बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल होना

कोलेस्ट्रॉल एक ऐसा शब्द है जिसे आमतौर पर वयस्कों के साथ जोड़ा जाता है, क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ उनका शरीर कई तरह की बीमारियों और समस्याओं का शिकार होता है। लेकिन इसे बच्चों के साथ जोड़ना कई लोगों के लिए काफी हैरान करने वाली बात होगी क्योंकि कोलेस्ट्रॉल की समस्या आमतौर पर लंबे समय से चली आ रही लाइफस्टाइल और फिटनेस की खराब आदतों से जुड़ी होती है। हालांकि बच्चों में हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया होने की संभावना होती है जो कि आज के समय में बहुत ज्यादा बढ़ रही है और यह न केवल बच्चों के शरीर के लिए खराब है, बल्कि यह उनकी जिंदगी में बहुत पहले से ही दिल से जुड़ी समस्याओं  का जोखिम भी बढ़ाना शुरू कर देती है।

कोलेस्ट्रॉल क्या होता है?

आपको बता दें कि बाहरी चीजों के कारण होने वाली कई अन्य स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की तुलना में कोलेस्ट्रॉल एक नेचुरल तरीके का पदार्थ है जिसे हमारा शरीर खुद ही उत्पन्न करता है। इसे कई तरह के लिपिड और फैट की केटेगरी के साथ जोड़ा जाता है, जो सभी मैमब्रेन्स को मजबूत करने के साथ ही साथ हार्मोनल ग्रोथ को बढ़ाकर नए सेल्स के विकास का सपोर्ट करने के लिए बेहद जरूरी है। कोलेस्ट्रॉल आमतौर पर मोम जैसा दिखने वाला तत्व होता है, जो कि मुख्य रूप से हमारे लिवर से उत्पन्न होता है।

कोलेस्ट्रॉल के प्रकार

कोलेस्ट्रॉल के दो प्रकार होते हैं, जिनमें से एक शरीर के लिए फायदेमंद होता है, जबकि दूसरा नुकसान पहुंचाता है।

1. लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन

जैसा कि नाम से लगता है, यह कॉम्प्लिकेटेड होता है और इस कोलेस्ट्रॉल को आमतौर पर “बैड कोलेस्ट्रॉल” कहा जाता है, भले ही यह बहुत ही बेसिक घटक हैं जो शरीर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में कोलेस्ट्रॉल ले जाते हैं। इस पूरे ट्रांसफर के दौरान, यदि खून में एलडीएल प्रोटीन का प्रतिशत अधिक होता है, तो वे आर्टरीज कीवाल्स के साथ जमा होना शुरू कर देते हैं, जहां ब्लड फ्लो ज्यादा होता है, जिसके कारण आर्टरीज पतली हो जाती हैं। यह खून की सप्लाई के लिए यह हृदय पर अतिरिक्त दबाव डालता ताकि अधिक ब्लड पंप हो सके। प्लाक के इस निर्माण को कई लोग आमतौर पर हाई कोलेस्ट्रॉल कहते हैं, जो क्लॉट्स, ब्लॉक्ड आर्टरीज जैसी समस्याओं को बढ़ाते हैं, जिसकी वजह से शरीर के अंदर के अंगों को नुकसान पहुंचता है और यहां तक ​​कि दिल का दौरा भी पड़ सकता है।

2. हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन

पहले के कोलेस्ट्रॉल के प्रकार का यह जुड़वां वर्जन है, लेकिन इस कोलेस्ट्रॉल को “गुड कोलेस्ट्रॉल” कहा जाता है क्योंकि यह प्रोटीन खराब कोलेस्ट्रॉल द्वारा की गई क्रिया को काफी पलट देता है। एचडीएल प्रोटीन आर्टरीज से इन जमे हुई पदार्थ को निकालने का काम करता है और उन्हें लिवर में वापस डाल देता है, जहां उसे फिर से प्रोसेस्ड किया जाता है और शरीर के अलग-अलग हिस्सों में ठीक से ट्रासंफर किया जाता है। डॉक्टर लोगों में एचडीएल के लेवल को बढ़ाने पर ध्यान देते  हैं क्योंकि यह प्लाक को कम करने के साथ-साथ शरीर के ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम के सही से काम करने पर जोर डालता है।

बच्चों में कोलेस्ट्रॉल का सामान्य स्तर

बड़ों की तुलना में बच्चों की लाइफस्टाइल बेहद अलग होती है। इसलिए उनके लिए कोलेस्ट्रॉल का लेवल काफी अलग होता है। बच्चों में, जिनकी उम्र 2 से 18 साल की बीच होती है, उनमें एक्सेप्टेबल कोलेस्ट्रॉल लेवल को 170 मिलीग्राम/डेसीली से कम पर निर्धारित किया जाता है, जिसके भीतर एलडीएल प्रोटीन का वास्तविक लेवल 110 मिलीग्राम/डेसीली से कम होना चाहिए। बच्चों में कई तरह के वेरिएशन होते हैं और उसके आधार पर, बॉर्डरलाइन कोलेस्ट्रॉल का लेवल 199 मिलीग्राम/डेसीली की सीमा पर आधारित होता है, जिसमें एलडीएल 129 मिलीग्राम / डीएल होता है। इससे ऊपर का कोई भी स्तर बच्चे के लिए हानिकारक होता है और उसके स्वास्थ्य के लिए सही नहीं होता है।

बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का क्या कारण होता है?

