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एपिलेप्सी दिमाग की एक बीमारी होती है, जिसके कारण व्यक्ति में बार-बार सीजर्स होते हैं (दौरे पड़ते हैं)। यह विश्व में 50 मिलियन से भी अधिक लोगों को प्रभावित करता है और यह बच्चों में भी एक आम स्थिति है। अचानक पड़ने वाले दौरे (सीजर), एपिलेप्सी की पहचान होते हैं। ये सीजर बिल्कुल कम समय के लिए भी हो सकते हैं, जिन्हें पहचाना भी ना जा सके, या फिर लंबे समय तक चलने वाले तेज कंपन के रूप में भी हो सकते हैं। इन सीजर्स के कारण व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है या मांसपेशियों में ऐंठन भी हो सकती है। कई बच्चे समय के साथ किशोरावस्था (टीनएज) में इस स्थिति से बाहर आ जाते हैं, लेकिन जो इससे बाहर नहीं आ पाते हैं, वे उचित इलाज की मदद से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
एपिलेप्सी एक क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके कारण अचानक और बार-बार होने वाले सेंसरी रुकावट के साथ अभूतपूर्व सीजर्स हो सकते हैं। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है और यह चौथी सबसे आम न्यूरोलॉजिकल बीमारी है।
बच्चों में एपिलेप्सी का दौरा कई रूपों में हो सकता है और यह शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। मस्तिष्क के प्रभावित हिस्से के आधार पर सीजर दो तरह के हो सकते हैं – जनरलाइज्ड या फोकल।
ये सीजर्स दिमाग के दोनों हिस्सों के न्यूरॉन्स को प्रभावित करते हैं, जिसके कारण कन्वल्जन होते हैं, जो कि सौम्य से गंभीर हो सकते हैं और इसके कारण कभी-कभी बेहोशी भी हो सकती है।
जनरलाइज्ड सीजर के प्रकार:
इन दौरों को आंशिक दौरे भी कहा जाता है। ये मस्तिष्क के केवल एक हिस्से की सेल्स को प्रभावित करते हैं और इसके कारण शरीर के केवल एक हिस्से पर इसका असर दिखता है। बच्चों में फोकल एपिलेप्सी को चार भागों में बांटा जा सकता है।
मस्तिष्क में लाखों न्यूरॉन मौजूद होते हैं, जो मानव शरीर के विभिन्न फंक्शन को नियंत्रित करने के लिए इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजते हैं। दिमाग से और दिमाग की ओर जाने वाले इन इलेक्ट्रिक सिग्नल के ट्रांसमिशन में रूकावट होने के कारण मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। मस्तिष्क में इलेक्ट्रिक सिग्नल का एक गंभीर विस्फोट उनके प्रवाह को प्रभावित करता है, जिसके कारण दिमाग के प्रभावित हिस्से में सीजर्स होते हैं।
अगर एक बच्चे के दौरे में एक ही समय पर फीचर्स का एक खास सेट एक साथ घटित होता है, तो इसे चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम कहते हैं। इन खास संकेतों में, बच्चे की उम्र, दौरे का प्रकार, संभावित लर्निंग डिसेबिलिटी और ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम) के पैटर्न शामिल होते हैं।
चाइल्डहुड एपिलेप्सी सिंड्रोम कई प्रकार के होते हैं और ये लक्षणों के आधार पर विभाजित किए जाते हैं।
इस एपिलेप्सी सिंड्रोम की शुरुआत 4 से 10 साल के बीच होती है और इसमें जड़ होने और शून्य में घूरने वाले लक्षण दिखते हैं। इसे ‘पेटिट माल’ एपिलेप्सी भी कहा जाता है और यह आमतौर पर समय के साथ ठीक हो जाता है।
इस एपिलेप्सी में मुंह और चेहरे में फोकल सीजर होते हैं और लार बहने, बोलने में कठिनाई के लक्षण दिखते हैं। आमतौर पर यह सीजर बच्चे के सोने के दौरान या सुबह उठने के बाद होता है। यह एपिलेप्सी 5 से 10 साल की उम्र में शुरू होता है और ज्यादातर मामलों में यह समय के साथ ठीक हो जाता है।
इसे ‘वेस्ट्स सिंड्रोम’ के नाम से भी जाना जाता है और यह बच्चे के जन्म के बाद एक साल के अंदर-अंदर दिखता है। इस एपिलेप्सी में बच्चे के शरीर में गंभीर झटके लगते हैं और बच्चा आगे की ओर गिर सकता है। इस एपिलेप्सी को खतरनाक माना जाता है, क्योंकि यह दूसरे एपिलेप्सी से संबंधित होता है और इसके कारण विकास में देर देखी जाती है।
