गर्भावस्था के दौरान महिलाएं बहुत सारी चीजों के बारे में सोचती हैं। उनके दिमाग में कई बातें आती हैं, जैसे जन्म के दौरान क्या होगा, बच्चा जन्म कैसे लेगा, उसे कोई समस्या न हो, जन्म लेते ही क्या वह देख पाएगा आदि। ऐसे बहुत सारे सवाल है जिन्हें अक्सर गर्भवती महिलाएं पूछना चाहती हैं जिसमें से एक सवाल यह भी है कि क्या बच्चा जन्म लेते ही देखना शुरू कर देगा? खैर, जन्म लेते ही बच्चा सही से देख नहीं पाता है पर एक साल का होते ही उसे सब कुछ ठीक से व साफ दिखाई देने लगेगा। नवजात शिशु कैसे देखता है और हर चरण में उसकी दृष्टि में कितना विकास होता है यह जानने के लिए आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
बच्चा कब देखना शुरू करता है?
बच्चा जन्म के तुरंत बाद भी देख सकता है पर उसकी दृष्टि पूरी तरह से साफ नहीं होती है। बच्चे की दृष्टि में जन्म के पहले साल से सुधार होना शुरू होता है। आपने देखा होगा कि बच्चा ब्राइट रंगों की ओर बहुत ज्यादा आकर्षित होता है पर उसमें विभिन्न रंगों में अंतर करने की क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं होती है। यद्यपि जन्म के दौरान बच्चे में दृष्टि होती है पर इस चरण में उसका दिमाग ऐसी कठिन चीजों को समझने में सक्षम नहीं होता है। बच्चे की दृष्टि का विकास लगभग 20/400 से शुरू होता है और समय के साथ बच्चे की 3 से 5 साल की आयु तक यह 20/20 हो जाएगा।
बच्चा रंगों को कब देखने लगता है?
बच्चों की आँखों का विकास इतना नहीं होता है कि वे हर रंग में अंतर बता सकें। इस स्किल का विकास होने के लिए आपको लंबे समय तक इंतजार करना पड़ सकता है। हालांकि आपने देखा होगा कि बहुत ज्यादा ब्राइट रंग, काला या सफेद खिलौना या चीज को देखकर बच्चा रिएक्ट करता है। जन्म से कुछ सप्ताह के बाद तक बच्चे में देखने की क्षमता बढ़ जाती है और वह अलग-अलग रंगों को देख सकता है। यह भी देखा गया है कि छोटे बच्चों में हरा, लाल, पीला और नीला रंग देखने की क्षमता अधिक होती है। पाँच महीने का होने तक बच्चे में विभिन्न रंगों को देखने की क्षमता आ जाती है।
बच्चों में दृष्टि के विकास के चरण
बच्चे की दृष्टि का विकास नियमित रूप से होता है और यह निम्नलिखित स्टेजेस में विभाजित किया गया है, आइए जानें;
1. जन्म के दौरान बच्चे की दृष्टि
- हाल ही में जन्मा बच्चा 8 से 10 इंच की दूरी पर रखी चीज को आसानी से देख सकता है। पर इस चरण में वह अपनी आँखें घुमाकर एक चीज से दूसरी चीज को देखने में सक्षम नहीं होगा।
- जन्म के दौरान बच्चे के दिमाग और आँखों की नसें विकसित हो रही होती हैं और वह काला सफेद व ग्रे रंग देख पाता है।
- हाल ही में जन्मे बच्चे की आँखों में रेफ्रेक्टिव समस्या होती है। हालांकि बच्चे के बढ़ने के साथ ही यह समस्या जल्दी ठीक भी हो जाती है। जैसे-जैसे बच्चे की आँखों का रेटिना विकसित होता है वैसे-वैसे बच्चा तेज रोशनी के सामने अपनों आँखों को बंद रखेगा या पलकें झपकाएगा।
- डॉक्टर किसी भी संभावित समस्या के लक्षणों के लिए न्यूबॉर्न बच्चे की जांच करते हैं। बच्चे में आँखों का इन्फेक्शन को खत्म करने के लिए डॉक्टर आई ड्रॉप भी प्रिस्क्राइब करते हैं।
