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माँ होने के नाते आप जानती हैं कि बच्चे के लिए क्या सही है। पर पहली बार पेरेंट्स बने कपल को कई बातों को लेकर शंका होती होगी। हाल ही में बने ज्यादातर पेरेंट्स बच्चे को फीडिंग कराने से संबंधित सवाल पूछते हैं। कुछ को इस बात की चिंता होती है कि उनका बच्चा पर्याप्त फीड नहीं लेता है और अन्य सोचते हैं कि बच्चे को ओवरफीडिंग न हो जाए। पर क्या बच्चे को ज्यादा दूध पिलाना संभव है? यदि आपने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है तो इस आर्टिकल से आपको काफी फायदा हो सकता है।
यदि पेरेंट्स बच्चे में उचित संकेतों को समझ जाते हैं और डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह को फॉलो करते हैं तो बच्चे में ओवरफीडिंग यानी जरूरत से ज्यादा दूध पीने की समस्या नहीं होती है। हालांकि दूध पीने के लक्ष्यों को पूरा करने के दबाव में आप बच्चे को ज्यादा दूध पिला सकती हैं।
वैसे तो ओवेरफीडिंग की समस्या किसी भी बच्चे में हो सकती है पर कुछ बच्चों की इसका खतरा ज्यादा होता है। 12 सप्ताह से कम उम्र का बच्चा दूध के बहाव को नियंत्रित नहीं कर पाता है जिसकी वजह से वह आवश्यकता से अधिक दूध पी लेता है। इसी प्रकार से यदि बच्चा बोतल से दूध पीता है तो ब्रेस्ट की तुलना में दूध के बहाव को नियंत्रित करना कठिन है।
जो पेरेंट्स सोचते हैं कि बच्चे को फॉर्मूला दूध ज्यादा पिलाया जा सकता है उनके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि ओवरफीडिंग स्रोतों पर निर्भर नहीं करती है। बच्चे को अत्यधिक दूध पिलाने के कई कारण हो सकते हैं, आइए जानें;
यह छोटे बच्चों में बहुत आम है और इस आदत को पेरेंट्स भी सपोर्ट करते हैं। बच्चे दूध पीते-पीते माँ के ब्रेस्ट पर ही सो जाते हैं। यह बाद में भी जारी रह सकता है जिसकी वजह से बच्चे का दिमाग इन दोनों चीजों के बीच संबंध बना लेता है। जिसके परिणामस्वरूप बच्चा सोते समय ही दूध पीना चाहता है। बाद में यदि बच्चा रात में भी जागता है तो वह बिना दूध पिए नहीं सोएगा। इस तरीके की वजह से पेरेंट्स अक्सर कंफ्यूज हो जाते हैं कि बच्चा वास्तव में कब भूखा है।
यद्यपि पिछले परिदृश्य की वजह से बच्चा नींद टूटने के बाद दूध मांग सकता है पर जिन बच्चों की नींद पूरी नहीं हो पाती है वे किसी और चीज के बजाय फीडिंग पर ज्यादा निर्भर रहते हैं। एक बार बच्चे के उठने के बाद उसे जागते रहने के लिए कोई उत्तेजित चीज की जरूरत पड़ती है और वह बार-बार चिड़चिड़ा भी हो सकता है। रोने और चिड़चिड़ा होने के परिणामस्वरूप माँ बच्चे को ब्रेस्ट मिल्क या फॉर्मूला दूध पिलाती है। चूसने से बच्चा अक्सर शांत हो जाता है जिससे पेरेंट्स मानते हैं वह भूखा रहने की वजह से जागा है और इससे आगे चलकर बच्चा सोने से पहले या जागने के बाद फीडिंग पर ही निर्भर रहता है।
डॉक्टर बच्चों की हेल्थ को कुछ पैरामीटर की सीरीज और उनकी प्रभावी वैल्यू में मापते हैं पर यह पेरेंट्स के लिए नहीं है। पहली बार बने पेरेंट्स अपने बच्चे की हेल्थ को उसके फूले हुए गाल से मापते हैं। कुछ बच्चों को शरीर जन्म से ही छोटा व पतला होता है और वह भी हेल्दी है। पर पेरेंट्स अक्सर बच्चे को मोटा या हेल्दी करने के लिए उसे ज्यादा से ज्यादा दूध पिलाते हैं जिसकी वजह से ओवरफीडिंग हो सकती है।
