In this Article
- एम्नियोसेंटेसिस क्या है
- एम्नियोसेंटेसिस जांच किसे करवानी चाहिए
- भारत में एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने पर कितना खर्च होता है
- एम्नियोसेंटेसिस जांच क्यों करवाई जाती है
- एम्नियोसेंटेसिस जांच कब करवानी चाहिए
- एम्नियोसेंटेसिस जांच की तैयारी कैसे करें
- एम्नियोसेंटेसिस की प्रक्रिया क्या है
- इससे कैसा महसूस होता है
- एम्नियोसेंटेसिस के परिणाम क्या दिखाते हैं
- एम्नियोसेंटेसिस जांच कितनी सटीक हो सकती है
- एम्नियोसेंटेसिस जांच के खतरे
- एम्नियोसेंटेसिस बनाम सी.वी.एस.
- एम्नियोसेंटेसिस जांच के लाभ
किसी भी परिवार के लिए गर्भावस्था की खबर अनेक खुशियों का पैगाम होता है। हर किसी को स्वस्थ शिशु चाहिए और गर्भस्थ शिशु में किसी भी प्रकार की क्रोमोसोमल असामान्यताओं की जांच के लिए प्रसव पूर्व परीक्षण करवाना सर्वोत्तम विकल्प है। भ्रूण में क्रोमोसोमल असामान्यताओं का पता लगाने के लिए ‘एम्नियोसेंटेसिस’ नामक एक जांच और करवाई जाती है। आमतौर पर डॉक्टर गर्भावस्था के 15वें और 18वें सप्ताह में एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने की सलाह देते हैं। इस जांच के परिणाम 99.4% तक सही सिद्ध होते हैं।
एम्नियोसेंटेसिस क्या है
एम्नियोसेंटेसिस (जिसे एम्नियोटिक द्रव की जांच भी कहा जाता है) एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जिसका उपयोग प्रसव से पूर्व गर्भस्थ शिशु में क्रोमोसोमल असामान्यताओं व संक्रमण का पता लगाने और शिशु का लिंग निर्धारित करने के लिए किया जाता है। एम्नियोटिक द्रव शिशु के चारों तरफ फैला होता है और गर्भावस्था के दौरान शिशु की सुरक्षा करता है। इस द्रव में भ्रूण की कोशिकाएं और शिशु द्वारा उत्पन्न किए हुए विभिन्न रसायन होते हैं। इस जांच में एम्नियोटिक थैली में विकसित होते भ्रूण के आसपास से एम्नियोटिक द्रव का सैंपल लिया जाता है जिसमें भ्रूण की कोशिकाएं होती हैं और फिर भ्रूण के डी.एन.ए. का परीक्षण करके उसमें अनुवांशिक असामान्यताओं का पता लगाया जाता है। शिशु के एम्नियोटिक द्रव की जांच का कारण यह पता लगाना है कि उसमें कोई अनुवांशिक विकार तो नहीं है।
यह प्रक्रिया स्थानीय एनेस्थीसिया के तहत की जाती है जहाँ गर्भाशय की दीवार से होकर एम्नियोटिक थैली में सुई डालकर एम्नियोटिक द्रव निकाला जाता है। एम्नियोटिक द्रव निकालने की यह प्रक्रिया अल्ट्रासाउंड स्कैन में देख कर की जाती है।
यद्यपि एम्नियोसेंटेसिस अनुवांशिक जांच को सुरक्षित विकल्प माना जाता है, किंतु यह जांच की एक इन्वेसिव प्रक्रिया होती है जिसमें माँ व भ्रूण को हानि का खतरा हो सकता है। हर आयु की महिलाओं को पहली व दूसरी तिमाही में जांच करवाने की सलाह दी जाती है।
एम्नियोसेंटेसिस जांच किसे करवानी चाहिए
35 वर्ष से अधिक आयु की किसी भी गर्भवती महिला को यह जांच करवाने की सलाह दी जाती है क्योंकि उनके गर्भ में पल रहे शिशु में क्रोमोसोमल असामान्यताएं होने की संभावना अधिक होती है।यदि परिवार में पहले से ही अनुवांशिक विकार या असामान्यताएं हैं या यदि आपके अल्फा–फेटोप्रोटीन स्तर, कई मार्कर के स्क्रीनिंग परीक्षण या अल्ट्रासाउंड से संदेहजनक परिणाम मिले हैं तो डॉक्टर एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने की सलाह दे सकते हैं।
