रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं – बच्चों के लिए राखी से जुड़ी 6 कहानियां

रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं - बच्चों के लिए राखी से जुड़ी 6 कहानियां

“बहना ने भाई की कलाई पे, प्यार बांधा है…” रक्षाबंधन यानी वह त्योहार जब हर जगह भाई-बहन के बीच की अनोखी बॉन्डिंग और प्यार को सेलिब्रेट किया जाता है। जब रंगबिरंगी राखियों और सुंदर गिफ्ट्स से बाजार भर जाते हैं। भाई किसी भी उम्र के हों, अपनी कलाई पर सजी रेशम की उस सुंदर डोरी से वे खुद को एकदम खास महसूस करते हैं और बड़ी शान से इसे सबको दिखाते हैं।

बहन और भाई के बीच प्यार का यह सबसे बड़ा पर्व इस साल 11 अगस्त को पड़ रहा है। पूरे देश में बेहद उत्साह और खुशी के साथ इसे मनाया जाता है। हम बड़े जहां परिवार के लोगों से मिलने की प्रतीक्षा करते हैं और बहनें ये सोचती हैं कि इस बार अपने भाइयों को राखी पर क्या खिलाना है, वहीं बच्चों के उत्साह की भी सीमा नहीं होती। जैसे एक-दूसरे के लिए हाथ से कार्ड बनाना, अपनी छोटी बहन को यह कहकर चिढ़ाना कि उसे गिफ्ट नहीं मिलने वाला है (भले ही चॉकलेट का एक बड़ा सा डिब्बा छुपाने की पुरजोर कोशिश की जा रही हो) और घर को सजाने और तैयारियों में मदद करने की कोशिश करना आदि।

इस साल, क्यों न इस अवसर को और भी खास बनाने के लिए आप रक्षाबंधन से जुड़ी कहानियों के साथ अपने बच्चों को इस दिन की अहमियत के और भी मायने समझाएं। राखी बांधने, मिठाई खिलाने और गिफ्ट्स देने के बाद एक स्टोरी सेशन करें। इसके लिए हम आपको रक्षाबंधन के 6 सबसे लोकप्रिय किस्सों के बारे में बता रहे हैं जो न केवल हमें इस त्योहार को मनाने के पीछे का उद्देश्य बताते हैं बल्कि प्रेम और संबंधों की उत्कृष्ट कहानियों के रूप में भी काम करते हैं। रक्षाबंधन के इतिहास पर आधारित इनमें से हर कहानी हमारे बच्चों के लिए एक बेहतरीन नैतिक सबक भी है।

रक्षाबंधन की कहानी – बच्चों के लिए 6 भारतीय किंवदंतियां

1. कृष्ण और द्रौपदी – एक पवित्र रिश्ता

कृष्ण और द्रौपदी - एक पवित्र रिश्ता

रक्षाबंधन के बारे में महाभारत की यह कहानी बहुत रोचक है।

द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी थीं। श्रीकृष्ण उसके मित्र और गुरू समान थे। एक बार युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के बाद बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं से भरे दरबार में श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल ने उनका और भीष्म सहित अन्य कई लोगों का अपमान करना शुरू कर दिया। शिशुपाल को लाख मना करने पर भी जब वह चुप न हुआ तो अंततः श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसे मार डाला। हालांकि, ऐसा करते हुए उनकी उंगली में चोट लग गई और खून निकलने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने जल्दी से अपनी साड़ी के एक हिस्से को फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। यह देखकर श्रीकृष्ण बेहद अभिभूत हो गए और उन्होंने द्रौपदी से कहा कि यह उसका उनके ऊपर ऋण है और वह जब भी उन्हें पुकारेगी, वे उसकी रक्षा के लिए आएंगे। 

इसके कुछ समय बाद, पांडवों को अपने चचेरे भाइयों, कौरवों के हाथों चौपड़ के खेल में बहुत बड़ी हार और अपमान का सामना करना पड़ा। वे अपने राज्य सहित सब कुछ दुर्योधन को हार बैठे थे। दुर्योधन के आदेश पर उसका भाई दुःशासन द्रौपदी को जबरदस्ती दरबार में लेकर आया और उसके वस्त्रहरण की कोशिश करने लगा। अपमान और लज्जा से रोती द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को याद किया और उनके चमत्कार से कुछ ऐसा हुआ कि दुःशासन साड़ी खींचता रहा लेकिन वह एक कभी खत्म न होने वाला वस्त्र बन गई थी। इस तरह द्रौपदी का वस्त्रहरण होने से बच गया। अपने वचन के अनुसार, श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की, और उसकी लाज रखी। द्रौपदी ने कृष्ण की उंगली पर अपनी साड़ी का जो टुकड़ा बांधा था, वह उसकी राखी ही थी।

2. राजा बलि और देवी लक्ष्मी – वचन की रक्षा

राजा बलि और देवी लक्ष्मी - वचन की रक्षा

बहुत पहले की बात है, भगवान विष्णु एक कठिन परिस्थिति में फंस गए थे। उन्हें अपने ही भक्त प्रह्लाद के पोते, और असुरों के राजा बलि के द्वारपाल के रूप में खुद को छिपाने के लिए मजबूर होना पड़ा। भगवान विष्णु के लंबे समय तक घर से दूर रहने पर उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी चिंतित हो गईं। लक्ष्मी ने विष्णु का पता लगाने के लिए पृथ्वी पर जाने का फैसला किया। वह एक ब्राह्मण स्त्री का अवतार लेकर राजा बलि के पास गईं उससे कहा, “मेरे पति काम के लिए कहीं दूर चले गए हैं। क्या मैं आपके यहाँ शरण ले सकती हूँ?”

