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इस बारे में सोचें कि आपका बच्चा शुरू से ही कम्युनिकेट करना सीखता है। बच्चे पहले रोकर कम्यूनिकेट करने की कोशिश करते हैं। हर बार जब बच्चा रोता है और आप उसे देखती हैं तो यह उसके कम्युनिकेशन की शुरूआत है। दूसरी तरह से बच्चा आवाज निकालकर कम्यूनिकेट करना शुरू करता है, जैसे क्यूइंग, गरौलिंग और बैबलिंग। बच्चा आपकी नकल करना शुरू करने से पहले ही व्यंजनों को बोलने का प्रयास करना शुरू कर देगा।
बच्चा पहला शब्द कब बोलता है? बच्चा स्पष्ट रूप से पहला शब्द एक साल की आयु में बोलता है। दूसरे साल तक वह दो शब्द का वाक्य बनाना शुरू कर देता है, जैसे डॉगी, नाइस या तोतले शब्दों में दूध पीना। कई बच्चे थोड़ा बड़े वाक्य बना पाते हैं, यद्यपि यह परफेक्ट नहीं होते हैं पर तीन शब्दों के वाक्य भी हो सकते हैं। जैसे, बच्चा कह सकता है कि ‘बाबू जूस पी’ आदि क्योंकि इस समय उन्हें व्याकरण की उतनी समझ नहीं होती है।
बच्चे के बोलना शुरू करने के लिए पहले दो साल बहुत जरूरी हैं। बिना शब्दों को बोले बच्चे अपने बड़ों को देखकर कम्युनिकेट करना सीखते हैं। बच्चा आवाज निकालना शुरू करने से पहले अपनी जीभ, निकलते हुए दांत, होंठ और पैलेट को जानने की कोशिश करेगा। बच्चा बढ़ते साथ ही किसी भी चीज का वर्णन करने के लिए शब्दों का उपयोग करना सीखेगा और बताएगा कि उसे क्या चाहिए।
आमतौर पर बच्चों का पहला शब्द दादा, मामा और बाय-बाय होता है। 12 महीने की उम्र में उनके पहले शब्दों की लिस्ट में बॉल और डॉग भी शामिल होते हैं। बच्चे के स्पीच डेवलपमेंट में कुछ जरूरी माइलस्टोन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, आइए जानें;
इस आयु के बच्चे के लिए हर चीज नई है और वह आपके चेहरे के भावों को ऑब्जर्व करने व आपकी आवाज सुनने में बहुत ज्यादा समय व्यतीत करता है। यदि बच्चे घर में कोई अन्य आवाज सुनते हैं तो भी उत्सुक हो जाते हैं। बच्चे अक्सर पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की आवाज सुनना पसंद करते हैं और उस आवाज को समझ पाते हैं जिसे उन्होंने अक्सर गर्भ में सुनी थी। 3 महीने के अंत तक बच्चे आवाज निकालना शुरू कर देते हैं।
इस आयु में बच्चा बड़बड़ाना शुरू कर देता है। वह आसान शब्द बोलने लगता है, जैसे दादा और वह अपना नाम याद रखने में सक्षम होता है। बच्चा अपनी और अन्य भाषाओं में भी अंतर समझने लगता है। यदि बच्चा खुश या दुखी होगा तो अपनी आवाज की टोन से वह कम्यूनिकेट करना सीखेगा। बच्चों को किसी भी शब्द का मतलब नहीं पता चलता है।
इस समय तक बच्चा कुछ शब्दों का मतलब समझने लगेगा, जैसे हाँ व बाय और वह लगातार एक आवाज में इन शब्दों को बोलने का प्रयास करेगा।
अब तक बच्चे को उन शब्दों का मतलब समझ आने लगेगा जिन्हें वे अक्सर सुनते रहते हैं। इस आयु में ज्यादातर बच्चे पहला शब्द स्पष्ट रूप से बोलते हैं।
इस आयु में बच्चे की वोकैबुलरी बढ़ती है और यदि आप उसके लिए कोई नाम लेंगी तो वह चीजों की ओर इशारा करने में सक्षम होगा। कई बच्चे पूछे जाने पर बॉडी पार्ट्स को छूकर बताने में एन्जॉय करते हैं और वे कहे अनुसार नकल करने की कोशिश करते हैं।
इस समय तक बच्चा समझना शुरू कर देगा कि शब्दों का उपयोग सिर्फ चीजों को बताने के लिए नहीं किया जाता है बल्कि अन्य चीजों के लिए भी किया जाता है, जैसे अपनी चीजों के लिए भी किया जाता है और वह कम्यूनिकेट करने के लिए दो शब्दों का वाक्य बोलना शुरू करेगा, जैसे मेरा बॉल।
आप अपने बच्चे से बातें करती रहें। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे से बात करते समय आप उसके द्वारा हर उच्चारण को ध्यान से सुनें और उसे बताएं कि आप क्या कर रही हैं वैसा ही वो भी करें। यहाँ कुछ तरीके बताए गए हैं जिनकी मदद से बच्चे को बोलना शुरू करने में मदद मिलेगी, आइए जानें;
