आपकी मातृत्व की यात्रा गर्भावस्था से शुरू होती है। गर्भवती महिला के लिए संतुलित और पौष्टिक आहार लेना और अपने बच्चे और खुद की सेहत का ठीक से ध्यान रखना आवश्यक है।हालांकि, ऐसे भी कुछ खाद्य पदार्थ हैं जो कि गर्भवती महिलाओं को नहीं खाने चाहिए, जैसे कि पपीता, अनानास, केकड़े, अंडे और पारा युक्त मछली। इसका कारण यह कि इन खाद्य पदार्थों से गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है, ख़ासकर गर्भावस्था के पहले त्रैमासिक के दौरान, जब आमतौर पर गर्भवती महिलाओं में गर्भपात होने का ख़तरा ज़्यादा होता है। गर्भवती महिलाओं को अपने आहार में शामिल खाद्य पदार्थों का ध्यान रखना आवश्यक हैं और गर्भपात से बचने के लिए गर्भावस्था के दौरान कुछ विशिष्ट खाद्य पदार्थ नहीं खाना चाहिए। यह सच है कि अन्य चीज़ें जैसे कि गर्भवती महिला की आयु और स्वास्थ्य, उनकी जीवन शैली और खाने–पीने की आदतें, इनके महत्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, गर्भवती महिलाओं को यह सलाह दी जाती है कि उन्हें इन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, ख़ास तौर पर गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में । इन खाद्य पदार्थों से गर्भाशय फैल सकता है या खुल सकता है और परिणामस्वरूप गर्भाशय में संकुचन हो सकता है जिससे गर्भपात होने का खतरा हो सकता है ।
गर्भवती महिलाओं को कुछ भी ऐसे खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए जो गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में गर्भपात का कारण बन सकते हैं। गर्भवती महिलाओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसे फलों का सेवन न करें जिससे गर्भपात हो सकता है। ऐसे कुछ खाद्य पदार्थ नीचे सूचीबद्ध हैं जो गर्भपात का कारण बन सकते हैं:
हालांकि केकड़े कैल्शियम से भरपूर होते हैं, इनमें कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बहुत ज़्यादा होता है। इससे गर्भाशय में सिकुड़न होने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे कारण अंदरूनी रक्तस्त्राव प्रारंभ हो जाता है और फिर गर्भपात भी हो सकता है। इसलिए, समझदारी इसी में है कि यह स्वादिष्ट होने के बावजूद भी गर्भावस्था में इनका सेवन न किया जाए।
गर्भवती महिलाओं को तिल का सेवन उनके गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में नहीं करना चाहिए । शहद के साथ तिल का सेवन, गर्भावस्था में परेशानी उत्पन्न कर सकता है। हालांकि, गर्भावस्था के बाद के पड़ाव में महिलाएं कभी–कभार काले तिल का सेवन कर सकती हैं क्योंकि यह प्रसव क्रिया के लिए लाभदायक माने जाते हैं।
चूँकि पशु का यकृत विटामिन ‘ए’ से भरपूर होता है, इसे आमतौर पर सेहत के लिए लाभदायक माना जाता है। इसलिए, इसे महीने में एक या दो बार खाने में कोई ख़तरा नहीं है। लेकिन, यदि गर्भवती महिलाएं ज़्यादा मात्रा में इसका सेवन करती हैं, तो यह गर्भावस्था के दौरान परेशानी उत्पन्न सकता है क्योंकि इससे धीरे–धीरे रेटिनॉल जम सकता है और जिसका बुरा असर बच्चे पर पड़ सकता है।
एलोवेरा उसके द्वारा होने वाले अनेक स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। लेकिन कई अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं एलोवेरा का सेवन करने से पहले ज़रूर सोचें । इसका कारण यह कि एलोवेरा में ऐंथ्राकीनोन होते हैं, यह एक प्रकार से गर्भाशय में संकुचन पैदा करती है जिससे र श्रोणि से रक्तस्राव हो सकता हैं, और जो गर्भपात कि वजह भी बन सकता है। हालांकि, गर्भावस्था के दौरान ऊपर ऊपर से एलोवेरा जेल लगाना असुरक्षित नहीं माना जाता है।
कच्चे पपीते या हरे पपीतों में ऐसे कुछ तत्त्व होते हैं जो संकुचन का काम करते हैं, जिससे समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो सकती है और गर्भपात हो सकता है। पपीते के बीज एंजाइम से भरपूर होते हैं जो गर्भाशय में संकुचन का कारण बन सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप गर्भपात भी हो सकता है। इसलिए गर्भावस्था के दौरान किसी भी रूप में पपीते का सेवन करना सुरक्षित नहीं है।
गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था में सहजन का सेवन करते समय थोड़ी सावधानी बरतने की आवश्यकता हैं। इसका कारण यह कि इसमें अल्फा–सिटोस्टेरोल होता है, जो गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकता हैं। परंतु, सहजन आयरन, पोटेशियम और विटामिन से भरपूर होता है । इसलिए, इन्हें सीमित मात्रा में खाने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, सहजन पर मौजूद किसी भी जीवाणु और कीटनाशकों को हटाने लिए, इसका सेवन करने से पूर्व इसे अच्छे से धोना ज़रूरी है,, जो गर्भावस्था में किसी भी अनावश्यक समस्याओं से आपको दूर रखेगा।
दूध, गोर्गोन्ज़ोला, मोज़ेरेला, फ़ेटा चीज़ और ब्री जैसे कच्चे या अपाश्चरीकृत पदार्थों में लिस्टेरिया मोनोसाइटोजेन्स जैसे रोग फैलाने वाले जीवाणु हो सकते हैं, और जो गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक होते है। गर्भवती महिलाओं के लिए कच्चे दूध से बनी कोई भी चीज़ खाना या पीना सुरक्षित नहीं माना जाता क्योंकि इससे गर्भावस्था में अनावश्यक समस्याएं हो सकती हैं।
कई अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान संतुलित मात्रा में कैफीन लेना असुरक्षित नहीं माना जाता है। फिर भी, गर्भवती महिलाओं को थोड़ी सख़्ती बरतने की सलाह दी जाती हैं, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान ज़्यादा कैफीन के कारण गर्भपात या जन्म के समय बच्चे का वजन कम होना, जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा, कुछ विशेषज्ञों के अनुसार कैफीन मूत्रवर्धक या निर्जलीकारक माना जाता है, जिसका अर्थ है कि यह शरीर में द्रव्य पदार्थों की कमी का कारण बन सकता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कैफीन कई खाद्य पदार्थ में शामिल होती है जैसे कि चाय, कॉफी, चॉकलेट और कुछ ऊर्जा शक्ति प्रदान करने वाले पेय पदार्थ आदि।
मछली खाते समय गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए। हालांकि मछली आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती है, गर्भवती महिलाएं ऐसी किस्म की मछलियां खाने से परहेज करें जिनमें बड़ी मात्रा में पारा पाया जाता है, जैसे कि किंग मैकरेल, ऑरेंज रफ, मार्लिन, शार्क, टाइलफिश, स्वोर्डफ़िश, और बिगआय ट्यूना मछली। इसका कारण यह कि पारा के सेवन से बच्चे के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास पर भारी प्रभाव पड़ सकता हैं।
अधिकांश विशेषज्ञ यह सलाह देते हैं कि गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जड़ी–बूटियों का सेवन नहीं करना चाहिए। कुछ जड़ी बूटियों में स्टेरॉयड होते हैं जो गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास में बाधा डाल सकते हैं। यदि गर्भवती महिला सेंटेला जैसी जड़ी–बूटियों का सेवन करती है, तो इससे यकृत को नुकसान पहुँच सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पीलिया हो सकता है और संभवत: बच्चे के मस्तिष्क को भी हानि पहुँच सकती है। डोंग क्वाई, गोटू कोला जैसी जड़ी–बूटियों में ऐसे तत्व होते हैं जो गर्भपात या समय से पहले प्रसव का कारण बन सकते हैं। इसलिए समझदारी इसी में है कि किसी भी जड़ी–बूटी का सेवन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।
माना जाता है कि आड़ू एक “गर्म ” फल है। यदि गर्भावस्था के दौरान ज़्यादा मात्रा में इसका सेवन किया जाए, तो यह गर्भवती महिला के शरीर में अत्यधिक गर्मी पैदा कर सकता है। इससे अंदरूनी रक्तस्त्राव हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप गर्भपात हो सकता है। इसके अलावा, गर्भवती महिलाओं को याद से इस फल को खाने से पहले इसका छिलका निकालने चाहिए क्योंकि फलों के रेशे से गले में जलन और खुजली पैदा हो सकती हैं।
गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जंगली सेब खाने से बचना चाहिए। इनके अम्लीय और खट्टे गुण से गर्भाशय में संकुचन का कारण बन सकता हैं। इससे समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू हो सकती है या गर्भपात हो सकता है।