बच्चों में ज्यादातर हाई मेटाबॉलिज्म होता है और उन्हें बहुत अधिक एनर्जी की जरूरत होती है और साथ ही वे दिन भर में अधिक एनर्जी का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए, जब बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का पता चलता है, तो यह आमतौर पर कुछ प्रमुख फैक्टर के कारण होता है।

  • आज की लाइफस्टाइल फास्ट फूड और कई खराब खाने की आदतों पर निर्भरहै, जो बच्चे के शरीर को कई तरह के ट्रांस और सैचुरेटेड फैट के संपर्क में लाती है, जिससे कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ जाता है।
  • एक आलस भरी लाइफस्टाइल के साथ खराब डाइट, बाहर खेलने के बजाय वीडियो गेम खेलना जिसके कारण बच्चा मोटापे का शिकार हो जाता है, और यह कोलेस्ट्रॉल के जोखिम को और भी ज्यादा बढ़ा देता है।
  • यदि परिवार के कई लोग कोलेस्ट्रॉल की समस्या से पीड़ित हैं या थे, तो यह आनुवांशिक कारणों से बच्चों में देखा जा सकता है।

बच्चों में हाई कोलेस्ट्रॉल का निदान कैसे होता है?

अस्पतालों में बच्चों में कोलेस्ट्रॉल की जांच कुछ जरूरी फैक्टर पर ध्यान रखकर की जाती है जो यह समझने में मदद करते हैं कि बच्चे में हाई कोलेस्ट्रॉल का लेवल है या नहीं।

सभी बच्चों की स्क्रीनिंग की जरूरत नहीं होती है। 8 साल से कम उम्र के बच्चों की जांच तभी की जाती है जब उनमें जोखिम के फैक्टर मौजूद हों। 11 साल की उम्र तक, स्क्रीनिंग करवाना अच्छा रहता है। यदि रिस्क नहीं हैं, तो आपके बच्चे के बड़े होने तक किसी स्क्रीनिंग की जरूरत नहीं है, जिसके बाद एक और स्क्रीनिंग की जानी चाहिए।

स्क्रीनिंग में, जो ब्लड टेस्ट किए जाते हैं उनसे बच्चे के ब्लड में कई तरह के लिपिड लेवल की मौजूदगी को चेक करते हैं। ये ब्लड सैंपल रात भर खाली पेट रहने के बाद लिए जाते हैं। लैब में एलडीएल और एचडीएल प्रोटीन दोनों की जांच के लिए टेस्ट किया जाता है, जो अच्छे और बुरे कोलेस्ट्रॉल के प्रतिशत की जांच करते हैं। ये ट्राइग्लिसराइड्स के कई पहलुओं की जांच करते हैं जो आगे के जीवन में दिल से जुड़ी समस्याओं की संभावना का संकेत देते हैं।

यदि कोलेस्ट्रॉल का लेवल बच्चे की उम्र के हिसाब से अधिक होता, तो ऐसे में डॉक्टर आपसे बच्चे द्वारा दिखाए गए किसी भी लक्षण के बारे में सवाल पूछ सकते हैं या उसकी लाइफस्टाइल के बारे में पूछताछ कर सकते हैं। इसके अलावा, हाई कोलेस्ट्रॉल की जांच के लिए डॉक्टर बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री के बारें में स्टडी करते हैं ताकि उससे जुड़े मार्करों और संकेतों की पहचान की जा सके। मोटापे या किसी अन्य शारीरिक फैक्टर्स की जांच के लिए, पूरी शारीरिक जांच की जाती है।

किन खाद्य पदार्थों में पाया जाता है कोलेस्ट्रॉल

हमारे शरीर में लिवर स्वस्थ मात्रा में कोलेस्ट्रॉल का उत्पादन करता है जो बिना किसी सहारे के सही से काम करने में मदद करता है। इसका स्तर बढ़ना, केवल कुछ विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन करने की वजह से होता है जिनमें अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल होता है। उनमें से कुछ हैं:

  • कई प्रकार के मिल्क प्रोडक्ट्स जैसे आइसक्रीम, चीज आदि।
  • सीफूड का अधिक मात्रा में सेवन करना।
  • चिकन या रेड मीट में भी कोलेस्ट्रॉल होता है।
  • अंडे की जर्दी (पीला भाग) रोजाना खाना, उसमें भी बहुत अधिक कोलेस्ट्रॉल होता है।