2. जन्म से 2 महीने तक
- इस दौरान बच्चे को उतना साफ नहीं दिखेगा इसलिए यदि आप उसके सामने मुस्कुराएंगी या देखेंगी तो उसके चेहरे पर एक्सप्रेशन नहीं आएंगे।
- इस चरण में बच्चे को धुंधला दिखता है। उसका अटेंशन पाने के लिए आप किसी बड़ी और ब्राइट रंग की चीज का उपयोग करें।
- जन्म के कुछ सप्ताह बाद आप देखेंगी कि बच्चे की आँखें लंबे समय तक पूरी खुलने लगी हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि इस समय बच्चे की आँख का प्यूपिल विकसित हो रहा होता है और उसकी आँखों में ज्यादा लाइट जाती है।
- इस समय बच्चा मुख्य रंगों में अंतर् देख सकता है, जैसे नीला, लाल और हरा। पर इस समय भी बच्चे की नजर उतनी तेज नहीं होती है कि वह भिन्न रंगों के अंतर को गहराई से समझ पाए, जैसे लाल और ऑरेंज।
- बच्चे की पेरिफेरल नजर तेज हो जाएगी जिसका यह मतलब है कि वह 2 से 3 फीट दूर रखी चीजों पर फोकस कर पाएगा।
- आप देखेंगी कि आपका बच्चा आँखों के फनी मूवमेंट्स कर पाता है (क्रॉसिंग या स्क्विन्टिंग) जो बहुत आम है। इस समय बच्चा फोकस करना सीख रहा है।
3. 2 – 4 महीने तक
- इस समय तक बच्चा विभिन्न रंगों को देखने और इसमें अंतर करने लगेगा। इसका यह मतलब है कि बच्चे में रंगों को देखने की क्षमता धीरे-धीरे बढ़ रही है।
- अब बच्चा चीजों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और उसकी आँखें किसी भी चीज के साथ इधर-उधर घूम सकती हैं। इस आयु के दौरान बच्चे में चीजों को ट्रैक करने की क्षमता बढ़ती है।
- बच्चे की आँखों और दिमाग का बेहतर कॉर्डिनेशन होने लगेगा। इससे बच्चे को गहराई से देखने व समझने में मदद मिलेगी। इसका मतलब यह है कि बच्चा चीजों की दूरी व नजदीकी को समझने में सक्षम होने लगेगा।
- चौथे महीने के अंत तक बच्चे की दृष्टि दूर तक देखने में भी सक्षम होगी। यदि आप बच्चे को खिड़की के सामने बिठाएंगी तो वह खिड़की के कांच के उस पार भी देख सकेगा।
4. 4 – 8 महीने तक
- इस समय तक बच्चा पाँच महीने का हो गया होगा और उसकी रंगों को देखने की क्षमता विकसित होने लगी होगी।
- बच्चा घर की चीजों और चेहरों को पहचानने और याद रखने लगेगा व इन्हें देखकर रिएक्ट भी करेगा। इस समय के दौरान बच्चा चीजों को अपना मानेगा और उसकी देखने की गहराई विकसित होगी।
- 8वां महीना खत्म होने तक आपके बच्चे की दृष्टि एक व्यस्क की तरह ही हो जाएगी। बच्चे के सामने से कोई भी चीज हटाने पर उसे समझ आ जाएगा।
5. 9 – 12 महीने तक
- इस उम्र में बच्चे की आँखों का रंग जैसा होगा वैसा ही पूरी जिंदगी के लिए रहेगा।
- बच्चे की दृष्टि एक एडल्ट की तरह ही हो चुकी होगी जिसका यह मतलब है कि बच्चा गहराई से देखने और रंगों को समझने लगेगा।
- इस समय तक बच्चे की आँखों और मसल्स में बेहतर कॉर्डिनेशन होगा। यद्यपि इस आयु में बच्चे की मसल्स का मूवमेंट उतना अच्छा नहीं होगा जितनी उसकी दृष्टि बेहतर हो चुकी होगी।