छोटे बच्चे अक्सर एक्शन से भी कम्यूनिकेट करते हैं और आपको उनके हर एक्शन पर ध्यान देना चाहिए। वह आप पर हाथ रखकर गोदी में आने के लिए कह सकता है या भोजन को दूर रख कर यह बताने की कोशिश करता है कि उसका पेट भरा है। ऐसा होने पर आप मुस्कुराएं और उससे आई कॉन्टैक्ट बनाएं ताकि उसे ज्यादा कम्यूनिकेट करने की प्रेरणा मिल सके।
यदि बच्चा पीछे से आपको आवाज लगाने का प्रयास करता है। इससे बच्चे को पिच के उतार-चढ़ाव के बारे में पता चलेगा क्योंकि वह भी वैसा ही करेगा जैसे आप करती हैं। जब बच्चा आपसे बात कर रहा हो तो आप उसे देखें और उसका जवाब भी दें ताकि उसे बात करने में सुविधा हो।
बच्चों को अक्सर समझ नहीं होती है क्योंकि वे नई-नई आवाजों को सीखकर बोलने की कोशिश करते हैं। चाहे वह कुछ सही बोले या न बोले आप हर बार उसकी प्रसंशा करें।
यदि बच्चा बिल्ली को देखकर उसे पुकारने की कोशिश करता है तो आपको भी सही शब्द का उच्चारण करते हुए यह कहना चाहिए। इससे बच्चे को शब्दों का सही उच्चारण समझ में आएगा व वह चीजों को देखकर पहचानने लगेगा और इससे बच्चे में आत्मविश्वास जागेगा।
खाना खाते समय यदि बच्चा कटोरे की ओर इशारा करता है और शोर मचाता है तो उसे सिर्फ अधिक भोजन न दें। उससे बात करें व पूछे कि क्या उसे और चाहिए? क्या चीज़ के साथ अच्छा लगता है, हैं न?
आप जो भी कर रही हैं उसके बारे में बच्चे को सब कुछ बताएं और एक्टिविटीज के साथ शब्दों को जोड़ने में उसकी मदद करें। जैसे, इसे हरी हैट पर लगाएं या मम्मी गाजर काट रही है।
यदि आपको बच्चे की बात समझ नहीं आ रही है तो उससे स्पष्ट कहने में मदद करें, जैसे बॉल? क्या आपको बॉल चाहिए? यदि आपको फिर भी समझ नहीं आता है तो निराश न हों। बच्चे को ढेर सारा प्यार दें। प्रयास करने पर खूब सारा प्यार मिलने से उसे अच्छा लगेगा।
बच्चे को अपने हिसाब से खेलने दें और यह देखें कि उसे क्या अच्छा लगता है व क्या नहीं। बच्चे को अपने तरीके से बात शुरू करने दें। इससे बच्चे को समझ में आएगा कि कम्युनिकेशन हमेशा दो तरफा होता है जिसमें मुख्य रूप से सुनना, फॉलो करना, लीड करना व बोलना जरूरी है।
बच्चे को खेलने व नकल करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इसके लिए आप क्रिएटिव व काल्पनिक सीन्स का उपयोग कर सकती हैं क्योंकि ऐसी एक्टिविटीज से बच्चे में बोलने की क्षमता डेवलप होगी।
बच्चा अच्छी चीजों को एन्जॉय करता है और यदि आप रीडिंग सेशन को मनोरंजक और आरामदायक बनाएंगी तो उसके बोलने की स्किल्स, वाक्यों को समझने की स्किल्स और कहानी को बोलने की स्किल्स व आपको नकल करने की स्किल्स में भी विकास होगा और इसके साथ ही बड़े होकर बच्चे को पढ़ने का शौक होगा।
बच्चा लगभग 2 साल की आयु में बोलना शुरू करता है। यदि आपका बच्चा अब भी नहीं बोल पा रहा है तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से संपर्क करें। यदि शुरूआत में ही कोई समस्या डायग्नोज हो जाती है तो इसे ठीक करने की संभावनाएं अधिक हैं। देरी से बोलना शुरू करने पर बच्चे की मदद करने के कुछ तरीके निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
बच्चे में बहरेपन की वजह से भी उसका स्पीच डेवलपमेंट देरी से होता है। 1000 बच्चों में से 3 में ऐसा होता है इसलिए आप अपने बच्चे का पूरा चेक अप जरूर कराएं।
यदि बच्चे में किसी भी वजह से बोलने की शुरूआत होने में देरी हो रही है तो इसकी जांच एसएलपी (स्पीच लैंग्वेज पैथोलोजिस्ट) करेंगे। इसके ट्रीटमेंट के लिए टिप्स और गेम्स बताए जाएंगे जिनसे बच्चे के बोलने की स्किल्स में सुधार हो सके।
विकास या बिहेवियरल डिसेबिलिटी जैसे ऑटिज्म या कॉग्निटिव डिसेबिलिटी की वजह से बोलने में देरी होती है यदि बच्चे में कोई भी समस्या है तो उसका डायग्नोसिस करके ठीक करना ही बेहतर है।
हर एक माइलस्टोन की तरह ही बच्चा बोलने के माइलस्टोन को तभी पूरा करेगा जब वह पूरी तरह से तैयार होगा। पेरेंट्स अक्सर ऊपर बताई हुई आयु के अनुसार बच्चे के बोलना शुरू करने की चिंता करते हैं क्योंकि वे सभी एवरेज आयु हैं जिसमें चीजें समय पर चीजें होनी चाहिए।
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