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विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी | First Story of Vikram Betal in Hindi

यह कहानी राजा विक्रमादित्य और बेताल की पहली कहानी है। इस कहानी में बताया गया है कि राजा विक्रमादित्य और बेताल की पहली मुलाकात कैसे हुई और कैसे राजा विक्रम के कंधों पर बैठकर बेताल ने उन्हें कहानियां सुनाईं। एक भिक्षु के कहने पर राजा बेताल को अपने कंधों पर लादकर उसके पास ले जा रहे थे और उसी बीच बेताल ने अपनी पच्चीस कहानियों की शुरुआत की और विक्रम और बेताल की एक ऐतिहासिक जोड़ी बन गई।

कहानी के पात्र (Characters Of The Story)

  • राजा विक्रमादित्य
  • बेताल
  • भिक्षु

विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी (First Story of Vikram Betal)

सालों पहले की बात है, उज्जयिनी नाम के राज्य में विक्रमादित्य नामक राजा का शासन था। राजा विक्रमादित्य अपने राज्य में उनके न्याय, कर्तव्यपरायणता और दानी स्वभाव के लिए जाने जाते थे। इसी वजह से दूर दूर से लोग उनके पास न्याय की आस लेकर आते थे। राजा हर दिन अपने दरबार में आए लोगों की समस्याओं को सुनते और उसका हल निकालते थे।

एक दिन राजदरबार में एक भिक्षु आया और अपने पास से एक फल राजा को देकर वहां से चला गया। उस फल को राजा ने अपने कोषाध्यक्ष को दे दिया। उसके बाद से वो भिक्षु हर दिन राजदरबार आ कर राजा को एक फल दे कर वहां से चुपचाप जाने लगा और यह उसका रोज का कार्य हो गया था। हर दिन राजा भिक्षु के दिए हुए फल को कोषाध्यक्ष को दे देते थे। इस तरह भिक्षु द्वारा राजा को फल देते हुए करीब 10 साल गुजर गए।

एक दिन जब भिक्षु राजदरबार आया और उसने राजा को फल दिया, तब उस समय राजा ने उस फल को कोषाध्यक्ष को न देकर अपने एक पालतू बंदर के बच्चे को खाने के लिए दिया। यह बंदर राजा के किसी सुरक्षाकर्मी का था, जो हमेशा राजा के पास आया करता था। जैसे ही बंदर ने फल को खाने के लिए तोड़ा, तो उस फल में से एक बहुत कीमती रत्न निकला। उस रत्न की चमक को देखने के बाद वहां मौजूद सभी लोग हैरान हो गए। राजा विक्रमादित्य भी यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद राजा ने अपने कोषाध्यक्ष से पहले दिए हुए फलों के बारे में पूछा।

राजा के पूछने पर कोषाध्यक्ष ने उन्हें बताया –

“महाराज, आपके द्वारा दिए गए सभी फल राज्य के खजाने के कमरे में सुरक्षित रख दिए गए थे। मैं अभी वो सभी फल यहां लेकर आता हूं।”

कुछ समय बाद कोषाध्यक्ष राजा के पास आकर उन्हें बताता है कि सभी फल सड़ गए हैं। उनकी जगह पर वो कीमती रत्न बस बचे हुए हैं। राजा ये बात सुनकर प्रसन्न हो गए और सभी रत्नों को उन्हें देने के लिए कहा। अगले दिन पुनः जब भिक्षु राजदरबार में फल लेकर पहुंचा, तो विक्रमादित्य ने उससे कहा –

“हे योगी, जब तक आप यह नहीं बताएंगे कि इतनी अमूल्य भेंट मुझे अर्पित क्यों करते हैं, तब तक मैं इस फल को ग्रहण नहीं करूंगा।”

महाराज की बात सुनने के बाद भिक्षु ने राजा को अकेले और खाली स्थान पर चलने के लिए कहा। एकांत स्थान में ले जाकर भिक्षु ने विक्रमादित्य से कहा कि मुझे मंत्र साधना करनी है और उसे साधने के लिए मुझे एक महान पुरुष की जरूरत है। मुझे आप के अलावा कोई दूसरा वीर नहीं मिल सकेगा, इसी वजह से मैं वो बेहद कीमती भेंट आपको देकर जाता हूं। भिक्षु की बातों को सुनने के बाद राजा विक्रमादित्य उसकी मदद करने के लिए हामी भर देते हैं उसके बाद भिक्षु राजा को बताता है कि अगली अमावस्या की रात उन्हें पास के श्मशान आना होगा, जहां वो अपने मंत्र साधना की तैयारी करेगा, उसके बाद भिक्षु वहां से चला जाता है।

अमावस्या का दिन आते ही विक्रमादित्य को भिक्षु की बातें याद आती हैं और वह भिक्षु को किए गए वादे के अनुसार श्मशान पहुंच जाते हैं। राजा को देखकर भिक्षु बहुत खुश होता है और कहता है –

