बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों के बीच झगड़े – कारण और समाधान

“एक बच्चा आपको पेरेंट्स बनाता है, और दो बच्चे आपको रेफरी बना देते हैं।”

आपका पहला बच्चा आपके लिए पूरी दुनिया होती है। आप अपना हर फैसला बच्चे की भलाई को नजर में रखते हुए करते हैं। बच्चे को भी इस सुखद स्थिति की जानकारी होती है और उसे माता-पिता का पूरा ध्यान मिलना बहुत पसंद आता है। लेकिन जब आपका दूसरा बच्चा दुनिया में आता है, तब उसकी यह परफेक्ट जिंदगी बदल जाती है। छोटे भाई या बहन का जन्म आपके पहले बच्चे के जीवन में एक तनावपूर्ण घटना हो सकती है। 

भाई-बहनों के बीच लड़ाई का क्या मतलब है?

भाई-बहन सबसे अच्छे दोस्त या सबसे बड़े दुश्मन हो सकते हैं। उनकी स्थिति के अनुसार या तो ये दोनों एक दूसरे को बहुत प्रेम कर सकते हैं या बहुत नफरत कर सकते हैं, लेकिन एक दूसरे की जिंदगी में वे अपनी मौजूदगी को नकार नहीं सकते। 

भाई-बहनों के बीच झगड़े होना और फिर सुलह भी कर लेना आम बात है। छोटी-छोटी बातों पर बच्चों को झगड़ते हुए देखना आपको परेशान कर सकता है, लेकिन इससे आपको अपना विवेक नहीं खोना चाहिए। कुछ नियम बनाकर आप अपने घर में झगड़ों की फ्रीक्वेंसी को कम कर सकते हैं और साथ में शांतिपूर्ण वातावरण तैयार कर सकते हैं। 

बच्चों के बीच झगड़े क्यों होते हैं?

दूसरे बच्चे के जन्म के बाद जल्द ही भाई-बहनों के बीच झगड़े शुरू हो जाते हैं और आने वाले सालों में यह जारी रहता है। भाई-बहन हर चीज के लिए झगड़ते हैं, कंपटीशन करते हैं, पेरेंट्स के अटेंशन से लेकर खिलौनों तक, दोनों के बीच शेयर की जाने वाली किसी भी चीज के लिए उनमें झगड़े हो सकते हैं। एक तरह से यह अच्छा भी है, कि वे प्रतिस्पर्धा करना, चीजों को शेयर करना और समझौता करना सीखते हैं। इन गुणों से उन्हें जीवन में आगे चलकर रिश्तों को संभालने में मदद मिलती है। बच्चों के बीच झगड़ों के कुछ कारण यहां पर दिए गए हैं:

1. ईर्ष्या

पहले पैदा होने के कारण आपके पहले बच्चे को आपका पूरा ध्यान मिलने की आदत हो चुकी होती है। अब उसे आपको ऐसे किसी दूसरे व्यक्ति के साथ शेयर करना होता है, जो कि कोई भी काम खुद नहीं कर सकता है और पूरी तरह से आप पर निर्भर है। इससे आपका बच्चा उपेक्षित महसूस कर सकता है, क्योंकि अब परिवार में आने वाले इस नए सदस्य को पूरा ध्यान मिल रहा है। जैसे जैसे वे बड़े होते हैं और आप उन्हें अपने खिलौने, अपना कमरा, बिस्तर, कपड़े, किताबें आदि शेयर करने को कहते हैं, वैसे-वैसे उनकी ईर्ष्या बढ़ती जाती है। 

2. तुलना

पेरेंट्स, परिवार, मित्र, रिश्तेदारों के लिए दो बच्चों के बीच तुलना करना बहुत ही आम बात है। यह तुलना उनके शारीरिक बनावट या स्वभाव, बात करने, शौक, खाने की आदतें, मिजाज आदि किसी के आधार पर भी हो सकती है। लगातार होने वाली इस तुलना से उन्हें अपने छोटे भाई या बहन से कमजोर महसूस हो सकता है और इससे उनके आपसी झगड़े लंबे चल सकते हैं। 

3. आचरण

हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है और उसका आचरण भी अलग होता है। उसका मूड, स्वभाव, अनुकूलता आदि सभी उसके व्यक्तित्व का एक हिस्सा होते हैं। दूसरों के साथ वे कैसा तालमेल रखते हैं, इसमें ये सभी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुछ बच्चे अंतर्मुखी होते हैं और उन्हें अपने छोटे भाई या बहन को दूसरों का पूरा ध्यान मिलने से कोई आपत्ति नहीं होती है। वहीं दूसरे बच्चों को अधिक प्रेम, ध्यान और देखभाल की जरूरत होती है। व्यक्तित्व की एक जैसी विशेषता झगड़े का एक कारण हो सकती है, क्योंकि दोनों ही बच्चों को एक समान अटेंशन की इच्छा होती है। 

