गर्भावस्था के दौरान गर्भाशय की रसौली (यूटराइन फाइब्रॉएड)

प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय की रसौली (यूटराइन फाइब्रॉएड)

फाइब्रॉएड मुलायम ट्यूमर होते हैं, जो कि गर्भाशय को बनाने वाली सेल्स से बन जाते हैं। प्रजनन आयु वाली किसी भी महिला को इसकी समस्या हो सकती है और अनुमान है कि 50% से 80% तक महिलाएं अपने जीवन में कम से कम एक बार इसका अनुभव जरूर करती हैं। हालांकि, फाइब्रॉएड होने का कारण साफ नहीं है, पर ऐसे कुछ तथ्य हैं, जो इनके बनने में भूमिका निभाते हैं, जैसे – हॉर्मोनल लेवल, वंशानुगत कारण, नस्ल, मोटापा आदि। कुछ प्रेगनेंट महिलाओं में फाइब्रॉएड के कारण मिसकैरेज, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, प्रीटर्म लेबर, आदि जैसी समस्याएं हो सकती हैं और इसलिए गर्भधारण करने से पहले इनका इलाज किया जाना चाहिए। फाइब्रॉएड क्या होते हैं और प्रेगनेंसी पर इनका क्या असर पड़ता है, यह जानने के लिए आगे पढ़ें। 

फाइब्रॉएड क्या होते हैं? 

यूटराइन फाइब्रॉएड को यूटरस के मायोमास या लियोमायोमा के नाम से भी जाना जाता है। इन फाइब्रॉएड का आकार मटर के दाने से लेकर एक ग्रेपफ्रूट जितना बड़ा कुछ भी हो सकता है और ये ट्यूमर कैंसर कारक नहीं होते हैं। यह फाइब्रॉएड गर्भाशय की खाली जगह, गर्भाशय की दीवार के अंदर या गर्भाशय की दीवार के बाहर कहीं भी हो सकते हैं और महिलाओं को ये एक या एक से अधिक जगह पर हो सकते हैं। गर्भाशय में स्थित फाइब्रॉएड या फाइब्रॉएड के समूह का आकार यदि बड़ा हो चुका है या वह गर्भाशय की दीवार के बाहर की ओर बढ़ रहा है, तो ऐसे में गर्भाशय असामान्य रूप से अपनी जगह बदल सकता है। इससे आंत, मूत्राशय जैसे अंदरूनी अंगों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे भारीपन, कब्ज, बार-बार पेशाब आना, पीठ का दर्द और पेल्विस में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। फाइब्रॉएड को भारी पीरियड ब्लीडिंग और फर्टिलिटी में बाधा का कारण भी माना जाता है।  कुछ मामलों में यह प्रेगनेंसी के दौरान समस्याएं खड़ी कर सकते हैं। यूटराइन फाइब्रॉएड चाहे कितने भी बड़े हो जाएं पर ये लगभग हमेशा ही गर्भाशय के मुलायम ट्यूमर ही रहते हैं और फाइब्रॉएड होने से महिला को कैंसर होने का खतरा नहीं होता है। ऐसा अंदाजा लगाया गया है, कि आमतौर पर फाइब्रॉएड प्रेगनेंसी के पहले ही बनते हैं। अधिकतर महिलाएं जब तक एक अल्ट्रासाउंड स्कैन या पेल्विक एग्जाम नहीं करा लेतीं तब तक उन्हें इसका पता भी नहीं होता है। 

फाइब्रॉएड कितने प्रकार के होते हैं? 

