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युवा वर्ग के लिए सोशल मीडिया एक तेजी से उभरता हुआ प्लेटफार्म है, जहां वे एक दूसरे से संवाद कर सकते हैं, खुद को व्यक्त कर सकते हैं और हर प्रकार का कंटेंट शेयर कर सकते हैं। इसने एक नए सांस्कृतिक प्रतिमान को जन्म दिया है, जिसने तकनीक और व्यापार के साथ ही लोगों के इंटरेक्ट करने के तरीके को भी बदला है। एक उपकरण के रूप में सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार है। जहां इसके बहुत सारे फायदे हैं, वहीं यह युवा वर्ग को अस्वस्थ तरीकों से प्रभावित भी कर सकता है।
बच्चों पर सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव
सोशल मीडिया के बारे में ज्यादातर नकारात्मक दृष्टिकोण से ही बात की जाती है, लेकिन इसके पक्ष में कुछ बेहद पॉजिटिव तथ्य भी हैं। यहां पर बच्चों के लिए सोशल मीडिया के कुछ फायदे दिए गए हैं:
- युवा पीढ़ी के लिए ऑनलाइन समय बिताना जरूरी है, ताकि वे उन जरूरी तकनीकी गुणों को सीख सकें, जिनसे भविष्य में उन्हें मदद मिलेगी। इससे उन्हें डिजिटल युग में सक्षम नागरिक बनने में मदद मिलती है। जहां वे एक बड़े समाज में पूरी तरह से हिस्सा ले सकते हैं और उस जनरेशन के सामाजिक गुणों को सीख सकते हैं, वहीं वे दोस्तों और परिचित लोगों के विस्तृत ऑनलाइन नेटवर्क के साथ सामंजस्य बिठाना भी सीखते हैं।
- युवा वर्ग के द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल सकारात्मक तरीकों से किया जा रहा है, जिनके बारे में पहले नहीं सोचा गया था। यह केवल सामाजीकरण का एक माध्यम नहीं है, बल्कि बच्चों और टीनएजर्स ने खुद को कलात्मक रूप से व्यक्त करने के लिए और दर्शकों की बड़ी संख्या के साथ इंटरैक्ट करने और सीखने का एक नया तरीका भी ढूंढ निकाला है। स्टूडेंट्स इसका इस्तेमाल स्टडी ग्रुप बनाने के लिए कर रहे हैं, जहां वे आसानी से और बेहद कम समय में अपने आइडियाज और पढ़ाई से संबंधित सामग्री शेयर कर सकते हैं।
- सोशल नेटवर्किंग ने बच्चों की पढ़ाई के तरीके को भी बदला है। इसने हमउम्र लोगों के समूह पर आधारित लर्निंग के तरीके से भी परिचय कराया है, जहां स्टूडेंट्स अपनी उम्र के दूसरे बच्चों से सीखने में प्रोत्साहन महसूस करते हैं। वे हमेशा एक दूसरे से इंटरैक्ट करते हैं और एक दूसरे को फीडबैक भी देते हैं, जिससे उनके सीखने की प्रक्रिया बेहतर हो जाती है। वे बड़ों के बजाय एक दूसरे से सीखने के लिए भी काफी उत्सुक होते हैं। शिक्षण अब केवल पेरेंट्स या शिक्षकों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके लिए अब नए स्रोत भी उपलब्ध हैं।
- सोशल मीडिया केवल कम्युनिकेशन का एक उपकरण ही नहीं है, बल्कि यह किशोरों और युवा वयस्कों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इससे उन्हें स्पोर्ट्स टीम्स, एक्टिविटी क्लब और क्लासेस आदि से अपने हमउम्र लोगों के साथ कनेक्टेड रहने का मौका मिलता है, साथ ही एक जैसे इंटरेस्ट रखने वाले दूसरे लोगों के साथ जुड़े रहने में भी मदद मिलती है।
- ऐसा भी देखा गया है, कि सोशल मीडिया लोगों को अधिक सहानुभूति रखने वाला, विचारशील, संवेदनशील और रिश्ते निभाने वाला बनाता है। वे उनके दोस्तों के द्वारा पोस्ट किए गए तस्वीर, वीडियो या स्टेटस अपडेट को लाइक करके या उन पर कॉमेंट करके अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। साथ ही वे अधिक लोगों को उनके जन्मदिन पर बधाई दे पाते हैं।
- बच्चे ऑनलाइन एक दूसरे के संपर्क में रहकर लॉन्ग टर्म फ्रेंडशिप को बनाए रख पाते हैं, फिर चाहे वे व्यक्तिगत रूप से एक दूसरे से कभी भी मिल न सकते हों।