4. विशेष जरूरतें/बीमार बच्चा

कभी-कभी एक बच्चे को खराब स्वास्थ्य, धीमी लर्निंग, भावनात्मक जरूरतों व शारीरिक कमियों के कारण विशेष देखभाल की जरूरत हो सकती है। इसमें पेरेंट्स को उसे अधिक समय देने की जरूरत होती है और संभवतः यह दूसरे बच्चे की ईर्ष्या का कारण बन सकता है। 

5. बढ़ती हुई जरूरतें

अधिकतर परिवारों में छोटा बच्चा बड़े भाई या बहन इस्तेमाल की हुई चीजों का ही इस्तेमाल करता है और उसे नई चीजें ना मिलने के कारण बड़े भाई या बहन से ईर्ष्या हो सकती है। इसी प्रकार बड़े बच्चे को अपनी चीजों के प्रति खास लगाव हो सकता है और हो सकता है कि वह अपनी चीजों को किसी अन्य के साथ शेयर न करना चाहे। जब वे बड़े होते हैं, तब उनमें खुद को लेकर एक भावना विकसित हो जाती है और वे अपने भाई-बहन की देखभाल या घरेलू जिम्मेदारियों को शेयर करने से बचते हैं। वे अपने से अलग उम्र के किसी व्यक्ति के साथ खेलना नहीं चाहेंगे और अपने दोस्तों के साथ अधिक समय बिताना चाहेंगे। 

6. रोल मॉडल

आपका बच्चा आपसे सीखता है। इस बात का ध्यान रखें, कि आप उसके लिए सही उदाहरण सेट करें। अगर आप अपने साथी के साथ सम्मानजनक तरीके से झगड़ों को सुलझा लेते हैं, तो वह भी ऐसा ही सीखेगा। अगर आप उसकी मौजूदगी में गुस्सा दिखाते हैं, तो आपको उससे भी ऐसा ही व्यवहार देखने को मिलेगा। 

टॉडलर और बेबी के बीच झगड़े

जब आप नवजात बच्चे के प्रति अपने टॉडलर के झगड़ालू स्वभाव को हैंडल नहीं कर पाते हैं, तो आपके लिए यह परेशानी का कारण बन सकता है। हो सकता है कि मां पहले से ही पोस्टपार्टम तनाव से गुजर रही हो और आपके बच्चे का ऐसा व्यवहार आपकी तकलीफ को और बढ़ा सकता है। 

बच्चे के नजरिए से सोचें। यह उसके लिए भी तनावपूर्ण है। वह नवजात शिशु को अपनी जिंदगी के हिस्से के रूप में स्वीकार करने में कठिनाई महसूस कर रहा है। उसे आपका पूरा ध्यान पाने की आदत है और यह सुख उसके हाथों से निकल रहा है। वह चीख-चिल्लाकर, रोकर, गलत व्यवहार करके अपनी तकलीफ दिखा सकता है। कुछ बच्चे एक अलग सीमा तक जा सकते हैं और अनावश्यक डिमांड, चोरी, चीजों को तोड़ना या खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचाने जैसी हरकतें भी कर सकते हैं। छोटे बच्चे के लगातार रोने से भी वे परेशान हो सकते हैं या फिर आप बच्चे को अधिक ध्यान दे रहे हैं, केवल इसी बात से परेशान हो सकते हैं। उनकी मांगे बहुत ही बचकानी हो सकती हैं, जैसे गोद में उठाना, झूले में झुलाना, सिप्पी कप का इस्तेमाल करना, बेबी फूड खाना या आपके पास सोना। 

इस गुस्सैल रिलेशनशिप से डील करना आपके लिए चुनौती भरा हो सकता है और इस स्तर पर आप स्थिति को जिस तरह से हैंडल करते हैं, उससे दोनों बच्चों के बीच लोंग टर्म रिलेशनशिप की नींव तैयार होती है। 

अपने टॉडलर को आने वाले दूसरे बच्चे के लिए कैसे तैयार करें?

