शिशु

36 सप्ताह का बच्चा – विकास, पड़ाव और देखभाल

36वें सप्ताह का समय आपके बच्चे में बहुत सारे विकास को दर्शाता है। रेंगने से लेकर बैठने और अपने आस-पास के माहौल को समझने तक, आपका शिशु अपने आस-पास के माहौल से अब तक काफी परिचित हो चुका होगा और हर दिन अपनी नई-नई हरकतों से आपको चौका देगा। आप उसके भावनात्मक, शारीरिक, मोटर व संज्ञानात्मक विकास एक साथ एक ही समय में होते हुए देखेंगी।

36 सप्ताह के शिशु का विकास

कमरे में अकेले रहने का डर पैदा होने से लेकर माँ-पिता से अलग होने की चिंता होना, चीजों से टकराने को लेकर आश्चर्यचकित होना या  कारण और प्रभाव की बारीकियों की खोज करना शामिल हो सकता है। आप 36 सप्ताह के बच्चे के विकास में बहुत जल्द नई-नई गतिविधियों को शामिल होते हुए देखेंगी। इसलिए आपको खुद भी उनकी जरूरतों के मुताबिक तैयार रहना होगा और अब आपको अपनी जीवन शैली और दिनचर्या में परिवर्तन लाने की जरूरत है । स्तनपान कराना या खाना खिलाने से लेकर बच्चे की झपकी लेने, खेलने और उसे बाहर घुमाने ले जाने तक, यही वह समय है, जब वे बहुत कुछ सीखते हैं और तेजी से विकसित होते हैं। यहाँ आपको 36 सप्ताह में शिशु के विकास के कुछ अहम पड़ाव बताए गए हैं जिन पर आपको ध्यान देना होगा। जानने के लिए नीचे पढ़ें।

36 सप्ताह के शिशु की विकासात्मक उपलब्धियां

निम्नलिखित पड़ावों पर ध्यान दें क्योंकि हो सकता है कि आप भी अपने बच्चे में इन विकास को होते हुए देखें। हमेशा की तरह, ऐसा जरूरी नहीं है कि यहाँ बताए हुए पड़ाव निश्चित रूप से आपके बच्चे में भी दिखें, क्योंकि हर बच्चा अलग होता है इसलिए उसमें होने वाले विकास भी अलग-अलग समय पर होते हैं और ये पड़ाव सामान्य हैं लेकिन इसका परिणाम हर बच्चे में भिन्न हो सकता है-

  • पहला शब्द – आपका बच्चा कंबल (ब्लैंकेट) के लिए ‘बैंकी’ जैसे अपने पहले शब्द को बोल सकता है या फिर आपके लिए अपना ही कोई बनाया हुआ शब्द जैसे ‘ऊह’। उसके इशारों पर ध्यान दें जब वह अपने पहले शब्दों का उच्चारण कर रहा हो। यह पहली बार में अस्पष्ट हो सकता है, लेकिन वह जल्दी साफ बोलने लगेगा।
  • सहारे के साथ खड़ा होना – आपका बच्चा टेबल या बेड को पकड़कर सहारे के साथ खड़ा होने या फिर कदम आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकता है।
  • रेंगना और बैठना – आप अपने बच्चे को एक कमरे से दूसरे कमरे में तेजी से जाते हुए या फिर आसानी से सामानों को पकड़ने के लिए भागते हुए देखेंगी। अब वह बिना सहारे आराम से बैठने भी लगेंगे।

आहार

इस समय आप बच्चे को आराम से ठोस आहार देना शुरू कर सकती हैं। आप उन्हें विभिन्न प्रकार के ठोस आहार दे सकती हैं जैसे सब्जी या फलों की प्यूरी और मैश किए हुए खाद्य पदार्थों का मिश्रण आदि दें । आप बच्चे को खुद चुनने दें कि वह क्या खाना पसंद करता है और उसे कुछ भी जबरदस्ती न खिलाएं । हो सकता है इस समय में आपको उसकी भूख में कुछ उतार-चढ़ाव भी दिखाई दे। आप बच्चे में स्वस्थ खाने की आदतों को प्रोत्साहित और विकसित करें ताकि वह अच्छे से विकास करें।

अब तक बच्चे के एक-दो दाँत भी निकलना शुरू हो गए होंगे और इसलिए वह कठोर आहार लेने के बजाए नर्म आहार खाना ज्यादा पसंद करता है। आप उसे अलग-अलग स्वाद और बनावट का पता लगाने के लिए उनके सामने खाने के ज्यादा से ज्यादा विकल्प उपलब्ध करें। आप उनके खाने में स्टीम किए हुए गाजर, सेब और ओट्स शामिल कर सकती हैं। आप इन आहार के माध्यम से बच्चे की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सकती हैं।

लेकिन साथ ही साथ आप स्तनपान कराना कम से कम एक साल तक जारी रखें और सुनिश्चित करें कि आपके बच्चे को गाय का दूध न दिया जाए क्योंकि अभी भी उसका पाचन तंत्र विकास कर रहा है जो इसे पचाने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है।

