मेनिनजाइटिस मानवजाति के लिए विपत्ति पैदा करने वाली जानलेवा बीमारियों में से एक है। मेनिनजाइटिस सीधे तौर पर मस्तिष्क को प्रभावित करता है, जिसके कारण दौरे, ब्रेन डैमेज और मानसिक रूप से डैमेज करने वाले अन्य लॉन्ग टर्म प्रभाव देखे जाते हैं। यह स्थिति काफी घातक लगती है, लेकिन आज के समय में मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है, कि मेनिनजाइटिस की पहचान समय पर हो सकती है, सुरक्षात्मक तरीके अपनाए जा सकते हैं और मेनिनजाइटिस का प्रभावी इलाज किया जा सकता है। 

मेनिनजाइटिस क्या है?

मेनिनजाइटिस एक बीमारी है, जो मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड को प्रभावित करती है। इन टिशूज पर अत्यधिक इन्फ्लेमेशन के रूप में इसके शुरुआती प्रभाव दिखते हैं, जो कि सीधे-सीधे मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस क्षेत्र में मौजूद मेंब्रेन मेनिनजेस कहलाते हैं और उनका काम होता है मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड को सुरक्षित रखना। वर्टेब्रल स्पाइन की मौजूदगी के बावजूद ये कॉर्ड को भारी झटकों से सुरक्षित रखते हैं। 

किन बच्चों को मेनिनजाइटिस का खतरा अधिक होता है?

छोटे और बड़े बच्चों के मामले में ऐसा देखा गया है, कि 5 वर्ष तक की उम्र के बच्चों को मेनिनजाइटिस का खतरा अधिक होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मेनिनजाइटिस के इंफेक्शन से लड़ने के लिए उनके शरीर का इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। 

मेनिनजाइटिस के प्रकार

मुख्य रूप से मेनिनजाइटिस के दो प्रकार होते हैं: 

1. वायरल मेनिनजाइटिस

वायरल मेनिनजाइटिस मुख्य रूप से एंटरोवायरस नाम के एक वायरस फैमिली के कारण होता है। जून से अक्टूबर के महीनों में इस संक्रमण का खतरा थोड़ा अधिक होता है। मल से किसी भी तरह के प्रत्यक्ष संपर्क, जैसे डायपर के द्वारा या फिर भोजन और पानी के द्वारा अप्रत्यक्ष संपर्क से या फिर ऐसे क्षेत्र जिनके वायरस से संक्रमित होने की संभावना हो, इंफेक्शन का कारण बन सकते हैं। अन्य वायरस फैमिली हवा के द्वारा या जानवरों और कीड़ों के काटने के द्वारा संक्रमण को फैलाते हैं। 

2. बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस

बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस वायरल मेनिनजाइटिस की तुलना में बदतर होता है। इस प्रकार में संक्रमण के पीछे कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं, क्योंकि इसके हर स्ट्रेन को किसी विशेष आयु के बच्चों, वैक्सीन और किसी यूनिक मेडिकल समस्या से लगाव होता है। अगर बच्चा बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस से ग्रस्त किसी व्यक्ति के संपर्क में आता है या कान या नाक के इंफेक्शन से जूझ रहा है या वह किसी अत्यधिक संदेहास्पद क्षेत्र से यात्रा करके लौटा है या उसके सिर पर चोट लगी है, तो बैक्टीरिया ऐसे बच्चों पर जल्दी हमला करता है, क्योंकि ये आसानी से संक्रमित हो जाते हैं। 

मेनिनजाइटिस के क्या कारण होते हैं?

बच्चों के मेनिनजाइटिस से ग्रस्त होने के पीछे कई तरह के कारण होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं: 

  1. नवजात शिशु के मामले में जब उनका ब्लड स्ट्रीम संक्रमित हो जाता है, तब मेनिनजाइटिस देखा जाता है। सेप्सिस नाम का यह इन्फेक्शन मां के बर्थ कैनाल के बैक्टीरिया के द्वारा खून के संक्रमित होने के कारण होता है।
  2. बच्चों और थोड़े बड़े शिशुओं के मामलों में इंफेक्शन रेस्पिरेटरी एरिया में रिसाव के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है, जैसे कि म्यूकस और सलाइवा। वर्तमान में स्ट्रैप्टॉकोक्कस निमोनियाई और नैसेरिया मेनिनजाइटाइड्स इस इंफेक्शन के लिए प्रमुख बैक्टीरिया हैं।
  3. अगर शिशु या बच्चा ऐसी जगह पर मौजूद हो, जहां लोगों की भारी भीड़ हो या वातावरण में धुआं फैला हो, तो हो सकता है कि संक्रमण बच्चे या शिशु तक पहुंच जाए।

मेनिनजाइटिस इन्फेक्शन कैसे फैलता है?