- ऐसा देखा गया है, कि युवा पीढ़ी द्वारा दिखाई गई वर्चुअल सहानुभूति को सोशल मीडिया के उनके दुखी दोस्तों के द्वारा सकारात्मक रिस्पांस मिलते हैं। सोशल मीडिया उनके मूड को बेहतर बनाता है और समस्याओं के समाधान ढूंढने में मदद करता है। वर्चुअल सहानुभूति सोशल मीडिया से बाहर निकलकर वास्तविक दुनिया में भी दिख सकती है और युवा पीढ़ी को यह सिखा सकती है, कि अधिक दयालु कैसे बना जा सकता है।
- सोशल मीडिया एक जैसी चीजों में दिलचस्पी रखने वाले दूसरे लोगों के साथ जुड़े रहने के लिए युवा पीढ़ी को एक प्लेटफार्म उपलब्ध कराता है। यह शौक या व्यवसाय से संबंधित कुछ भी हो सकता है, जिसमें संगीत, कला, गेम्स और ब्लॉग्स भी शामिल हैं।
- बच्चे सोशल नेटवर्किंग ग्रुप के द्वारा अपनी कम्युनिटी पर एक प्रभाव डाल सकते हैं और सकारात्मक बदलाव लाने में भी मदद कर सकते हैं। इनमें फंडरेजिंग कैंपेन, पॉलिटिकल इवेंट और डिबेट में हिस्सेदारी जैसे कुछ उदाहरण शामिल हैं।
- सोशल मीडिया युवा पीढ़ी को पूरे विश्व के लोगों के साथ संपर्क करने में मदद करता है, जिससे वे उन परंपराओं और विचारों के संपर्क में आते हैं, जिनके बारे में उन्हें कहीं और से जानकारी नहीं मिल सकती थी। इससे उन्हें जीवन और लोगों को लेकर अपने दृष्टिकोण का विस्तार करने में मदद मिलती है।
- सोशल मीडिया अंतर्मुखी बच्चों को इंटरनेट पर खुलकर सामने आने का मौका देता है, जिससे उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है। बहुत से युवा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों के साथ इंटरैक्ट करने के बाद आमने-सामने बात करने में आसानी महसूस करते हैं। इससे उन्हें दुनिया भर से लोगों के साथ इंटरैक्ट करने में मदद मिलती है और साथ ही वे उनके कल्चर, खानपान, कला, संगीत एवं अन्य चीजों को समझ पाते हैं।
- बहुत से युवा करंट इवेंट के बारे में हमेशा ही जानकारी रखना चाहते हैं और सोशल मीडिया पर कई न्यूज़ अकाउंट फॉलो करने से यह उनके लिए एक बेहद शक्तिशाली उपकरण बन चुका है। इनसे उन्हें संक्षिप्त और प्रासंगिक खबरें मिलती रहती हैं। इससे उन्हें अपने जनरल नॉलेज को बढ़ाने में मदद मिलती है और वे दुनिया भर में होने वाली लेटेस्ट घटनाओं से रूबरू होते रहते हैं।
बच्चों पर सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव
बच्चों पर सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर सबसे लोकप्रिय मत यही है, कि यह बच्चों के लिए फायदे से ज्यादा नुकसानदेह है। यहां पर बच्चों पर सोशल मीडिया के कारन पड़ने वाले नेगेटिव प्रभावों की जानकारी दी गई है:
- सोशल मीडिया के सबसे नकारात्मक प्रभावों में से एक है, इससे होने वाला एडिक्शन यानी इसकी लत। अलग-अलग सोशल मीडिया साइट पर लगातार न्यूज फीड को चेक करना एक लत बन जाती है। एक्सपर्ट्स मानते हैं, कि लाइक और शेयर जैसे कुछ फीचर्स मस्तिष्क में रिवॉर्ड सेंटर को एक्टिवेट कर देते हैं। यह रिवॉर्ड सर्किट्री किशोरावस्था के दौरान बहुत अधिक संवेदनशील होती है और यह कहीं न कहीं हमें यह बताती है कि वयस्कों की तुलना में टीनएजर्स सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल क्यों करते हैं। ये फीचर्स आगे चलकर हमारे मूड पर असर डालते हैं। सामाजिक प्राणी होने से हम इंटरैक्शन और कनेक्शन को महत्व देते हैं। ये दोनों ही बातें इस बात का निर्धारण करती हैं, कि हम अपने बारे में कैसा सोचते हैं। यह दैनिक जीवन में हमारे बहुत सारे व्यवहारों को चलाती है, जो कि सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द केंद्रित होते हैं।
