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बेताल पचीसी की सबसे बड़ा त्यागी कौन अनगपुर राजधानी के एक व्यापारी अर्थदत्त की बेटी मदनसेना के बारे में है। मदनसेना से धर्म सिंह नाम का एक व्यक्ति बहुत प्यार करता था। लेकिन लड़की का विवाह समुद्र दत्त नाम के व्यक्ति से होने वाला था। इसलिए वह धर्म सिंह को विवाह के लिए मना कर देती है। लेकिन वचन की वजह से उससे शादी के बाद मिलने आती है। उसे उसका पति और एक चोर भी देखता है। अंत में कहानी इसपर आकर रुक जाती है कि आखिर सबसे बड़ा त्याग किसका है। हमेशा की तरह राजा विक्रम बेताल को सोच समझकर सही जवाब देते हैं।
काफी समय पहले की बात है, वीरबाहु नाम का राजा हुआ करता था, जिसका छोट-छोटे राज्यों पर शासन था। राजा अनगपुर नाम की राजधानी में रहता था। वहीं अर्थदत्त नाम का व्यापारी भी हुआ करता था, जिसकी मदनसेना नाम की एक पुत्री थी। मदनसेना अक्सर बाग में घूमने जाती थी। एक दिन एक युवक ने मदनसेना को बाग में घूमते हुए देख लिया और वह उसे देखते ही उसके ख्यालों में खो गया। उसे मदनसेना को देखते ही उससे प्यार हो गया और वह हर समय उसे याद करने लगा।
एक दिन युवक ने बहुत हिम्मत जुटाई और बाग में मदनसेना से बात करने के लिए गया। बाग में मदनसेना अकेले बैठी थी। युवक ने उससे कहा –
“मेरा नाम धर्म सिंह और मैं आपको देखते ही आपकी सुंदरता पर फिदा हो गया हूं।”
मदनसेना ने कहा, मुझसे दूर रहो, मैं किसी और की अमानत हूं। लेकिन धर्म सिंह उसकी बात को अनसुना करके उससे शादी करने की जिद्द करने लगा। उसके बाद मदनसेना ने कहा –
“मेरी शादी समुद्र दत्त से तय हो चुकी है और तुम्हारे प्रस्ताव को अपना नहीं सकती हूं।”
मदनसेना की बातों को सुनने के बाद धर्म सिंह बहुत दुखी हो गया। वह ये बात सहन नहीं करा पाया और गुस्से में बोला, अगर तुमने मुझसे विवाह नहीं किया, तो मैं अपनी हाथ की नस काट लूंगा। मदनसेना ये सुनते ही घबरा गई। उसने धर्म सिंह को पांच दिन बाद मिलने आने का वचन दिया। धर्म सिंह उसकी बात सुनकर खुश हुआ।
मदनसेना की शादी पांच दिन में समुद्र दत्त से होने वाली थी। शादी के सभी रीति रिवाज होने के बाद मदनसेना अपने पति समुद्र दत्त के घर चली गई, लेकिन उसने जो धर्म सिंह से वादा किया था, वो भी उसे याद था। जब मदनसेना अपने पति के साथ अकेले में थी, तो वह उससे बोली कि मुझे आप से बहुत जरूरी बात करनी है। वह बोली –
“मुझे एक आदमी से मिलना है, मैंने उसे विवाह से पूर्व आज के दिन मिलने का वचन दिया था।”
ये सुनकर मदनसेना का पति बहुत उदास हो गया। उसके मन में ख्याल आया है, ऐसी महिला पर लानत है जो शादी के पहले दिन ही दूसरे पुरुष से मिलने जा रही है। इसे अगर मना करूंगा तो भी ये जाएगी। इसलिए वह उसे जाने की अनुमति दे देता है।
पति से अनुमति मिलने के बाद मदनसेना जल्दी से धर्म सिंह से मिलने के लिए निकल जाती है। वह अपने दुल्हन के लिबास में जा रही थी और तभी उसे एक चोर ने रोक दिया। उसके पल्ले को पकड़कर चोर ने कहा, कहां चल दी? मदनसेना बहुत घबरा गई। वह चोर से बोली, “तुम मेरे सारे गहने रख लो लेकिन मुझे जाने दो। तब चोर बोला, मुझे गहने नहीं, तुम चाहिए। मदनसेना ने पूरी कहानी चोर को बताई और कहा, मुझे पहले धर्म सिंह से मिलना है, उसके बाद मैं तुम्हारे पास आउंगी। चोर ने उससे पूछा, तुम अपनी शादी के पहले दिन किसी और से मिलने जा रही हो। उसने जवाब देते हुए कहा –
“मैं अपने पति की आज्ञा लेकर जा रही हूं।”
