बच्चों के बोलने में देरी होना

बच्चों के बोलने में देरी होना

बोलना या संचार एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ कुछ बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। कुछ बच्चों में बोलने से जुड़ी समस्याएं समय के साथ दूर हो जाती हैं जबकि कुछ बच्चों को इसके लिए उपचार की आवश्यकता हो सकती है। माता-पिता होने के नाते, आपको बोलने में समस्या से जुड़े संकेतों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर किसी एक्सपर्ट की मदद भी लेनी चाहिए। 

बच्चों में आम स्पीच डिसऑर्डर

1. चूकना

ऐसा तब होता है जब बच्चा बोलते समय कुछ स्वरों को छोड़ देता है। उदाहरण के लिए, बच्चा ‘मैं स्कूल जाता हूँ’ के बजाय ‘मैं कूल जाता हूँ’ कहता है।

2. अदला-बदली

ऐसा तब होता है जब बच्चा बोलते वक्त एक ध्वनि की जगह दूसरी ध्वनि का इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए, बच्चा ‘मुझे तेत पसंद है’ कहता है, जब उसके कहने का मतलब ‘मुझे केक पसंद है’ होता है। बच्चे ने यहाँ ‘क’ की ध्वनि को ‘त’ ध्वनि से बदल दिया है। ऐसे में बच्चा ‘ज’ और ‘र’ ध्वनि की भी ‘द’ और ‘ल’ ध्वनि के साथ अदला बदली कर सकता है। उदाहरण के लिए, ‘जोर से धक्का मारा’ को वह ‘दोल से धक्का माला’ कह सकता है।

3. विकृति

ऐसा तब होता है जब बच्चा ‘स’ और ‘र’ ध्वनि का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाता है। इसे लिस्पिंग के नाम से भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए, ‘रस्सी’ को ‘वस्सी’, ‘सात’ को ‘थात’ कहना आदि।

विकृति

4. आवाज में एक विसंगति (एनॉमली)

जैसे-जैसे हवा फेफड़ों से ऊपर उठती है और वोकल कॉर्ड्स को वाइब्रेट करती है, आवाज या ध्वनि निकलना शुरू हो जाती है। वॉइस फॉर्मेशन की इस प्रक्रिया को फोनेशन के नाम से जाना जाता है। जैसे ही आवाज गले, नाक या मुँह से गुजरती है, वह बदल जाती है। इसे प्रतिध्वनि या रेजोनेंस के नाम से जाना जाता है। यदि बच्चा वॉइस डिसऑर्डर से पीड़ित है, तो उसे फोनेशन या रेजोनेंस या फिर दोनों से संबंधित परेशानियां हो सकती हैं।

अ. अगर बच्चे की आवाज कठोर या कर्कश है या फिर उसके पिच में बदलाव महसूस होता है, तो उसे फोनेशन डिसऑर्डर है।

ब. अगर बच्चा बोलते वक्त नाक का इस्तेमाल करता है तो इसका मतलब है की उसे रेजोनेंस डिसऑर्डर है। इस तरह का डिसऑर्डर साउंड एनर्जी में संतुलन न होने के कारण होता है क्योंकि आवाज गले, नाक या मुँह के खाली स्थानों से होकर जाती है।

5. धाराप्रवाह न बोल पाना

ऐसा तब होता है जब बच्चा बोलते समय झिझकता, उसे दोहराता या बोलने में ज्यादा समय लेता है, इसका मतलब होता है कि बच्चा बोलते वक्त हकलाता है। यह फ्लुएंसी मे विसंगति से होता है जिसमें बोलने का प्रवाह बिगड़ जाता है। हकलाने की स्थिति बच्चों में अक्सर तब देखी जाती है जब वे थक जाते हैं, एक्साइटेड (उत्तेजित) होते हैं या फिर किसी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति का सामना कर रहे होते हैं।

6. अपरेक्सिया

यह डिसऑर्डर शरीर के नर्वस सिस्टम से संबंधित होता है। अगर बच्चे के दिमाग को उसके शरीर के ऐसे अंग जो स्पीच प्रोडक्शन में मदद करते है, उनके साथ कोऑर्डिनेट करने में परेशानी होती है तो वो भले ही भाषा और बोली को समझ ले मगर उसे बोलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर शब्दों का कभी-कभी गलत उच्चारण, जीभ, होंठ और जबड़े से कोऑर्डिनेशन में कठिनाई आदि शामिल हैं।

