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विक्रम बेताल कहानी शशिप्रभा किसी पत्नी है में यशकेतु नाम का राजा होता है जिसकी शशिप्रभा नाम की बेटी थी। एक दिन बसंत ऋतु महोत्सव में एक पागल हाथी ने राजकुमारी पर हमला बोल दिया था, लेकिन तभी वहां ब्राह्मण का पुत्र मनस्वामी भी आ गया और उसने राजकुमारी की जान बचा ली। उसके बाद दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया और दोनों ही एक दूसरे से दोबारा मिलने की आस लगाकर बैठे थे। मनस्वामी ने तरकीब लगाकर राजकुमारी को ढूंढ भी लिया। लेकिन अंत में शशिप्रभा उनकी पत्नी बनती है या नहीं यह जानने के लिए कहानी पढ़ें।
एक समय की बात है, नेपाल में शिवपुर नाम की नगरी थी, जहां यशकेतु नाम के राजा का राज था। राजा बहुत बहादुर और शक्तिशाली था। राजा की पत्नी का नाम चंद्रप्रभा था और उससे उन्हें एक सुंदर बेटी थी, जिसका नाम शशिप्रभा था। राजा की बेटी जैसे-जैसे बड़ी हो रही थी, उसकी खूबसूरती के चर्चे हर जगह मशहूर हो रहे थे। एक दिन राजा अपनी पत्नी और पुत्री के साथ बसंत ऋतू के समारोह देखने के लिए गए। उस समारोह में एक धनवान ब्राह्मण का बेटा मनस्वामी भी आया था। मनस्वामी ने वहां जैसे शशिप्रभा को देखा, उसे देखते ही उससे प्यार हो गया।
तभी उस समय एक हाथी राजकुमारी शशिप्रभा की तरफ भागकर आने लगा। राजकुमारी के बचाव में तैनात सभी सैनिक हाथी के डर से भाग गए। तभी मनस्वामी ने उस पागल हाथी से राजकुमारी को बचाने के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए उसे बचा लिया। ये सब देखने के बाद राजकुमारी भी उससे आकर्षित हो गई। ब्राह्मण युवक की इस बहादुरी की सबने तारीफ की और बाद में सभी अपने घर वापस चले गए।
राजमहल पहुंचने के बाद शशिप्रभा उस ब्राह्मण लड़के के ख्यालों में खोई रहने लगी और बहुत परेशान थी। वहीं दूसरी तरफ मनस्वामी भी शशिप्रभा को याद करके उससे दोबारा मिलना चाहता था। ब्राह्मण युवक बस यही सोचने में लगा था कि राजकुमारी से कैसे मुलाकात हो और इसी सोच के चलते वह एक सिद्ध पुरुष के यहां जा पहुंचा। मनस्वामी ने अपने मन की सारी बातें उन्हें बताई। उस सिद्ध पुरुष ने अपने विद्या के दम पर दो गोलियां बनाई। एक गोली उसने मनस्वामी के मुंह में रखी और वह तुरंत एक सुंदर कन्या बन गया। वहीं दूसरी गोली उसने अपने मुंह में रखी और उसने एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया।
उसके बाद वह सिद्ध पुरुष, मनस्वामी को राजा के महल लेकर गया। वहां उसने राजा से कहा –
“हे महाराज! ये युवती मेरे बेटे की होने वाली बीवी है। मुझे तीर्थ यात्रा पर जाना है, क्या आप इसे कुछ दिनों के लिए राजमहल में रख लेंगे। मुझे विश्वास है राजमहल से ज्यादा सुरक्षित कोई जगह नहीं होगी।”
राजा के मन में विचार आया कि यदि उसने न कहा, तो सिद्ध पुरुष उसे श्राप दे सकता है। राजा ने बोला –
“हे ब्राह्मण! आप आराम से जाएं, आपकी होने वाली बहू यहां बिलकुल सुरक्षित रहेगी। ये मेरी पुत्री की सहेली बनकर रहेगी।”
इसके बाद वो सिद्ध पुरुष वहां से चला गया और लड़की के भेष में मनस्वामी राजकुमारी शशिप्रभा के साथ रहने लगा। वह राजकुमारी की सहेली बनाकर बहुत सारी बातें किया करता था। एक दिन मनस्वामी ने राजकुमारी से पूछा कि वह हर वक्त इतना उदास क्यों रहती है। तब राजकुमारी ने उसे बसंत उत्सव वाली सारी कहानी बताई और बोली कि वह ब्राह्मण युवक उसके दिल में बस गया है। लेकिन उसे न तो उसके शहर का नाम पता है और न ही उसका नाम पता है। इसलिए वह हमेशा यही सोचती रहती है कि एक बार उससे मुलाकात हो जाए।
शशिप्रभा के दिल की बातें जानने के बाद मनस्वामी खुश हुआ और उसने राजकुमारी से कहा कि मेरी प्यारी दोस्त मैं तुम्हारी मुलाकात उस ब्राह्मण युवक से करा सकती हूं। ये सुनते ही परेशान शशिप्रभा बोली, कैसे बताओ? क्या तुम उसे जानती हो। तब मनस्वामी ने कहा, “तुम अपनी आंखें अभी बंद करो।” राजकुमारी के आँखें बंद करते ही मनस्वामी ने अपने मुंह से गोली निकाली और फिर से पुरुष के रूप में वापस आ गया। मनस्वामी ने बहुत प्यार से शशिप्रभा को बुलाया और उसकी आवाज सुनते ही राजकुमारी बेहद उत्साहित हो गई और उसे गले लगा लिया।