चोर ने कहा, अगर तुम्हारा पति तुमको जाने दे सकता है, तो मैं भी तुम्हें जाने दे सकता हूं। लेकिन वहां से सीधे मेरे पास ही आना। मदनसेना चोर को वचन देने के बाद धर्म सिंह से मिलने के लिए चल दी। लेकिन मदनसेना का पति और चोर उसका पीछा कर रहे थे। कुछ देर चलने के बाद वह धर्म सिंह के घर पहुंच गई। धर्म सिंह मदनसेना को शादी के जोड़े में देखने के बाद बोला –
“अरे! तुम मुझसे शादी करने के लिए तैयार होकर आई हो।”
मदनसेना ने फिर उसे बताया कि उसका विवाह समुद्र दत्त से हो गया है और यह भी कि वह अपने पति से अनुमति लेकर उससे मिलने आई है।
ये सुनकर धर्म सिंह ने मदनसेना से कहा –
“तुम अब विवाहित हो और तुम्हारे पति ने तुम्हें विश्वास के साथ यहां भेजा है। मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं, पर किसी और की पत्नी को मैं हाथ नहीं लगा सकता हूं। इसके पहले तुम्हें यहां कोई देखे तुम अपने पति के पास घर वापस लौट जाओ।”
मदनसेना का पति और चोर छुपकर उनकी बातों को सुन रहे थे। मदनसेना वहां से चली जाती है, उसके बाद उसका पति और चोर भी वहां से निकल जाते हैं।
मदनसेना वहां से निकलने के बाद चोर के पास जाने पहुंच जाती है, लेकिन चोर उसको देखकर सोचने लगता है कि ये कितने साफ मन की महिला है और इसके साथ कुछ भी गलत करना सही नहीं होगा। साथ में उसे धर्म सिंह से की हुई बातें भी याद आ जाती है। वह मदनसेना के सच्चे मन और धर्म सिंह के त्याग को देखने के बाद बहुत प्रसन्न होता है और कहता है –
“तुहें अपने पति के पास जाना चाहिए।”
इसके बाद चोर उसे उसके पति के घर छोड़कर आता है। तभी बेताल अपनी कहानी को रोक देता है और राजा विक्रम से पूछता है –
“हे राजन! अब ये बताओ, तीनों व्यक्ति में किसका त्याग सबसे बड़ा है।”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, चोर ने सबसे बड़ा त्याग किया है। बेताल ने पूछा कैसे तब विक्रम ने कहा –
“सुनो, एक तरफ मदनसेना के पति ने उसे धर्म सिंह से इसलिए मिलने दिया क्योंकि उसको लगा कि वह किसी और पुरुष की तरफ आकर्षित है, ऐसी औरत क्या करना है। धर्म सिंह भी उसको दूसरे की बीवी समझकर जाने देता है क्योंकि उसे लगता है वह गलत कर रहा है और कहीं उसके पति ने राजा से शिकायत करके दंड दिलवा दिया। लेकिन चोर को किसी का डर नहीं था फिर भी उसने जेवरात पहनी औरत को त्याग दिया। वह हमेशा गलत काम करते आ रहा था, इस बार भी कर सकता था लेकिन उसने नहीं किया। इसलिए उसका त्याग सबसे बड़ा त्याग है।”
बेताल राजा विक्रम का जवाब सुनने के बाद खुश हुआ और बोला कि राजन तूने फिर से अपना मुंह खोला, इसलिए मैं फिर से उड़कर चला।
सबसे बड़ा त्यागी कौन कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि व्यक्ति को कठिन परिस्थिति और समय में भी अपने चरित्र और आत्मविश्वास को बनाकर रखना चाहिए।
यह कहानी विक्रम-बेताल की मशहूर कहानियों में से एक है। इन कहानियों को बेताल पचीसी के नाम से भी जाना जाता है।
सबसे बड़ा त्यागी कौन कहानी का यह नैतिक है कि इस कहानी में ये बताने का प्रयास किया गया है कि किसी व्यक्ति का त्याग तब बड़ा माना जाता है जब उससे उसके दूसरे हित पूरे न हो रहे हों।
हमें मुसीबत में कभी भी अपने सच से नहीं भागना चाहिए और अपने चरित्र की अच्छाई बनाए रखनी चाहिए, क्योंकि मुश्किल स्थिति में ही आपके असल व्यक्तित्व की पहचान होती है।
सबसे बड़ा त्यागी कौन कहानी का ये निष्कर्ष है कि हर व्यक्ति किसी न किसी परिस्थिति में त्याग करता है, लेकिन उसका त्याग ही सबसे बड़ा माना जाता है जिसने बिना मतलब के या बिना किसी स्वार्थ के त्याग किया होता है।
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