फाइब्रॉएड के प्रकार गर्भाशय में उनके बनने वाले हिस्से के ऊपर भी निर्भर करता है। 

1. इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड 

ये फाइब्रॉएड गर्भाशय की मस्कुलर दीवार के अंदर बनते हैं और सबसे ज्यादा कॉमन हैं। ये आकार में बहुत बड़े हो जाते हैं और गर्भाशय को भरकर उसकी आकृति खराब कर देते हैं। इनकी उपस्थिति से अंडे फर्टिलाइज होने में बाधा आती है और इनफर्टिलिटी हो सकती है। इंट्राम्यूरल फाइब्रॉएड के कारण पीरियड के दौरान भारी ब्लीडिंग हो सकती है। 

2. सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड 

सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड गर्भाशय की अंदरूनी सतह के अंदर बनते हैं। गर्भाशय की इस परत में छोटे घावों की  उपस्थिति से भी इनफर्टिलिटी हो सकती है और माहवारी के दौरान भारी ब्लीडिंग और दर्द हो सकता है। 

3. सबसेरोसल फाइब्रॉएड 

ये फाइब्रॉएड गर्भाशय के बाहर की ओर बनते हैं और पेल्विस के हिस्से में बढ़ते हैं। जब एक फाइब्रॉएड बढ़ने लगता है तो यह एक छोटी शाखा जैसे टिश्यू के द्वारा गर्भाशय से जुड़ा रहता है। सबसेरोसल फाइब्रॉएड जब बढ़ने लगते हैं, तो अंदरूनी अंगों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है और इससे शारीरिक तकलीफ होने लगती है। 

4. सर्वाइकल फाइब्रॉएड 

ये फाइब्रॉएड यद्यपि दुर्लभ होते हैं और सर्विक्स की दीवारों में बन जाते हैं, जिससे लेबर के दौरान कॉम्प्लिकेशन आ सकती है।सर्वाइकल फाइब्रॉएड  

गर्भवती होने पर फाइब्रॉएड बनने के क्या कारण होते हैं? 

फाइब्रॉएड के बनने के क्या कारण होते हैं, इसके बारे में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऐसे कुछ जाने-माने कारण हैं, जिसके कारण प्रेगनेंसी के दौरान फाइब्रॉएड हो सकते हैं, जैसे कि हारमोंस, वंशानुगत बदलाव, और ग्रोथ फैक्टर्स। 

  • एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हॉर्मोन, पीरियड के दौरान गर्भाशय की अंदरूनी सतह के विकास को बढ़ाते हैं, इसलिए ऐसा लगता है, कि फाइब्रॉएड के बढ़ने के लिए भी ये हॉर्मोन्स जिम्मेदार हो सकते हैं। रिसर्च बताते हैं, कि फाइब्रॉएड में साधारण गर्भाशय मांसपेशियों की तुलना में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन के अवशोषकों की उपस्थिति अधिक मात्रा में होती है। इसलिए प्रेगनेंसी के दौरान जब एस्ट्रोजन का स्तर ऊंचा हो जाता है, तो फाइब्रॉएड में सूजन आने लगती है। गर्भनिरोधक गोलियों में एस्ट्रोजन की उपस्थिति के कारण, इन्हें लेने वाली महिलाओं में फाइब्रॉएड विकसित होने की संभावना ज्यादा होती है। 
  • वंशानुगत बदलाव भी फाइब्रॉएड के बनने का एक कारण हो सकते हैं। चूंकि फाइब्रॉएड में जीन्स में बदलाव देखे जाते हैं, जो कि गर्भाशय की साधारण मांसपेशी सेल्स से अलग होते हैं। 
  • ग्रोथ फैक्टर्स शरीर के टिश्यूज को मेंटेन करने में मदद करते हैं, जो कि फाइब्रॉएड के बनने के जिम्मेदार हो सकते हैं। कई नई रिसर्च में इस बात के सबूत भी मिले हैं, कि कैफीन, अल्कोहल और रेड मीट से फाइब्रॉएड का खतरा बढ़ सकता है।

गर्भावस्था के दौरान यूटराइन फाइब्रॉएड के संकेत और लक्षण क्या होते हैं? 

