत्नी किसकी?(Whose Wife Story In Hindi)

एक बार की बात है, धर्मपुर नाम का एक गांव था जहां गंधर्वसेन नाम का एक लड़का रहता था। वह युवक देखने बहुत अच्छा और कद-काठी से बेहद आकर्षक था। उसके इस आकर्षक व्यक्तित्व की वजह से नगर की कई लड़कियां उसे पसंद करती थी और उससे शादी करना चाहती थी। लेकिन युवक को उन लड़कियों में कोई भी पसंद नहीं थी। ब्राह्मण का बेटा गंधर्वसेन जब अपने घोड़े पर बैठकर वहां से निकलता था, तो वहां मौजूद सभी लड़कियां उसे देखती रह जाती थी। लेकिन गंधर्वसेन किसी को देखता भी नहीं था और हमेशा की तरह मंदिर की तरफ निकल जाता था। वह मंदिर काली माता का था। गंधर्वसेन माँ काली का बहुत बड़ा भक्त था और इसलिए वह हर दिन उनकी पूजा करने जाया करता था।

एक दिन जब गंधर्वसेन माँ काली के मंदिर से घर वापस लौट रहा था तभी उनकी नजर नदी किनारे कपड़े धो रही धोबी की बेटी पर पड़ी। वह लड़की उसे बेहद खूबसूरत लगी। गंधर्वसेन को उस लड़की से बहुत प्यार हो गया। अब वह दिन रात सिर्फ उसी के बारे में सोचा रहता था। उसे उस लड़की से बात करने के लिए कोई भी रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। एक दिन वह माँ काली के मंदिर गया और उसने वहां प्रण लिया कि अगर उस लड़की से उसका विवाह हो गया तो वो अपना शीश माँ के चरणों में अर्पित कर देगा। गंधर्वसेन ने उस लड़की के लिए खाना-पीना सब छोड़ दिया था, बस उसी के ख्यालों में खोया रहता था। इसी वजह से वह बहुत बीमार भी पड़ गया।

गंधर्वसेन के परम मित्र देवदत्त को उसकी तबियत के बारे में पता चला, तो वो उससे मिलने आया। गंधर्वसेन की हालत देखकर उसके दोस्त ने इसके पीछे का कारण पूछा। गंधर्वसेन ने उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई और ये बताया कि यदि उसे वो लड़की नहीं मिली तो वह अपनी जान दे देगा। गंधर्वसेन के दोस्त देवदत्त ने उसकी मदद के लड़की को ढूंढना शुरू कर दिया। आखिर में देवदत्त ने उस लड़की को ढूंढ लिया। उसने लड़की के पिता से बोला कि वह अपनी बेटी का विवाह गंधर्वसेन से कर दें। लड़की के पिता ने सब पता लगाने के बाद गंधर्वसेन से उसकी शादी कर दी।

गंधर्वसेन की शादी को पांच दिन हो चुके थे और वह काली माँ को दिया हुआ वचन भूल चुका था। एक रात गंधर्वसेन को सपना आता है और उस सपने में उसे अपनी छाया दिखती है और उसे वो प्रतिज्ञा याद दिलाती है और कहती है कि यदि वह ये प्रतिज्ञा पूरी नहीं करता है तो वह मतलबी कहलाएगा। अगले दिन गंधर्वसेन को अपनी गलती का अहसास होता है और वह अपनी बलि के लिए तैयार हो जाता है। उसने अपने दोस्त देवदत्त को बुलाया और उससे कहा कि वह उसके और उसकी भाभी के साथ मंदिर चले और जब वह मंदिर में पूजा करेगा तब वह बाहर भाभी का ध्यान रखेगा।

देवदत्त उसके साथ मंदिर चलने के लिए तैयार हो जाता है। दोनों दोस्त और वह लड़की साथ में मंदिर पहुंच जाते हैं। मंदिर पहुंचते ही गंधर्वसेन अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने जाता है। वहीं देवदत्त और गंधर्वसेन की पत्नी उसका इंतजार करते हैं। जब बहुत वक्त हो गया और गंधर्वसेन बाहर नहीं आया तो देवदत्त मंदिर अंदर देखने चला गया। अंदिर जाकर उसने देखा कि गंधर्वसेन ने तलवार से अपनी सिर माता के चरणों में अर्पित कर दिया है। ये नजारा देखकर देवदत्त बहुत घबरा जाता है और सोचने लगता है कि बाहर कोई भी यकीन नहीं करेगा कि गंधर्वसेन ने खुद को मारा है बल्कि सब यही समझेंगे कि मैंने अपने दोस्त को उसकी पत्नी से शादी करने की वजह से मार दिया।