भारत में एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने पर कितना खर्च होता है
एम्नियोसेंटेसिस परीक्षण की प्रक्रिया का खर्च – डॉक्टर, लैब और होने वाली जांच पर निर्भर करता है। भारत में एम्नियोसेंटेसिस परीक्षण को करवाने पर लगभग रु 8,000 से रु 15,000 तक खर्च हो सकता है।
एम्नियोसेंटेसिस जांच क्यों करवाई जाती है
यदि आपकी गर्भावस्था को अत्यधिक खतरा है (किसी विशेष समस्या के कारण या आपकी आयु के कारण और इत्यादि) तो आपको एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने की सलाह दी जाती है। आप जांच के बाद इसके परिणामों के संबंध में डॉक्टर से चर्चा कर सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में किसी भी प्रकार की असामान्यताएं व समस्याओं का पता लगाने के लिए एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाई जाती है, जैसे डाउन सिंड्रोम का पता लगाने के लिए एम्नियोसेंटेसिस जांच की जा सकती है। इसके अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
- ट्राइसोमी 21
- ट्राइसोमी 13
- ट्राइसोमी 18
- अन्य अनुवांशिक विकार, जैसे सिस्टिक फाइब्रोसिस (यह रोग फेफड़ों व पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचाता है), सिकल कोशिकाओं का रोग (इस समस्या में लाल रक्त कणिकाओं का लचीलापन कम हो जाता है) या टे–सैक्स रोग (इसमें मस्तिष्क और मेरुदंड की तंत्रिका कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं) का भी पता लगाया जा सकता है। यह जांच विकारों के सटीक कारणों का पता लगाने के लिए की जाती है और यह सामान्य जांच नहीं है जो सिर्फ भ्रूण पर नजर रखने के लिए जाती है।
- न्यूरल ट्यूब से संबंधित विकार, जैसे स्पाइना बिफिडा और एनेनसेफली (शिशु का अविकसित मस्तिष्क) का पता एम्नियोटिक द्रव में अल्फाफेटोप्रोटीन की मात्रा का आकलन करके लगाया जाता है।
- एम्नियोसेंटेसिस जांच भ्रूण के फेफड़ों की परिपक्वता का पता लगाने में मदद करती है। 30 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के फेफड़ों की परिपक्वता एम्नियोटिक द्रव में सर्फेक्टेंट (लिपिड, प्रोटीन व ग्लाइकोप्रोटीन का मिश्रण) की मात्रा का परीक्षण करके निर्धारित की जाती है। सर्फेक्टेंट के उत्पादन को कई परीक्षणों द्वारा किया जा सकता है।
यह परीक्षण अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है, जैसे;
- संक्रमण, जिसमें एम्नियोसेंटेसिस बैक्टीरिया या सफेद रक्त कणिकाओं की असामान्य गिनती को दिखा कर ग्लूकोज के घटते स्तर का पता लग सकता है।
- आर.एच. में असमानता, यह समस्या तब होती है जब एक गर्भवती महिला का रक्त शिशु की तुलना में अलग प्रकार का होता है।
- पॉलीहाइड्रमनियोस असंपीड़न (गर्भावस्था के दौरान एम्नियोटिक थैली में अत्यधिक एम्नियोटिक द्रव होना)।
यद्यपि एम्नियोसेंटेसिस जांच गर्भावस्था की समस्याओं का पता लगा सकती है किंतु यह समस्याओं की गंभीरता का पता लगाने में अक्षम है। एम्नियोसेंटेसिस की प्रक्रिया सभी जन्मजात समस्याओं का पता नहीं लगा सकती है। यह याद रखना भी आवश्यक है कि एम्नियोसेंटेसिस जांच सभी के लिए सही नहीं है। यदि आपको कोई संक्रमण है, जैसे एच.आई.वी/एड्स, हेपेटाइटिस बी या सी है तो यह जांच करवाने से प्रक्रिया के दौरान समान संक्रमण शिशु में भी हो सकता है। डी.एन.ए. परीक्षण के लिए एम्नियोसेंटेसिस एक बहुत ही आम प्रक्रिया है।