अधिकतर महिलाओं में फाइब्रॉएड के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। अधिकतर महिलाओं को इसके बारे में तब तक जानकारी नहीं होती है, जब तक वह स्कैनिंग ना करा लें। ऐसी लगभग एक तिहाई महिलाओं में फाइब्रॉएड के कारण असामान्य पीरियड और दर्द जैसे लक्षण दिखते हैं। 

गर्भाशय में फाइब्रॉएड के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं: 

  • दर्द भरे पीरियड या लंबी चलने वाली या भारी ब्लीडिंग जिससे एनीमिया हो सकता है। 
  • बार बार पेशाब आना या पेशाब करते समय दर्द होना, जो कि फाइब्रॉएड के कारण यूरिनरी ब्लैडर पर पड़ने वाले दबाव से होता है। 
  • कोलोन के ऊपर फाइब्रॉएड के कारण पड़ने वाले दबाव से पेट के निचले हिस्से में भारीपन महसूस होना जिसके कारण कब्ज हो सकती है। 
  • पेल्विस, पीठ या कमर में होने वाला दर्द, जो कि वहां फाइब्रॉएड के उपस्थिति के कारण होता है। 
  • बांझपन और गर्भधारण करने में परेशानी। 
  • सेक्स के दौरान दर्द। 
  • मिसकैरेज जिसका कारण बताना मुश्किल हो। 

महिलाएं जिनमें फाइब्रॉएड बनने का खतरा है

फाइब्रॉएड के खतरे का कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन जो बात साफ है वह यह है, कि यह प्रजनन की आयु वाली किसी भी महिला को हो सकता है। अन्य कारण जिस पर इसका प्रभाव हो सकता है, उनमें निम्नलिखित शामिल है: 

  • वंशानुगत कारण: अगर आपके परिवार में आपकी माँ या बहन या किसी और को फाइब्रॉएड की समस्या है, तो आपको फाइब्रॉएड बनने का खतरा ज्यादा है। 
  • नस्ल: अफ्रीकन महिलाओं या अफ्रीकन-कैरीबियन महिलाओं में अन्य किसी देश की तुलना में कम उम्र में फाइब्रॉएड बनने का खतरा ज्यादा होता है। इसका भी अनुमान है, कि इन्हें होने वाले फाइब्रॉएड का आकार बड़ा होता है।
  • मोटापा: वजन अधिक होने से शरीर में फैट की मात्रा अधिक होने के कारण, एस्ट्रोजन का स्तर भी बढ़ जाता है, जिससे फाइब्रॉएड बनने की संभावना होती है। 
  • आयु: आमतौर पर महिलाओं में तीस के दशक में फाइब्रॉएड बनते हैं। जिन महिलाओं के मेनोपॉज हो चुके होते हैं, उनमें अक्सर फाइब्रॉएड सिकुड़ जाते हैं और उनके कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। 
  • हार्मोन का स्तर: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन ज्यादा होने से फाइब्रॉएड बनने की आशंका होती है। 
  • बच्चे का जन्म: जो महिलाएं पहले से ही बच्चे को जन्म दे चुकी हैं, उनमें फाइब्रॉएड बनने का खतरा कम हो जाता है। एक से अधिक बच्चे होने के बाद इसका खतरा और भी कम होता जाता है। 
  • लाइफस्टाइल: देखा गया है कि अल्कोहल, कैफीन और रेड मीट के सेवन से फाइब्रॉएड का खतरा भी बढ़ जाता है। 

गर्भावस्था में गर्भाशय के फाइब्रॉएड का डाइग्नोसिस कैसे किया जाता है?

चूंकि अक्सर फाइब्रॉएड के कोई लक्षण नहीं होते हैं, इस कारण पेल्विक एग्जाम के दौरान संयोगवश इसका पता चलता है। पेल्विक परीक्षण के दौरान यदि गर्भाशय में किसी तरह की अनियमितता पाई जाती है, तो डॉक्टर इसे कंफर्म करने के लिए एक जांच की सलाह देते हैं। 

गर्भाशय के फाइब्रॉएड की जांच के लिए उपलब्ध कुछ टेस्ट इस प्रकार हैं: 

