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पेरेंट्स होने के नाते बच्चे की डाइट पर ध्यान देना सबसे जरूरी चीजों में से एक है और आपको शुरुआत से ही स्वस्थ आहार पर ध्यान देना चाहिए। यदि आप शुरू से ही अपने बच्चे को अच्छी तरह से खिलाती हैं, तो वह न केवल एक स्वस्थ व्यक्ति के रूप में विकसित होगा, बल्कि जीवन भर खाने की अच्छी आदतों का पालन का पालन करेगा।
जब कोई बच्चा अपने वजन को कम करने और अपनी बॉडी को सही शेप देने के लिए खाना सही से नहीं खाता है, तो उसे एनोरेक्सिक कहा जाता है। टीनएज में यह समस्या आम है क्योंकि इस उम्र में बच्चे अपने लुक को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। बच्चे इसमें स्वास्थ्य के बजाय शारीरिक आकर्षण को अधिक महत्व देते हैं, जिसकी वजह से वे धीरे-धीरे खुद को भूखा मारते हैं।
एनोरेक्सिया नर्वोसा के दो प्रकार है जो बच्चों को प्रभावित करते हैं:
इस प्रक्रिया में बच्चा जानबूझकर कैलोरी का सेवन कम करता है ताकि वह अपना वजन कम कर सके। खासकर लड़कियां आकर्षक दिखने के चक्कर में कार्बोहाइड्रेट और फैट खाने से बचती हैं।
यह प्रक्रिया रेस्ट्रिक्टर के बिलकुल विपरीत है, हालांकि इसका परिणाम समान ही होता है। इस प्रक्रिया में बच्चा जितना संभाल सके उससे अधिक खाता है, जिसे ‘बिंज ईटिंग’ कहा जाता है। इसमें बच्चा उल्टी करके या रेचक का उपयोग करके, या कभी-कभी दोनों के साथ खाने को बाहर निकाल देता है। जिसकी वजह से बच्चे का आंत्र पथ और पेट साफ हो जाता है और वह गंभीर रूप से कुपोषण का शिकार हो जाता है।
आपको बता दें कि ज्यादातर मामलों में कम उम्र की लड़कियां ही इससे प्रभावित होती है। हालांकि, अब लड़कों में भी यह समस्या बढ़ती जा रही है। एनोरेक्सिया एक ऐसी समस्या है जो हर तरह के बच्चों को प्रभावित करती है, चाहे वे सामाजिक, आर्थिक, नस्लीय और जातीय आधार पर कितने ही अलग हों, उससे कोई फर्क नहीं होता है।
आपके बच्चे के एनोरेक्सिक होने के कई कारण हो सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं:
ज्यादातर मामलों में, एनोरेक्सिया से पीड़ित बच्चों की मानसिकता बाकी सामान्य बच्चों की तुलना में अलग होती है। वह ज्यादातर उदास रहते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि वे अपने साथियों की तुलना में ‘आउट ऑफ शेप’ दिखते हैं। उन पर हमेशा वजन न बढ़ने का दबाव होता है, जो उनके खाने की आदतों को प्रभावित करता है और इसका परिणाम यह होता है कि बच्चा अपने भोजन को खाने या संभालने में असमर्थ हो जाता है।
बढ़ते बच्चों के शरीर में कई तरह के हार्मोन रिलीज होते हैं, जो इसे ट्रिगर करते हैं और इसी वजह से उनके मिले-जुले इमोशन गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि बच्चा अपने वजन को लेकर चिंतित रहता है और उदास भी। कुछ मामलों में, बच्चा स्कूल में साथियों के दबाव में आकर भी एनोरेक्सिया का शिकार हो जाता है। यदि बच्चा व्यायाम या खेलों में सक्रिय हिस्सा लेता है, तो यह उसे एनोरेक्सिक भी बना सकता है। वहीं अन्य सामान्य कारणों जैसे, किसी प्रियजन की मृत्यु, माता-पिता का तलाक और यहां तक कि कम उम्र में शारीरिक या यौन शोषण का शिकार होना, क्योंकि वे बच्चे को अंदर तक हिला देते हैं।
ऐसा रिसर्च में पाया गया है कि कभी-कभी बच्चे अपने जेनेटिक्स की वजह से भी एनोरेक्सिया का शिकार हो सकते हैं। जिन बच्चों के पारिवारिक इतिहास में कोलाइटिस, आर्थराइटिस, सिरोसिस, और गुर्दे की समस्या होती है उनको स्वस्थ बच्चों की तुलना में एनोरेक्सिया होने का अधिक खतरा रहता है।