प्रीमैच्योर बच्चों या जिन बच्चों में न्यूट्रिएंट्स की कमी होती है उनके लिए डॉक्टर अक्सर फोर्टिफाइड मिल्क या ज्यादा एनर्जी वाले दूध की सलाह देते हैं। इन फॉर्मूला में कैलोरी की मात्रा ज्यादा होती है और साथ ही इनमें बहुत सारे न्यूट्रिएंट्स भी होते हैं। वैसे तो यह बीमार व कमजोर बच्चों के लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद है पर नॉर्मल बच्चों को भी उतनी ही मात्रा में बहुत ज्यादा न्यूट्रिशन मिलता है जिसके परिणामस्वरूप ओवरफीडिंग हो सकती है जिसे समझ पाना कठिन है।
यदि आपने फॉर्मूला मिल्क के पैकेट को चेक किया होगा तो उसमें अनुमान व अनुपात लिखा होता है और यह मात्रा बच्चे के लिए हेल्दी है। यद्यपि यह अक्सर औसत में होती है पर फिर भी बच्चों को कम मात्रा में दूध पिलाने से भी हेल्दी न्यूट्रिशन मिलता है। पेरेंट्स अक्सर पैकेट पर दी हुई गाइडलाइन को फॉलो करते हैं ताकि बच्चे के लिए सही मात्रा में फॉर्मूला दूध बनाया जा सके। यदि बच्चे का पेट भर चुका है तो वह पैकेट पर दी हुई मात्रा के अनुसार भी दूध नहीं पिएगा। यह अक्सर प्रीमैच्योर बच्चों में बहुत ज्यादा देखा गया है।
पेरेंट्स की मान्यताओं के विपरीत बच्चों में भूख को समझने की क्षमता अच्छी होती है और संतुष्ट होने पर उन्हें खुद से पता चल जाता है। एक बार बच्चे का पेट भरने के बाद वह खुद ही दूध पीना बंद कर देगा। बड़े बच्चे या टॉडलर्स दूध पीने के बाद बोतल को खुद ही हटा देते हैं या ब्रेस्ट से मुंह फेर लेते हैं। इन सभी चीजों को ध्यान रखना जरूरी है ताकि आप बच्चे की भूख को उचित रूप से समझ सकें। यदि इसे नजरअंदाज किया गया तो ओवरफीडिंग का खतरा हो सकता है।
यह समस्या ज्यादातर उन बच्चों के साथ होती है जो विशेषकर लंबे समय से भूखे रहने के बाद दूध पीते थे। ऐसे बच्चे ब्रेस्ट व बोतल के निप्पल को जल्दबाजी में मुंह के अंदर डालते हैं जिसकी वजह से ज्यादा मात्रा में दूध जाता है। इसके अलावा निप्पल से दूध के बहाव की दर और चूसने की क्षमता इसे बहुत ज्यादा बढ़ा सकती है। इसके परिणामस्वरूप बच्चा ज्यादा दूध पी जाता है और शरीर को संतुष्टि मिलने में थोड़ा समय लगता है जिसकी वजह से भी ओवरफीडिंग होने की संभावना बढ़ जाती है।
बच्चों को जन्म से ही चूसना आता है और उन्हें यह सिखाने की जरूरत नहीं पड़ती है। जब किसी चीज से मुंह, जीभ, और मुंह के ऊपरी हिस्से पर दबाव पड़ता है तो चूसने का रिफ्लेक्स खुद ही शुरू हो जाता है। चूंकि इसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है इसलिए 12 सप्ताह से कम उम्र के बच्चों में दूध के बहाव को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं होती है। ऐसे मामलों में यदि बोतल या निप्पल से ज्यादा दूध आता है या इसका छेद बड़ा होता है तो बच्चा चूसना बंद करने से पहले ही आवश्यकता से ज्यादा मात्रा में दूध पी सकता है।