  • अल्ट्रासाउंड स्कैन: यह स्कैन साउंड वेव्स के इस्तेमाल से गर्भाशय और उसमें उपस्थित किसी फाइब्रॉएड की उपस्थिति की एक तस्वीर को जनरेट करते हैं। इस प्रोसीजर में डॉक्टर एक अल्ट्रासाउंड ट्रांसड्यूसर का इस्तेमाल करते हैं, जिसे आपके एबडोमेन (ट्रांसएब्डोमिनल) पर रखा जाता है या वजाइना के अंदर (ट्रांसवेजाइनल) रखा जाता है, ताकि गर्भाशय की तस्वीरें मिल सके। 
  • मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई): एमआरआई स्कैन गर्भाशय और फाइब्रॉएड की 3डी तस्वीरें उपलब्ध कराते हैं और इससे इसके आकार, आकृति और जगह की सटीक जानकारी मिलती है। यह फाइब्रॉएड के प्रकार को पहचानने में भी मदद करता है और इससे सबसे बेहतर इलाज के विकल्प भी पर भी विचार किया जा सकता है। 
  • हिस्टोरोस्कोपी: इस प्रोसीजर में गर्भाशय की कैविटी और फैलोपियन ट्यूब के मुंह से हिस्टोरोस्कोप नाम के एक छोटे प्रोब के इस्तेमाल से जांच की जाती है। 
  • हिस्टेरोसालपिंगोग्राफी: यह एक्सरे इमेजिंग का एक प्रोसीजर है, जिसमें गर्भाशय की कैविटी और फेलोपियन ट्यूब को हाईलाइट करने के लिए एक डाय का इस्तेमाल किया जाता है। अगर बांझपन के बारे में किसी तरह की चिंता है, तो हिस्टोरोसलपिंगोग्राफी की सलाह दी जाती है। फाइब्रॉएड को उजागर करने के साथ-साथ इससे इस बात का भी पता लगाया जा सकता है, कि फैलोपियन ट्यूब खुले हैं या नहीं। 
  • हिस्टेरोसोनोग्राफी: हिस्टेरोसोनोग्राफी को सलाइन इन्फ्यूजन सोनोग्राम के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें गर्भाशय की कैविटी को फैलाने के लिए सलाइन सॉल्यूशन का इस्तेमाल होता है। इस फैलाव से बेहतर तरीके से परीक्षण किया जा सकता है और सबम्यूकोसल फाइब्रॉएड की तस्वीर ली जा सकती है। 

फाइब्रॉएड के कॉम्प्लीकेशंस

जिन महिलाओं को फाइब्रॉएड होते हैं, उनमें से अधिकतर महिलाओं की सामान्य प्रेगनेंसी और वेजाइनल डिलीवरी हो जाती है। पर कुछ मामलों में प्रेगनेंसी के दौरान फाइब्रॉएड का खतरा ज्यादा होता है और इससे फाइब्रॉएड की जगह और उनके आकार के आधार पर जटिलताएं हो सकती हैं। 

  • गर्भावस्था के दौरान आने वाली परेशानियां

यह जानना बहुत जरूरी है, कि फाइब्रॉएड की जगह बड़े पैमाने पर जटिलताओं का कारण बनती है। उनके प्रकार के आधार पर फाइब्रॉएड के कारण कभी-कभी पहली और दूसरी तिमाही के दौरान गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।  गर्भाशय की कैविटी में मौजूद फाइब्रॉएड वैसे फाइब्रॉएड हैं, जिनके कारण अधिकतर गर्भपात होते हैं। 

  • डिलीवरी के दौरान आने वाली परेशानियां

फाइब्रॉएड महिलाओं में वेजाइनल डिलीवरी में कोई बाधा नहीं डालता है, पर गर्भाशय के निचले हिस्से में मौजूद फाइब्रॉएड बच्चे के जन्म में बाधा डाल सकता है। ऐसी स्थिति में सी-सेक्शन की नौबत आ सकती है। यही बात एक से अधिक फाइब्रॉएड होने की स्थिति में भी सामने आती है, क्योंकि इससे गर्भाशय सामान्य रूप से कॉन्ट्रैक्ट नहीं कर पाता है, जिससे लेबर में रुकावट आती है। 

  • बच्चे को खतरा

यह लगभग असंभव है, कि फाइब्रॉएड से बच्चे को कोई नुकसान हो। बहुत ही दुर्लभ मामलों में जब गर्भाशय के अंदर फाइब्रॉएड की सतह पर प्लेसेन्टा बन जाता है तो दिक्कतें आ सकती हैं। इससे बच्चे को सही मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं, जिसके कारण बच्चे का वजन कम हो सकता है या पानी की थैली समय से पहले फट सकती है।