“राजन, आपने अपना वादा निभाया, इस बात की मुझे बहुत खुशी है। आप अब यहां से पूर्व की तरफ जाइए, उस ओर एक महाश्मशान मिलेगा, जहाँ पर एक विशाल शीशम का पेड़ होगा। उस पेड़ पर एक मुर्दा लटका होगा, उस मुर्दे को आपको मेरे पास लेकर आना है। भिक्षु की बातों को सुनकर विक्रमादित्य उस मुर्दा को लेने चल देते हैं।

राजा जब महाशमशान पहुंचते जाऊं तो उन्हें बड़े से शीशम के पेड़ पर रस्सी से एक मुर्दा लटका हुआ दिखाई देता है। विक्रमादित्य अपनी तलवार निकालकर मुर्दे से बंधी रस्सी को काट देते हैं और तभी वह मुर्दा जमीन पर गिर जाता है और बहुत तेज चीखने की आवाज आती है।

राजा दर्दभरी चीख सुनकर सोचते हैं कि वह नीचे गिरने वाला मुर्दा नहीं बल्कि एक जिंदा व्यक्ति है। कुछ समय बाद वह मुर्दा तेज-तेज हंसने लगता है और उसके बाद फिर से पेड़ पर लटक जाता है। राजा विक्रम समझ जाते हैं कि मुर्दे पर बेताल चढ़ा है। फिर पुरजोर प्रयासों और कड़ी मेहनत के बाद राजा विक्रम ने अपने कंधे पर बेताल को टांग लेते हैं। इसके बाद बेताल विक्रम से बोलता है –

“विक्रम तुम्हारे साहस को मैं मान गया, तू बहुत पराक्रमी है और मैं तेरे साथ चलने को तैयार हूं, लेकिन मुझे वचन दो कि पूरे रास्ते तुम कुछ नहीं बोलोगे और अगर तुमने वचन तोड़ दिया तो मैं वापस जाकर पेड़ पर लटक जाऊंगा”

विक्रम बेताल की बात को सिर हिलाकर हां करते हुए मान जाते हैं।

दोनों जब चलने लगते हैं, तो बेताल विक्रम से कहता है कि रास्ता बहुत लंबा है इसलिए सफर को रोमांचक बनाने के लिए कहानी सुनाता हूं। इस तरह बेताल पच्चीसी का सफर शुरू होता है, जिसमें बेताल एक-एक करके विक्रम को कहानियां सुनाता है। यह कहानी राजा विक्रम और बेताल पच्चीसी की आरंभिक कहानी है।

विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी से सीख (Moral of Early Story of Vikram Betal First Hindi Story)

विक्रम-बेताल की पहली कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हर राज्य के राजा को राजा विक्रमादित्य की तरह बहादुर, साहसी, दयालु और कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए। तभी वह अपनी प्रजा को सुरक्षित रख सकता है।

विक्रम बेताल की प्रारंभिक कहानी का कहानी प्रकार (Story Type of Vikram Betal First Hindi Story )

यह कहानी विक्रम-बेताल की कहानियों के अंतर्गत आती है जिसे बेताल पच्चीसी कहा जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. योगी राजा विक्रमादित्य को रोजाना फल के रूप में कीमती भेंट क्यों देता था?

योगी को एक ऐसे महान पुरुष की जरूरत थी जो मंत्र साधना को सफल बनाने में उसकी मदद कर सके। ऐसे में उसे राजा विक्रम से ज्यादा वीर महापुरुष कोई दूसरा नहीं दिखा। इसलिए योगी हर रोज दरबार जाकर राजा को फल में छुपे कीमती रत्न की भेंट देता था।

2. विक्रम-बेताल की जोड़ी कैसे बनी?

राजा विक्रम को योगी के आदेश के अनुसार पेड़ पर लटके बेताल को उसके पास ले कर आना था। लेकिन बेताल ने कहा कि मैं एक शर्त पर ही तुम्हारे साथ चलूँगा। मैं तुम्हें रास्ते भर कहानियां सुनाता चलूँगा लेकिन बीच में तुम्हें कुछ बोलना नहीं है। यदि तुमने कुछ बोला तो मैं वापस पेड़ पर लटक जाऊंगा। इस प्रकार बेताल की कहानियों के साथ विक्रम और बेताल की जोड़ी प्रसिद्ध हो गई।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस कहानी में बेताल राजा विक्रम से वचन लेता है कि वह पूरे रस्ते चुप रहेंगे लेकिन हर बार कहानी सुनाने के बाद बेताल राजा से ऐसा प्रश्न पूछता है कि विक्रम को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। विक्रम के चुप रहने की शर्त टूटते ही बेताल फिर से जाकर पेड़ पर लटक जाता है। न्याय के लिए प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य को बेताल ने जो कहानियां सुनाईं थीं वो राजा विक्रम की न्याय-शक्ति का बोध कराने वाली थीं। इसलिए विक्रम-बेताल या बेताल पच्चीसी के नाम से प्रसिद्ध ये कहानियां आज भी प्रासंगिक हैं।

समर नक़वी

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