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डिप्रेशन किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। इसे खराब मूड के रूप में जाना जाता है, जिसकी पहचान होती है उदासीनता, निराशा और उन चीजों के प्रति अरुचि से, जो आमतौर पर प्रभावित व्यक्ति को बहुत पसंद होती हैं। डिप्रेशन के संकेतों और लक्षणों को पहचानना ही इसके निदान और उपचार की ओर पहला कदम होता है।
हां, यह एक आम गलत धारणा है, कि बच्चों में उनकी उम्र के कारण डिप्रेशन का खतरा नहीं होता है। बल्कि वास्तव में, बच्चों में डिप्रेशन आपकी सोच से कहीं अधिक आम है। 1980 के बाद बचपन में होने वाली बीमारियों की सूची में डिप्रेशन को शामिल कर लिया गया था।
डिप्रेशन मध्यम से गंभीर हो सकता है और इसके कुछ खास लक्षणों से इसकी पहचान होती है। अगर आपका बच्चा कम से कम 2 सप्ताहों से डिप्रेशन से जुड़े 5 या इससे अधिक लक्षणों से ग्रसित है, तो हो सकता है कि वह मेजर या गंभीर डिप्रेशन से ग्रस्त हो:
डिस्थीमिया डिप्रेशन की एक कैटेगरी है, जिसमें सौम्य लक्षण होते हैं, लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक हो सकती है और लगातार बनी रह सकती है।
एक ऐसा डिप्रेशन है, जो कि प्राकृतिक रोशनी के संपर्क से संबंधित है। यह सर्दियों में दिखता है जब दिन छोटे हुआ करते हैं।
जिसमें आपका बच्चा भावनाओं के रोलर कोस्टर पर ऊपर नीचे होता रहता है। डिप्रेशन का यह प्रकार भी बच्चों में देखा जाता है, हालांकि इसकी फ्रीक्वेंसी कम होती है।
एडजेस्टमेंट डिसऑर्डर की पहचान तब होती है, जब बच्चा किसी निराशाजनक घटना के बाद डिप्रेशन का शिकार होता है, जैसे कि किसी करीबी व्यक्ति की मृत्यु।
बच्चों में डिप्रेशन का कोई एक सटीक कारण बताना संभव नहीं है। आमतौर पर बच्चों में डिप्रेशन के पीछे कई तरह के कारणों का एक मिश्रण जिम्मेदार होता है, जैसे शारीरिक स्वास्थ्य, डिप्रेशन या मानसिक बीमारी का पारिवारिक इतिहास, जेनेटिक असुरक्षा, उनके आसपास का वातावरण और बायोकेमिकल इंबैलेंस।
वैज्ञानिकों का मानना है, कि डिप्रेशन ब्रेन केमेस्ट्री में बदलावों के कारण होता है, खासकर नर्व सेल्स के बीच संदेश भेजने वाले न्यूरोट्रांसमीटर्स में बदलाव के कारण। शोषण, बुली होना, पेरेंट्स की मृत्यु, पेरेंट्स का तलाक जैसी आघात पहुंचाने वाली घटनाएं डिप्रेशन के लिए ट्रिगर के रूप में काम करती हैं।
लड़कों की तुलना में लड़कियों को डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है, जो कि लड़कों की तुलना में उनके बायोलॉजिकल अंतर, घटनाओं के प्रति उनकी समझ और उनकी प्रतिक्रिया के कारण है। यहां पर कुछ खास मनोवैज्ञानिक कारक दिए गए हैं, जिनके कारण डिप्रेशन की संभावना हो सकती है:
जो बच्चे शारीरिक रूप से एक्टिव नहीं होते हैं या बहुत ही कम एक्टिव होते हैं और जो बच्चे स्कूल में खराब परफॉर्म करते हैं, उनमें भी डिप्रेशन में जाने का खतरा अधिक होता है।
अगर क्लिनिकल डिप्रेशन का इलाज न किया जाए, तो वे कई सप्ताह, महीनों और वर्षों तक भी रह सकते हैं। इससे आपके बच्चे के दैनिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसमें स्कूल में उसकी गतिविधियां और हर सुबह उठने के बाद बिस्तर से बाहर निकलने जैसी आसान गतिविधियां भी शामिल हैं। मूडी और चिड़चिड़ा होने के अलावा अगर आपके बच्चे में निम्नलिखित में से 5 या उससे अधिक लक्षण दिख रहे हैं, तो हो सकता है वे डिप्रेस्ड हों और उन्हें मदद की जरूरत हो:
