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एक ब्राह्मण के घर में पाले गए निष्ठावान नेवला की कहानी पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों के संग्रह की एक बेहद लोकप्रिय कहानी है। यह कहानी एक ब्राह्मण के परिवार की है जिसमें उसके अलावा उसकी पत्नी, एक छोटा बच्चा और पालतू नेवला था। कहानी इस बारे में है कि जब ब्राह्मण की पत्नी अपने पालतू नेवले के मुंह पर खून देखती है तो बिना किसी प्रमाण के यह मान लेती है कि उसने उसके बच्चे पर हमला किया है। ब्राह्मणी यह जाने बिना कि नेवले के मुंह पर खून कहाँ से आया होगा, मारने के लिए उस पर वार कर देती है। वफादार स्वभाव का नेवला ब्राह्मण की पत्नी के बिना कुछ सोचे-समझे किए गए कृत्य का फल भोगता है।
पंचतंत्र की इस कहानी के मुख्य पात्र इस प्रकार हैं –
एक गाँव में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी रहते थे। शादी के काफी समय बाद उनके यहाँ एक बेटे का जन्म हुआ। ब्राह्मण और ब्राह्मणी बहुत खुश थे। हालांकि दंपति को घर चलाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी और वे सारा दिन काम में व्यस्त रहते थे। ऐसे में बच्चे के जन्म के बाद उन्होंने सोचा कि उनकी अनुपस्थिति में यदि कोई बच्चे के साथ घर पर रहेगा तो वे निश्चिन्त होकर काम कर सकेंगे। इसलिए ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने एक पालतू जानवर रखने का फैसला किया। एक दिन ब्राह्मण एक छोटे से नेवले के साथ घर लौटा। उसे देखकर उसकी पत्नी ने पूछा –
“हम घर में नेवला कैसे पाल सकते हैं, क्या और कोई पालतू जानवर नहीं ला सकते?”
ब्राह्मण मुस्कुराया और बोला –
“इस नेवले को इसके परिवार ने त्याग दिया है। वह हमारे बेटे जितना ही छोटा है। साथ रहकर वे अच्छे दोस्त बन जाएंगे।”
पति की बात सुनकर ब्राह्मणी मान गई। कुछ ही दिनों में पति-पत्नी ने देखा कि उनका बच्चा और नेवला बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। नेवला ब्राह्मण के बच्चे के साथ खेलता और उसके आसपास ही रहकर उसका ध्यान रखता था। एक दिन ब्राह्मण काम से घर के बाहर गया था। ब्राह्मणी भी पानी भरने के लिए नदी पर गई थी।
कुछ समय के बाद ब्राह्मणी घड़े में पानी भरकर लौटी, लेकिन जैसे ही वह घर में दाखिल हुई, सामने एक भयानक दृश्य था। फर्श पर खून फैला हुआ था और पास में उनका पालतू नेवला था। नेवले के मुंह पर भी खून लगा हुआ था। यह देखते ही ब्राह्मणी बदहवास होकर चिल्लाने लगी। उसे लगा कि नेवले ने उसके बच्चे को मार दिया है और उसके मुंह पर वही खून लगा है।
गुस्से में ब्राह्मणी ने नेवले पर हमला करने के लिए पानी से भरा घड़ा उसके ऊपर फेंक दिया और भागते हुए दूसरे कमरे में गई। वहां पहुँचते ही उसने देखा कि बच्चा बिस्तर पर गहरी नींद में सोया हुआ था लेकिन पास में फर्श पर एक सांप मरा पड़ा था। सांप को देखते ही ब्राह्मणी को पूरी बात समझ में आ गई। वह जान गई कि उसकी अनुपस्थिति में क्या हुआ था। कमरे की खिड़की के छेद से सांप कमरे में घुस आया था और नेवले ने उससे लड़कर बच्चे की जान बचाई थी।
सारी बात समझते ही ब्राह्मण की पत्नी घबराकर बाहर की ओर दौड़ी लेकिन अफसोस, घड़े के वार से नेवला अपनी जान गंवा चुका था। ब्राह्मण की पत्नी नेवले को पकड़कर रोने लगी। उसे अपने वफादार पालतू जानवर को मारने का बहुत पछतावा हुआ लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी।
नेवला और ब्राह्मण की पत्नी की कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी बिना विचार किए कोई काम नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर हमें इसके गलत परिणाम मिल सकते हैं और बाद में पछताना पड़ सकता है। इस कहानी में ब्राह्मण की पत्नी ने नेवले के मुंह पर लगा खून देखकर यह जानने के बारे में नहीं सोचा कि वह कहाँ से आया होगा और बिना सोचे-समझे अपने निष्ठावान पालतू जानवर को मार दिया जिसने उनके इकलौते बेटे की जान बचाई थी।
नेवला और ब्राह्मण की पत्नी की यह कहानी शिक्षाप्रद पंचतंत्र कहानियों के अंतर्गत आती है। “बिना बिसारे जो करे सो पाछे पछताय” यानी जो मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले कुछ भी नहीं सोचता है उसे बाद में अपनी गलती का एहसास होता है और वह उस समय पछताता है।
नेवला और ब्राह्मण की पत्नी की कहानी विष्णु शर्मा द्वारा रचित पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है।
नेवला और ब्राह्मण की पत्नी की कहानी का नैतिक है कि किसी भी परिस्थिति में कोई काम करने से पहले विचार जरूर करना चाहिए वरना इसके बुरे परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
बच्चों को रात में सोते समय रोजाना एक न एक कहानी जरूर सुनानी चाहिए। यह एक अच्छी आदत है जो आगे जाकर उन्हें किताबें पढ़ने के लिए भी प्रेरित करती है। नेवला और ब्राह्मण की पत्नी की कहानी की तरह पंचतंत्र की सभी कहानियां नैतिक शिक्षाओं से भरी हैं। सैकड़ों सालों पहले की ये कहानियां आज के समय में भी प्रासंगिक हैं और बच्चों को जीवन के लिए अच्छे उपदेश देती हैं।
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