इस तरह की मिर्गी किसी भी उम्र में हो सकती है। ये फोकल सीजर होते हैं, जिसमें सिंपल पार्शियल सीजर्स और कंपलेक्स पार्शियल सीजर्स दोनों ही शामिल हो सकते हैं, जिसमें घूरना और कन्फ्यूजन या मेमोरी लॉस देखा जाता है।
रिसर्च दर्शाते हैं, कि ये सीजर अगर लंबे समय तक बने रहें, तो ये मस्तिष्क के हिप्पोकेंपस क्षेत्र को डैमेज कर सकते हैं, जो कि मेमोरी और लर्निंग से जुड़ा होता है। इसलिए इसका तुरंत इलाज किया जाना जरूरी है।
इस प्रकार की मिर्गी किशोरावस्था में शुरू होती है और इसमें जनरलाइज्ड सीजर दिखते हैं। इन सीजर्स में मायोक्लोनिक जर्क और टॉनिक-क्लोनिक सीजर शामिल होते हैं और कुछ मामलों में अब्सेंस सीजर भी दिख सकते हैं। इन सीजर्स को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है और उम्र के साथ इनकी गंभीरता कम हो जाती है।
ये सीजर तब होते हैं, जब बच्चा सो रहा होता है और इनमें कम समय के बार-बार होने वाले दौरे शामिल होते हैं, जिनमें शरीर के गंभीर मूवमेंट होते हैं। ये दौरे किसी भी उम्र में शुरू हो सकते हैं।
मुश्किल से ठीक होने वाली यह एपिलेप्सी 1 से 8 साल की उम्र में शुरू होती है। इसमें होने वाले दौरों पर एपिलेप्सी की दवाओं का कोई असर नहीं होता है और इसमें अक्सर वैकल्पिक इलाज और सर्जरी की जरूरत होती है। ये जनरलाइज्ड सीजर होते हैं, जिनकी पहचान विभिन्न सीजर्स के कॉन्बिनेशन के द्वारा होती है और अक्सर इनके कारण विकास में देर और व्यवहार संबंधी समस्याएं देखी जाती हैं।
सभी बच्चों में एपिलेप्सी के कारण भिन्न हो सकते हैं और उम्र के कारण भी ये अलग हो सकते हैं। जहां एपिलेप्सी के कुछ प्रकार वंशानुगत होते हैं, वहीं ऐसे कई इडियोपेथिक एपिलेप्सी भी होते हैं, जिनके कारण अज्ञात हैं।
एपिलेप्सी के लक्षण दिमाग के प्रभावित हिस्से पर निर्भर करते हैं। बच्चों में एपिलेप्सी के ट्रिगर भिन्न हो सकते हैं और मोटर और नॉन मोटर लक्षण का कारण बन सकते हैं।
एपिलेप्सी की पहचान में संपूर्ण मेडिकल जांच के साथ, डायग्नोस्टिक टेस्टिंग रेजिमेन की जरूरत होती है। डॉक्टर परिवार की मेडिकल हिस्ट्री और सीजर्स के बारे में सारी डिटेल जानकारी भी ले सकते हैं।
बच्चे की आयु, सीजर का प्रकार, मेडिकल हिस्ट्री, संपूर्ण स्वास्थ्य और स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखकर एपिलेप्सी के इलाज का निर्णय लिया जाता है। बच्चों में एपिलेप्सी के इलाज के लिए कुछ आम कोर्स इस प्रकार हैं:
सीजर की संख्या को कम करने और नियंत्रित करने के लिए, एंटी-एपिलेप्टिक ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है। अक्सर ही ये दवाएं सीजर को नियंत्रित करने में कारगर होती हैं और आमतौर पर सीजर के रुकने के बाद कम से कम 2 वर्षों के लिए इन्हें जारी रखने की सलाह दी जाती है।
इन दवाओं को डॉक्टर बच्चे की आयु, बीमारी का प्रकार और गंभीरता के अलावा अन्य कई बातों को ध्यान में रखकर प्रिसक्राइब करते हैं। 80% मामलों में, एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं मरीज को सीजर से छुटकारा दिलाने में कारगर होती हैं।
जिन बच्चों पर दवाओं का असर नहीं होता है, उन्हें केटोजेनिक डाइट देने की सलाह दी जाती है। यह हाय-फैट, लो-कार्ब डाइट होता है, जो कि कार्ब्स के बजाय फैट को ब्रेकडाउन करता है, जिससे केटोसिस की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे सीजर की संख्या में कमी देखी जाती है।
जब बच्चे पर दवाओं और खानपान में बदलाव से भी कोई असर नहीं होता है, तब सर्जरी की सलाह दी जा सकती है। अगर सीजर के कारण, बच्चे के मस्तिष्क में घाव बनने शुरू हो जाएं, तो तुरंत सर्जरी भी की जा सकती है।