राजा बलि ने देवी लक्ष्मी का बहुत ध्यान रखा, वह यह बिल्कुल नहीं जान पाया कि ब्राह्मण महिला वास्तव में एक देवी थी! पूर्णिमा के दिन, लक्ष्मी ने बलि की कलाई पर राखी बांधी और साथ ही उसकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। यह देखकर बलि अभिभूत हो गया। बलि ने ब्राह्मण स्त्री के रूप में छिपी देवी लक्ष्मी से कहा, “बहन आपको मुझसे जो चाहिए हो मांग लो। मैं आपकी इच्छा पूरी करने का वचन देता हूँ।” इस पर देवी लक्ष्मी ने कहा, “कृपया अपने द्वारपाल को मुक्त कर दें। वो मेरे पति हैं।”

यह सुनकर राजा बलि चौंक गया। तब भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी ने बलि के सामने अपना सच्चा रूप प्रकट किया। अपने वचन के अनुसार, उसने भगवान विष्णु को अपने घर लौट जाने का अनुरोध किया। आज भी इसे भाई-बहन के पवित्र प्यार को दर्शाती राखी की सबसे प्रसिद्ध कहानियों में से एक माना जाता है। इसीलिए कई जगहों पर, अपनी बहन के प्रति बलि की भक्ति को दर्शाने के लिए, राखी के त्योहार को बलेवा के नाम से भी जाना जाता है। 

3. हुमायूँ और रानी कर्णावती – बहन सबसे पहले

हुमायूँ और रानी कर्णावती - बहन सबसे पहलेयह रक्षाबंधन से जुड़ी एक सच्ची कहानी है जो भारत के इतिहास में दर्ज है। बात तब की है जब दिल्ली पर मुगलों का शासन था। उस समय, राजस्थान के चित्तौड़ में राणा सांगा की विधवा रानी कर्णावती राज्य संभाल  थीं। वैसे तो चित्तौड़ का राजा उनका पुत्र राणा विक्रमादित्य था लेकिन संभालने के लिए उसकी आयु काफी कम थी। ऐसे में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। 

चित्तौड़ राज्य युद्ध का सामना कर रहा था लेकिन उसके बचने की बहुत कम उम्मीद थी। रानी कर्णावती जानती थीं कि मुगल बहुत शक्तिशाली हैं और केवल उनकी मदद से ही बहादुर शाह को हराया जा सकता है। इसलिए आखिरी उम्मीद के रूप में, उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूँ को एक राखी के साथ संदेश भेजा। हुमायूँ उस समय किसी दूसरी लड़ाई में व्यस्त था। वह एक बहादुर योद्धा था और आमतौर पर किसी भी चीज के लिए अपनी सैन्य योजना नहीं बदलता था। हालांकि, वह कर्णावती की राखी को मना नहीं कर सका। वैसे तो राखी हिंदुओं का पर्व है और हुमायूँ मुस्लिम था लेकिन उसने राखी का मान रखा और कर्णावती को बहन मानकर उसकी रक्षा करने का फैसला किया।

अपनी राखी बहन की खातिर, उसने अपने सैनिकों को दिशा बदलने के लिए कहा और तुरंत कर्णावती की मदद करने के लिए दौड़ पड़ा।

इसके बावजूद अफसोस की बात है कि हुमायूँ के पहुँचने से पहले ही बहादुर शाह ने चित्तौड़ में प्रवेश कर लिया। इसके बाद अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए रानी कर्णावती कई अन्य स्त्रियों के साथ जौहर में कूद गईं। हुमायूँ अपनी बहन की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़कर आया था लेकिन अफसोस कि वह रानी को बचा नहीं सका, लेकिन बाद में उसने बहादुर शाह से युद्ध करके चित्तौड़ को कब्जे में लिया और कर्णावती के पुत्र को सौंप दिया। आज यह कहानी रक्षाबंधन इतिहास में एक स्थायी किंवदंती बन गई है।

भाई और बहन के बीच का रिश्ता मजबूत और शुद्ध होता है। यहाँ तक ​​कि अगर रिश्ता खून का नहीं हैं, तो भी इस बंधन को बनाने और सील करने का एक सुंदर तरीका है राखी बांधने का रिवाज। हुमायूँ और कर्णावती की कहानी इस बात की प्रमाण है।