- सोशल मीडिया की आदत से ग्रस्त युवा जिन अकाउंट्स को फॉलो करते हैं, उनके द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो, फोटो और दूसरे कंटेंट को देखने में हर दिन घंटों बिता देते हैं। यह आसक्ति उनकी दूसरी एक्टिविटीज में बाधा बनती है, जैसे उनकी पढ़ाई, खेलकूद, होमवर्क और अन्य जरूरी काम। वे हर दिन बहुत सारा समय बर्बाद करते हैं, जिसके कारण स्कूल में उनके ग्रेड खराब होते जाते हैं। सोशल मीडिया का बहुत अधिक इस्तेमाल करने वाले कुछ युवा इस बात को स्वीकार करते हैं, कि वे हर दिन लगभग 100 बार फीड्स को चेक करते हैं और कभी-कभी स्कूल के दौरान भी ऐसा ही करते हैं। कुछ बच्चे इस बात का एहसास भी करते हैं, कि वे सोशल मीडिया पर बहुत सारा समय व्यर्थ कर रहे हैं, जिससे उनका मूड नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाता है। इससे उनमें हारने की भावना बनने लगती है।
- मनोवैज्ञानिकों ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव को ऑब्जर्व किया है। एक खोज से यह पता चलता है, कि जो बच्चे सोशल मीडिया पर हर दिन 3 घंटों से अधिक समय बिताते हैं, उनमें खराब मानसिक स्वास्थ्य से ग्रस्त होने की संभावना दोगुनी हो जाती है। वर्चुअल वर्ल्ड में उनके इतने डूबे रहने के कारण उनके भावनात्मक और सामाजिक विकास में बाधा देखी जाती है। टीनएजर्स पर इसके प्रभाव और भी बुरे होते हैं। आईजेडए इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स के द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया पर हर दिन केवल एक घंटा बिताने से ही एक टीनएज बच्चे की स्थिति दयनीय या बेहद उदास हो सकती है। यह सामाजिक तुलना, साइबर बुली और लोगों के द्वारा आमने-सामने बातचीत में होने वाली कमी के प्रभाव के कारण भी हो सकता है।
- सोशल मीडिया के इस्तेमाल से युवा पीढ़ी की निजी रुचियों और विचारों में गिरावट भी देखी जा रही है। वे जितना ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, आमतौर पर अपनी जिंदगी से उतना ही असंतुष्ट महसूस करते हैं। सोशल मीडिया के विभिन्न साइट्स पर बहुत अधिक समय बिताने के बाद टीनएजर्स को डिप्रेशन से ग्रस्त भी पाया गया है। कुछ लोग जब यह देखते हैं, कि उनके दोस्त उनसे बेहतर जिंदगी जी रहे हैं, तो वे चिंतित और मूडी भी हो जाते हैं। जबकि उन्हें यह पता भी नहीं होता है, कि यह चीज केवल एक आदर्श स्थिति के रूप में प्रदर्शित की जा रही है, यानी कि ये सब केवल एक दिखावा है। हालांकि कॉन्फिडेंट बच्चों की तुलना में कम कॉन्फिडेंट बच्चों को इस तरह का खतरा अधिक होता है।
- स्क्रीन पर होने वाले रिलेशनशिप से बच्चों और टीनएजर्स के वास्तविक जीवन के संबंध और सामाजिक गुण भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे लोगों के चेहरे के हाव-भाव और गैर शाब्दिक संकेतों को पढ़ना सीखे बिना ही बड़े होते हैं। दूसरों के मूड और उनकी भावनाओं को समझने के लिए जरूरी गुणों के विकास के लिए सामाजिक इंटरैक्शन जरूरी होता है। इसलिए जो बच्चे ज्यादातर सोशल मीडिया के माध्यम से इंटरैक्ट करते हुए बड़े होते हैं, वे असंवेदनशील होते हैं और साथ ही शाब्दिक और गैर शाब्दिक रूप से बातचीत करने में निपुण नहीं होते हैं।
- जहां कुछ टीनएजर्स अपने दोस्तों के द्वारा पोस्ट की जाने वाली पोस्ट पर रिएक्ट करने के दबाव और मैसेज के जवाब देने के दबाव से प्रभावित होते हैं, वहीं दूसरे बच्चों को सामाजिक रूप में न होने का डर सताता है, जिसे ‘फोमो’ (फियर ऑफ मिसिंग आउट) कहा जाता है। टीनएजर्स दोस्तों के द्वारा किए गए अपडेट्स के लिए बार-बार मीडिया फीड्स को चेक करते हैं, क्योंकि वे किसी भी चुटकुले, गॉसिप, एक्टिविटी और पार्टी को मिस नहीं करना चाहते हैं। फोमो को टीनएजर्स के सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल के लिए जिम्मेदार एक प्रमुख कारक के साथ-साथ डिप्रेशन और एंग्जायटी का एक कारण भी माना गया है।