एम्नियोसेंटेसिस जांच कब करवानी चाहिए
एम्नियोसेंटेसिस जांच आपके गर्भस्थ शिशु के जेनेटिक्स व आंतरिक समस्याओं के बारे में जानकारी देती है। इसलिए यह जांच करवाने की सलाह तब दी जाती है जब आपकी गर्भावस्था पर जांच के परिणामों का विशेष प्रभाव पड़ता हो या इसके साथ आगे बढ़ने की इच्छा पर निर्भर करता है।
गर्भावस्था के दौरान यह जांच विशेष रूप से 15वें या 20वें सप्ताह में करवाई जाती है। 15वें सप्ताह से पहले एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने से जटिल समस्याएं हो सकती हैं।
आप एम्नियोसेंटेसिस जांच करवा सकती हैं, यदि;
- यदि किसी प्रसवपूर्व जांच के परिणाम सकारात्मक हों तो आप एम्नियोसेंटेसिस जांच करवा सकती हैं।
- यदि स्क्रीनिंग टेस्ट के परिणाम भी सकारात्मक हैं, जैसे यदि पहली तिमाही में या मुक्त कोशिकाओं का प्रसवपूर्व डी.एन.ए. स्क्रीनिंग टेस्ट सकारात्मक है तो इन मामलों में आप एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने का विचार कर सकती हैं।
- पहले की गर्भावस्था में किसी प्रकार की क्रोमोसोमल असामान्यता होना या न्यूरल ट्यूब में कोई विकार होने पर आप यह जांच करवा सकती हैं।
- यदि आपकी पिछली गर्भावस्था डाउन सिंड्रोम से प्रभावित थी या उसमें कोई न्यूरल विकार था जो एक गंभीर समस्या है और इससे शिशु की रीढ़ की हड्डी या मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है। इन विकारों की पुष्टि करने के लिए आप एम्नियोसेंटेसिस की प्रक्रिया अपना सकती हैं।
- यदि आप 35 वर्ष या उससे अधिक आयु की हैं तो आपमें डाउन सिंड्रोम जैसी क्रोमोसोमल असामान्यताओं की संभावना अधिक हो सकती है।
- यदि आपके या साथी के परिवार में किसी को पहले कभी अनुवांशिक विकार हुआ है तो भी इस जांच को किया जा सकता है।
- यदि अल्ट्रासाउंड के परिणाम असामान्य हैं तो आप इस जांच की मदद से अल्ट्रासाउंड में पाए गए असामान्य परिणामों से संबंधित जेनेटिक समस्याओं का पता लगा सकती हैं।
एम्नियोसेंटेसिस जांच की तैयारी कैसे करें
गर्भावस्था के दौरान एम्नियोसेंटेसिस जांच की जाती है और इस प्रक्रिया में अल्ट्रासाउंड में देखकर भ्रूण के आसपास से एम्नियोटिक द्रव का सैंपल लिया जाता है। इस प्रक्रिया के बारे में डॉक्टर आपको पूर्ण जानकारी दे सकते हैं और यदि आपके मन में कोई भी सवाल उत्पन्न होता है तो आप अपने डॉक्टर से पूछ भी सकती हैं।
- प्रक्रिया से पहले आपसे एक फॉर्म पर हस्ताक्षर लिए जाएंगे जिसके माध्यम से डॉक्टर को यह जांच करने की अनुमति दी जाती है। यह फॉर्म अच्छी तरह से पढ़ा जाना चाहिए और यदि आवश्यकता हो तो हस्ताक्षर करने से पहले इस फॉर्म में लिखे हर नियम को अच्छी तरह से समझ लें। सामान्यतः एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने से पहले किसी भी आहार या गतिविधि की आवश्यकता नहीं होती है।
- इस दौरान आपको डॉक्टर को अपनी समस्याएं बताने की आवश्यकता होगी।
- साथ ही आपको डॉक्टर को यह भी बताना होगा कि यदि आपको किसी दवा या एनेस्थीशिया से कोई एलर्जी तो नहीं है।
- आप कोई भी दवा या सप्लीमेंट का उपयोग करती हैं तो उसके बारे में भी डॉक्टर से चर्चा करें।
