बड़े बच्चे (5-8 वर्ष)

बच्चों में टॉन्सिलाइटिस की समस्या

शरीर के अंगों के बारे में सीखते समय, हममें से ज्यादातर लोगों ने टॉन्सिल के बारे में सुना ही होगा। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि टॉन्सिल क्या काम करते हैं। केवल तभी इसके बारे में बात की जाती है जब इसमें इन्फेक्शन हो जाता है, जिससे टॉन्सिलाइटिस होता है। कभी-कभी, 5 साल से कम उम्र के बच्चों को भी टॉन्सिलाइटिस हो जाता है, जो हमें हैरान कर सकता है कि यह कैसे हुआ। तो अगर आपके बच्चे को टॉन्सिलाइटिस है, तो क्या इसका मतलब यह भी है कि उसे सर्जरी करानी होगी? चाइल्ड स्पेशलिस्ट से सलाह करने से पहले आइए इस आर्टिकल में टॉन्सिलाइटिस के बारे में जानें।

टॉन्सिलाइटिस क्या है?

जब मुँह के पीछे के हिस्से में टॉन्सिल सूज जाते हैं, तो ऐसी स्थिति को टॉन्सिलाइटिस कहा जाता है। टॉन्सिल आमतौर पर गले के पीछे के हिस्से में होते हैं और मुँह के रास्ते से शरीर में जाने वाले हर जर्म्स को अपने स्तर पर फिल्टर करने की कोशिश करते हैं।

टॉन्सिलाइटिस दो प्रकार के होते हैं-

1. क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस

ऐसे मामले में, टॉन्सिल की सूजन लगभग 12 सप्ताह या उससे भी अधिक समय तक बनी रहती है।

2. रिकरेंट टॉन्सिलिटिस

जब टॉन्सिलाइटिस कम समय के लिए रहता है, लेकिन एक साल के अंदर कई बार होता है, तो इस स्थिति को रिकरेंट टॉन्सिलाइटिस कहा जा सकता है।

बच्चों में टॉन्सिलाइटिस होने के कारण

यहाँ बच्चों में टॉन्सिलाइटिस के कुछ कारण दिए गए हैं:

  • अक्सर टॉन्सिलाइटिस सामान्य बैक्टीरिया के कारण होता है जो अनजाने में गले और टॉन्सिल को संक्रमित कर देते हैं। इस केटेगरी में ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया प्राइमरी होते हैं। इनमें गले में इंफेक्शन भी पैदा करने की प्रवृत्ति होती है, यही वजह है कि बहुत से लोग बैक्टीरिया को दूसरों तक भी फैला देते हैं, इससे पहले कि उन्हें पता चले की वो इंफेक्टेड हैं। गंभीर मामलों में, ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया को रूमेटिक बुखार के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
  • कई बार, वायरस शरीर के अंदर चला जाता है और इस वजह से टॉन्सिलाइटिस हो जाता है। आम तौर ये वो वायरस होते हैं जिनसे इन्फ्लूएंजा या सर्दी-जुकाम होता है। जब वे टॉन्सिल को संक्रमित कर देते हैं, तो लक्षण या प्रभाव एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन की तुलना में थोड़ा कम होते हैं। हालांकि, टॉन्सिलाइटिस का कारण बनने वाले वास्तविक माइक्रोब को जानने में सक्षम हो पाना काफी दुर्लभ होता है।

गंभीर मामलों में, एपस्टीन-बार वायरस जैसे कुछ वायरस बच्चों में ग्लैंड्यूलर फीवर या मोनोन्यूक्लिऑसिस का कारण बनते हैं, जिसके साथ बच्चे में टॉन्सिल संक्रमण के लक्षण भी दिखाई देते हैं।

बच्चों में टॉन्सिलाइटिस के संकेत और लक्षण

बैक्टीरिया या वायरस टॉन्सिल को संक्रमित कर सकता है और टॉन्सिलाइटिस गले में तकलीफ और सूजन पैदा कर सकता है। इसके आम लक्षण इस प्रकार हैं:

  • खाने को निगलते समय अत्यधिक कठिनाई और दर्द होना।
  • आपका बच्चा खाने से इंकार करता है क्योंकि निगलते वक्त उसे तकलीफ होती है।
  • कान का लगातार खींचना क्योंकि गला और कान आपस में जुड़े हुए होते हैं।
  • गले में दर्द जो कम या खत्म होते हुए नहीं दिखता है।
  • गर्दन या जबड़े में दर्द।
  • साँस लेने पर अजीब सी बदबू महसूस होना जो असहज करती है।
  • सोते समय मुँह से साँस लेना या कभी-कभार खर्राटे लेना।
  • काफी तेज बुखार और कंपकंपी महसूस होना।
  • गर्दन में मौजूद ग्लैंड का बढ़ना।
  • बोलने में परेशानी और आवाज चली जाना।
  • तेज सिरदर्द
  • मुँह से लगातार लार आना।

टॉन्सिलाइटिस का निदान कैसे किया जाता है?