माता-पिता के रूप में आप जान सकेंगे कि आपका बच्चा कब एनोरेक्सिक बनना शुरू कर रहा है। उसके द्वारा प्रदर्शित किए जाने वाले कुछ लक्षणों का उल्लेख यहां किया गया है, जिन्हें तीन प्रकारों में बांटा गया गया है:
हालांकि बच्चे इस बात को अपने तक रखने की कोशिश करेंगे लेकिन इसके बावजूद भी माता-पिता या शिक्षक निश्चित रूप से एनोरेक्सिया के लक्षण पहचान जाएंगे, यदि वे बच्चे का अच्छी तरह से निरीक्षण करते हैं। अन्यथा, बाल मनोचिकित्सक या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ आपसे और बच्चे से बात करके उसकी हरकतों को पहचान जाएंगे कि आखिर बच्चा क्या कर रहा है।
बता दें कि एनोरेक्सिया में बच्चे के शरीर से ज्यादा उसके दिमाग पर असर पड़ता है, इसलिए इसके इलाज के तरीके एक बच्चे से दूसरे बच्चे में बहुत अलग हो सकते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि एनोरेक्सिया का इलाज उसके प्रकार पर भी निर्भर करता है, जिसने बच्चे को प्रभावित किया है और इससे गुजरने के लिए कई फेज होते हैं। पहले तो डॉक्टर बच्चे को आवश्यक वजन बढ़ाने में मदद करने की कोशिश करेंगे, खासकर अगर जब बच्चा कुपोषण से पीड़ित हो। फिर उसके बाद मनोचिकित्सा का उपयोग करके उसके व्यवहार संबंधी समस्याओं का इलाज किया जाता है और बच्चे को यह समझाया जाता है कि शरीर के वजन को बहुत अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। उसके बाद बच्चे को स्वस्थ भोजन की आदतें डाली जाती हैं और माता-पिता से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने बच्चे को डिप्रेशन और तनाव से उबरने के लिए मदद करें और जानें कि आखिर वह कैसा महसूस कर रहा है।
बच्चों में एनोरेक्सिया के जोखिम में कई विकार शामिल हैं, जैसे:
कुपोषण और बार-बार उल्टी होने से बच्चों में हृदय गति कम हो सकती है और कई अन्य दिल की बीमारियां भी हो सकती है।
बच्चे की हार्ट बीट अनियमित हो सकती है – या तो बहुत तेज या बहुत धीमी।
इसके कारण बच्चों में लो ब्लड प्रेशर की समस्या उत्पन होती है।
यदि बच्चा जुलाब या वॉटर पिल का उपयोग करता है, तो इसकी वजह से उसके शरीर का इलेक्ट्रोलाइट संतुलन खो जाता है और दिमाग में सूजन जैसी गंभीर स्थिति पैदा होती है।
कम से कम एक तिहाई एनोरेक्सिक बच्चों के शरीर में आरबीसी की संख्या कम हो जाती है।
जब बच्चा ठीक से खाना नहीं खाता है तो आंतों की गतिशीलता बुरी तरह प्रभावित होती है।
एनोरेक्सिक बच्चे या तो बहुत अधिक तरल पदार्थ पी सकते हैं या बहुत कम, दोनों स्थितियां बेहद हानिकारक हैं जिसकी वजह से उनकी बॉडी में इलेक्ट्रोलाइट इम्बैलेंस होता है या गुर्दे में पथरी होने की संभावना बढ़ जाती है।
एनोरेक्सिया के साथ ग्रोथ हार्मोन का स्तर भी कम हो जाता है और इसकी वजह से लड़कियों को पीरियड आने बंद हो जाते हैं।
एनोरेक्सिया के साथ हड्डियों की डेंसिटी भी कम हो जाती है। ऐसे में बाकी बच्चों के मुकाबले इनमें फ्रैक्चर का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
बच्चों में एनोरेक्सिया को रोकने के लिए कोई ठोस तरीका नहीं हैं, लेकिन शुरुआत में ही उन्हें टोकने से उनकी स्वास्थ्य स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। आपको बस अपने बच्चे की हरकतों पर नजर रखने की जरूरत है और अगर आपको कभी भी महसूस हो कि उनमें दिखने वाले लक्षण एनोरेक्सिया के हैं तो तुरंत मेडिकल मदद ले सकती हैं।
एनोरेक्सिया एक मनोवैज्ञानिक विकार है जो बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आप अपने बच्चे से उसके गलत तरीके से खाने के बारे में बात कर सकती हैं, लेकिन कोई सुधार नहीं होने पर आपको प्रोफेशनल की मदद लेनी पड़ेगी।
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