इलाज

अगर लक्षणों से बहुत अधिक परेशानी नहीं हो रही, तो अधिकतर फाइब्रॉएड को किसी तरह की इलाज की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि इसके इलाज के लिए कोई एक बेहतरीन तरीका नहीं है। इसलिए डॉक्टर बेहतर इलाज के बारे में विचार करते हैं, जिसमें फाइब्रॉएड के लिए दवाएं या सर्जरी शामिल हैं। जिसका निर्णय फाइब्रॉएड के प्रकार और उसके लक्षणों पर निर्भर करता है। 

  • दवाओं के द्वारा इलाज

बिना किसी सर्जरी के फाइब्रॉएड के इलाज का सबसे आसान तरीका है दवाई और इसका इलाज भी व्यापक होता है। गोनाडोट्रोफिन-रिलीजिंग हार्मोन एनालॉग (जीएनआरएचएएस) सिकुड़ जाते हैं और फाइब्रॉएड की बढ़त को रोक देते हैं। इसे नेजल स्प्रे, मंथली इंजेक्शन या त्वचा ओपन के रूप में दिया जाता है। जीएनआरएचएएस शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को कम करता है और इसका इलाज आमतौर पर 3 से 6 महीनों के बीच का होता है। आमतौर पर महिला के गर्भ धारण की योजना के कुछ महीनों पहले इसकी सलाह दी जाती है। 

  • सर्जरी के द्वारा इलाज

मायोमेक्टमी ऐसा इकलौता सर्जिकल इलाज है, जिसमें गर्भाशय तो अपनी जगह पर ही रहता है और उसके फाइब्रॉएड को निकाल दिया जाता है और यह उन महिलाओं के लिए एक विकल्प है, जो गर्भधारण करने की क्षमता को बरकरार रखना चाहती हैं। मायोमेक्टोमी में लैपरोस्कोपिक या हिस्टोरोस्कोपिक सर्जरी के द्वारा फाइब्रॉएड को निकाला जाता है, जो फाइब्रॉएड आकार में बड़े होते हैं और जिन्हें निक लैपरोस्कोपिक से निकालना संभव नहीं होता है, उनके लिए ओपन सर्जरी की जाती है। फाइब्रॉएड को निकाल देने के बाद भी अगले 10 सालों में नए फाइब्रॉएड बनने की आशंका 25% रहती है

इलाज के विकसित तरीके

  • फोकस्ड अल्ट्रासाउंड: इस पद्धति में फाइब्रॉएड की वास्तविक जगह का पता लगाने के लिए एक एमआरआई स्कैनिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। हाई एनर्जी अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल करके फाइब्रॉएड को गर्मी दी जाती है और उसकी सेल्स को खत्म किया जाता है, जिससे वे सिकुड़ जाते हैं। 
  • थर्मल टेक्नीक: मयोलिसिस नामक इस अपेक्षाकृत नई पद्धति में लेप्रोस्कॉपी के माध्यम से एक उपकरण डाला जाता है, जिसे सीधा फाइब्रॉएड में डालते हैं। इसमें लेजर या बिजली के करंट के माध्यम से फाइब्रॉएड की सेल्स को नष्ट किया जाता है। क्रायोमयोलिसिस नामक ऐसी ही एक मिलती-जुलती पद्धति अत्यधिक ठंड के उपयोग से फाइब्रॉएड में जाने वाले खून के सप्लाई को जमा देती है और इससे फाइब्रॉएड सेल नष्ट हो जाते हैं। 

गर्भवती महिलाओं में फाइब्रॉएड के इलाज के लिए कौन से घरेलू उपचार हैं? 