बच्चों में केवल इन लक्षणों के आधार पर डिप्रेशन को पहचान पाना कठिन हो सकता है। लेकिन अगर आपके बच्चे में कुछ सप्ताह से अधिक समय से इस तरह के लक्षण दिख रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से संपर्क करें। डिप्रेस्ड बच्चों में और भी अन्य कठिनाइयां दिख सकती हैं, जैसे ईटिंग डिसऑर्डर, कंडक्ट डिसऑर्डर, सब्सटेंस एब्यूज संबंधित समस्याएं।
अगर आपके बच्चे में 2 सप्ताहों से अधिक समय से डिप्रेशन से जुड़े कुछ लक्षण दिख रहे हैं, तो आपको उसे डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए। आपको मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के पास रेफर किया जा सकता है, जो कई तरह से मूल्यांकन करके बच्चे के डिप्रेशन को सही तरह से पहचान सके।
जांच के एक हिस्से के रूप में फिजिशियन आपसे, आपके बच्चे से और उसकी देखभाल करने वाले अन्य लोगों से बात करना चाहेंगे। उसके टीचर्स, क्लासमेट्स और दोस्तों से जानकारी लेकर उसके व्यवहार के पैटर्न को समझने की कोशिश की जाएगी। आपको और बच्चे को कुछ निश्चित सवाल पूछे जा सकते हैं और इसी के आधार पर डॉक्टर आपके बच्चे की स्थिति का विश्लेषण करेंगे, क्योंकि ऐसा कोई विशेष चाइल्ड डिप्रेशन टेस्ट नहीं होता है, जो कि एक सटीक डायग्नोसिस दे सके।
चूंकि डिप्रेशन कुछ अन्य बीमारियों से भी संबंधित होता है, जैसे – ऑटिज्म स्पेक्ट्रम इश्यू, बाइपोलर डिसऑर्डर, पोस्ट-ट्रौमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और एंग्जायटी डिसऑर्डर आदि, ऐसे में इन बीमारियों की भी स्क्रीनिंग की जाएगी। आपके बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री को भी देखा जाएगा, क्योंकि बचपन में होने वाला डिप्रेशन कुछ खास प्रकार की दवाओं का साइड इफेक्ट भी हो सकता है।
अगर आपके बच्चे को डिप्रेशन है, तो इससे उसे आगे चल कर कई मानसिक बीमारियों का खतरा हो सकता है। चाइल्डहुड डिप्रेशन के कारण स्कूल में खराब प्रदर्शन के साथ-साथ अल्कोहल या ड्रग्स जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। ऐसे बच्चे वयस्क होने पर लंबे समय तक किसी जॉब में नहीं रह पाते हैं और एक परिवार के हिस्से के रूप में जीवन के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाइयों का सामना करते हैं।
कुछ बच्चों के मन में आत्महत्या जैसे विचारों का आना भी संभव है और एक पेरेंट के तौर पर इसके लिए वार्निंग के संकेतों के प्रति सजग रहना आपके लिए बेहद जरूरी है। सुसाइडल बिहेवियर के संकेतों में आत्महत्या या मृत्यु और मरने जैसी बातें करना, अप्रिय बातों पर ध्यान लगाना, अपने अधिकारों का त्याग करना और खतरे मोल लेना आदि शामिल हैं।
चाइल्डहुड डिप्रेशन का इलाज वयस्कों के डिप्रेशन उपचार जैसा ही होता है। स्थिति की गंभीरता के आधार पर इलाज की प्रक्रिया के रूप में साइकोथेरेपी और दवाओं को अलग-अलग या कॉम्बिनेशन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सौम्य से मध्यम डिप्रेशन को अक्सर केवल साइकोथेरेपी से ठीक किया जा सकता है।
अगर यह पर्याप्त न हो, तो थेरेपी के साथ-साथ एंटीडिप्रेसेंट्स भी प्रिस्क्राइब किए जा सकते हैं। आमतौर पर, डिप्रेशन के गंभीर मामलों में इनकी जरूरत होती है। केमिकल इंबैलेंस को ठीक करने में एंटीडिप्रेसेंट उपयोगी होते हैं और इनका प्रभाव दिखने में कुछ महीनों तक का समय लग सकता है। सही दवा और सही खुराक समझने में भी समय लग सकता है। साथ ही केवल दवा से समस्या ठीक नहीं होती है और इसके साथ थेरेपी भी जरूरी होती है।
