आजकल की तेजी से बदलती दुनिया में बच्चों को समय के साथ ढालना बहुत जरूरी है। माता-पिता का ये फर्ज बनता है कि वो अपने बच्चों को जिंदगी के बुनियादी कौशल (लाइफ स्किल्स) सिखाएं, जो उन्हें हर चुनौती के लिए तैयार करें। ये स्किल्स बच्चों को आत्मनिर्भर और मजबूत बनाती हैं, ताकि वो हर नए हालात का सामना आसानी से कर सकें। इस लेख में हम जिन स्किल्स की बात करेंगे, वो बच्चों को बेहतर भविष्य के लिए तैयार करने में मदद करेंगी और उन्हें आत्मविश्वास से भर देंगी।
बच्चों के लिए 10 जरूरी लाइफ स्किल्स
आजकल के माता-पिता अपने बच्चों का बहुत ज्यादा ख्याल रखते हैं, जो सही है, लेकिन कभी-कभी जरूरत से ज्यादा सुरक्षा बच्चों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। इससे बच्चे वो जरूरी स्किल्स नहीं सीख पाते, जो उन्हें बाहर की दुनिया में आत्मनिर्भर और सक्षम बनने में मदद करें। इसलिए, यह जरूरी है कि बच्चों को समय रहते ऐसे महत्वपूर्ण कौशल सिखाए जाएं, जो उनके जीवन को बेहतर और आसान बनाएं। इस लेख में हम उन 10 कौशल के बारे में बात करेंगे, जिन्हें हर बच्चे को सीखना चाहिए।
1. खाना बनाना सीखना
आजकल कई स्कूलों में खाना बनाने की क्लासेस होती हैं, क्योंकि यह एक बहुत काम आने वाली लाइफ स्किल (जीवन कौशल) है। आज के समय में ज्यादातर परिवार एकल हो गए हैं और माता-पिता दोनों ही काम करने वाले होते हैं। ऐसे में बच्चों को कुछ आसान और सुरक्षित तरीकों से खाना बनाना सिखाना जरूरी हो जाता है।
प्रीस्कूलर बच्चे (3 से 5 साल) मापने के आम तरीके सीख सकते हैं, जैसे टोस्ट पर बटर, जैम या चीज लगाना, उबला हुआ अंडा छीलना आदि। वहीं उनसे थोड़े बड़े बच्चे (6 से 8 साल) की उम्र के बच्चों को बिना आग वाले किचन उपकरण, जैसे माइक्रोवेव या टोस्टर, का इस्तेमाल सिखाया जा सकता है। इससे वो खुद के लिए कुछ आसान खाना बना सकते हैं। आजकल के उपकरण खाना बनाना आसान और सुरक्षित बना देते हैं। लेकिन शुरुआत में माता-पिता को बच्चों को गाइड और सुपरवाइज करना चाहिए। उन्हें सही तरीके से बर्तन, जैसे मिटेंस, नैपकिन और चिमटे का इस्तेमाल करना सिखाएं ताकि वो खाना बनाते समय सुरक्षित रहें।
प्री-टीन बच्चों (9 से 12 साल) को चाकू का सही इस्तेमाल, जैसे काटना, कद्दूकस करना और स्लाइसिंग, सिखाया जा सकता है। हालांकि, इस दौरान भी ध्यान रखना जरूरी है कि वो जल्दबाजी न करें। उन्हें ध्यान से काम करने और खाना बनाने के मजे लेने के लिए प्रोत्साहित करें। इस तरह बच्चे न सिर्फ खाना बनाना सीखेंगे, बल्कि आत्मनिर्भर बनकर अपना आत्मविश्वास भी बढ़ा पाएंगे।
2. कपड़े धोने की आदत
10 साल से बड़े बच्चे घर के कपड़े धोने के काम में आपकी मदद कर सकते हैं। उन्हें वॉशिंग मशीन चलाने के आम तरीके सिखाए जा सकते हैं। छोटे बच्चे भी कपड़े धोने में आसान काम करके मदद कर सकते हैं, जैसे गंदे कपड़े इकठ्ठा करना, सफेद और रंगीन कपड़ों को अलग करना, या छोटे तौलिए और नैपकिन को फोल्ड करना। घर में कपड़े धोने की जिम्मेदारी देना बच्चों को अनुशासन और आत्मनिर्भरता सिखाने का बेहतरीन तरीका है। इसे जितना जल्दी शुरू करें, उतना बेहतर होता है।