- यदि आपको पहले कभी रक्तस्राव संबंधित समस्या हुई हो या आप रक्त पतला करने की दवा या कोई ऐसी दवा भी लेती हैं जो रक्त के थक्कों को प्रभावित करती है तो डॉक्टर से चर्चा जरूर करें। एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाने से पहले इन सभी दवाओं का सेवन बंद करना आवश्यक है।
- यदि रक्त का प्रकार आर.एच. नकारात्मक है तो एम्नियोसेंटेसिस प्रक्रिया के दौरान माँ व शिशु का रक्त मिल सकता है जिससे आर.एच. संवेदनशीलता हो सकती है और भ्रूण की लाल रक्त कणिकाएं नष्ट हो सकती हैं।
- यदि गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में एम्नियोसेंटेसिस जांच करवाई जाती है तो विशेष रूप से यह जांच तब करनी चाहिए जब मूत्राशय भरा हुआ हो क्योंकि इससे प्रक्रिया के दौरान गर्भाशय एक बेहतर स्थिति में होता है।यदि यह जांच गर्भावस्था के बाद के दिनों में करवाई जाती है तो मूत्राशय पूरी तरह से खाली होना चाहिए।
- इस जांच की तैयारी के लिए डॉक्टर आपको अन्य सलाह भी दे सकते हैं, जिसका पालन आप अवश्य करें।
एम्नियोसेंटेसिस की प्रक्रिया क्या है
एम्नियोसेंटेसिस की प्रक्रिया कई बार की जाती है इसलिए आपको हॉस्पिटल में रहने की आवश्यकता नहीं है। आप प्रक्रिया के पूर्ण होते ही घर वापस जा सकती हैं और आपको अगले 24 घंटों तक आराम करने की सलाह दी जाती है।
डॉक्टर सबसे पहले गर्भाशय में शिशु की जगह निर्धारित करने के लिए अल्ट्रासाउंड स्कैन कर सकते हैं। एम्नियोसेंटेसिस में अल्ट्रासाउंड शिशु की स्पष्ट छवि के लिए उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगों का उपयोग करता है।
अल्ट्रासाउंड करने के बाद पेट पर सुन्न करने का एम्नियोसेंटेसिस इंजेक्शन दिया जाता है। अल्ट्रासाउंड एम्नियोसेंटेसिस की सुई लगाने की सही जगह को निर्धारित करता है। यह सुई पेट के माध्यम से गर्भ में लगाई जाती है और इस दौरान एम्नियोटिक द्रव की थोड़ी सी मात्रा बाहर निकाली जाती है। इसमें सिर्फ 2 मिनट ही लगते हैं।
एम्नियोटिक द्रव की जांच के परिणाम कुछ ही दिनों में आ जाते हैं।
इससे कैसा महसूस होता है
एम्नियोसेंटेसिस जांच में दर्द नहीं होता है हालांकि प्रक्रिया के दौरान आपको असुविधा महसूस हो सकती है। जांच के दौरान दर्द मासिक धर्म के दर्द के समान ही होता है। जब सुई को बाहर निकाला जाता है तब आपको हल्का सा दबाव महसूस हो सकता है।
एम्नियोसेंटेसिस के परिणाम क्या दिखाते हैं
- एम्नियोसेंटेसिस सैंपल के माध्यम से जो सबसे सामान्य परीक्षण होता है वह क्रोमोसोमल जांच है जिसमें क्रोसोमल असामान्यताओं का पता लगाया जाता है।
- क्रोमोसोम को पूरी तरह से परखने के लिए एम्नियोटिक द्रव की कोशिकाएं पहले पूरी तरह से विकसित होनी चाहिए।
- इसका अंतिम परिणाम लगभग 2 सप्ताह के बाद ही उपलब्ध हो सकता है।
- परिणाम जल्दी प्राप्त करने के लिए आप 24 से 48 घंटों के भीतर फ्लोरसेंस इन सीटू हायब्रिडाइजेशन (फिश) टेस्ट भी करवा सकती हैं।
- यदि संक्रमण या आनुवंशिक समस्या की जांच करने के लिए एम्नियोसेंटेसिस किया जाता है, तो डॉक्टर आपको बता सकते हैं कि परिणाम प्राप्त करने में कितना समय लगेगा। कुछ मामलों में, स्पष्ट परिणाम के लिए माता–पिता के रक्त के सैंपल पर एक क्रोमोसोमल परीक्षण या बच्चे पर आगे के परीक्षण की भी आवश्यकता हो सकती है। केवल 0.1% मामलों में सैंपल की जांच से एक बार में परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं, इसमें दोबारा से जांच करवाने की आवश्यकता हो सकती है।