आपका सामना कई तरह के वैकल्पिक उपचारों से भी हो सकता है, जैसे हर्बल रेमेडीज और सप्लीमेंट्स, जो कि आसानी से उपलब्ध होते हैं। लेकिन इनकी सत्यता अब तक प्रमाणित नहीं हुई है और इनमें से कुछ आपके बच्चे के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी हो सकते हैं।
हां, एक सीमा तक चाइल्डहुड डिप्रेशन से बचा जा सकता है। इसके लिए बच्चे का पालन पोषण अच्छे माहौल में होना जरूरी है, जिससे बच्चे और माता-पिता के बीच एक स्वस्थ जुड़ाव पैदा हो। अपने बच्चे की जरूरतों पर ध्यान देना, उन्हें प्यार और देखभाल देना और धीरे-धीरे इंडिपेंडेंस के लिए प्रेरित करना जैसी आदतें बहुत प्रभावी होती हैं। जब आपका बच्चा सपोर्टिव बड़ों से घिरा होता है, परिवारिक संबंध मजबूत होते हैं, दूसरे बच्चों और दोस्तों के साथ हेल्दी संबंध होते हैं, तब उसमें समस्याओं का सामना करने की क्षमता का विकास होता है, उसकी भावनाएं नियंत्रित रहती हैं और डिप्रेशन के लिए कोई जगह शेष नहीं रहती है।
आपके बच्चे के डॉक्टर एक अच्छे थेरेपिस्ट की तलाश में आपकी मदद कर सकते हैं। इसके अलावा आप अपने परिवार, दोस्तों और अन्य हेल्थ केयर प्रोवाइडर से भी पूछ सकते हैं। थैरेपिस्ट के साथ उनके संबंधों को चेक करके और उनके रेपुटेशन के बारे में रिसर्च करके, आप अच्छे थेरेपिस्ट का चुनाव कर सकते हैं। अगर आपके इंश्योरेंस में इसका इलाज भी कवर होता है, तो आपको इस संबंध में भी विचार करना पड़ेगा और फिर एक अप्रूव्ड थेरेपिस्ट को ढूंढना होगा। अगर आपके बच्चे में ईटिंग डिसऑर्डर जैसी डिप्रेशन से संबंधित अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की भी पहचान हुई है, तो आपको ऐसे प्रोफेशनल की तलाश करनी होगी, जो इस विषय में भी विशेषज्ञ हो। आपके बच्चे को थेरेपिस्ट के साथ दोस्ती करने की भी जरूरत होगी। इसलिए सबसे अच्छा यह होगा, कि आप कुछ शॉर्टलिस्टेड प्रोफेशनल्स के साथ ट्रायल सेशन का चुनाव करें और देखें कि आपका बच्चा किस थेरेपिस्ट के साथ सबसे अधिक सहज महसूस करता है। थेरेपिस्ट के साथ शुरुआती मीटिंग के दौरान आपको निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:
डिप्रेस्ड बच्चे को संभालना तनावपूर्ण हो सकता है और इसमें बहुत समय, प्रयास और धैर्य की जरूरत होती है। इसके लिए पहला कदम होता है, बच्चे से उसकी भावनाओं और मूड के बारे में बात करना। साथ ही बच्चे को यह एहसास दिलाना, कि वह जब भी बात करना चाहे तो आप उपलब्ध हैं। उसकी बात सुनें, सपोर्ट करें और परेशान हुए बिना जितना ज्यादा संभव हो सके उसे अपना प्यार दिखाएं।
यहां पर कुछ बातें दी गई हैं, जिनके द्वारा आप इस कठिन समय में अपने बच्चे की मदद कर सकते हैं:
डिप्रेशन आपके बच्चे के जीवन के सभी पहलुओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकता है और उसे कई सुनहरे मौकों से वंचित रख सकता है। उसकी रिकवरी को तेज करने के लिए उसे सपोर्ट करना और उसके लिए समय निकालना जरूरी है।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से दिया गया है। इसलिए किसी भी प्रकार का निर्णय लेने से पहले अपने डॉक्टर से संपर्क करें और डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी कदम न उठाएं।
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