4. राजा पुरु और सिकंदर की पत्नी 

राजा पुरु और सिकंदर की पत्नी 

बच्चों के लिए रक्षाबंधन की यह कहानी भारतीय इतिहास से जुड़ा एक लोकप्रिय किस्सा है। सिकंदर को दुनिया के सबसे महान विजेताओं में गिना जाता है। जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया तो उत्तर-पश्चिम भारतीय राज्य आम्बी के शासक राजा पुरु जिन्हें पोरस के नाम से भी जाना जाता है, उनके साथ उसका युद्ध होने वाला था। राजा पुरु बेहद वीर और कुशल योद्धा थे। तब सिकंदर की पत्नी रोक्साना अपने पति की रक्षा को लेकर बहुत चिंतित हो गई थी। अपने पति की जान बचाने की कोशिश में उसने राजा पुरु को राखी भेजी और अपने पति की रक्षा का वचन माँगा। 

युद्ध के मैदान में, पोरस और सिकंदर आमने-सामने थे। किवदंती है कि राजा पुरु सिकंदर को मारने वाले थे। हालांकि, उन्हें अपनी राखी बहन से किया वादा याद था। पुरु ने सिकंदर को नहीं मारा – भाई के तौर पर किए अपने वादे और रक्षाबंधन का महत्व उनके लिए किसी भी लड़ाई को जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण था।

5. संतोषी माँ का जन्म

संतोषी माँ का जन्म

भगवान गणेश के दो पुत्र थे, जिनका नाम शुभ और लाभ था। रक्षाबंधन पर हर साल वे बहुत निराश हो जाते क्योंकि रक्षाबंधन मनाने के लिए उनकी कोई बहन नहीं थी!

वे अपने पिता के पास गए और कहा, “पिताजी, हम भी एक बहन चाहते हैं। हम भी रक्षाबंधन मनाना चाहते हैं।” सौभाग्य से उसी समय वहाँ नारद मुनि भी प्रकट हुए। उन्होंने भगवान गणेश को पुत्री को जन्म देने के लिए मना लिया। उन्होंने कहा, एक बेटी होने के नाते, वह आपके जीवन को समृद्ध बनाने के साथ-साथ आपके बेटों के जीवन को भी और अधिक सुंदर बनाएगी।

इसके बाद एक चमत्कार हुआ। गणेश जी की पत्नियों रिद्धि और सिद्धि में से दिव्य ज्वालाएँ निकलने लगीं और एक बेटी का जन्म हुआ, जिसे हम संतोषी माँ (संतुष्टि की देवी) कहते हैं। शुभ और लाभ अब बेहद खुश हुए क्योंकि वे अब अपनी नई बहन के साथ राखी मना सकते थे। यही कारण है कि कई जगहों पर संतोषी माँ की पूजा रक्षाबंधन समारोह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

6. यमुना और यम – अमरत्व का वरदान

यमुना और यम - अमरत्व का वरदान

रक्षाबंधन त्योहार के पीछे की यह कहानी सबसे प्राचीन है और इस दिन मनाई जाने वाली रीतियों जैसे भाई की आरती उतारना, मिठाई खिलाना आदि कई परंपराओं को समझाती है।

मृत्यु के देवता यम और यमुना भाई-बहन थे। हालांकि, बारह वर्षों तक यम ने अपनी बहन से मुलाकात नहीं की थी। यमुना बहुत दुखी थी। वह अपने भाई को करती थी और उनसे मिलना चाहती थी। फिर वह मदद के लिए देवी गंगा के पास गई।

देवी गंगा ने यम को उनकी बहन के बारे में याद दिलाया और उनसे जाकर मिलने के लिए कहा। यमुना बहुत खुश हुई। उसने यम का भव्य स्वागत किया, बहुत सारे पदार्थ बनाकर उन्हें खिलाए और उनकी कलाई पर राखी भी बांधी। यम अपनी बहन के प्रेम से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे अमरता प्रदान कर दी। उन्होंने यह भी घोषणा की, कि कोई भी भाई जिसने राखी बंधवाई है और अपनी बहन की रक्षा करने का वादा किया है, वह भी अमर हो जाएगा। उस दिन के बाद से ही यह परंपरा शुरू हुई कि राखी के अवसर पर भाई अपनी बहनों से मिलने जाते हैं और बहनें अपने भाई को चिरायु बनाने के लिए उनकी कलाई पर राखी बांधती हैं। इसलिए कहते हैं भाई-बहन का प्रेम अमर होता है।

राखी एक पवित्र बंधन और उत्सव का समय होता है। हम आशा करते हैं कि आप अपने बच्चों के लिए इस रक्षाबंधन पर एक मजेदार स्टोरी सेशन का आयोजन करेंगे। बच्चों का मनोरंजन करने और उन्हें इतिहास और पुराणों से जोड़ने के किसी भी विषय से जुड़ी एक अच्छी कहानी से बेहतर कुछ भी नहीं होता, और इस तरह वे राखी के प्यारे त्योहार के लिए प्यार और बंधन के कुछ महत्वपूर्ण जीवन के सबक सीख सकते हैं।

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