बच्चे में हाई कोलेस्ट्रॉल का इलाज

यदि आपके बच्चे में हाई कोलेस्ट्रॉल पाया गया है, तो उसके लिए कम कोलेस्ट्रॉल वाली डाइट चुनना इसका प्राथमिक इलाज शुरू करने के तरीकों में से एक माना जाता है।

पोषण पर ध्यान रखते हुए एक पर्सनल काउंसलिंग के साथ ऐसा करने की जरूरत है, यदि आपके बच्चे का एलडीएल लेवल 130मिलीग्राम/डेसीली से अधिक है। पोषण से जुड़े बदलाव शरीर में प्रवेश करने वाले फैट की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं, इसके साथ ही फिजिकल एक्टिविटी और लाइफस्टाइल में बदलाव लाना भी एक जरूरी फैक्टर माना जाता है। यदि जोखिम ज्यादा है या इसका लेवल काफी खतरनाक है, तो डॉक्टर आपको अंतिम उपाय के रूप में कुछ दवाएं देंगे।

कैसे कम करें बच्चों में कोलेस्ट्रॉल?

ऐसे कुछ तरीके हैं जिन्हें आप अपने बच्चे में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को कम करने के लिए तुरंत अपना सकती हैं, या ऐसा होने से बचने के लिए निवारक उपाय भी कर सकती हैं।

  • अपने घर में सभी की लाइफस्टाइल में पूरी तरह से बदलाव लाएं। पूरे परिवार को एक साथ फिजिकल एक्टिविटी करने के लिए कुछ समय साथ बिताने के लिए कहें जो की सभी के लिए फायदेमंद हो।
  • बच्चे को दिन में अधिक एक्सरसाइज करने की जरूरत है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए कम से कम एक घंटे लगातर खेलना जरूरी है।
  • केक और अन्य बेकरी के प्रोडक्ट्स का सेवन करने से बच्चे को रोकें। उसे स्वस्थ फलों और सब्जियों या फिर कम फैट वाली चीजें चुनने के लिए कहें।
  • बाजार में मिलने वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स और जूस जिसमें शक्कर हो उसका सेवन करने की आदत डालने से बचें ।
  • खाना पकाने के लिए आप दूसरा तेल चुन सकती हैं। वेजिटेबल ऑयल या हेल्दी कोलेस्ट्रॉल फ्री ऑयल का उपयोग करें।
  • अपने बच्चे को दूध देते समय, सामान्य के बजाय कम फैट वाला दूध चुनें।
  • खाद्य पदार्थों के डिब्बों पर लिखे हुए न्यूट्रिशन के तथ्यों को जरूर पढ़ें। इस बात का ध्यान रखें कि आपका बच्चा एक दिन में 300 मिलीग्राम से अधिक कोलेस्ट्रॉल नहीं ले।
  • शरीर में प्रोटीन पहुंचाने के लिए सिर्फ मीट को ही सोर्स न बनाएं। दूसरे स्रोत भी अपनाएं ।
  • सब्जियों, फलों, अनाज, स्प्राउट्स आदि पर ध्यान देकर ही एक सही डाइट चार्ट अपनाएं।
  • अपनी हेल्थ की जांच करें। यदि आपका खुद का कोलेस्ट्रॉल का लेवल अधिक है, तो संभावना है कि आपके बच्चे का भी हो सकता है।

यहां तक ​​​​कि सबसे प्राकृतिक पदार्थ भी हानिकारक हो सकते हैं अगर वह हमारे शरीर में गलत मात्रा में मौजूद होते हैं। मेडिकल उपचार द्वारा बच्चों में कोलेस्ट्रॉल को कैसे कम किया जाए यह जानने के बजाय, स्वस्थ जीवनशैली और अनुशासन के साथ अच्छी डाइट अपनाना सबसे बेहतर होता है जो इस तरह की समस्याओं को पहली ही होने से रोकता है।

यह भी पढ़ें:

बच्चों में फूड एलर्जी
बच्चों में हाइपरटेंशन
बच्चों में ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी)

समर नक़वी

Recent Posts

अ अक्षर से शुरू होने वाले शब्द | A Akshar Se Shuru Hone Wale Shabd

हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…

2 days ago

6 का पहाड़ा – 6 Ka Table In Hindi

बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…

2 days ago

गर्भावस्था में मिर्गी के दौरे – Pregnancy Mein Mirgi Ke Daure

गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…

2 days ago

9 का पहाड़ा – 9 Ka Table In Hindi

गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…

4 days ago

2 से 10 का पहाड़ा – 2-10 Ka Table In Hindi

गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…

4 days ago

10 का पहाड़ा – 10 Ka Table In Hindi

10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…

4 days ago