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बच्चे आसानी से डर जाते हैं, और उनका डर समय के साथ बदलता रहता है। बच्चों को किसी भी चीज से डर लग सकता है और यह नॉर्मल रिएक्शन है, यह उन्हें सिखाता है कि खुद को कैसे सेफ करना है। हालांकि, एक बच्चे के सिर्फ किसी चीज का डर होना और फोबिया हो जाने में बहुत अंतर होता है।
यहाँ पर बच्चों को बचपन में महसूस होने वाले अलग-अलग डर के बारे में बताया गया है।
आपको यहाँ कुछ टिप्स दी गई हैं, जो आपको बच्चों के दिमाग से उनके डर को दूर करने में मदद करेगा:
जब डर बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और बिना किसी कारण के और पर्मानेंट बना रहता है, तो इससे कुछ हद तक उन्हें एंग्जायटी होने लगती है, इस तरह की कंडीशन को फोबिया कहा जाता है। ज्यादातर कोई भी फोबिया होने पहले किसी भी चीज का डर कुछ महीनों या सालों तक बना रहता है और जब यह डर लगातार बना रहता है तो फोबिया का रूप ले लेता है।
कई बच्चों को अलग-अलग प्रकार के फोबिया होने की संभावना होती है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया में लगभग 9-10 प्रतिशत लोग किसी न किसी प्रकार के फोबिया से पीड़ित हैं।
बच्चों में फोबिया के कॉमन कारण इस प्रकार हैं:
कोई भी बच्चे के समय में होने वाले हादसे या घटना का असर बच्चे पर गंभीर रूप से पड़ सकता है, जिससे उन्हें फोबिया हो सकता है। यह शुरुआत में नॉर्मल होता है, जैसे स्कूल में नए ग्रेड मिलना, किसी नई जगह शिफ्ट होना, परिवार में अचानक किसी की डेथ हो जाना, बहुत ज्यादा बीमार होना या माँ बाप का तलाक हो जाना आदि।
कुछ मामलों में, देखा जाए तो फोबिया कुछ हद तक इनहेरिटेड हो सकता है, जो बच्चे को उनके माता-पिता से प्राप्त हो सकता है। हालांकि यह हमेशा जेनेटिक नही होता है, बच्चे हर चीज को महसूस करते हैं और देखते हैं। जब परिवार में कोई फोबिया से सफर कर रहा होता है, तो उन्हें लगता है कि उन्हें भी इससे डरना चाहिए।
दिमाग के अंदर न्यूरोट्रांसमीटर होता है, जो एक दूसरे के साथ संवाद करने में मदद करता है, जो इमोशन और फीलिंग को भी डेवलप करता है। यहाँ दो मेजर कंडीशन हैं सेरोटोनिन और डोपामाइन, जो इंसान को खुशी और शांति प्रदान करती है। अगर यह अपना बैलेंस खो देते हैं तो आपका अचानक डर महसूस करने लगता है।
यहाँ कुछ सामान्य प्रकार के फोबिया के बारे में बताया गया हैं:
स्पेसिफिक फोबिया में, बच्चा किसी विशिष्ट चीज से बहुत ज्यादा डरने लगता है, यह ज्यादातर बिना किसी कारण होता है। यह कोई भी पर्टिकुलर जगह हो सकती है जैसे बंद कमरा या अलमीरा, कोई भी इंसान हो सकता है जैसे टीचर, या टैक्सी ड्राइवर।
संकेत और लक्षण
बच्चा फोबिया से बचने का प्रयास करता है या फिर यह अनुमान लगाने लगता है कि कुछ बुरा होने वाला है। कई बार, बच्चा जिस चीज से डरता है जब वो उसके सामने मौजूद होती है, तो बच्चा अजीब तरह से बर्ताव करने लगता है।
यह अपने कम्फर्ट जोन के बाहर कदम रखने के डर जैसा ही है, लेकिन यह डर इससे कई गुना बड़ा होता है। बच्चा बाहरी दुनिया और अनजान लोगों से बुरी तरह से डरने लगता है। वो किसी भी अजनबी को देखकर बहुत ज्यादा परेशान हो सकते हैं यहाँ तक कि उन्हें पैनिक अटैक भी आ सकता है, अचानक बच्चा बहुत रोने लग सकता है।
संकेत और लक्षण
बच्चे किसी भी हालत में अपने घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं होता है चाहे वो कोई भी कंडीशन हो और किसी भी बाहरी या घर में मेहमानों से बात नहीं करते हैं। अगर उन्हें फोर्स किया जाए तो वो पैनिक हो जाते है चिल्लाने लगते हैं।
सोशल फोबिया जिसका दूसरा नाम सोशल एंग्जायटी डिसऑर्डर है। इसमें लोगों से मिलने या भीड़ में रहने से फोबिया होता और कुछ केस में बच्चों से भी डर लगता है। इससे स्कूल जाने का भी फोबिया पैदा हो सकता है।
संकेत और लक्षण
बच्चों को खुद को इंट्रोड्यूस करने में, क्लास में सवाल करने में, स्टेज पर जाने से या फिर पब्लिक वॉशरूम जाने से जहाँ और भी लोग मौजूद हों ऐसी जगह पर जाने से डर लगता है। वे अपने आप को इस तरह की स्थिति से पूरी तरह बचाने का प्रयास करते हैं। या फिर इस तरह के इवेंट पर जाने के लिए झूट बोलते हैं या बीमारी का बहाना बना देते हैं।
फोबिया का निदान आमतौर पर सायकाइट्रिस्ट द्वारा किया जाता है जो बच्चे की मेंटल हेल्थ चेक करते हैं। पहली विजिट में हो सकता है आपको बच्चे में किसी डिसऑर्डर के बारे में पता चले और फिर कई विजिट में टेस्ट के जरिए इसका निदान किया जाता है।
फोबिया का ट्रीटमेंट बच्चे की उम्र और उसे किस हद तक फोबिया है इस पर निर्भर करता है। ज्यादातर बच्चे की काउंसलिंग की जाती है और कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी से उनके फोबिया को कम करने का प्रयास किया जाता है। गंभीर मामलों में बच्चे को पैनिक अटैक भी आ सकता है। ऐसे में डॉक्टर बच्चे को शांत करने के लिए मेडिसिन दे सकते हैं। इस दौरान माता पिता का सपोर्ट बहुत जरूरी होता है।
बच्चे को फोबिया और अलग-अलग तरह का डर होना, कुछ माता-पिता को अनावश्यक हो सकता है। साइकोलॉजी में बचपन का डर एक डेवलपिंग साइंस है और इसे समझने में कुछ समय लग सकता है। इसके बारे में सतर्क रहें और बच्चे से खुल कर बात करें। इससे बच्चे और आपके बीच एक अच्छा बांड बनेगा वो आपको ट्रस्ट कर सकेगा, इस प्रकार आप बैचे के डर को दूर कर सकेंगी और संभावना है कि ऐसा करने से उनमें फोबिया पैदा न हो। इस तरह की कंडीशन में पैरेंट का बहुत अहम भूमिका होती है, इसलिए बच्चे को पूरा सपोर्ट करें और उनके फोबिया को इग्नोर न करें।
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