एम्नियोसेंटेसिस जांच कितनी सटीक हो सकती है
एम्नियोसेंटेसिस जांच की सटीकता हमेशा उच्च होती है (लगभग 98%-99% तक), यद्यपि इस जांच के परिणाम ज्यादातर सही आते हैं किंतु यह जांच जन्मजात समस्याओं की गहराई पता लगाने में सक्षम नहीं है।
यदि आपकी जांच के परिणाम सामान्य हैं तो गर्भस्थ शिशु को कोई भी जेनेटिक (अनुवांशिक) या क्रोमोसोमल समस्या नहीं है। जांच के सामान्य परिणाम यह सुनिश्चित करते हैं कि शिशु का जन्म बिना किसी असामान्यता के होगा।
असामान्य परिणामों का मतलब यह हो सकता है कि शिशु को कुछ आनुवांशिक समस्या या गंभीर जन्म–दोष है। यह सलाह दी जाती है कि आप डॉक्टर और साथी के साथ सभी परीक्षणों के परिणामों पर चर्चा करें ताकि आप अपनी गर्भावस्था को जारी रखने या न रखने के बारे में सही निर्णय ले सकें।
एम्नियोसेंटेसिस जांच के खतरे
एम्नियोसेंटेसिस प्रक्रिया में माँ व गर्भस्थ शिशु को कुछ खतरे हो सकते हैं। वे जटिलताएं निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
- एम्नियोटिक द्रव का रिसाव: एक दुर्लभ संभावना है कि एम्नियोसेंटेसिस प्रक्रिया के बाद योनि से द्रव का रिसाव होता है। ज्यादातर मामलों में, द्रव का रिसाव कम होता है और यह एक सप्ताह के भीतर रुक जाता है। गर्भावस्था सामान्य रूप से आगे बढ़ती है।
- गर्भपात: यदि एम्नियोसेंटेसिस परीक्षण दूसरी तिमाही में करवाया जाता है तो इससे गर्भपात (लगभग 0.6% संभावना) का खतरा हो सकता है। शोध के अनुसार, यदि गर्भधारण के 15वें सप्ताह से पहले एम्नियोसेंटेसिस परीक्षण किया जाता है, तो गर्भपात का खतरा अधिक होता है। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में अक्सर एक निश्चित प्रतिशत में गर्भपात होता है। हालांकि, यह निर्धारित करने के लिए कोई पुष्टि नहीं है कि गर्भपात एम्नियोसेंटेसिस के कारण हुआ है या नहीं।
- सुई से चोट: ऐसा भी हो सकता है कि सुई का उपयोग करते वक्त गर्भस्थ शिशु के हाथ या पैर हिल रहे हों।
- आर.एच. संवेदनशीलता: यह एक दुर्लभ संभावना है जब बच्चे की रक्त कोशिकाएं माँ के रक्त प्रवाह में प्रवेश करती हैं। यदि आपका रक्त आर.एच. निगेटिव है और आपने आर.एच. पॉजिटिव रक्त में एंटीबॉडी विकसित नहीं की है, तो प्रक्रिया के बाद आपको आर.एच. इम्यून ग्लोब्युलिन का इंजेक्शन दिया जाता है । यह आपके शरीर को किसी भी आर.एच. एंटीबॉडी का उत्पादन करने से रोक सकता है जिससे शिशु की लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है। एंटीबॉडी का उत्पादन किया गया है या नहीं यह एक रक्त परीक्षण के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है।
- गर्भाशय में संक्रमण: गर्भाशय में संक्रमण एम्नियोसेंटेसिस प्रक्रिया के बाद दुर्लभ मामलों में होता है, लेकिन यह संभावना के प्रति सचेत रहने में मदद करता है।
- संक्रमण: यदि आप हेपेटाइटिस–बी या सी या एच.आई.वी./एड्स से संक्रमित हैं तो यह संक्रमण एम्नियोसेंटेसिस प्रक्रिया के दौरान शिशु तक भी पहुँच सकता है।
- एम्नियोसेंटेसिस के बाद ऐंठन: एम्नियोसेंटेसिस प्रक्रिया के बाद आपको हल्की ऐंठन महसूस हो सकती है।
एम्नियोसेंटेसिस बनाम सी.वी.एस.