ज्यादातर मांओं को कई भ्रम होते हैं। बच्चा कुछ भी महसूस करे उसे सिर्फ रोना ही आएगा। पर उन्हें अक्सर लगता है कि उसे सिर्फ भूख लगने पर ही रोना आता है। बच्चे के निप्पल पकड़ने के तरीके से भी उनकी सोच अधिक स्पष्ट हो जाती है जो वास्तव में नहीं भी हो सकता है। कुछ ऐसे भी मामले हैं जिनमें बच्चा सिर्फ बोर होने या थकने के कारण भी दूध पीता है या बहुत ज्यादा रोता है। यदि हर बार रोने से माँ बच्चे को दूध पिलाती है तो इससे भी ओवरफीडिंग होने की संभावना बहुत ज्यादा है।
ओवरफीडिंग होने पर इसके लक्षण या संकेत जरूर दिखाई देते हैं। जिनमें से कुछ को आसानी से पहचाना जा सकता है जिन से बचाव करना जरूरी है। वे संकेत कौन से हैं, आइए जानें;
ओवरफीडिंग से बच्चे के पेट, आंतों और पूरे पाचन तंत्र पर दबाव पड़ सकता है। जिसकी वजह से शरीर में अंदर से इरिटेशन होती है और इससे बच्चा चिड़चिड़ा होने लगता है। बच्चा सामान्य से ज्यादा इरिटेट होगा और साथ ही उसकी नींद का पैटर्न भी खराब हो जाएगा।
जब शरीर में बहुत ज्यादा दूध भर जाता है तो आंतें काम करना बंद कर देती हैं। इसके परिणामस्वरूप आंतों में बिना पचा हुआ दूध भरा रहता है। यह फर्मेंट होना शुरू हो जाता है और इससे बच्चे की पॉटी में बहुत ज्यादा दुर्गंध आती है, उसकी पॉटी में लिक्विड आ सकता है या उसे बहुत ज्यादा पॉटी आ सकती है। बच्चा बहुत ज्यादा फार्ट करने (पादने) लगेगा और कुछ बच्चों में क्रैंप्स आ सकते हैं या ऐंठन हो सकती है।
ज्यादा मात्रा में दूध पी लेने से पेट सामान्य से अधिक स्ट्रेच होने लगता है। जिसके परिणामस्वरूप बच्चे के मुंह से बार-बार दूध पलट सकता है। यदि बच्चे ने तेजी से दूध पिया है तो उसके साथ पेट में हवा भी गई होगी। ऐसे मामलों में डकार दिलाने से बच्चा थोड़ा बहुत दूध पलटता है पर बाद में उसे आराम मिलता है।
माँ का प्यार बच्चे के लिए आसानी से बहुत ज्यादा हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह उसे आवश्यकता से ज्यादा दूध पिला देती है। इन मामलों में बच्चे में कई लक्षण गंभीर रूप से दिखाई देते हैं जिनके बारे में जानना बहुत जरूरी है, आइए जानें;
वैसे तो बच्चा भूखा होने की वजह से गहरी नींद से भी जाग जाता है पर यह ओवरफीडिंग के कारण भी हो सकता है। शरीर के अंदर इरिटेशन होने से बच्चे की नींद खराब होती है जिसके परिणामस्वरूप वह जाग जाता है और कभी-कभी रोने भी लगता है।
कई मांएं बच्चे के बढ़ते वजन को देख कर खुश होती हैं। पर यदि उसका वजन बहुत ज्यादा बढ़ता है तो यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।
ज्यादा खाना खाने के बाद जो बड़ों में होता है वही बच्चों में भी होता है। ओवरफीडिंग से बच्चे का पेट काफी भरा हुआ लगता है, क्रैम्प्स आते हैं और कुछ को डायरिया हो सकता है। पेट दर्द के कारण बच्चे के रोने के से यदि मांएं उसे दूध पिलाती हैं तो इससे समस्याएं अधिक गंभीर हो सकती हैं।
क्या बच्चा पहले ज्यादा एनर्जेटिक था पर अब वह थोड़ा कमजोर हो गया है? यह ओवरफीडिंग का एक मुख्य संकेत है। वास्तव में ज्यादा दूध पीने से बच्चे में कम एनर्जी रहती है जिसके कारण वह हर समय आलस में रहता है। जो बच्चे ब्रेस्टफीड करते हैं उनमें यह समस्याएं ज्यादा रहती हैं।
ऐसा नहीं है कि सभी बच्चे पूरी रात सोते हैं पर यदि बेबी का व्यवहार सामान्य नहीं है तो इसका अर्थ है कि उसने ज्यादा दूध पी लिया है। बच्चे को रात में अच्छी नींद तभी आती है जब उसका शरीर शांत रहता है और वह रात में डायपर कम गीला करता है।