इस दोष से बचने के लिए देवदत्त ने भी तलवार से अपना सिर धड़ से अलग कर दिया। कुछ देर बाद गंधर्वसेन की पत्नी उसे और देवदत्त को ढूंढने मंदिर के अंदर जाती है। वहां दोनों की लाश देखकर वह घबरा जाती है और सोचती है कि सब लोग उसे पर दोनों की हत्या का आरोप लगाएंगे। इस आरोप से बचने के लिए वह भी खुद को खत्म करने के लिए तलवार उठाती है, तभी अचानक काली माँ सामने आ जाती है। माँ काली कहती हैं –

“बेटी मैं तुमसे खुश हुई, माँगो तुम्हें क्या चाहिए।”

लड़की कहती है –

“हे माँ, आप इन दोनों को जीवित कर दीजिए।”

तब देवी कहती हैं कि तुम दोनों पुरुषों के सिर इनके धड़ों पर रखोगी तो ये जीवित हो जाएंगे। यह सुनकर लड़की वैसा ही करती है। लेकिन सिर रखते वक्त उससे गलती हो जाती है। वह गंधर्वसेन का सिर देवदत्त पर और देवदत्त का सिर गंधर्वसेन पर लगा देती है। दोनों पुरुष जीवित होने के बाद लड़की के लिए लड़ने लग जाते हैं।

इतनी कहानी सुनाते ही बेताल ने राजा विक्रम से पूछा –

“हे राजन अब तुम बताओ कि उस लड़की का पति कौन है? अगर उत्तर जानते हुए भी तुम नहीं बोलोगे तो तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।

विक्रमादित्य को इसका जवाब पता था। इसलिए वह कहते हैं –

“इंसान की पहचान उसके मुख से होती है और इसी वजह से देवदत्त उसका पति होगा, क्योंकि उसके शरीर पर गंधर्वसेन का सिर लगा है।”

विक्रमादित्य का उत्तर सुनते ही बेताल जोर से हँसता है और कहता है –

“तुमने एक बार फिर सही जवाब दिया लेकिन अपने वचन को तोड़ दिया, इसलिए मैं तो जा रहा हूं।”

इतना कहते ही बेताल राजा विक्रम के कंधों से उड़ाकर जंगल में किसी पेड़ पर जाकर लटक जाता है और विक्रम फिर उसको ढूंढने चल देते हैं।

विक्रम बेताल की कहानी: पत्नी किसकी कहानी से सीख (Moral of Whose Wife Hindi Story)

पत्नी किसकी कहानी से ये सीख मिलती है कि व्यक्ति जो भी करता है अपने दिमाग और चेहरे का सही इस्तेमाल करके करता है, इसलिए उसकी पहचान उसके चेहरे से ही होती है।

विक्रम बेताल की कहानी: पत्नी किसकी का कहानी प्रकार (Story Type Of Whose Wife Hindi Story )

यह कहानी विक्रम-बेताल की मशहूर कहानियों के अंतर्गत आती है, जो बहुत रोचक होती हैं। इन कहानियों को बेताल पचीसी भी कहा जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. पत्नी किसकी कहानी की नैतिक कहानी क्या है ?

पत्नी किसकी कहानी की नैतिकता ये है कि हमारा मुख ही हमारी असल पहचान होती है और बिना चेहरे के आपको कोई नहीं पहचान सकता है।

2. हमारा चेहरा ही हमारी पहचान क्यों होता है ?

ये बात सभी जानते हैं कि आपके चेहरे के बिना आपकी कोई पहचान नहीं है, आपके अपनों से लेकर आस-पास के लोग भी आपको आपके चेहरे की वजह से पहचानते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस कहानी का निष्कर्ष यही है कि व्यक्ति का दिमाग और उसका चेहरा ही उसके जीवन का असली आधार होता है और बिना उसके आपके जीवन का कोई अर्थ नहीं है।

यह भी पढ़ें:

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समर नक़वी

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