3. खुद से उठने की आदत
हम अक्सर बच्चों के लिए अलार्म घड़ी बन जाते हैं। उनकी हर गलती के लिए बैकअप योजना भी हम ही तैयार रखते हैं। लेकिन क्या ये आदतें उनके विकास में मदद कर रही हैं, या उन्हें आत्मनिर्भर बनने से रोक रही हैं? बच्चों को अपना अलार्म सेट करना और खुद समय पर उठने की आदत डालना जरूरी है। यह शुरुआत में थोड़ा मुश्किल जरूर लग सकता है, लेकिन धीरे-धीरे बच्चे इसमें माहिर हो जाएंगे। अगर वो देर से उठते हैं, तो उन्हें स्कूल तक छोड़ने या उनकी लेटलतीफी के लिए बहाने बनाने से बचें।
उन्हें उनके फैसलों के नतीजों का सामना करने दें। इससे उन्हें समय की अहमियत और अनुशासन का महत्व समझने में मदद मिलेगी, जो एक स्वस्थ और बेहतर जीवन के लिए जरूरी है।
4. अपना सामान खुद पैक करना
छोटी उम्र से ही बच्चों को माता-पिता उनका स्कूल बैग, स्लीप ओवर बैग या पिकनिक बैग पैक करके देते हैं। हर चीज माता-पिता ही तय करते हैं और बैग में रखते हैं। यह आदत बच्चों को आत्मनिर्भर बनने से रोकती है। बड़े होने पर भी उन्हें यह नहीं पता चलता कि किस मौके पर क्या सामान ले जाना चाहिए।
इससे उन्हें ऑफिस फाइल्स या जरूरी दस्तावेज जैसे सामान भूलने की आदत लग सकती है, जो बाद में परेशानी खड़ी कर सकती है। अगर बचपन से ही बैग पैक करने की आदत डाली जाए, तो बच्चे जिम्मेदार और आत्मनिर्भर बनते हैं।
5. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना
अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को अकेले बस या मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट से भेजने को तैयार नहीं होते। उन्हें डर होता है कि बच्चे रास्ता भटक सकते हैं। लेकिन बच्चों को एक उम्र के बाद पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करना सीखना ही चाहिए। इसके लिए बच्चों को नक्शे पढ़ना, साइन बोर्ड समझना, लैंडमार्क पहचानना और जरूरत पड़ने पर अजनबियों से सुरक्षित तरीके से बात करना सिखाना जरूरी है। ये सभी बातें सीखने के लिए उन्हें अपने दम पर यानी की अकेले सफर करने में मदद करेंगी।
आप अपने बच्चे को 10 साल की उम्र से धीरे-धीरे इन बातों का प्रशिक्षण देना शुरू कर सकते हैं। पहले कुछ दिनों तक उनके साथ सफर करें ताकि वो सहज महसूस करें। याद रखें, बच्चों को नई चीजें सीखने में थोड़ा समय लगता है। लेकिन सही मार्गदर्शन और समय के साथ वो इसे अच्छे से सीख जाएंगे। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह भी जरूरी है कि वो जो भी सिखाया गया है, उसे सही से याद रखें।
6. रेस्टोरेंट में सही व्यवहार करना
बच्चों को 11-14 साल की उम्र में रेस्टोरेंट एटिकेट्स यानी रेस्टोरेंट में कैसा बर्ताव करें, सिखाना शुरू कर देना चाहिए। यह जरूरी है कि बच्चे खाना ऑर्डर करना सीखें और इसे विनम्रता और सम्मान के साथ करें। उन्हें मेन्यू पढ़ने और अपनी पसंद का ऑर्डर देने के लिए प्रोत्साहित करें। अगर बच्चे को किसी चीज से एलर्जी है, तो यह भी सिखाएं कि ऑर्डर देने से पहले सामग्री के बारे में पूछें। इसके अलावा, बच्चों को ‘प्लीज’ और ‘थैंक यू’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना सिखाएं ताकि वो दूसरों के प्रति विनम्र और समझदार बनें।