टॉन्सिलाइटिस की जांच करने के लिए डॉक्टर द्वारा अपनाए जाने वाले तरीके में, बच्चे के मुँह के अंदर देखा जाता है और साथ ही टॉन्सिल की ऊपरी लेयर को जांचा जाता है और इस प्रकार समस्या का पता लगता है। सूजन के साथ रेडनेस और टॉन्सिल के ऊपर मवाद या सफेद परत का होना ये बताता है कि बच्चे को टॉन्सिलाइटिस है।

इसके बाद डॉक्टर आसपास के हिस्सों में मौजूद सूजन की जांच करेंगे। जबड़े के नीचे और गर्दन के आसपास जांच करने से, यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि क्या लिम्फ नोड्स में भी सूजन आ गई है। क्योंकि मवाद और लिम्फ नोड्स शरीर के इम्युनिटी सिस्टम द्वारा किए जाने वाले प्रतिरोध के संकेत होते हैं तो इससे यह पता चलता है कि ऐसा होने या सूजन होने के पीछे का कारण इन्फेक्शन है।

इन ऑब्जर्वेशन के आधार पर, आपका डॉक्टर थ्रोट स्वैब लेगा और उसमें बैक्टीरिया को टेस्ट करेगा। सबसे पहले ये जांचना कि क्या इसमें स्ट्रेप बैक्टीरिया मौजूद हैं जो स्ट्रेप थ्रोट होने का कारण बनते हैं।

डॉक्टर, लाल, सूजे हुए टॉन्सिल या सफेद धब्बे या पस वाले टॉन्सिल के लिए एंटीबायोटिक दवाएं लिखते हैं। ज्यादातर डॉक्टर अगर उन्हें स्ट्रेप के मौजूद होने का संदेह हो जाता, तो ऐसा ही करते है। संक्रामक बैक्टीरिया को पूरी तरह से हटाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का एक पूरा कोर्स जो एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है, करना जरूरी होता है। शुरुआती दिनों में ही इसमें सुधार दिखाई देने लगता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बैक्टीरिया खत्म हो गया है। यदि एंटीबायोटिक्स से कोई राहत नहीं मिलती है, तो संक्रमण को वायरल का नाम दे दिया जाता है।

इस दौरान, आपके बच्चे के लिए जितना संभव हो उतना आराम करना और घर पर रहना ही फायदेमंद है ताकि दूसरों को भी यह संक्रमण न फैले।

बच्चों के लिए टॉन्सिलाइटिस का उपचार

बच्चों में टॉन्सिलाइटिस के इलाज के कई तरीके हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

1. एंटीबायोटिक

बच्चे में टॉन्सिलाइटिस होने पर एंटीबायोटिक तभी दिए जाते हैं जब डॉक्टर पूरी तरह से निश्चित होते हैं कि यह इंफेक्शन बैक्टीरिया की वजह से हुआ है। कई बार नार्मल दवाइयां दी जाती हैं, जब तक कोई लैब रिपोर्ट या टेस्ट रिजल्ट साबित न कर दें कि ये बैक्टेरियल इंफेक्शन ही है। यदि तेज बुखार के मजबूत लक्षण हैं, टॉन्सिल पर पस दिख रहा है, खांसी नहीं है और लिम्फ नोड्स सूज गए हैं व सेंसिटिव हैं, तो तुरंत प्राइमरी एंटीबायोटिक दवाओं द्वारा उपचार शुरू किया जाता है।

2. एसिटामिनोफेन

टॉन्सिलाइटिस से ठीक होने के लिए बच्चे को ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए और साथ ही जितना हो सके लिक्विड डाइट लेनी चाहिए। आमतौर पर आइबुप्रोफेन या एसिटामिनोफेन इसके साथ खाने वाली दवा होती है। ये दवा बुखार को कंट्रोल करने में मदद करती हैं और आपके बच्चे को राहत देती हैं।

