बच्चों के लिए महात्मा गाँधी की जीवनी बताने वाली और पढ़ने में सरल, एक किताब ढूंढना आसान काम नहीं है। ऐसी कई किताबें हैं जो उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करती हैं, लेकिन ऐसी किताबें बहुत ही कम हैं, जिनकी मदद से बच्चों को आसान और स्पष्ट तरीके से गाँधी जी के बारे में बताया जा सके। बच्चों को उनकी इतिहास की स्कूली किताबों के साथ जोड़कर, तथ्य और जानकारी देते हुए बताएं कि गाँधी जी ने देश को आजाद कराने में किस तरह अपना योगदान दिया और किस तरह लोगों को प्रेरित किया। हमारे देश के सबसे महान नेता के बारे में उनके जीवन से जुड़ी स्मरणीय और और प्रेरणादायी बातों को बताने से बच्चे यह जान सकेंगे कि गाँधी जी किस तरह के व्यक्ति थे और साथ ही आप उन्हें यह भी समझा पाएंगे कि हमारे भारत देश को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्रता पाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था।
बच्चों के लिए महात्मा गाँधी से जुड़े तथ्य
महात्मा गाँधी के जीवन के बारे में कुछ प्रासंगिक जानकारी और तथ्यों को एक साथ रखते हुए, हमने उनके जीवन के हर पहलू को यहाँ साझा करने का प्रयास किया है, ताकि आप बच्चे को आसानी से गाँधी जी के बारे में महत्वपूर्ण बातें बता सकें, जैसे उनका जन्म कहाँ हुआ था, उनका बचपन कैसा गुजरा, अफ्रीका में उन्होंने कैसा समय बिताया और फिर किस तरह से भारत को आजादी दिलाने में अपना योगदान दिया और कैसे उनकी हत्या कर दी गई।
बचपन और परिवार
- महात्मा गाँधी का असली नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था।
- उनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था।
- उनके माता–पिता करमचंद गाँधी और पुतलीबाई थे। उनके पिता उस समय पोरबंदर के दीवान थे।
- चूंकि, उस युग में बाल विवाह काफी प्रचलित था, इसलिए मोहनदास गाँधी का विवाह भी 13 वर्ष की उम्र में तय कर दिया गया था।
- गांधीजी ने पोरबंदर में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और भावनगर के सामलदास कॉलेज में दाखिला लिया। 1888 में, गाँधीजी ने कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वे वकालत करने के बाद दक्षिण अफ्रीका में प्रैक्टिस करने लगे।
- उनकी शादी कस्तूर कपाड़िया से हुई थी, जिन्होंने शादी के बाद अपना नाम बदलकर कस्तूरबा गाँधी रख लिया था। उनकी शादी साल 1883 में हुई थी। उस समय कस्तूरबा 14 साल की थीं।
- शादी के बाद भी कुछ समय तक कस्तूरबा अपने घर पर अपने माता–पिता के साथ ही रहती थीं। कस्तूरबा गाँधी भी, अपने जीवन में राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय थीं और उन्होंने सभी को नागरिक अधिकार दिलाने के लिए काम किया।
- मोहनदास गाँधी और कस्तूरबा गाँधी के 4 बच्चे थे। ये सभी लड़के थे। इनके नाम थे हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास।
- 1885 में, गाँधीजी और कस्तूरबा के पहले बच्चे का जन्म हुआ, जिसकी कुछ दिनों के बाद मृत्यु हो गई थी। उसी वर्ष, करमचंद गाँधी का निधन हो गया, जिससे मोहनदास के सिर से पिता का साया हट गया।
- आज के समय में यह सुनकर हैरानी होती है, मगर मोहनदास गाँधी स्कूल में बहुत ही कमजोर छात्र थे। उन्हें भूगोल समझने में बहुत परेशानी होती थी। हालांकि, उन्हें हिंदू शास्र पढ़ना पसंद था और वह राजा हरिश्चंद्र को आदर्श मानते थे, एक ऐसा राजा जो हमेशा सच बोलता था।
साउथ अफ्रीका में काम करने के दौरान
- अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, कानून की पढ़ाई करने के लिए गाँधी जी ने लंदन का रुख किया। उनका उद्देश्य बैरिस्टर बनना था और उनका परिवार भी यही चाहता था कि वो बैरिस्टर बनें।
- वर्ष 1888 में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन में उन्होंने कानून का अध्ययन किया। इसके बाद, वह भारत वापस आ गए और उन्होंने अपनी लॉ प्रैक्टिस शुरू कर दी।
- जब इन प्रयासों से कोई फल प्राप्त नहीं हुआ, तो उन्होंने एक लॉ फर्म के साथ नौकरी करने का फैसला किया। इस नौकरी के चलते वो साउथ अफ्रीका पहुँच गए।
- उस समय में, साउथ अफ्रीका नस्ल और रंग को लेकर हो रहे भेदभाव का सामना कर रहा था। गाँधी, भारत से थे और उनकी त्वचा गहरे रंग की थी।
- एक बार ट्रेन में सफर के दौरान गाँधीजी गोरों के लिए रिजर्व डिब्बे में बैठे थे। उन्हें वहाँ देखकर एक गोरे ने उन्हें सीट खाली करने के लिए कहा, क्योंकि वो काले थे। गाँधी जी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और इस वजह से उन्हें अगला स्टेशन आने पर ट्रेन से बाहर निकाल दिया गया।
- उस घटना के अलावा, ऐसे कई उदाहरण थे जहाँ गाँधी जी को काले होने की वजह से साउथ अफ्रीका के होटलों ने कमरा देने से मना कर दिया था और साथ ही एक मजिस्ट्रेट के आदेश पर उनकी पगड़ी हटा दी गई थी।
- इन सभी घटनाओं ने उन्हें समानता के अधिकार के लिए लड़ने और राजनीतिक विचारों को विकसित करने के लिए प्रेरित किया, ताकि दूसरों की मदद की जा सके।