- एक साल की आयु तक बच्चे की दृष्टि बड़ों जैसी अच्छी हो जाती है। बच्चा अपने लोगों व अपनी चीजों को पहचानने लगेगा, रंगों में भिन्नता समझने लगेगा, दूर की चीजों को देखने लगेगा और पास व दूर की चीजों में अंतर समझने लगेगा।
6. 1 – 2 साल तक
- इस चरण के दौरान बच्चे की आँखों और हाथ का कॉर्डिनेशन भी विकसित होता है। इसके साथ ही बच्चे के देखने की समझ में सुधार आएगा।
- इस चरण में आपका बच्चा अलग-अलग चीजों को देखेगा, समझने का प्रयास करेगा और किसी भी इंट्रेस्टिंग चीज को छूना भी चाहेगा। बच्चा आपको देखेगा और ध्यान से सुनेगा भी।
डॉक्टर बच्चे की दृष्टि की कई चीजों के बारे में आपको बताएंगे। यदि इससे संबंधित कोई भी अजीब चीज आपको दिखाई देती है या महसूस होती है तो आप तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
बच्चों में दृष्टि की समस्या के लक्षण
जन्म के तुरंत बाद ही बच्चे की दृष्टि का विकास होने लगता है। इसलिए आपको हर चरण में ध्यान देने की जरूरत है। बच्चे की दृष्टि में निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं, आइए जानें;
- यदि बच्चा फोकस नहीं कर रहा है: कुछ मामलों में 4 महीने का होने तक बच्चा फोकस करने में सक्षम नहीं होता है और उसकी आँखें इधर-उधर घूमती हैं। यदि आपके बच्चे के साथ ऐसा है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- यदि बच्चा पलकें बहुत ज्यादा झपकाता है: यदि बाहर जाने पर या ब्राइट रोशनी के सामने बच्चा पलकें बहुत ज्यादा झपकाता है तो उसकी रेटिना या आँखों पर दबाव पड़ने की समस्या हो सकती है।
- यदि बच्चे के आँखों की प्यूपिल या पुतली सफेद है: यदि बच्चे की आँखों की प्यूपिल में सफेद स्पॉट है तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। सफेद स्पॉट होने का मतलब है कि बच्चे की आँखों में कोई गंभीर समस्या है (मोतियाबिंद, कैंसर या अन्य गंभीर समस्या)।
- यदि बच्चे की आँखों से बार-बार पानी आता है: यदि बच्चे की आंखें गीली रहती हैं और ज्यादातर उसकी आँखों से पानी निकलता है तो यह समस्या आंसुओं के डक्ट्स ब्लॉक होने की वजह से हो सकती है। इस समस्या को मैनेज करने में डॉक्टर आपकी मदद कर सकते हैं।
- यदि बच्चे की आँखें लाल हैं या इनमें सूजन होती है: यदि आपके बच्चे की आँखें लाल रहती हैं या इनमें सूजन है तो यह किसी इन्फेक्शन के लक्षण हैं। इसमें आपको डॉक्टर से मदद लेनी चाहिए।
यदि बच्चे को ऊपर बताई हुई कोई भी समस्या होती है तो डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह दी जाती है। समय से इलाज करने पर इन कॉम्प्लिकेशंस को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है।
प्रीमैच्योर बच्चों में दृष्टि का विकास
जो बच्चे प्रीमैच्योर जन्म लेते हैं या जिनका समय से पहले जन्म होता है उनके अंग पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं और यही आँखों के साथ भी होता है। प्रीमैच्योर बच्चों की आँखों का विकास अन्य की तुलना में धीमा होता है। इन बच्चों में नजर से जुड़े कॉम्प्लीकेशंस और अन्य समस्याओं, जैसे रेटिनोपैथी का खतरा अधिक रहता है। यह समस्या बच्चे की रेटिना को डैमेज कर सकती है। प्रीमैच्योर बच्चे के लंग्स पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं जिसकी वजह से उनके लिए ऑक्सीजन का उपयोग बहुत ज्यादा होता है और इसके परिणामस्वरूप बच्चे को यह समस्या हो जाती है। बहुत ज्यादा ऑक्सीजन की वजह से ब्लड वेसल के विकास में बाधा आती है और समय से इलाज करके, दवाओं से और देखभाल से इस समस्या को ठीक किया जा सकता है।