नींद

36 सप्ताह में शिशु की नींद में बदलाव आ सकते हैं । अधिकांश बच्चे ‘जंक स्लीपिंग’ यानि ‘कहीं भी अचानक से सो जाना’ वाले चरण में प्रवेश करते हैं, जहाँ वे रात के भोजन करने से पहले ही अचानक सो जाते हैं या खेलते समय सो जाते हैं। हो सकता है कि आपके शिशु के दिन की नींद अब दो भागों में विभाजित हो जाए और उनका सोने का कोई नियमित समय न हो । बच्चा आरामदायक और गहरी नींद ले सके इसके लिए बच्चे के साथ ही सोएं । यदि बच्चे के जागने के बाद आपको उसे संभालने में परेशानी हो रही तो उसे खेलने दे वह थककर खुद ही सो जाएगा । बच्चा अच्छे से सो सके इसके लिए आप पालने में उसे लिटाकर सुलाने की कोशिश करें या उन्हें लोरी गाकर सुनाए ।

36 सप्ताह के बच्चे की देखभाल के टिप्स

  • स्तनपान कराते समय उसका ध्यान भटकाएं – इस समय बच्चे जिज्ञासु और खोजी हो जाते हैं और दूध पीने के लिए एक जगह पर नहीं टिकते इसलिए आप स्तनपान कराते वक्त उनको कोई खिलौना पकड़ा दें ताकि वह उसमें व्यस्त रहें। सुबह उठते ही सबसे पहले या रात में सोने से पहले स्तनपान कराना सुनिश्चित कर लें। स्तनपान कराते समय कम रौशनी रहे, ताकि बच्चा ज्यादा विचलित न हो।
  • उसे नाश्ता दें – आपका बच्चा चुटकी से चीजों को पकड़ने का हुनर अच्छे से सीख गया है इसलिए आप उसे हाथ से पकड़कर खाने वाली चीजें दे सकती हैं । उसे ओयस्टर क्रैकर्स (आटे से बना स्नैक) और साधारण खाद्य पदार्थ दें, जिसे वह अपने अंगूठे और तर्जनी अंगुली के साथ पकड़कर खा सके। सुनिश्चित करें कि वे उसके गले में न अटके और यह उसके खाने योग्य होना चाहिए । यह उसे विभिन्न स्वाद / बनावट की खोज करने और उसकी पसंद / नापसंद के बारे में पता लगाने के लिए विविधता लाएगा।
  • टीथिंग जेली – इस समय दाँत निकलने के कारण बच्चे के मसूड़ों में दर्द हो सकता है। उसे राहत पहुँचाने के लिए टीथिंग जेली या टीथर्स (दाँत निकलते वक्त चबाने के लिए वस्तु) दें।

जाँच और टीकाकरण

इस उम्र में शिशु को कोई भी टीकाकरण की आवश्यकता नहीं होती यदि पहले 6 महिनों के दौरान उसे सभी टीके ठीक से लगाए गए हों।

जहाँ तक जाँच की बात है तो वो बेहद सामान्य तरह की जाँच होगी, इसमें डाक्टर आपके बच्चे के घुटनों के बल चलने, हाथों से चीजों को ठीक से पकड़ने, उसके चलने, खेलने के तरीकों की जाँच कर सकते हैं कि सामान्य है या नहीं। परीक्षण के समय आपसे यह पूछा जाएगा कि आपका बच्चा क्या खा रहा है और उसके सोने का पैटर्न क्या है, इसलिए आपको बाल रोग विशेषज्ञ के पास उसे ले जाने से पहले इन सभी बातों को नोट करने की सलाह दी जाती है।

खेल और गतिविधियां

मुख्य रूप से दो खेल और गतिविधियां हैं, जिनके उपयोग से आप इस उम्र में उनके अवलोकन, श्रवण और संवेदनात्मक विकास में मदद कर सकती हैं। वो कुछ इस प्रकार हैं –

  • फलों से चेहरे बनाएं – कीवी, सेब, तरबूज और केले जैसे फलों के टुकड़ों को काटें और उससे अलग-अलग आकृतियां बनाकर बच्चे को दिखाएं। उसे इस गतिविधि में बहुत मजा आएगा । जब आपका खेल पूरा हो जाए तो इन फलों को उसे खिला दें ।
  • प्रकृति के साथ समय बिताएं – यह समय बच्चे की स्किल्स बढ़ाने और उसके अवलोकन कौशल को विकसित करने के लिए बहुत अच्छी है। अपने बच्चे को एक पार्क या बगीचे में ले जाएं और घास पर छोड़ दें ताकि वह उस पर खेले। अपनी आँखें बंद करें और उसे यह बताने के लिए कहें कि वह कौन सी आवाज / शोर सुन रहा है (उसकी भी आँखें बंद होनी चाहिए)। इसके अलावा आप उन्हें आकाश में बादल दिखाएं और फिर उन्हें आकाश पर दिखाई देने वाले आकार और स्वरुप का वर्णन करने के लिए कहें।

डॉक्टर से परामर्श कब करें

एक चिकित्सक से परामर्श करें यदि –

  • आपका बच्चा बहुत ज्यादा हिल-डुल नहीं रहा है या गतिविधि नहीं कर रहा है।
  • वह बिना सहारे या अपने आप ठीक से बैठने में असमर्थ है।
  • कुछ भी नहीं खा रहा है या उसे लगातार कम भूख लग रही है।
  • 100.4 डिग्री सेल्सियस से अधिक बुखार है।

इस उम्र में आपका बच्चा अच्छी तरह चलना, बोलना या रेंगना शुरू कर सकता है। कभी-कभी बच्चे के विकास बहुत तेजी से हो जाता है, तो वहीं कुछ बच्चे धीमी गति से विकास करते हैं जो बिलकुल सामान्य है । जहाँ तक बच्चों को स्तनपान / भोजन कराने और सुलाने की बात आती है, तो आपको करने थोड़ा धैर्य रखने की सलाह दी जाती है । 

समर नक़वी

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