- दक्षिण अफ्रीका में रह कर गाँधी जी ने न केवल भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के लिए आवाज उठाया बल्कि वहां रह रहे अन्य वंचित लोगों को न्याय दिलाने के हक में भी संघर्ष किया।
महात्मा गाँधी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
- भारत लौटने पर, उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश साम्राज्य के तहत भारतीय आबादी कैसे पीड़ित थी। उन्होंने एक स्वतंत्र राष्ट्र के उद्देश्य से स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने का निर्णय लिया।
- उनके राजनीतिक विचारों की धुरी अहिंसा का उपयोग करना थी। गाँधी हमेशा मानते थे कि हिंसा कभी भी किसी समस्या का हल नहीं है।
- उन्होंने सविनय अवज्ञा के विचारों पर आधारित कई अभियान शुरू किए। बिना किसी हिंसा का सहारा लिए, ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा दिए गए किसी भी आदेश को अस्वीकार करना ही उनकी रणनीति थी । जल्दी ही लोग सड़कों पर उतरने लगे और अंग्रेजी सरकार के कामों का बहिष्कार करने और उसे सहयोग देने से पूरी तरह इनकार करने लगे।
- इसी तरह, जब अंग्रेजों ने नमक पर भारी कर लगाया तो गाँधीजी ने दांडी मार्च भी किया।
- गाँधीजी 1920 में कांग्रेस पार्टी के नेता बने लेकिन बाद में 1934 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना अलग संघर्ष जारी रखा।
- बार-बार बहिष्कार, अवज्ञा आंदोलनों और अंग्रेजी साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए उन्होंने 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू किया। आखिरकार अंग्रेजों ने भारत से जाने का निर्णय लिया, जिसके बाद देश स्वतंत्र हो गया।
महात्मा गाँधी और उनके द्वारा किए गए आंदोलन
- चंपारण सत्याग्रह (1917): यह आंदोलन बिहार के चम्पारण जिले में किसानों के उत्पीड़न के खिलाफ हुआ था। गांधी जी ने इस आंदोलन के माध्यम से किसानों के अधिकारों की रक्षा की और उन्हें साथ में मिलकर अपने अधिकार के लिए लड़ने की प्रेरणा दी।
- असहयोग आंदोलन (1920-1922): महात्मा गांधी ने भारतीयों से ब्रिटिश सरकार और संस्थानों के समर्थन और सहयोग की वापसी करने का आग्रह किया। लोगों को ब्रिटिश निर्मित सामानों का बहिष्कार करने, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने, और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में भाग लेने की सलाह दी गई। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासकों पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव डालने के लिए गैरहिंसक साधनों का उपयोग करना था।
- नमक सत्याग्रह / दांडी मार्च (1930): यह आंदोलन अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए नमक कानून के खिलाफ था जिसमें भारतीय को खुद नमक बनाने की अनुमति नहीं थी उन्हें इंग्लैंड से आए नमक का प्रयोग करना पड़ता था जिस पर भारी टैक्स भी देना पड़ता था।
- दलित आंदोलन (1932): दलित आंदोलन देश में फैले छुआछूत के विरोध में शुरू किया गया। गांधी जी ने समाज में भेदभाव को खत्म करने का निश्चय किया।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह आंदोलन शुरू हुआ जिसमें भारत से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के उद्देश्य से यह आंदोलन चलाया गया और भारत को अग्रेजों से पूरी तरह स्वतंत्र बनाने का प्रण लिया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930): सविनय अवज्ञा महात्मा गांधी द्वारा तब शुरू किया गया जब ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी की 11 मांगों को पूरा करने से मना कर दिया था।
महात्मा गाँधी की मृत्यु
- स्वतंत्रता मिलने के साथ देश भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया।
- बहुत से लोग गाँधी की नीतियों का विरोध करने लगे। नाथूराम गोडसे एक हिंदू राष्ट्रवादी था, जिसे गाँधी जी के विचारों से सख्त नफरत थी।
- इसके परिणामस्वरूप, गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को शाम लगभग 5:17 बजे गाँधी जी पर तीन गोलियां चलाईं और उनकी हत्या कर दी।
- गाँधी जी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी गई और उनके अंतिम संस्कार के लिए बहुत बड़ी व्यवस्था की गई। अपने राष्ट्रपिता को अलविदा कहने के लिए उनके अंतिम संस्कार में 20 लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे।
जब आप अपने बच्चे के सामने महात्मा गाँधी का वर्णन करते हैं, तो कोशिश करें कि उसे उन घटनाओं के बारे में बताए, जिसने गाँधीजी को एक महान इंसान बनाया और यह भी समझाएं कि उन्होंने अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए कितनी अहम भूमिका निभाई थी। सत्याग्रह का सिद्धांत उनके जीवन के मूलमन्त्रों में से एक था, अपने बच्चे को बताएं कि सच बोलना कितना जरूरी है और साथ ही साथ ईमानदारी और अहिंसा के साथ जीवन जीना कितना महत्वपूर्ण है।
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