ऐसी घरेलू दवाएं प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं, जिनके इस्तेमाल से प्राकृतिक रूप से बिना किसी सर्जरी के गर्भाशय के फाइब्रॉएड को सिकोड़ा जा सकता है। इन दवाओं और इलाजों को एक हेल्दी जीवन शैली के हिस्से के रूप में शामिल किया जा सकता है, जिससे प्राकृतिक रूप से गर्भाशय के फाइब्रॉएड का इलाज हो सकता है। 

कुछ घरेलू दवाएं नीचे दी गई हैं: 

  • कैस्टर ऑयल पैक: पेट पर कैस्टर ऑयल का पैक लगाने से दर्द से आराम मिलता है, क्योंकि उसमें रिसीओनेलिक एसिड पाया जाता है, जिसमें एंटी इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। कैस्टर ऑयल शरीर में टॉक्सिंस से लड़ने के लिए लिंफेटिक सिस्टम को स्टिम्युलेट भी करता है, जो कि फाइब्रॉएड के निर्माण का कारक होता है। 
  • ग्रीन टी: अपने नेचुरल फाइब्रॉएड ट्रीटमेंट डायट में ग्रीन टी को शामिल करने के बहुत से फायदे हैं। ग्रीन टी में मौजूद कंपाउंड एपीगैलोकेटचीन गैलेट फाइब्रॉएड सेल्स के विकास को रोकता है और उन्हें सिकुड़ने में मदद करता है। 
  • एप्पल साइडर विनेगर: बड़े पैमाने पर शरीर को डिटॉक्स करने के लिए और फाइब्रॉएड को सिकोड़ने के लिए एप्पल साइडर विनेगर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे फाइब्रॉएड के लक्षण कम करने में मदद मिलती है। 
  • बुरडोक रूट टी: बुरडोक रूट को लिवर की कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, जिससे एस्ट्रोजन का मेटाबॉलिज्म बढ़ता है, जिसके फलस्वरूप फाइब्रॉएड बढ़ने लगते हैं। इलाज के तौर पर इसकी चाय पीने से फाइब्रॉएड पर असर पड़ता है और नए ट्यूमर के बनने में रुकावट आती है। 
  • लहसुन: लहसुन में शक्तिशाली एंटी-इंफलामेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो फाइब्रॉएड और दूसरे ट्यूमर को बढ़ने से रोकते हैं। हर दिन 3 से 5 लहसुन की कलियां खाने से फाइब्रॉएड और इसके लक्षणों में कमी आती है। 
  • आंवला: आंवले में एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाया जाता है। एक इम्यूनोमोड्यूलेटर होता है जो कि फाइब्रॉएड के लक्षणों को कम करने के लिए कारगर है। 

बच्चे के जन्म के बाद आपके फाइब्रॉएड के साथ क्या होता है?

जन्म देने के तुरंत बाद फाइब्रॉएड के कारण बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो सकती है, जिनमें कुछ मामलों में खून चढ़ाने की नौबत भी आ सकती है। अधिकतर मामलों में महिला को ठीक होने के लिए फाइब्रॉएड के लिए सप्लीमेंट दिए जाते हैं। डिलीवरी के कुछ महीनों बाद जब गर्भाशय का आकार सिकुड़ता है, तो फाइब्रॉएड का आकार भी सिकुड़ जाता है और कई बार यह पहले से भी ज्यादा छोटा हो जाता है। 

क्या गर्भाशय के फाइब्रॉएड से बचाव संभव है? 

फाइब्रॉएड से बचने का कोई रास्ता नहीं है, सिवाय इसके कि महिला हिस्टोरेक्टोमी से गुजरे। हिस्टोरेक्टोमी जिसमें कि पूरे गर्भाशय को निकाल दिया जाता है, केवल इससे ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि फाइब्रॉएड अब दोबारा नहीं बनेंगे। नकारात्मक पहलू यह है कि जो कि गर्भाशय निकाल दिया जाता है तो महिला कभी भी मां नहीं बन सकती है। 

निष्कर्ष

हालांकि फाइब्रॉएड से बचने का कोई तरीका नहीं है, लेकिन इनके होने का यह मतलब नहीं है कि आपकी प्रेगनेंसी स्वस्थ नहीं होगी। उपलब्ध इलाज के साथ प्रेगनेंसी के दौरान फाइब्रॉएड की दिक्कतों को किनारे करना संभव है। 

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