बच्चों को बोलने में परेशानी किस वजह से होती है

  • किसी दुर्घटना या स्ट्रोक से पीड़ित होने की वजह से दिमाग में डैमेज, या कुछ मामलों में बच्चे के जन्म से ही किसी डिफेक्ट के वजह से उसे बात करने या स्पष्ट बोलने में परेशानी हो सकती है।
  • सही से सुनने की समस्या लोगों में बोलने की समस्या का कारण बन सकती है। क्लेफ्ट पैलेट एक ऐसी स्थिति है जहाँ बच्चे के मुँह के ऊपरी भाग में या तालू में छेद होता है। यह परेशानी अक्सर जन्म से ही होता है और बोलते वक्त यह गले, नाक और मुँह से गुजरती हुई हवा के साथ दिक्कत खड़ी करती है और इससे स्पीच डिसऑर्डर होता है।
  • फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम (एफएक्सएस) एक जेनेटिक डिसऑर्डर है। इसके लिए बच्चे में लंबा चेहरा या उनकी उभरी हुई आँखों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि ये कुछ महत्वपूर्ण लक्षण होते हैं। इससे रिपिटेटिव क्लटर स्पीच का डर रहता है।
  • कंजेनिटल डिसऑर्डर, जैसे सेरेब्रल पाल्सी, हकलाने का कारण बन सकता है।
  • रिसेप्टिव लैंग्वेज डिसऑर्डर बच्चे के लिए लिखने और बोलने वाली भाषा को समझना मुश्किल बना देता है।
  • एक्सप्रेसिव लैंग्वेज डिसऑर्डर के वजह से बच्चा सही शब्दों को नही ढूंढ पाता और इसके वजह से उसे अर्थपूर्ण वाक्य बनाने में कठिनाई होती है।
  • एक्सप्रेसिव रिसेप्टिव डिसऑर्डर में बच्चे को भाषा समझने और बोलने में परेशानी होती है।
  • प्री-स्कूलर्स में, बच्चों के दांतों के गलत स्ट्रक्चर से भी उनके सही से बोलने या बात करने में समस्याएं हो सकती हैं।

बच्चों में स्पीच डिसऑर्डर का इलाज कैसे करें

बच्चों में इस परेशानी के इलाज के लिए, स्पीच थेरेपी की मदद ली जा सकती हैं। कभी-कभी, हियरिंग टेस्ट और शारीरिक जांच से बच्चों में इस परेशानी का पता नहीं चलता इसलिए स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट काम में आते है। ज्यादातर स्पीच संबंधी उपचार में एक थेरेपिस्ट से परामर्श करना चाहिए, जो बच्चों को बोलते वक्त ऑब्जर्व करेगा ताकि वह उनकी परेशानी को पहचान सके और उसके हिसाब से इलाज कर सके। उपचार में साँस लेने का अभ्यास, आवाज का अभ्यास, और बच्चे के बोलते वक्त मांसपेशियों को आराम देने का प्रयास शामिल होता हैं। ये सब ओरल मोटर एक्सरसाइज का हिस्सा हैं।

बच्चों में स्पीच डिसऑर्डर का इलाज कैसे करें

बच्चों में बोलचाल संबंधी परेशानियों को दूर करने के तरीके

  • आपका बच्चा सुनकर बोलना सीखता है। बच्चों में देर से बोलने की समस्या का इलाज किया जा सकता है अगर आप उन्हें सुनने और सीखने में मदद करने के लिए सही उच्चारण के साथ सही शब्दों का उपयोग करने पर ध्यान दें। हावभाव को समझाने के लिए पूरे वाक्यों का उपयोग करें। बच्चों को सिखाने के लिए आप किताबें भी पढ़ सकती है, कहानियां बच्चों को आकर्षित करेंगी और साथ ही भाषा को सीखने में मदद भी करेंगी। पढ़ते वक्त कुछ शब्दों पर जोर डाले जैसे की गेंद, पेड़, कुत्ते, कार आदि और इन शब्दों को तेज और स्पष्ट बोले ताकि बच्चों को सुनने और समझने में आसानी हो। साथ ही बच्चों के साथ कविताएं या गाना गाने से भी उनके भाषा में सुधार लाने में मदद मिलती है।
  • बच्चे में बोलने की समस्या को लेकर आपको सतर्क रहने की जरूरत है। कभी-कभी बच्चों की आवाज में नाक की आवाज आना, सर्दी-जुकाम या फिर सांस लेने में किसी समस्या का कारण हो सकती है जिसके लिए इलाज अनिवार्य है। बड़ी परेशानी जैसे एलर्जी, साइनस, सर्दी आदि के लिए डॉक्टर से परामर्श करने की जरूरत होती है और छोटी परेशानियों को कभी कभी सिर्फ नाक के कुछ व्यायाम या नाक को साफ करने से ठीक किया जा सकता है।
  • अगर आपका बच्चा हकला रहा है, तो उससे धीरे-धीरे बात करते हुए उसकी आँखों से कॉन्टैक्ट बनाए रखें। वह आपकी इस प्रक्रिया को दोहराएंगे। ऐसा करते वक्त अपने चेहरे पर एक मुस्कान बनाए रखें और बहुत ही धैर्य से काम लें ताकि वह भी इस प्रक्रिया के दौरान शांत महसूस कर सके। यह उसकी मांसपेशियों को आराम देने में मदद करेगा। बच्चे अक्सर तनाव के कारण भी हकलाते हैं। यदि बच्चों को घर पर शांति और सुकून भरा माहौल मिलता है, तो यह उनकी चिंता को कम करने में मदद करता है। फिंगरप्ले से भी बच्चों को स्पष्ट बोलने में मदद मिल सकती है।
  • आप मदद और निर्देशों का पालन करने के लिए स्पीच लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट के पास जा सकती हैं।

माता-पिता के तौर पर आप अपने बच्चे को किसी भी परेशानी या बीमारी से लड़ने का आत्मविश्वास देकर उसके जीवन में बदलाव ला सकते हैं। इसलिए, स्पीच डिसऑर्डर के लक्षणों पर ध्यान दें और उन्हें दूर करने या कम करने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

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