आपको यह सलाह दी जाती है, कि आप अपने बच्चे को दूसरे बच्चे के जन्म से पहले ही तैयार करें, ताकि उन दोनों के बीच एक स्वस्थ संबंध सुनिश्चित हो सके। 

  • बच्चे को कुछ इस तरह से जानकारी दें, कि वह नवजात शिशु के आगमन के लिए तैयार रह सके।
  • बेबी बंप को छूकर या पेट के अंदर बच्चे से बात करके उसे प्रेगनेंसी के सफर में शामिल होने दें। गाइनेकोलॉजिस्ट से मिलने के लिए बच्चे को भी साथ लेकर जाएं और एक साथ अल्ट्रासाउंड देखें और हार्टबीट सुनें।
  • बच्चे को भाई या बहन होने के सकारात्मक पहलू के बारे में बताएं, ताकि आगे चलकर वे बच्चे को अपने प्रतियोगी के रूप में नहीं बल्कि एक दोस्त या साथी की तरह देखें।
  • जब मां या पिता में से कोई एक नवजात शिशु के साथ व्यस्त हो जाए, तब दूसरे को बड़े बच्चे के साथ अच्छा समय बिताना चाहिए, ताकि आपके बच्चे को दोनों पेरेंट्स के साथ समय बिताने का मौका मिल सके।
  • बच्चे के आने के बाद अपने बड़े बच्चे को नवजात की देखभाल में शामिल करें। उसे नवजात शिशु के लिए खिलौने और कपड़े चुनने दें और नर्सरी को सेट-अप करने में उसकी मदद लें। बच्चे की कुशलता की जिम्मेदारी को महसूस करके उसे अच्छा लगेगा। उसे बच्चे को गोद में लेने दें, ताकि उन दोनों के बीच पारस्परिक संबंध बेहतर बन सके।
  • जब आप शिशु के साथ व्यस्त हों, तब भी हर दिन बड़े बच्चे के लिए थोड़ा सा समय निकालें।
  • बच्चे को फीड कराते समय अपने बड़े बच्चे को भी शामिल करें। आप उसे प्रेरित कर सकते हैं, कि वह फनी चेहरे बनाकर, गाने गाकर या डांस करके बच्चे का मनोरंजन करे। वह आपके साथ समय बिताकर और अपने छोटे भाई या बहन के चेहरे पर मुस्कुराहट ला कर बहुत ज्यादा खुश होगा।
  • कभी कभार होने वाले गुस्सैल व्यवहार और शैतानी के लिए तैयार रहें।

बच्चों के बीच होने वाले झगड़ों से कैसे निपटें?

आपको पसंद हो या ना हो, बच्चों के बीच होने वाले झगड़े हमेशा ही सभी पेरेंट्स की जिंदगी का एक हिस्सा होते हैं। आप ऐसी स्थिति से कैसे डील करते हैं, इसी से उन दोनों के रिश्ते की नींव तैयार होती है। पहले दिन से ही कुछ नियम तय करने से घरेलू शांति लंबे समय तक बनी रह सकती है। बच्चों को सामंजस्य बिठाना, समझौता करना,, गुस्से पर नियंत्रण रखना, दूसरे के नजरिए को समझना और आखिरकार तकलीफ देने वाली बातों को भूलकर एक नई शुरुआत करना आना चाहिए। 

  • हर छोटे झगड़े में बीच-बचाव न करें। आपको उनके बीच पड़ने की जरूरत हो, उसके पहले उन्हें खुद झगड़े को सुलझाने दें। अगर आप उनकी जिंदगी की हर छोटी-बड़ी समस्याओं को सुलझाएंगे, तो बच्चों की आपके ऊपर निर्भरता दिन पर दिन बढ़ती जाएगी।
  • शारीरिक नुकसान की इजाजत बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। चाहे कैसी भी स्थिति हो, बच्चों के बीच मारपीट की स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए।
  • बच्चे आपस में कैसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, इस पर नजर रखें और सुनिश्चित करें, कि उनके बीच किसी अभद्र भाषा या गंदे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। अगर आप किसी आपत्तिजनक भाषा को सुनते हैं, तो पता करें कि बच्चे इसे कहां से सीख रहे हैं।
  • पक्षपात न करें। दोनों बच्चों के साथ एक समान व्यवहार करें और किसी विषय पर दोनों बच्चों के नजरियों को सुनें। उनकी समस्याओं को खुद सुलझाने के बजाए बच्चों को समाधान निकालने दें।
  • जब तक बच्चे शांत नहीं हो जाते, तब तक दोनों को अलग रखें। कभी-कभी केवल अलग रखने से ही उन्हें शांत होने में मदद मिल जाती है।
  • झगड़े के लिए कौन जिम्मेदार है, इसका पता लगाने में ध्यान न लगाएं। झगड़ा करने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है – इसलिए दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं।
  • उनके गुणों, खाने-पीने की आदतों, स्कूल में उनके प्रदर्शन आदि को लेकर दोनों के बीच तुलना न करें। हर बच्चा अपने आप में यूनिक होता है और उसमें अलग तरह की विशेषताएं और टैलेंट होते हैं। तुलना करने से केवल झगड़े ही बढ़ते हैं।
  • हर दिन थोड़े समय के लिए दोनों बच्चों के साथ अलग-अलग समय बिताएं।
  • झगड़े को रोकने के लिए हिंसा का इस्तेमाल न करें। इससे जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर झगड़ों को रोकने के लिए वे हिंसा को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करेंगे।
  • अपने सभी बच्चों के साथ बराबरी से पेश आएं। या तो उन्हें शेयर करना सीखना पड़ेगा या फिर दोनों को ही वस्तु नहीं मिलेगी। उदाहरण के लिए, अगर वे दोनों एक ही खिलौने से खेलना चाहते हैं, तो उन्हें बारी-बारी से खेलने को कहें या जब तक वे इसके लिए तैयार न हों, तब तक दोनों को ही वो खिलौना न दें।