आमतौर पर गर्भावस्था में सॉसेज, स्टफ्ड मीट, कीमा बनाया हुआ मांस, सलामी, डेली मीट, पेपरोनी जैसे संसाधित माँस का सेवन असुरक्षित माना जाता है। इसका कारण यह कि माँस में टोक्सोप्लाज्मा गोंडी, लिस्टेरिया या साल्मोनेला जैसे जीवाणु हो सकते हैं, जिसके कारण खाद्य विषाक्तता हो सकती है। गर्भवती महिलाओं को विशेष रूप से अधपका या कच्चा माँस खाने से बचना हिए क्योंकि माँस में मौजूद जीवाणु बच्चे तक पहुँच सकते हैं, जिससे गर्भपात, समय से पहले प्रसव या मृत जन्म जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए, माँस को सही तरीके से पकाने या खाने से पहले इसे अच्छी तरह से दोबारा गर्म करना आवश्यक है।
गर्भावस्था में अंडे खाते समय सावधानी बरतनी चाहिए। इसका कारण यह कि अंडे के साल्मोनेला नामक जीवाणु के कारण खाद्य विषाक्तता, अतिसार, बुखार, आँतों में दर्द या गर्भपात जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। अंडे को अच्छी तरह से पकाना आवश्यक है, यानी जब तक कि अंडे का सफ़ेद और पीला हिस्सा ठोस नहीं हो जाता तब तक पकाए । इससे जीवाणु मर जाते हैं और अंडा खाने के लिए सुरक्षित हो जाता है। गर्भवती महिलाओं को ऐसे खाद्य पदार्थों से भी दूर रहना चाहिए जिनमें कच्चे अंडे का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि एगनोग, घर का बना मेयोनेज़, मूस, सूफले और ऐसी स्मूदी जिसमें कच्चे अंडे हो।
हरी–पत्तेदार सब्ज़ियाँ सेहत के लिए बहुत अच्छी होती हैं। लेकिन कच्ची या बिना पानी से धूलि हुई सब्ज़ियों में टॉक्सोप्लाज्मा गोंडी, एक सामान्य परजीवी, हो सकता है, जो गर्भवती महिलाओं में टॉक्सोप्लाज्मोसिस नामक गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है। एक गर्भवती महिला, यदि संक्रमित है, तो उसके गर्भस्थ शिशु तक यह संक्रमण फैल सकता है जिससे कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और जो उसके गर्भवस्था को हानि पहुँचा सकती है। इसलिए, सब्जियों को साफ पानी से सावधानीपूर्वक धोना अत्यावश्यक है। इनका सेवन करने से पहले, या तो इनमें नमक मिलाया जा सकता है या इन्हें बहते पानी के नीचे धोया जा सकता हैं। गर्भवती महिलाएं को अपने खाना पकाने के सारे बर्तन अच्छे से धोने चाहिए और सब्ज़ियों को खाने से पहले अच्छी तरह से पकाना चाहिए।
शेलफिश, सीप, साशिमी, सुशी, झींगे जैसे अधिकांश किस्म के समुद्री खाद्य पदार्थ लिस्टेरिया जैसे जीवाणु से प्रदूषित होते हैं, और जब गर्भवती महिलाएं इनका सेवन करती हैं, तो उनको समय से पहले प्रसव पीड़ा या गर्भपात जैसी समस्याएं हो सकती हैं। आमतौर पर कच्चे या ताज़े समुद्री खाद्य पदार्थ टेपवर्म और वायरस जैसे परजीवियों से दूषित होते हैं होने का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है, जिससे गर्भवती महिलाओं को लिस्टेरियोसिस और खाद्य विषाक्तता जैसे बीमारी का सामना करना पड़ सकता हैं। गर्भवती महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे केवल अच्छी तरह से पकाए गए समुद्री खाद्य पदार्थ का ही सेवन करें, खासकर जापानी रेस्तरां में भोजन करते समय ध्यान रखें, जहाँ वे अक्सर समुद्री पदार्थ सिर्फ़ बाहर से पकाते हैं और उसे थोड़ा कच्चा ही परोसते हैं।
मसालों का उपयोग पदार्थ को स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता हैं। यह परिरक्षक तत्वों के रूप में भी काम करते हैं। मसालों में कई पोषक तत्व होते हैं। लेकिन गर्भावस्था में महिलाओं को मेथी, हींग, लहसुन, एंजेलिका, पेपरमिंट जैसे कुछ मसालों का सेवन नहीं करना चाहिए। यह मसाले गर्भाशय को उत्तेजित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संकुचन हो सकता है, और फिर प्रसव पीड़ा या गर्भपात जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ध्यान रहे कि लहसुन और एंजेलिका जैसे मसाले अधिक मात्रा में न खाएं क्योंकि इनमें ऐसे प्रभावकारी तत्व होते हैं जो गर्भावस्था के दौरान रक्त को पतला कर सकते हैं और फिर रक्तस्राव का भी कारण बन सकते हैं।
गर्भावस्था में स्वस्थ और संतुलित आहार बनाए रखना आवश्यक है। इसका तात्पर्य यह कि गर्भवती महिलाओं को सभी खाद्य समूहों में से अलग अलग खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए ताकि उन्हें आवश्यक सभी विटामिन और पोषक तत्त्व मिले। आपका आहार संतुलित रहे, यह महत्त्वपूर्ण है। अतिरिक्त मात्रा में कुछ भी खाना गर्भावस्था के लिए हानिकारक हो सकता है। इस संबंध में हमेशा अपने डॉक्टर से विस्तार में परामर्श करना ही उचित है।
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