बच्चों के लिए रामायण की 15 अनूठी कहानियां

बच्चों के लिए रामायण की 15 अनूठी कहानियां

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण हमारे देश का सबसे प्राचीन महाकाव्य है । इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया था । कालांतर में रामायण को सामान्य लोगों के लिए सरल बनाने हेतु कई कवियों और लेखकों द्वारा विभिन्न भाषाओं में भी इसकी कथा लिखी गई, जैसे तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस और कंबर द्वारा रचित कंब रामायण इत्यादि। रामायण बुराई पर अच्छाई की जीत की कहानी है जिसमें श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता की रक्षा के लिए अहंकारी राक्षसराज रावण को मारा था। इस महाकाव्य में हिंदू संस्कृति से संबंधित बहुत से उपदेश निहित हैं और यह हमें कर्तव्य, प्रेम, निष्ठा, साहस और पराक्रम का सही मतलब समझाता है।

बच्चों के लिए रामायण की चुनिंदा लघु कथाएं

रामायण का वास्तविक ग्रंथ संस्कृत में लिखा हुआ है और यह आपके बच्चे के लिए समझने में कठिन हो सकता है। हालांकि यदि आप अपने बच्चे को पौराणिक महाकाव्य से परिचित करवाना चाहते हैं तो यहाँ बच्चों के लिए कुछ लघु कथाएं दी हुई हैं जिन्हें रामायण से लिया गया है।

1. हनुमान जी को बजरंगबली क्यों कहा जाता है?

एक बार जिज्ञासु हनुमान जी ने सीता माता को सिंदूर लगाते हुए देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। हनुमान जी ने सीता माता से पूछा कि आप यह सिंदूर अपने माथे पर क्यों लगाती हैं? उनकी इस जिज्ञासा से खुश होते हुए सीता माता ने जवाब दिया कि वे यह सिंदूर भगवान श्रीराम की लंबी आयु के लिए लगाती हैं। यह सुनने के बाद हनुमान जी ने भी अपने पूरे शरीर को सिंदूर से लिप्त कर लिया। हनुमान जी को देख कर श्रीराम जोर से हंसने लगे। उन्होंने हनुमान जी को पास बुलाया और कहा कि मैं आपके प्रेम और भक्ति से प्रसन्न हूँ और अब से लोग आपको बजरंग बलि के नाम से भी जानेंगे। बजरंगबली शब्द में बजरंग का अर्थ नारंगी होता है।

2. भगवान राम की बहन शांता

तीन भाइयों के अलावा श्रीराम की एक बहन भी थी। इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और यह भी माना जाता है कि राजा दशरथ के बाकी चारों बेटों को शांता के बारे में नहीं बताया गया था। शांता, राजा दशरथ और रानी कौशल्या की सबसे बड़ी बेटी थी। रानी कौशल्या की एक बड़ी बहन थी जिनका नाम वर्षिणी था और उन्हें कोई भी संतान नहीं थी। एक बार जब वर्षिणी अपनी छोटी बहन कौशल्या से मिलने गई तो उन्होंने रानी कौशल्या से उनकी और राजा दशरथ की बेटी मांग ली। राजा दशरथ ने अपनी बेटी रानी कौशल्या की बहन वर्षिणी को दे दी।

3. हृदय में सीताराम

रावण से युद्ध जीतने के बाद श्रीराम ने उन सभी लोगों को उपहार दिया जिन लोगों ने युद्ध में उनकी मदद की थी। जब श्रीराम ने हनुमान जी से पूछा कि उन्हें क्या चाहिए तो उन्होंने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया। यह देख कर सीता माता ने खुश होकर उन्हें अपनी मोतियों की माला दे दी। हनुमान जी ने वह उपहार स्वीकार किया और दरबार के एक कोने में बैठ कर वे माला के हर एक मोती को अपने दाँतों से तोड़ने लगे। आश्चर्यचकित होकर सीता माता ने पूछा कि वे सभी मोतियों को क्यों तोड़ रहे हैं? तब हनुमान जी ने जवाब दिया कि वे मोतियों में श्रीराम को खोज रहे हैं किंतु अब तक ढूंढ़ नहीं पाए। सभा में बैठे सभी लोग हनुमान जी की भक्ति पर जोर से हंस पड़े और उनमें से एक ने पूछा, हनुमान! यदि आपके शरीर में भी श्रीराम वास करते हों तो? जवाब में हनुमान जी ने जय श्रीराम कहते हुए अपने हाथों से सीना चीर दिया और उनके हृदय में सिया राम की तस्वीर दिख रही थी। वहाँ पर बैठा हर एक व्यक्ति हनुमान जी की भक्ति पर आश्चर्यचकित था।