इसके अलावा आप इस बात का भी ध्यान रखें कि वायरल इन्फेक्शन होने पर आपका बच्चा एएसए या एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड का सेवन नहीं करे। यह नोट किया गया है कि एएसए के सेवन से बच्चे में रेये’स सिंड्रोम विकसित होता है, जो उसके अंदरूनी अंगों के साथ-साथ लिवर और ब्रेन को भी डैमेज कर सकता है।  

3. टॉन्सिल्लेक्टोमी

टॉन्सिलाइटिस के संक्रमण का मुकाबला करने और बुखार को कम रखने में एंटीबायोटिक और आइबुप्रोफेन एक साथ काम करते हैं। लेकिन अगर टॉन्सिलाइटिस बार-बार होता रहता है, तो डॉक्टर ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस कैरियर्स के लक्षणों को देखने के लिए फैमिली चेकअप कराने की सलाह देते हैं। यदि ऐसा होता है, तो परिवार के अन्य सदस्यों को भी एंटीबायोटिक्स दी जा सकती हैं। इसकी वजह से आपका बच्चा एक और टॉन्सिलाइटिस हमले का शिकार नहीं होता है।

कई बार, सभी सावधानियों के बाद भी बच्चे को बार-बार टॉन्सिलाइटिस हो जाता है। या एक टॉन्सिलाइटिस इंफेक्शन काफी गंभीर हो सकता है, जिससे स्थिति काफी खराब हो सकती है। ऐसे में जब दवा से समस्या का इलाज नहीं हो पता है, तो डॉक्टर टॉन्सिल को हटाने की सलाह देते हैं, जिसे टॉन्सिल्लेक्टोमी कहा जाता है।

टॉन्सिल्लेक्टोमी से रिकवर होने में कितना समय लगता है?

इसे जनरल एनेस्थीसिया देकर किया जाता है। टॉन्सिल्लेक्टोमी से ठीक होने का समय आमतौर पर बहुत कम होता है, और लगभग कई लोग उसी दिन घर वापस लौट आते हैं।

आप सर्जरी के बाद अपने बच्चे की देखभाल कैसे कर सकती हैं?

टॉन्सिल्लेक्टोमी में गले की काफी बड़ी सर्जरी की जाती है। यह आमतौर पर गले के साथ-साथ कानों में दर्द का कारण बनता है, क्योंकि दोनों का सिस्टम आपस में जुड़ा हुआ है। आपके बच्चे की आवाज कर्कश हो सकती है या फिर वो लगातार दर्द में रोता रहेगा।

दर्द को कम करने के लिए डॉक्टर सही डोज में पेनकिलर देते हैं। भले ही सर्जरी के बाद बच्चे को हल्का बुखार शुरू में आए, लेकिन ज्यादातर डॉक्टर इस दौरान आइबुप्रोफेन देने से बचते हैं क्योंकि जहाँ सर्जरी हुई है वहाँ ब्लीडिंग होने की संभावना होती है। एस्पिरिन का सेवन भी बिलकुल न करना चाहिए।

आपके बच्चे को निगलने में कठिनाई होगी और वह जगह काफी सेंसिटव होगी, उसे गुनगुना सूप देने की कोशिश करें जिससे उसे थोड़ा आराम मिलेगा और निगलने में भी आसानी होगी। इसके साथ ही आइसक्रीम भी एक अच्छी चॉइस है, जो उस जगह को ठंडा रखेगी और आपका बच्चा उसे खाकर खुश होगा। सर्जरी के बाद अपने बच्चे को नरम चीजें खाने को दें या फिर आप सेब का रस भी दे सकती हैं। हालांकि चिप्स जैसी चीजें दूर रखें, क्योंकि उनका शार्प टेक्सचर नुकसान पहुंचा सकता है। इसी तरह कच्चा खाना या कार्बोनेटेड ड्रिंक्स देने से भी बचना चाहिए।

ठीक होने के दौरान अपने बच्चे को कम से कम एक सप्ताह के लिए घर पर रहने दें, और कुछ हफ्तों तक उसे किसी भी तरह के शारीरक खेल न खेलने दें। यहाँ तक ​​​​कि अगर वह कुछ दिनों में बेहतर महसूस करना शुरू कर देता है, तो पूरी तरह से ठीक होने और संक्रमण को फिर से रोकने के लिए दवाई का पूरा कोर्स करना और आराम जरूरी है।