राजकुमारी उससे पूछने लगी कि उसकी सखी कहां गई। तब मनस्वामी ने राजकुमारी को उसके बाद गोली और सिद्ध पुरुष से जुड़ी पूरी कहानी बताई। ये सब जानकर राजकुमारी को हैरानी तो हुई लेकिन खुशी भी बहुत हुई। दोनों ने उसी वक्त एक दूसरे को दिल से पति और पत्नी मान लिया था और उसके बाद राजमहल में दोनों साथ में रहने लगे।
एक दिन राजा के मंत्री के बेटे ने मनस्वामी को स्त्री के रूप में देख लिया और उसकी खूबसूरती का कायल हो गया। कुछ दिन बाद मंत्री के बेटे ने मनस्वामी को अपने दिल की बात बताई लेकिन उसने इंकार कर दिया। उसने बोला कि वह किसी और की अमानत है। ये सुनकर मंत्री का बेटा चिंतित हो गया। फिर उसने अपनी पिता को सब कुछ बताया। बेटे की परेशानी देखने के बाद मंत्री ने राजा को सारी बात बताई। मंत्री की बातें सुनने के बाद राजा ने मनस्वामी को स्त्री भेष में मंत्री के बेटे से विवाह कराने का एलान कर दिया।
राजा का फैसला सुनने के बाद मनस्वामी बोला –
“हे महाराज आप जानते हैं, मेरी शादी किसी और से तय है। ऐसा करना गलत होगा। लेकिन अगर आप फिर भी इस अधर्म को करवाना चाहते हैं, तो मैं विवाह करने के लिए तैयार हूं।”
राजा बहुत खुश हुआ और दोनों की शादी करवा दी। शादी के बाद मनस्वामी ने मंत्री के पुत्र से कहा –
“हम दोनों का विवाह तुम्हारे हठ के कारण हुआ है, वरना मेरा विवाह तो किसी और से होने वाला था। अब तुम्हें इस पाप के लिए तीर्थ यात्रा के लिए जाना होगा।” मंत्री के पुत्र प्यार में ऐसा ही करता है।
एक दिन सिद्ध पुरुष फिर से वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके राजा के महल पहुंचता है। लेकिन इस बार वह अपने मित्र को जवान बनाकर अपने बेटे के रूप में लाता है और राजा से कहता है –
“मेरी होने वाली बहू कहां है, मैं उसे लेने आया हूं और अपने पुत्र से शादी करवाऊंगा।”
राजा ने फिर उसे सारी घटना के बारे में बताया। ये सुनने के बाद सिद्ध पुरुष क्रोधित हो गया। सिद्ध पुरुष के गुस्से से बचने के लिए राजा ने कहा कि जो होना था हो गया, अब वह अपनी पुत्री का विवाह उसके बेटे से करवा सकता है। ये सुनने के बाद सिद्ध पुरुष राजा की बात मान जाता है। उसके बाद राजा सबके सामने अग्नि को साक्षी मानकर सिद्ध पुरुष के दोस्त और राजकुमारी का विवाह करवा देता है। उसी समय मनस्वामी अपने असली रूप में वहां आ जाता है और शशिप्रभा को अपनी पत्नी बताने लगाता है।
अब बेताल कहानी सुनाना बंद करके राजा विक्रम से पूछता है –
“हे राजन तो अब बताओ कि शशिप्रभा किसी बीवी है? और याद रखना कि सही जवाब जानकर भी चुप रहने पर तुम्हारे सर के टुकड़े होना निश्चित है।
कोई और उपाय न होने पर अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य सोचकर बोलते हैं –
“राजकुमारी शशिप्रभा उस व्यक्ति की पत्नी है जिसके साथ उसने अग्नि को साक्षी मानकर सबके सामने सात फेरे लिए हैं। मनस्वामी तो भेष बदलकर शशिप्रभा से मिलता था।”
बेताल ने जैसे ही राजा विक्रम का सही जवाब सुना तो उनके वह चुप रहने का वचन तोड़ने पर जोर जोर हंसने लगा और राजा के कंधे से उड़कर एक बार फिर जाकर पेड़ पर लटक गया।
शशिप्रभा किसकी पत्नी कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि छल-कपट से किया गया कोई भी कार्य आपको दूसरी प्रकार की मुसीबतों में डाल सकता है।
यह कहानी विक्रम-बेताल की मशहूर कहानियों के अंतर्गत आती है जो पढ़ने में बहुत दिलचस्प होती हैं। इन्हें बेताल पचीसी भी कहा जाता है।
इस कहानी का नैतिक यह है कि धोखे से किया गया कोई भी काम कभी सफल नहीं होता है बल्कि आप और अधिक समस्या में पड़ सकते हैं।
छल और कपट से किया गया कार्य आपको बुरा इंसान बनने पर मजबूर कर देता है और साथ ही जिस भी काम को आप करना चाहते हैं, वह असफल ही होता है। इसलिए कभी भी छल का सहारा नहीं लेना चाहिए।
विक्रम बेताल की कहानियों में ‘शशिप्रभा किसकी पत्नी’ कहानी से ये निष्कर्ष सामने आता है कि यदि आप गलत मार्ग से कोई भी कार्य करते हैं, तो उसके बुरे परिणाम झेलने पड़ते है। व्यक्ति द्वारा धोखे से किया गया काम कभी भी उसे सफल नहीं बनाता है।
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