4. गिलहरी की कहानी

जब रावण सीता का अपहरण करके उन्हें लंका ले गया था तब उन्हें वापस लाने के लिए श्रीराम को बहुत बड़ा समुद्र पार करना था। पूरी वानर सेना और अन्य प्रजाति के जीव जंतु भी समुद्र में पुल बनाने के लिए श्रीराम की मदद करने लगे जो सीधे रावण की लंका की ओर ले जाता था। श्रीराम पूरी वानर सेना के समर्पण के कारण बेहद भावुक थे। तभी उन्होंने देखा कि एक छोटी सी गिलहरी भी उस बड़े से पुल को बनाने में सेना की मदद कर रही है। वह एक छोटा सा पत्थर अपने मुँह में उठाती और बड़ेबड़े पत्थरों के पास जाकर रख देती थी।उस गिलहरी का मनोबल तब टूट गया जब एक वानर ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा इस छोटी सी गिलहरी को पत्थरों से दूर रहना चाहिए नहीं तो इतने बड़े पत्थरों के नीचे आकर वह दब जाएगी। उस बंदर को हंसता देख बाकी के पशु पक्षी भी उस पर हंस पड़े और उसका मजाक उड़ाने लगे। ऐसा सुनकर उस नन्ही सी गिलहरी को बहुत बुरा लगा और वह रोने लगी। वह रोते हुए श्रीराम के पास पहुँची और पूरे किस्से के बारे में उन्हें बताया। तब श्रीराम ने सबको एकत्र किया और दिखाया कि उस गिलहरी द्वारा फेंके हुए छोटेछोटे पत्थर कैसे दो पत्थरों को जोड़ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कोई योगदान छोटा या बड़ा हो यह जरूरी नहीं है, सबसे जरूरी है इरादा और समर्पण। गिलहरी की मेहनत और लगन को सराहते हुए श्रीराम ने उसकी पीठ पर प्यार से अपनी उंगलियां फेरी। उनके प्यार भरे स्पर्श ने उस गिलहरी की पीठ पर तीन लकीरें खींच दी। यह माना जाता है कि इस घटना से पहले गिलहरियों की पीठ पर कोई भी लकीर नहीं हुआ करती थी। यह बच्चों के लिए एक बेहतरीन नैतिक कथा है जो उन्हें हर बड़ी व छोटी मेहनत की महत्ता को समझाती है।

5. रावण के दस सिर

भगवान ब्रह्मा को खुश करने के लिए रावण ने कई वर्षों तक बहुत कठिन तप किया। एक दिन ब्रह्मदेव को मनाने के लिए रावण ने अपना सिर काट दिया। जब उसने अपना सिर काटकर यज्ञ में डाला तो उसका सिर अपने आप उसके शरीर से जुड़ गया। रावण ने कई बार अपना सिर काटने का प्रयास किया किंतु हर बार वह सिर उसके शरीर से जुड़ जाता था। वह अपना सिर तब तक काटता रहा जब तक ब्रह्मदेव उसके सामने नहीं आ गए। रावण के इस समर्पण से खुश होकर ब्रह्मदेव ने उसे दस सिर का वरदान दे दिया और तब से रावण सर्वशक्तिमान और सर्वश्रेष्ठ राजा बन गया। कहा जाता है कि प्रकांड पंडित और महान ज्ञानी रावण के दस सिर में से 6 सिर शास्त्रों और 4 सिर वेदों के प्रतीक हैं।

6. सीता और मंदोदरी की कहानी

यह हर कोई जानता है कि सीता राजा जनक की पुत्री थीं जो उन्हें खेत में हल जोतते हुए मिली थीं किंतु अद्भुत रामायण के सर्ग 8 में लिखित पंक्तियों के अनुसार मंदोदरी, सीता की माँ थी। इसके अनुसार रावण दंडकारण्य के ऋषियों को मारकर उनका रक्त एक घड़े में एकत्र करके रखा करता था। गृत्समद नाम के एक ऋषि देवी लक्ष्मी को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने के लिए तप के दौरान दर्भ घास से उत्पन्न दूध को एक पात्र में एकत्रित करते थे। रावण जब ऋषि गृत्समद को मारने गया तो उनके पात्र के दूध को अपने रक्त के पात्र में डाल दिया। इस दुष्कर्म को देखकर रावण की पत्नी बहुत क्रोधित हो गई और उन्होंने रावण के पात्र में भरे रक्त को पीकर खुद को मार देने का निर्णय किया। रावण के उस पात्र से तरल पदार्थ को पीकर मंदोदरी की मृत्यु नहीं हुई बल्कि वे गर्भवती हो गईं और उनके गर्भ में सीता थी। माँ लक्ष्मी का अवतार सीता का जन्म होते ही मंदोदरी ने उस बालिका को कुरुक्षेत्र में छोड़ दिया और इस प्रकार से मिथिला के राजा जनक को सीता मिली।