जिन बच्चों पर ऊपर दिए गए इलाज का असर नहीं होता है और अगर उनकी सर्जरी नहीं की जा सकती है, तो उन्हें वीएनएस थेरेपी की सलाह दी जा सकती है। यह थेरेपी आमतौर पर 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए इस्तेमाल की जाती है।
इस प्रक्रिया में एक इलेक्ट्रॉनिक पल्स जनरेटर को सर्जरी के माध्यम से छाती की दीवार में लगाया जाता है। यह उपकरण वेगस नर्व के द्वारा हर कुछ मिनटों पर मस्तिष्क को इलेक्ट्रिक इंपल्स भेजता है, ताकि सीजर को नियंत्रित किया जा सके। एक दौरे के दौरान, एक चुंबक को उपकरण पर पकड़कर इंपल्स को एक्टिवेट किया जा सकता है।
एपिलेप्सी से ग्रस्त बच्चे विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं और उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। जिन मामलों में यह स्थिति उत्साह या तनाव से ट्रिगर हो जाती हो, उनमें चुनौतियां हो सकती हैं। एपिलेप्सी आपके बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है, यह नीचे दिया गया है:
जिस बच्चे के सीजर्स को नियंत्रित करना कठिन होता है, उसमें एनर्जी की कमी, थकावट और ध्यान और व्यवहार संबंधी समस्याओं का अनुभव हो सकता है। बच्चे की सामाजिक क्षमताएं और सीखने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती हैं, जिसके कारण उसका आत्मसम्मान कम हो सकता है। जिन बच्चों के दौरे नियंत्रित हो सकते हैं, वे भी अक्सर भावनात्मक कठिनाई का सामना कर सकते हैं और उनमें व्यवहार और सीखने संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। इन मामलों में परिवार को अपने बच्चे को भरपूर सहयोग करना और इन चुनौतियों से बाहर आने में मदद करना जरूरी है।
कुछ बच्चे बड़े होने पर ‘स्पॉन्टेनियस रिमिशन’ का अनुभव करते हैं, उनके दौरे रुक जाते हैं और वे एपिलेप्सी से बाहर आ जाते हैं। कुछ बच्चों को दौरे के प्रकार और संख्या में बदलाव दिख सकता है। जो बच्चे एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं ले रहे होते हैं, उनमें सीजर की परेशानी दिखनी बंद हो सकती है और उन्हें दवा को बंद करने की सलाह दी जा सकती है।
एपिलेप्सी का ध्यान रखना और नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसलिए बच्चे को सीजर होने पर उसे संभालने के लिए आपका तैयार होना जरूरी है। यहां पर कुछ बिंदु दिए गए हैं, जो आपको इस दौरान मदद कर सकते हैं:
केटोजेनिक डाइट हाय-फैट लो-कार्ब डाइट होता है, जिसमें लगभग 90% कैलोरी फैट से आती है। इस फैट को बर्न करके केटोन्स बनता है, जिसे दिल और दिमाग की फंक्शनिंग के लिए एनर्जी के वैकल्पिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भोजन में कार्बोहाइड्रेट को कम करना बहुत ज्यादा जरूरी है, क्योंकि इससे डाइट की प्रोग्रेस को नुकसान हो सकता है।
कीटो डाइट में फैट से भरपूर खाद्य सामग्री शामिल होते हैं, जैसे – बटर, चीज, बेकन एवं अन्य चीजें। आप इसमें सब्जियां, मीट, नट्स और बीज, एवोकाडो भी शामिल कर सकते हैं।
एक केटोजेनिक डाइट को आमतौर पर 2 वर्षों के लिए प्रिसक्राइब किया जाता है। जिसके बाद एक डाइटिशियन की मदद से बच्चे को धीरे-धीरे सामान्य खानपान पर वापस लाया जा सकता है।
अपने बच्चे में सीजर्स के ट्रिगर्स को पहचानना बहुत जरूरी है और इन ट्रिगर्स से बचाव के लिए सावधानी बरतना बहुत जरूरी है।
अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें अगर,
अगर आपके बच्चे को एपिलेप्सी है, तो नीचे दी गई बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है:
हर बच्चे में एपिलेप्सी अलग हो सकता है और कोई भी इलाज शुरू करने से पहले, अपने बच्चे की स्थिति की विशेषताओं को पूरी तरह से समझना बहुत जरूरी है।
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