प्रीमैच्योर बच्चों की उचित देखभाल से उनकी दृष्टि का विकास हेल्दी होता है और अन्य कोई कॉम्प्लिकेशन भी नहीं होते हैं।
बच्चों की दृष्टि में सुधार करने के टिप्स
विभिन्न चरण में बच्चे की दृष्टि में सुधार करने के लिए कुछ टिप्स निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
- जन्म से 2 महीने तक
- बच्चे को तेज रोशनी में न लाएं। बच्चों के कमरे की रोशनी कम रखने की सलाह दी जाती है।
- बच्चों के लिए अधिक कंट्रास्ट वाली चीजें या टॉयज का उपयोग करना चाहिए। आप इन्हें बच्चे के बहुत पास या बहुत दूर न रखकर लगभग 8 से 10 इंच की दूरी पर ही रखें।
- आप बच्चे को दूध पिलाते समय उससे आई कॉन्टैक्ट कर सकती हैं और इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे दोनों ब्रेस्ट से दूध पिलाएं ताकि वह आपको दोनों आँखों से देखे।
- आप बच्चे के साथ स्टेयर गेम खेलें। उसे खुद से लगभग 7 से 8 इंच दूर रखें और जब वह आपको देखे तो आप धीरे-धीरे एक तरफ से दूसरी तरफ जाएं। यह बच्चे की आँखों के लिए सबसे बेस्ट एक्सरसाइज है।
- जब बच्चा 2 महीने का हो जाए तो आप उससे आई कांटेक्ट बनाएं। बच्चे से बात करें, उसे देखकर मुस्कुराएं और आई कांटेक्ट बनाने का प्रयास करें इससे बच्चे को आँखों से फोकस करने में मदद मिलेगी।
- 2 से 4 महीने तक
- इस आयु में बच्चे में रंगों को देखने की क्षमता विकसित होती है। इस समय आप अपने बच्चे को खेलने के लिए रंग-बिरंगे खिलौने दें और चीजें दें।
- आप रंग बिरंगे खिलौनों से बच्चे के लिए बेबी जिम बना सकती हैं या खरीद लें। इससे बच्चे को अपनी आँखों पर नियंत्रण रखने में काफी मदद मिलेगी।
- 4 से 8 महीने तक
- आप बच्चे को खेलने के लिए रंग-बिरंगे ब्लॉक्स या अन्य ब्राइट चीजें दे सकती हैं।
- बच्चे की दृष्टि को स्टिमुलेट करने के लिए आप उसके साथ लुकाछुपी का खेल खेलें।
- इस समय बच्चा अलग-अलग पैटर्न्स और रंगों की ओर आकर्षित होगा। इसलिए आप बच्चे को ब्राइट रंगों के टॉयज देकर उसका ध्यान केंद्रित करने में मदद करें।
- 9 से 12 महीने तक
- बच्चे के साथ छुपन-छुपाई का खेल खेलें। आप बच्चे की एक्टिविटी को मजेदार बनाने के लिए कुछ टॉयज का उपयोग भी कर सकती हैं।
- क्रॉलिंग करते समय बच्चे को आँखों के कोऑर्डिनेशन में मदद मिलती है। आप अपने बच्चे को वे एक्टिविटीज करने के लिए प्रेरित करें जिसमें वह चलने से ज्यादा क्रॉल करे।
- ढेर लगे हुए और अलग-अलग खिलौनों से बच्चों की देखने की क्षमता बढ़ती है और वे इसे याद रख पाते हैं।
- बड़े भाई-बहन और दोस्तों को खेलता हुआ देखने से बच्चे को वैसा ही करने का मन करता है और उसकी दृष्टि में भी सुधार होता है।
डॉक्टर से कब मिलें?