7. हनुमान जन्म

रामायण से ली हुई हनुमान जी के जन्म की कथा बच्चों को सुनाने के लिए एक रोचक कहानी है। एक दिन जब राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे इधर उसी समय अंजना माँ पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना कर रही थी। अग्नि देव ने राजा दशरथ को प्रसाद के रूप में खीर दी जो उन्होंने अपनी तीनों रानियों में बांट दी। दैवीय हस्तक्षेप के कारण एक चील ने खीर के पात्र से थोड़ा सा प्रसाद छीनने का प्रयास किया और गिरा दिया। अब क्या था वायु देव उस प्रसाद को अंजना माँ के हाथों तक ले गए और खाने को कहा। इसके कुछ समय बाद अंजना माँ ने श्री हनुमान को जन्म दिया।

8. श्रीराम के भाइयों का अवतार

श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे और यह माना जाता है कि त्रेता युग में भगवान विष्णु का शेषनाग, शंख और सुदर्शन चक्र उनके अनुज लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रूप में अवतरित हुए थे।

9. शूर्पणखा की कहानी

शूर्पणखा रावण की बहन थी और ऐसा माना जाता है कि श्रीराम और रावण के बीच युद्ध का मूल कारण भी शूर्पणखा ही थी। वह रामरावण युद्ध का कारण कैसे बनी इसकी अनेक कहानियां हैं। ऋषि वाल्मीकि के अनुसार शूर्पणखा ने श्रीराम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था। श्रीराम द्वारा मना करने के बाद शूर्पणखा ने लक्ष्मण के सामने भी विवाह का प्रस्ताव रखा पर लक्ष्मण ने भी मना कर दिया और इस गुस्से में वह देवी सीता को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करने लगी। तभी श्रीराम के एक आदेश पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काट दी। अपमानित और निराश होकर शूर्पणखा अपने अहंकारी भाई रावण के पास जा पहुँची और रावण ने श्रीराम व लक्ष्मण से प्रतिशोध लेने के लिए सीता का अपहरण कर लिया।

10. श्रीराम की मृत्यु कथा

जब श्रीराम के जाने का समय आ गया तो उन्होंने हनुमान जी को भ्रमित कर दिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि हनुमान जी यमराज को श्रीराम के प्राण ले जाने नहीं देते। हनुमान जी का ध्यान भटकाने के लिए श्रीराम ने अपनी अंगूठी एक दरार में फेंक दी और उनसे लाने के लिए कहा। श्री हनुमान अपना रूप बहुत छोटा सा करके उस दरार में घुस गए और सीधे नाग लोक में जा पहुँचे। उन्होंने नाग लोक के राजा वासुकि से अंगूठी के बारे में पूछा तो वासुकि ने उन्हें वैसी ही कई सारी अंगूठियों के बारे में बताया जो श्रीराम की थी। हनुमान जी इतनी सारी अंगूठियों को देख कर हैरान रह गए तब वासुकि ने हनुमान को बताया कि श्रीराम ने उनका ध्यान भटकाया था।

11. रावण की आत्मा की कथा

यह माना जाता है कि अपने अंतिम युद्ध पर जाने से पहले रावण ने अपनी आत्मा अग्निचक्षु नामक सन्यासी को दे दी थी। वह सन्यासी रावण की आत्मा की सुरक्षा कर रहा था और उसे यह आत्मा तब तक के लिए सुरक्षित रखने को कहा गया जब तक रावण युद्ध जीत कर वापस न आ जाए। युद्ध के दौरान राम यह देख कर आश्चर्यचकित थे कि उनका कोई भी तीर रावण को नहीं लग रहा था। रावण के इस रहस्य के बारे में राम के एक सैनिक को पता था, उसने रावण का रूप धरा और उस सन्यासी के पास रावण की आत्मा वापस लेने चला गया। जैसे ही रावण की आत्मा मुक्त हुई राम ने अपने तीर से उसका अंत कर दिया।