समानता:
- एम्नियोसेंटेसिस और कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सी.वी.एस.) दोनों जांच जन्मपूर्व नैदानिक प्रक्रियाएं हैं जिनका उपयोग भ्रूण की आनुवंशिक और क्रोमोसोमल असामान्यताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है।
- यह दोनों परीक्षण गर्भपात के खतरे को बढ़ाते हैं।
- अन्य आनुवांशिक परीक्षण के विपरीत, एम्नियोसेंटेसिस और सी.वी.एस. परीक्षण प्रक्रियाएं माता–पिता के विपरीत सीधे शिशु पर की जाती हैं, जिसका अर्थ है कि शिशु के स्वास्थ्य की जानकारी स्पष्ट प्राप्त हो सकती है। माता–पिता पर किए गए परीक्षण केवल अनुमानित जानकारी दे सकते हैं कि क्या शिशु किसी विशेष आनुवंशिक बीमारियों से ग्रसित हो सकता है। एम्नियोसेंटेसिस और सी.वी.एस. वास्तव में बार–बार किए जाने वाले परीक्षण हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि शिशु को कोई आनुवंशिक बीमारी है या नहीं।
अंतर:
- सी.वी.एस. गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में किया जा सकता है, जबकि एम्नियोसेंटेसिस केवल 15वें और 20वें सप्ताह के बीच किया जा सकता है। सी.वी.एस. आमतौर पर गर्भावस्था के 12वें सप्ताह (10वें और 14वें सप्ताह के बीच) में किया जाता है।
- एम्नियोसेंटेसिस – अल्ट्रासाउंड स्कैन में देखकर गर्भ के माध्यम से एम्नियोटिक थैली में सुई लगाकर किया जाता है जबकि सी.वी.एस. पेट के माध्यम से या गर्भ के माध्यम से किया जाता है। सी.वी.एस. वास्तव में प्लेसेंटा का सैंपल निकालता है।
- एम्नियोसेंटेसिस में लगभग 0.5-1% की दर से गर्भपात की संभावना होती है, जबकि सी.वी.एस. में वास्तव में एम्नियोसेंटेसिस की तुलना में गर्भपात का खतरा अधिक होता है। सी.वी.एस. में गर्भपात की संभावना 1 और 2% के बीच होती है।
एम्नियोसेंटेसिस जांच के लाभ
- एम्नियोसेंटेसिस परीक्षण इस बात की पुष्टि करता है कि क्या भ्रूण में कोई क्रोमोसोमल असामान्यता है जो अन्य परीक्षण द्वारा पता लगाया जा सकता है, जैसे रक्त परीक्षण।
- यह बच्चे के जन्म से पहले क्रोमोसोमल या आनुवंशिक असामान्यता का एक विशिष्ट निदान प्रदान करता है। आप गर्भावस्था के साथ आगे बढ़ सकती हैं या नहीं, इस जांच की मदद से आप एक सही निर्णय ले सकती हैं।
- एम्नियोसेंटेसिस जांच परिवार के स्वास्थ्य इतिहास पर आधारित अन्य अनुवांशिक दोषों के निदान में मदद करता है।
- यह किसी भी जन्म–दोष वाले बच्चे के लिए प्रारंभिक तैयारी या गर्भावस्था के साथ आगे बढ़ने के लिए एक प्रारंभिक निर्णय लेने में मदद करता है।
एम्नियोसेंटेसिस एक नैदानिक परीक्षण है जो क्रोमोसोमल असामान्यताओं, न्यूरल ट्यूब के दोष और आनुवंशिक विकारों का पता लगाने में मदद करता है। कुछ महिलाएं स्क्रीनिंग का विकल्प चुनती हैं और फिर नैदानिक परीक्षण के बारे में निर्णय लेती हैं। अन्य महिलाएं तुरंत निदान का विकल्प चुनती हैं क्योंकि इसकी मदद से वे यह पता कर सकती हैं कि उनमें क्रोमोसोमल असामन्यता का कोई खतरा तो नहीं है जिसे स्क्रीनिंग द्वारा पता नहीं लगाया जा सकता है।
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