यह सलाह दी जाती है कि नियमित रूप से बच्चे की आँखों का चेक अप करना जरूरी है क्योंकि इससे कोई भी कॉम्प्लिकेशन होने की संभावनाओं को कम करने में मदद मिलेगी। यदि आपके बच्चे की आँखों में निम्नलिखित कोई भी समस्या होती है तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। वे क्या समस्याएं हैं, आइए जानें;
- दिखाई न देना या एम्ब्लियोपिया: इस समस्या में एक आँख का उपयोग कम होने की वजह से उस आँख से दिखाई देना बंद हो जाता है। यह सिंड्रोम कई कारणों से हो सकता है, जैसे क्रॉस आई, आँख और दिमाग में कोऑर्डिनेशन न होना। इस समस्या का पता जल्दी नहीं लग पाता है जिसकी वजह से इसे ठीक करना कठिन है। हालांकि आँखों की नियमित जांच कराने से इसका समय से डायग्नॉज और ट्रीटमेंट किया जा सकता है।
- आंसुओं की नलिका ब्लॉक हो जाना: बच्चों में आंसुओं की नलिकाएं बंद होना एक व्यापक समस्या है। इससे बच्चे की आंखें लाल हो जाती हैं और इनमें सूजन भी आ सकती है। इस समस्या के लिए आपको तुरंत डॉक्टर से जांच करानी चाहिए क्योंकि बच्चे का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है और आंसुओं की नलिका ब्लॉक होने से इसमें बैक्टीरिया भी हो सकते हैं। इस इन्फेक्शन को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्राइब कर सकते हैं।
- बच्चों में मोतियाबिंद होना: कभी-कभी जन्म के दौरान बच्चे की आँखों के लेंस में धुंधलापन होता है। इस दुर्लभ समस्या को मोतियाबिंद कहते हैं। हालांकि यह समस्या जन्म के तुरंत बाद या पेडिएट्रिक से जांच कराने पर ही पता लगती है। आँखों की इस समस्या को ठीक करने के लिए डॉक्टर सर्जरी कराने की सलाह देते हैं। बच्चों में मोतियाबिंद के लिए की जाने वाली सर्जरी बड़ों की सर्जरी जैसी ही होती है।
- रेटिनोपैथी: यह समस्या अक्सर प्रीमैच्योर जन्मे बच्चों में ही होती है। इसमें रेटिना तक खून पहुँचाने वाली ब्लड वेसल ऑक्सीजन की कमी से डैमेज हो जाती है। डॉक्टर ओफ्थल्मिक टेस्ट के दौरान इस समस्या का पता लगाते हैं।
- स्क्विंट या क्रॉस आई: आमतौर पर चार महीने की आयु तक बच्चे की आँखें स्वतंत्र रूप से घूमने लगती हैं या आँखों में सही कोऑर्डिनेशन आ जाता है। पर यदि पाँच और छह महीने या उसके बाद भी बच्चे की आँखों का एलाइनमेंट समान नहीं होता है तो इसका मतलब है कि उसे टेढ़ा दिखाई देगा। टेढ़ा दिखाई देने से बच्चे को क्रॉस या स्क्विंट आई की समस्या हो सकती है। यदि आपके बच्चे में यह समस्या है तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- टोसिस या पलकों का पक्षाघात: इस समस्या में आँखों की पलकें बहुत ज्यादा गिरती हैं। कुछ बच्चों में आँखों की मसल्स कमजोर होती है जिसकी वजह से जन्म से ही उनकी पलकें गिरती रहती हैं। यद्यपि टोसिस से बच्चे की दृष्टि में कोई भी समस्या नहीं होती है पर इससे बच्चे को एम्ब्लियोपिया हो सकता है जिससे दिखाई देने में कठिनाई होती है। बच्चों में इस समस्या को ठीक करने के लिए डॉक्टर सर्जिकल प्रोसीजर करने की सलाह देते हैं।
यदि एक महीने में या बाद में भी आपको अपने बच्चे की दृष्टि से संबंधित कोई भी चिंता है तो आपको इसके बारे में डॉक्टर से चर्चा करनी चाहिए।
शरीर में सबसे ज्यादा नाजुक अंग बच्चे की आँखें होंगी। इसलिए जन्म के बाद से ही उसकी आँखों का खयाल रखना बहुत जरूरी है। यदि आपको बच्चे की आँखों से संबंधित कोई भी अब्नॉर्मलिटी या अजीब चीज दिखाई देती है तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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