12. लक्ष्मण की नींद

वनवास गमन के समय लक्ष्मण श्रीराम और सीता की अविरत सेवा करना चाहते थे इसलिए उन्हें विश्राम नहीं करना था । नींद को खत्म करने के लिए लक्ष्मण ने देवी निद्रा से प्रार्थना की और 14 वर्षों तक उनकी नींद वापस लेने के लिए कहा। लक्ष्मण के इस निवेदन को देवी निद्रा ने स्वीकार कर लिया किंतु साथ ही यह भी कहा कि उनके बदले में किसी और को 14 वर्षों तक सोना होगा। लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की स्वीकृति के साथ लक्ष्मण ने वन में रहते हुए सभी रातें जागकर श्रीराम और सीता की सेवा की और उधर अयोध्या में उर्मिला श्रीराम व लक्ष्मण की मदद के लिए 14 वर्षों तक सोती रहीं।

13. श्रीराम द्वारा हनुमान की मृत्यु का आदेश

एक बार नारद मुनि द्वारा उकसाए जाने पर हनुमान जी ने ऋषि विश्वामित्र का अपमान कर दिया था। यह तब हुआ था जब हनुमान जी ने श्रीराम की सभा में सभी ऋषि मुनियों को प्रणाम किया किंतु उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को प्रणाम नहीं किया क्योंकि वह जन्म से ऋषि नहीं थे। तब ऋषि विश्वामित्र क्रोधित हो गए और उन्होंने श्रीराम को हनुमान जी की मृत्य का आदेश दे दिया। हनुमान जी को मृत्युदंड मिल चुका था किंतु कोई भी तीर व यहाँ तक कि ब्रह्मास्त्र भी उनका कुछ न बिगाड़ सका क्योंकि उस समय वे श्रीराम नाम का जाप कर रहे थे।

14. कुंभकर्ण की नींद का रहस्य

एक बार भगवान ब्रह्मा ने रावण, विभीषण व कुंभकर्ण तीनों भाइयों से कोई भी वर मांगने को कहा। चूंकि इंद्र कुंभकर्ण के इरादों को जानते थे इसलिए उन्होंने माता सरस्वती से विनती की और कुंभकर्ण के मन की इच्छा को बदल देने के लिए कहा। इसी कारण से कुंभकर्ण ने भगवान ब्रह्मा से हमेशा सोए रहने का वरदान मांगा। इस बात से रावण अनजान था पर बाद में उसने ब्रह्मदेव से वरदान वापस लेने की विनती की किंतु उन्होंने कहा कि कुंभकर्ण आधे साल के लिए सोता रहेगा और आधे साल के लिए जागेगा। श्रीराम से युद्ध आरंभ होने के पहले कुंभकर्ण सोया हुआ था और उसे कई प्रयासों के बाद युद्ध के लिए जगाया गया था।

15. श्रीराम की विजय

रावण ने श्रीराम से युद्ध जीतने के लिए एक यज्ञ किया था। इस यज्ञ की शर्त यह थी कि यदि रावण इस यज्ञ के बीच से उठ गया तो यह यज्ञ विफल हो जाएगा। रावण को यज्ञ में तब तक बैठे रहना था जब तक यह यज्ञ सफलतापूर्वक पूर्ण नहीं हो जाता। जब श्रीराम को इस यज्ञ के बारे में पता चला तो श्रीराम ने रावण के यज्ञ में बाधा डालने के लिए सेना के साथ अंगद को भेजा। कई प्रयासों के बाद भी अंगद रावण के यज्ञ को खंडित नहीं कर पाया। तब अंगद मंदोदरी के बाल पकड़ कर रावण के सामने ले आए और मंदोदरी रावण से मदद की गुहार करती रही। जब मंदोदरी ने राम और सीता का उदाहरण देते हुए रावण पर व्यंग्य किया तब रावण अत्यधिक क्रोधित हो गया और यज्ञ से उठ गया। इस प्रकार से रावण का विजय यज्ञ भी खंडित हो गया और उसकी युद्ध में हार हुई।

रामायण की इन लघु कथाओं में बहुत सी महान और नैतिक शिक्षाएं छिपी हुई हैं। ये कहानियां आपके बच्चे के लिए सिर्फ मनोरंजक ही नहीं हैं बल्कि यह उसे रामायण की अन्य कहानियों को जानने के लिए भी प्रेरित कर सकती हैं। हिंदू धर्म में अनेक मनोरंजक कहानियां हैं, आप अपने बच्चे को धर्म और संस्कृति के बारे में अधिक जानकारी देने के लिए श्रीकृष्ण की कहानियां भी सुना सकती हैं।

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