- खुद के प्रति ऑब्सेशन और सोशल मीडिया पर लगातार अपडेट करना और सेल्फी पोस्ट करना युवाओं में आत्ममोह को बढ़ा रहा है। उनका मूड इस बात पर बहुत अधिक निर्भर करता है, कि सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरों को कितना पसंद किया जा रहा है और जब उन्हें उनकी उम्मीद के अनुसार अटेंशन नहीं मिलती है, तब वे एंग्जायटी में चले जाते हैं। अपना खुद का पेज होने से बच्चे खुद पर और अधिक केंद्रित बन जाते हैं। कुछ नाजुक बच्चे इस कल्पना में रह सकते हैं, कि हर चीज उनके इर्द-गिर्द घूमती है। इसके कारण डिस्फंक्शनल इमोशनल स्थितियां पैदा हो सकती हैं और उनके जीवन में आगे चलकर दूसरों के लिए सहानुभूति की कमी हो सकती है।
- कैमरा फोन के आने से सेल्फी आज के समय में सबसे लोकप्रिय चीज बन चुकी है। हर घंटे सेल्फी लेना और सोशल मीडिया पर इसे पोस्ट करना आत्ममोह से मजबूती से जुड़ा हुआ है और इससे अपनी छवि के प्रति ऑब्सेशन ट्रिगर हो सकता है। जिन लोगों को सेल्फी लेने की लत होती है, उन्हें कई बार खतरनाक चीजें करते हुए देखा गया है, जैसे स्केल स्काईस्क्रैपर्स, जंगली जानवरों या हथियारों के साथ पोज करना या चलती गाड़ियों के बेहद नजदीक पोज करना, जैसे रेलगाड़ियों के साथ पोज करना, ताकि एक कूल सेल्फी मिल सके, जो कि अंत में जानलेवा भी साबित हुई है। टीनएजर्स में खतरनाक व्यवहार भी देखे जाते हैं। वे बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया चैलेंज में हिस्सा लेते हैं, जिनमें अजीबो गरीब या खतरनाक गतिविधियों के दौरान खुद के वीडियो बनाना शामिल होता है।
- बच्चों के मस्तिष्क पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ये उनके मस्तिष्क को एक ऐसी स्थिति पर सेट कर देते हैं, जो कि उस बच्चे से मिलती-जुलती होती है जो कि चमकीले रंगों और तेज आवाजों के प्रति आकर्षित होता है और ऐसे में ध्यान की अवधि छोटी हो जाती है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ऐसा होता है। क्योंकि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ब्राउज करने में शायद ही किसी ध्यान या विचार प्रक्रिया की जरूरत होती है।
- बच्चे के विकास पर सोशल मीडिया के प्रभाव में अक्सर यह स्थिति देखी जाती है, कि वे सतही उत्तेजना के साथ बड़े होते हैं, जिसमें बच्चे खुद के साथ या दूसरों के साथ गहराई से इंटरैक्ट करने में अक्षम होते हैं। वे सोशल मीडिया के लिए परफेक्ट फोटो हासिल करने में ही पूरी एनर्जी लगा देते हैं और कार्यक्रम के वास्तविक अनुभव से वंचित रह जाते हैं, फिर चाहे वह कोई छुट्टी हो या दोस्तों और परिवार के साथ खाना खाना हो।
- बच्चों के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट्स के अन्य खतरों में साइबर क्राइम और साइबर बुलिंग भी शामिल है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बुली करना आसान होता है। धमकी भरे मैसेज के रूप में या किसी व्यक्ति विशेष की ओर निशाना साधते हुए आपत्तिजनक पोस्ट करके ऐसा आसानी से किया जा सकता है। छोटे बच्चे आसानी से बुरे लोगों की नजर में आ सकते हैं, जो उन्हें हानि पहुंचाने के उद्देश्य से उनका पीछा कर सकते हैं।
- इंटरनेट पर आपत्तिजनक, स्पष्ट और हिंसक कंटेंट आसानी से उपलब्ध होते हैं, जो छोटे बच्चों पर अपना प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसे कंटेंट आपके बच्चों के मस्तिष्क को गलत आकार दे सकते हैं या उनकी मानसिक शक्ति को बाधित कर सकते हैं, जिससे आगे चलकर उनके जीवन के अन्य कई पहलू भी प्रभावित हो सकते हैं, फिर चाहे वह शिक्षा हो या व्यक्तिगत संबंध या ऐसे ही अन्य चीजें।
माता-पिता बच्चों को सोशल मीडिया के बारे में स्मार्ट बनने में कैसे मदद कर सकते हैं?