बच्चों में टॉन्सिलाइटिस के जोखिम और कॉम्प्लिकेशन

एक बार सर्जरी हो जाने के बाद थोड़ा खून बहना सामान्य है। हालांकि अगर ब्लीडिंग जारी रहती है और ज्यादा होती है, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। कई बार उल्टी भी हो सकती है। लेकिन अगर यह बहुत ज्यादा तेजी से होती रहती है, तो इसके बढ़ने का रिस्क ज्यादा होता है।

यदि इसके बाद डिहाइड्रेशन होता है, कई दिनों तक तेज बुखार जो कि 102 डिग्री को पार कर जाता है, कान में तेज दर्द और सांस लेने में कठिनाई होती है, तो अपने बच्चे को जल्द से जल्द इमरजेंसी रूम में ले जाएं।

टॉन्सिलाइटिस के लिए घरेलू उपचार

डॉक्टर के पास जाने या टॉन्सिल्लेक्टोमी करने से पहले आप नीचे बताए गए घरेलू उपायों को इन्फेक्शन को कम करने या दर्द से कुछ राहत पाने के लिए आजमा सकती हैं।

1. दूध में हल्दी डालकर देना

यह उपाय हर घर में किसी भी बीमारी का मुकाबला करने का बेस्ट नुस्खा है। टॉन्सिलाइटिस के मामले में, यह और भी अधिक प्रभावी है। एक कप दूध उबालें, गरम होने पर इसमें 1 से 2 चुटकी हल्दी पाउडर डाल दें। फिर इसमें एक चुटकी काली मिर्च पाउडर डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। अपने बच्चे को रात में सोने से पहले यह दूध पिलाएं। यह उपाय सूजन वाले हिस्से को ठीक करने में काफी मदद करता है और दर्द से राहत मिलती है।

2. बनफशा के पेड़ के फूलों का इस्तेमाल

बनफशा या नीलपुष्पा के फूल, टॉन्सिलाइटिस के दर्द से राहत देने में मदद करते हैं। थोड़े से दूध में कुछ फूल डालकर उबाल लें। यह उपाय दर्द से राहत दिलाने का एक नेचुरल तरीका है।

3. गाजर के जूस का प्रयोग

गाजर के स्वास्थ्यकर और पोषक लाभों के अलावा, गाजर के जूस में एंटी-टॉक्सिन तत्व भी होते हैं जो टॉन्सिलाइटिस पैदा करने वाले संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं। साथ ही इसमें कार्मिनेटिव गुण होते हैं और इसलिए ये कब्ज से भी राहत दिलाता है।

4. फिटकरी को पानी के साथ प्रयोग करना

यह एक सदियों पुराना उपाय है जो कई पीढ़ियों से आज तक अपने फायदों के कारण अपनाया जाता है। फिटकरी का एक टुकड़ा लें और उसका पाउडर बना लें। इसे गुनगुने पानी में मिलाकर बच्चे को गरारे कराएं, टॉन्सिल की सूजन को कम करने और संक्रमण से होने वाले दर्द को भी कम करने में ये काफी फायदेमंद होता हैं।

अपने बच्चे को टॉन्सिलाइटिस होने से कैसे बचाएं?

सामान्य स्वच्छता नियमों का पालन करने के लिए बच्चे पर ध्यान देना चाहिए कि बच्चा कुछ भी खाने से पहले नियमित रूप से हाथ धोता है या नही। एक अच्छी डाइट आपके बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत रखेगी जिससे टॉन्सिलाइटिस होने की उम्मीद काफी कम हो जाती है।

टॉन्सिलाइटिस को आसानी से रोका नहीं जा सकता है, और ज्यादातर बच्चों को जीवन में कभी न कभी यह इन्फेक्शन होता ही है। लेकिन सही इलाज लेने से टॉन्सिल्लेक्टोमी करने की संभावना को रोका जा सकता है। इम्युनिटी को बरकरार रखने और बैलेंस डाइट लेने से हेल्दी फ्यूचर पाना मुश्किल नहीं है।

यह भी पढ़ें:

बच्चों में अपेंडिसाइटिस
बच्चों में साइनस: कारण, लक्षण और उपचार
बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म: कारण, लक्षण और उपचार

समर नक़वी

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