कभी-कभी बच्चे की फार्ट बहुत ज्यादा हो जाती है और यह इसलिए होता है क्योंकि आपने कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन किया है जिसके परिणाम अनपेक्षित हैं। पर यदि आप कुछ भी खाती हैं तो बच्चे की फार्ट या पॉटी आना इस बात का संकेत है कि बच्चे का शरीर ओवरफीडिंग की वजह से रिएक्ट कर रहा है।
बच्चे का रोना पेरेंट्स के लिए नई बात नहीं है पर यदि अचानक कुछ सप्ताह, दिनों से या फीडिंग के बाद उसका मूड खराब रहता है तो इस चिड़चिड़ेपन का कारण पेट में दर्द भी हो सकता है जो ओवरफीडिंग का परिणाम है।
औसतन, बच्चे दिन में लगभग 8 बार पेशाब करते हैं। यह बच्चे को कितना दूध पिलाया गया है, और उसकी मात्रा पर भी निर्भर करता है। यदि आप देखती हैं कि हाल के दिनों में वह दिन भर में ज्यादा बार पेशाब करने लगा है तो आप उसके फीडिंग सेशन पर एक बार ध्यान जरूर दें।
बच्चे को डकार दिलाना बहुत जरूरी है ताकि दूध पीने के बाद उसके पेट की गैस बाहर निकल जाए। यदि बच्चा बाद में फीडिंग सेशन के बाद डकार लेने के बाद भी फिर से डकार लेता है तो इसका यही अर्थ है कि बच्चे के पेट में गैस है जो सिर्फ ओवरफीडिंग की वजह से होता है।
यह ज्यादातर पेरेंट्स को आश्चर्यचकित कर सकता है पर ओवरफीडिंग से बच्चे के विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है। चूंकि शरीर ज्यादा दूध लेने से स्ट्रेस में रहता है इसलिए ज्यादातर न्यूट्रिएंट्स बच्चे की पॉटी या उल्टी में निकल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप शरीर में कम न्यूट्रिएंट्स होने की वजह से बच्चे के विकास पर उल्टा प्रभाव पड़ता है।
बच्चे को आवश्यकता से अधिक दूध पिलाने से उसे उल्टी हो सकती हैं जिससे वह परेशान हो जाता है और यह चिंता की बात है। पर बच्चे में लंबे समय के लिए इसके कुछ प्रभाव हो सकते हैं, जैसे;
ज्यादा न्यूट्रिशन मिलने पर शरीर अपने आप ही एडजस्ट करता है और इसे स्टोर करना शुरू कर देता है। इसकी वजह से बच्चे का वजन बढ़ता है और उसे मोटापे की समस्या हो जाती है।
लगातार दूध पलटने या लूज मोशन होने की वजह से बच्चे का विकास रुक जाता है और आवश्यक रूप से ताकत कम मिलती है।
सामान्य विकास के चक्र में उतार-चढ़ाव होना, यह वजन या विकास कम होने जैसा नहीं है। यह आमतौर पर डेवलपमेंट माइलस्टोन को पूरा न कर पाना होता है।
बच्चे में ओवरफीडिंग होने की संभावनाओं को कम करने के लिए निम्नलिखित टिप्स फॉलो करें, आइए जानते हैं;
यदि बच्चे का विकास धीमा होता है, वह सही डेवलपमेंट माइलस्टोन हासिल नहीं कर पाता है या उसका वजन बहुत तेजी से बढ़ने लगता है तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। इसी प्रकार से यदि बच्चे को गैस से संबंधित समस्या या व्यवहार से संबंधित समस्याएं होती हैं तो भी आप उसे डॉक्टर के पास ले जाएं।
जन्म से लेकर 6 महीने की उम्र तक के बच्चों को जरूरत से ज्यादा दूध पिलाने की संभावनाएं अधिक होती हैं। इसलिए बच्चे में ओवरफीडिंग के लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है यदि बच्चा फीडिंग के बारे में खुद से कोई निर्णय लेता है तो उस पर विश्वास करें।
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