बच्चों के बीच झगड़े हो सकते हैं, लड़ाई हो सकती है, बहस हो सकती है, रोना-धोना हो सकता है, ड्रामे हो सकते हैं, लेकिन पेरेंट्स के रूप में आपको इन सब बातों से निपटना पड़ेगा। 

बच्चों के बीच झगड़ों को रोकने के लिए टिप्स

1. बच्चों को करीब लाने में मदद करना

कुछ नियम तय करके आप बच्चों की मदद कर सकते हैं। ये नियम बच्चों के साथ-साथ पेरेंट्स पर भी लागू होते हैं, ताकि बच्चों के बीच होने वाले झगड़ों के लिए समाधान निकल सके। 

  • अगर बच्चों को अलग-अलग चीजों में दिलचस्पी है, तो दोनों ही बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए समय निकालें।
  • बच्चों को भाई-बहनों के अलावा दोस्तों के साथ समय बिताने की भी इजाजत दें। इस बात का ध्यान रखें कि वे आपस में अच्छा समय बिता सकें।
  • पूरे परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताना जरूरी है। परिवार के साथ पिकनिक, मूवी, वेकेशन या आउटिंग की प्लानिंग करें और दोनों के आपसी संबंध को गहरा होने दें।
  • बच्चों को अपने झगड़े खुद सुलझाने दें और केवल जरूरत पड़ने पर ही बीच बचाव करें।
  • जिन चीजों को उन्हें आपस में शेयर करने की जरूरत है, उनके लिए शेड्यूल बनाएं।
  • अगर जरूरत हो, तो बच्चों के बीच के झगड़ों को सुलझाने के लिए प्रोफेशनल मदद लें।

2. जब एक बच्चा विकलांग हो

पेरेंटिंग के साथ-साथ बहुत सारी चुनौतियां भी साथ आती हैं और जब एक बच्चे की शारीरिक या भावनात्मक जरूरतें कुछ खास हों, तो ये चुनौतियां बड़े पैमाने पर बढ़ जाती हैं। पेरेंट्स को इस बच्चे के साथ अधिक समय बिताने की जरूरत होती है और दूसरे बच्चे के साथ समय को बैलेंस करने की जरूरत होती है। अक्सर पेरेंट्स एक बच्चे की विशेष जरूरतों को पूरा करने में बहुत अधिक व्यस्त हो जाते हैं और दूसरे बच्चे की जरूरतें नजरअंदाज हो जाती हैं। इस स्थिति के कारण जीवन के किसी न किसी पड़ाव पर बहुत सारा द्वेष और गुस्सा हावी हो सकता है। इस स्थिति से बचने के लिए, आप एक बच्चे की खास जरूरतों की देखभाल में दूसरे बच्चे को शामिल कर सकते हैं और एक साथ अच्छा समय बिता सकते हैं। 

3. जब एक बच्चा प्रतिभाशली हो

हर बच्चा अपने आप में प्रतिभाशाली होता है। उसमें अलग टैलेंट और खूबियां होती हैं। आपस में उनकी तुलना न करें, खासकर बाहरी लोगों के सामने। उन्हें एक समान प्यार करें और अच्छा महसूस कराएं। उनके टैलेंट को पहचानें और उनकी ताकत को बढ़ाने में मदद करें। अपनी कमजोरियां बताने और उनसे बाहर निकलने में कोई बुराई नहीं है। 

एक से अधिक बच्चों की देखभाल करना आसान नहीं होता है। दो बच्चों की परवरिश में बच्चों के बीच होने वाले झगड़े अटूट हिस्सा होते हैं। पेरेंट्स के रूप में आपका काम होता है, कि आप केवल एक सीमा तक ही उनके बीच के झगड़ों को सुलझाएं, ताकि उन्हें एक अलग व्यक्तित्व के रूप में निखरने का मौका मिल सके। 

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पूजा ठाकुर

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