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अकबर और बीरबल की कहानियां सालों से सुनी और सुनाई जाती रही हैं। ये कहानियां मनोरंजक होने के साथ ही बहुत शिक्षाप्रद भी होती हैं। एक बार अकबर एक नौकर की शक्ल से तंग आकर उसे सबसे मनहूस करार देते हैं और उसे फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाते हैं। अकबर बेहद गुस्से में होने के बावजूद बीरबल अपनी चतुराई और समझदारी से उनके इस बेतुके आदेश को न केवल पलटते हैं बल्कि अकबर को उनकी गलती का अहसास भी करवाते हैं।
इस प्रसिद्ध कहानी के मुख्य पात्र इस प्रकार हैं –
एक समय की बात है, सम्राट अकबर आगरा के अपने महल में थे। एक दिन सुबह जब वह नींद से उठे तो उन्होंने बिस्तर पर पड़े पड़े ही पानी के लिए नौकरों को आवाज दी। उस समय अकबर के कमरे के पास से सफाई करने वाला एक नौकर जा रहा था। उसने अकबर की आवाज सुनी तो वो खुद उनके लिए पानी लेकर पहुंच गया। उस सफाई करने वाले को अकबर ने कभी देखा नहीं था, लेकिन उन्हें प्यास लगी थी इसलिए झट से उसके हाथ से पानी का गिलास लिया और पानी पी लिया। तभी अकबर के प्रधान सेवक और अन्य नौकर-चाकर वहां आए और उस सफाई वाले को वहां से भगा दिया। वह बेचारा एक गरीब और मामूली सा नौकर था। अकबर को नौकर का चेहरा देखकर कतई अच्छा नहीं लगा था लेकिन उस समय वे कुछ नहीं बोले और अपनी दिनचर्या में लग गए।
लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, अकबर के लिए सब कुछ गलत होता गया। उनकी बैठकें रद्द हो गईं, उनका खाना उनकी पसंद के मुताबिक नहीं बना, गलती से कुर्सी से टकराने के कारण उनके पैर में चोट लग गई और दोपहर तक तो उनका पेट बिगड़ गया। बादशाह की तबियत बिगड़ने पर शाही हकीम बुलाए गए और उन्हें दवा दी गई। लेकिन अकबर को जल्द आराम ही नहीं मिल रहा था। बिस्तर पर पड़े पड़े बादशाह सोचने लगे कि आखिर आज क्या गलत हुआ है। तभी उन्हें सुबह आंख खुलते ही उस नौकर की शक्ल देखने का वाकया याद आ गया। अब अकबर को विश्वास हो गया कि ये सभी दुर्घटनाएँ सुबह सुबह उस नौकर की शक्ल देखने के कारण हुई थी और यह एक अपशकुन था। अकबर ने उस नौकर को मनहूस मान लिया।
क्रोध में आकर अकबर ने नौकर को फांसी पर चढ़ाने का आदेश दे दिया। उनका यह दृढ़ विश्वास था कि वह उस दिन की सभी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए जिम्मेदार था। हालांकि अकबर बड़े गुस्से में थे लेकिन राजा के बुद्धिमान सलाहकार बीरबल उनकी इस सोच पर हंसने लगे। अकबर हैरान हो गए और उन्होंने बीरबल से थोड़ा झुंझलाकर पूछा-
“आज का पूरा दिन सब कुछ गलत हो रहा है। फिर इन सब गलत बातों के लिए जिम्मेदार उस मनहूस इंसान को दंड दिए जाने के आदेश पर तुम क्यों हंस रहे हो?”
बीरबल ने मुस्कुराते हुए अकबर से कहा –
“ज़िल्ले-इलाही, अगर आप मानते हैं कि उस नौकर का चेहरा देखना एक अपशकुन था, तो आपको यह भी मानना चाहिए कि नौकर का दिन भी बुरा गुजरा क्योंकि उसने सुबह-सुबह आपका चेहरा देख लिया था।”
बीरबल ने अकबर को याद दिलाया कि यदि उन्होंने नौकर को उसके दुर्भाग्य के लिए फाँसी दे दी, तो लोग क्या कहेंगे। जनता सोचेगी कि अकबर तो और भी मनहूस है क्योंकि उन्हें देखने वाला सीधा फांसी पर चढ़ जाता है। लोग सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिर सबसे बड़ा मनहूस कौन है।
अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह समझ गया कि यह नौकर की गलती नहीं थी कि उनका दिन खराब गुजरा था। उन्होंने तुरंत अपना आदेश वापस लिया और बीरबल को धन्यवाद दिया कि समय रहते उसकी सूझबूझ ने एक बेकसूर आदमी की जान बचा ली।
अकबर-बीरबल की कहानी : सबसे बड़ा मनहूस कौन से यह सीख मिलती है कि हमें अपनी गलतियों या दुर्भाग्य के लिए दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए। साथ ही लोगों को उनकी शक्ल के आधार पर नहीं आंकना चाहिए और अपने कामों की जिम्मेदारी लेने और दूसरों के प्रति दयालु होना चाहिए।
यह कहानी अकबर-बीरबल की कहानी के अंतर्गत आती है और एक महत्वपूर्ण नैतिक शिक्षा देती है कि हमें अपनी परिस्थितियों के लिए दूसरों को जिम्मेदार नहीं समझना चाहिए।
अकबर-बीरबल की कहानी : सबसे बड़ा मनहूस कौन की कहानी का नैतिक है कि अपने काम और अपने भाग्य के लिए हम स्वयं जिम्मेदार होते हैं और दूसरों पर आरोप करना सही नहीं होता।
बीरबल मुगल बादशाह अकबर के दरबार में प्रमुख वज़ीर और उनके नवरत्नों में से एक थे। वे बेहद तीव्र बुद्धि के थे।
बीरबल का असली नाम महेश दास था।
बीरबल न केवल अपनी उत्कृष्ट बुद्धि के लिए, बल्कि अपनी तत्परता और समझदारी के लिए भी जाने जाते थे। अकबर और बीरबल की कहानियां बच्चों का भरपूर मनोरंजन करती हैं और उन्हें नैतिक शिक्षा भी देती हैं। बच्चों को रात में सोते समय कहानी सुनने की आदत डालें इससे उनका सामान्य ज्ञान बढ़ता है, भाषा में रूचि पैदा होती है और आगे जाकर किताबों के प्रति रुझान भी बढ़ता है।
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