माता-पिता अपने बच्चों के लिए हमेशा सबसे बेहतर ही चाहते हैं और साथ ही उन्हें बुरी चीजों से सुरक्षित भी रखना चाहते हैं। माता-पिता बच्चों को हमेशा यह सिखाने की कोशिश करते रहते हैं, कि बुरी स्थितियों को मैनेज कैसे करें और साथ ही उनसे दूर रहने की सलाह भी देते रहते हैं। इसलिए यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिनकी मदद से पेरेंट्स अपने बच्चों के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल को मैनेज कर सकते हैं:
- बच्चों पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स के प्रभाव पर रिसर्च से शुरू करें और उन्हें इसके फायदे और नुकसान के बारे में बताएं। शुरुआत में आप एक बाउंड्री सेट कर सकते हैं, कि वे कौन सी साइट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं और कितनी देर के लिए कर सकते हैं।
- अपने बच्चों को ऑनलाइन नेटवर्किंग के बजाय लोगों के साथ वास्तविक जीवन में बातचीत करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें वास्तविक जीवन की दोस्ती और गतिविधियों में अधिक समय बिताने का महत्व सिखाना जरूरी है।
- बच्चों पर सोशल मीडिया के बुरे प्रभावों को लेकर लगातार बातें समझाने के बजाय, उन्हें उनकी अन्य रुचियों और शौकों को लेकर प्रेरित करें। यह उनकी हॉबीज, खेलकूद, सोशल वर्क या ऐसी कोई भी चीज हो सकती है जो कि वर्चुअल ना हो।
- उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपनी लर्निंग के बेहतर निर्माण के लिए या एक जैसी रुचि वाले अन्य लोगों के साथ सहयोग के लिए इस्तेमाल करने की सलाह दें। उन्हें यह अंतर करना सिखाएं, कि किन चीजों का कोई महत्व है और किन का नहीं और उन्हें किन चीजों पर अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
- उनकी ऑनलाइन एक्टिविटी पर नजर रखें, ताकि आप उन्हें ऑनलाइन प्रिडेटर और बुली से सुरक्षित रहना सिखा सकें। उन्हें पर्याप्त आजादी दें, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आपको उनकी ऑनलाइन आदतों की जानकारी हो।
- उनके सोशल नेटवर्किंग साइट को जॉइन करें, ताकि आपको इस बात की बेहतर जानकारी हो, कि वह किस प्रकार काम करता है। अगर संभव हो, तो उन्हें उस साइट पर फॉलो करें, ताकि आप उनके पोस्ट को देख सकें। लेकिन उनके पोस्ट पर इंटरैक्ट करने या कमेंट करने से दूर रहें।
- अगर आपका बच्चा अपने फोन को देखने के बाद या ऑनलाइन समय बिताने के बाद अक्सर दुखी नजर आता है, तो उससे इसके बारे में बात करें। हो सकता है, कि उसे इस बात को लेकर गाइडेंस की जरूरत हो कि ऑनलाइन होने वाले चीजों को दिल पर लेने की जरूरत नहीं होती है।
- सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा उतना ही समय ऑनलाइन बिताता है, जितना उपयोगी हो। आप अच्छे व्यवहार के लिए इनाम के रूप में भी उसे सोशल मीडिया पर समय बिताने का मौका दे सकते हैं।
- उसे यह समझाएं कि सोशल मीडिया पर 500 दोस्त होने का यह मतलब नहीं है, कि वह ‘कूल’ है, सामाजिक है या लोकप्रिय है।
- सोशल नेटवर्किंग और वास्तविक जीवन के बीच के अंतर को समझाने की कोशिश करें।
जैसा कि किसी भी चीज के साथ होता है, उसी प्रकार समय और ट्रेंड के संपर्क में रहने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी सीमित सीमा तक ही उचित है। समस्या केवल तब शुरू होती है, जब कोई भी चीज जरूरत से ज्यादा होने लगती है।
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