ज्यादातर मेनिनजाइटिस इंफेक्शन तब होते हैं, जब ऑर्गेनिज्म सीधे संपर्क के द्वारा व्यक्ति को संक्रमित करता है। जब बच्चा किसी संक्रमित व्यक्ति या माइक्रोब्स के द्वारा संक्रमित सतहों या वस्तुओं के संपर्क में आता है, तब ये इनफेक्टर बच्चे के रेस्पिरेटरी हिस्से में अपना घर बना लेते हैं। रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट से शुरू होते हुए ये खून के द्वारा शरीर में फैलते हुए मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड तक पहुंच जाते हैं।

संकेत और लक्षण

बच्चों में मेनिनजाइटिस के संकेतों को निम्नलिखित लक्षणों द्वारा पहचाना जा सकता है: 

  1. बच्चे में अचानक भूख की कमी दिखने लगती है और वह कुछ भी नहीं खाना चाहता है। उसे बार-बार उल्टियां भी हो सकती हैं।
  2. वह लंबे समय तक थकावट महसूस कर सकता है। उसकी एनर्जी कम हो सकती है और उसके पूरे शरीर पर रैशेस दिखने शुरू हो सकते हैं।
  3. शिशुओं के मामले में उनके सिर के सामने के हिस्से में सूजन दिख सकती है और उनकी गर्दन कसी हुई और स्थिर लग सकती है।
  4. कुछ बच्चों में अत्यधिक मूड स्विंग और दौरे पड़ने का अनुभव भी हो सकता है।
  5. पूरे शरीर पर लाल और बैंगनी रंग के छोटे स्पॉट्स दिखने शुरू हो सकते हैं, जिन्हें पेटेशिया कहा जाता है। ये त्वचा की अंदरूनी ब्लीडिंग के कारण होते हैं और बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस के स्ट्रांग लक्षण होते हैं।
  6. अगर आपका बच्चा अपनी पीठ के बल लेटता है, तो उसके घुटने ऊपर की ओर झटकते हैं और साथ ही उसकी गर्दन अपने आप आगे की ओर झुक जाती है, तो यह मेनिनजाइटिस का एक पॉपुलर लक्षण होता है, जिसे ब्रूडजिंस्की साइन कहा जाता है।
  7. पेटेशिया के साथ इसी रंग के कुछ खास स्पॉट्स होते हैं, जिन्हें दबाने के बाद भी इनका रंग सफेद में नहीं बदलता है। खून के धब्बे भी मेनिनजाइटिस का संकेत होते हैं।
  8. मेनिनजाइटिस का एक अन्य स्ट्रांग लक्षण है, कर्निग साइन। इसमें बच्चे को सीधे लेट कर जांघ को एक समकोण पर मोड़ने के लिए कहा जाता है। अगर उसे दर्द का अनुभव होता है और वह इस मूवमेंट को नहीं कर पाता है, तो यह मेनिनजाइटिस का संकेत देता है।

बच्चों में मेनिनजाइटिस की पहचान कैसे होती है?

बच्चों में मेनिनजाइटिस के लक्षणों के बाद निम्नलिखित जांचों के द्वारा इन्फेक्शन को पहचाना जाता है: 

  • नाक, मलद्वार और कंठ के स्वैब के इस्तेमाल से उस हिस्से के बैक्टीरिया को इकट्ठा किया जाता है और मेनिनजाइटिस के वायरल इंफेक्शन के लिए उनकी जांच की जाती है।
  • सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन से मस्तिष्क के मेनिनजेस में किसी मौजूदा इन्फ्लेमेशन की जानकारी पाने में मदद मिलती है।
  • ब्लड टेस्ट के द्वारा वायरस और बैक्टीरिया की खोज को शुरू किया जा सकता है और यह पहचाना जा सकता है, कि वे मेनिनजाइटिस का कारण बन सकते हैं या नहीं।
  • स्पाइनल टैब या लंबर पंक्चर मेनिनजाइटिस के लिए एकमात्र निर्णायक टेस्ट है। लोअर बैक में एक सुई को सीधे स्पाइनल कैनाल में डालकर सेरेब्रल और कैनाल एरिया में दबाव को मापा जाता है। डॉक्टर संक्रमण और अन्य समस्याओं की जांच करने के लिए लैब एनालिसिस के लिए सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड की थोड़ी मात्रा निकाल सकते हैं।

बच्चे में मेनिनजाइटिस के कॉम्प्लिकेशन

बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस का सबसे गंभीर स्वरूप कई तरह की जटिलताओं का कारण बन सकता है, जो कि लंबे समय तक भी रह सकते हैं। इनमें ब्रेन डैमेज, बहरापन, दौरे और कुछ खास मामलों में विकलांगता भी शामिल है। अत्यधिक गंभीर मामलों में मेनिनजाइटिस जानलेवा भी हो सकता है। 

बच्चों में मेनिनजाइटिस के लिए दवाएं और इलाज

  1. शुरुआत में अगर बच्चे को रेस्पिरेटरी समस्याएं हो रही हों, तो इसके लिए ब्रीदिंग ट्यूब भी डाली जा सकती है।
  2. हार्ट रेट, ऑक्सीजन लेवल एवं अन्य मॉनिटर कनेक्ट किए जाते हैं, ताकि जरूरी संकेतों पर नजर रखी जा सके।
  3. मस्तिष्क में लगातार सर्कुलेशन और ब्लड प्रेशर को मेंटेन रखना जरूरी है, जिसमें सहयोग करने के लिए आईवी फ्लूइड के द्वारा डिहाइड्रेशन को भी ठीक किया जाता है।
  4. यूरीन कैथेटर डाली जा सकती है, ताकि बच्चे के हाइड्रेशन लेवल को चेक किया जा सके।
  5. बैक्टीरियल मेनिनजाइटिस से ग्रस्त बच्चों को पीडियाट्रिक आईसीयू में एडमिट किया जाता है, क्योंकि वे अधिक खतरे में होते हैं।
  6. वायरल मेनिनजाइटिस से ग्रस्त बच्चों में जल्दी बेहतरी दिखने लगती है और वे घर पर बेहतर ढंग से ठीक हो सकते हैं। दर्द और बुखार को ठीक रखने के लिए एसिटामिनोफेन या आइबुप्रोफेन जैसी दवाएं प्रिस्क्राइब की जाती हैं। किसी रिलेप्स की आशंका के लिए 24 घंटे तक बच्चे को ऑब्जर्वेशन में रखने की जरूरत होती है।

बच्चों में मेनिनजाइटिस के लिए घरेलू उपचार

  • एक बार जब उचित इलाज दे दिया जाता है, तब बच्चे को जल्दी ठीक होने के लिए पर्याप्त बेड रेस्ट दिया जाना चाहिए।
  • तरल पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए, ताकि शरीर में सर्कुलेशन बढ़ सके और हाइड्रेशन का स्तर बना रहे।
  • शरीर के अधिक तापमान से बचने के लिए सिर दर्द और बुखार को कम करने की दवाएं दी जा सकती हैं।
  • संक्रमण की पुनरावृत्ति से बचने के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स की सलाह भी दे सकते हैं।

मेनिनजाइटिस के लिए फॉलो-अप

मेनिनजाइटिस के इलाज के बाद आपका बच्चा अभी भी थकावट, सिर दर्द और सुस्ती का अनुभव कर सकता है और उसे चीजों पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है। उनकी सुनने की क्षमताओं को चेक करने के लिए कुछ खास टेस्ट भी किए जा सकते हैं। अगर दुर्भाग्य से आपके बच्चे ने कुछ खास क्षेत्रों में लिम्बिक फंक्शन को खो दिया है, तो डॉक्टर आने वाली क्लीनिकल विजिट में इनकी जांच फिर से करेंगे। 

आप अपने बच्चे को मेनिनजाइटिस से सुरक्षित कैसे रख सकते हैं?

मेनिनजाइटिस से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है, चाइल्डहुड वैक्सीनेशन। ये किसी भी तरह के इंफेक्शन से बड़े पैमाने पर सुरक्षित रख सकते हैं। अगर बच्चे के आसपास कोई भी व्यक्ति मेनिनजाइटिस से ग्रस्त हो, तो डॉक्टर से परामर्श लेना सबसे अच्छा है, क्योंकि वे इन्फेक्शन को दूर रखने के लिए एंटीबायोटिक प्रिसक्राइब कर सकते हैं, ताकि इससे बचाव हो सके। 

मेनिनजाइटिस एक डरावनी और निर्बलता पैदा करने वाली बीमारी है, जिसके नतीजे काफी खतरनाक होते हैं। इसके बारे में पहले से ही तैयार रह कर, समय पर वैक्सीन लेकर और उनके साथ अपडेटेड रहकर और अपने बच्चे में किसी तरह के लक्षण दिखने पर उनसे बात करके, इस बीमारी को बिगड़ने से रोका जा सकता है और बच्चे को हर समय सुरक्षित और स्वस्थ रखा जा सकता है। 

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पूजा ठाकुर

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