कभी-कभी उन्हें बजट का महत्व समझाने के लिए एक तय राशि दें और उसी के अंदर अपनी पसंद का खाना चुनने को कहें। इसके साथ-साथ उन्हें यह भी सिखाएं कि खाना खाते समय गंदगी न करें और दूसरों को परेशान न करें। यह स्किल बड़े होने पर उनके व्यक्तित्व और परवरिश को उजागर करेगी, खासकर जब वो दोस्तों या सहकर्मियों के साथ बाहर खाना खाएंगे।
सुरक्षा के लिए, बच्चों को यह भी सिखाएं कि सार्वजनिक जगहों पर सतर्क रहें, व्यक्तिगत बातें न करें और गोपनीय जानकारी साझा करने से बचें। साथ ही अपने सामान जैसे जैकेट, वॉलेट और बैग का ध्यान रखना भी जरूरी है।
7. किसी और जीव की देखभाल
बच्चों को पालतू जानवर बहुत पसंद आते हैं, लेकिन वो जिम्मेदारी निभाने के लिए सही उम्र में होना जरूरी है। छोटे बच्चों (टॉडलर्स) के लिए मछलियां या पक्षी सबसे बेहतर पालतू जानवर हैं। जबकि 7 साल या उससे बड़े बच्चे बिल्लियों और कुत्तों की देखभाल करना सीख सकते हैं।
इससे पहले बच्चों को घर में लगे पौधों की देखभाल यानी गार्डनिंग सिखाकर जिम्मेदारी का एहसास दिलाया जा सकता है। पालतू जानवर को घर लाने से पहले यह जांच लें कि बच्चे को उनसे एलर्जी तो नहीं है। अगर जानवरों के संपर्क में आने पर छींक आना, नाक बहना, खांसी, आंखों में खुजली या पानी आना जैसे लक्षण दिखें, तो डॉक्टर से सलाह लें और एलर्जी की पुष्टि करें।
अगर बच्चा पालतू जानवरों के लिए एलर्जिक है, तो देखभाल सिखाने के लिए कोई और तरीका अपनाएं, जैसे पौधों की देखभाल। छोटे भाई-बहनों का ध्यान रखना या उनकी देखभाल बिना किसी बड़े की निगरानी के, 12 साल की उम्र से पहले नहीं सिखानी चाहिए।
8. पैसे संभालना
अक्सर बच्चों को घर के पैसे संभालने का मौका नहीं दिया जाता। यह एक गलत धारणा है कि उन्हें पैसे संभालना तभी सिखाना चाहिए जब वो कमाने लगें। बच्चे अपनी पॉकेट मनी का सही इस्तेमाल करना बचपन से ही सीख सकते हैं। उन्हें सिखाएं कि कोई भी चीज खरीदने से पहले दाम की तुलना कैसे करें। साथ ही, कुछ बुनियादी बैंकिंग जैसे पैसे बचाना और सेविंग अकाउंट के बारे में बताना भी फायदेमंद हो सकता है। इससे बच्चों को पैसे की कीमत और सही उपयोग समझने में मदद मिलेगी।
9. घर के सामान की खरीदारी सीखना
माता-पिता आमतौर पर बच्चों को ग्रोसरी की दुकान में अकेले जाने की अनुमति नहीं देते, क्योंकि उन्हें डर होता है कि बच्चे रास्ता भटक सकते हैं। लेकिन आजकल की दुकानों में हर चीज व्यवस्थित और लेबल की हुई होती है और सीसीटीवी कैमरों से निगरानी भी की जाती है।
9 से 10 साल की उम्र बच्चों को ग्रोसरी खरीदने की ट्रेनिंग देने का सही समय है। शुरुआत में उन्हें अकेले भेजने के बजाय, माता-पिता उनके साथ जाएं और उन्हें अलग-अलग सेक्शन से सामान लाने के लिए कहें। इस दौरान उन्हें समझाएं और जरूरत पड़ने पर सुझाव दें।
धीरे-धीरे जब बच्चे आत्मविश्वास महसूस करने लगें, तो उन्हें दुकान में छोटी-छोटी जिम्मेदारियां दें। 14 से 16 साल की उम्र तक अगर बच्चों को सही तरीके से ग्रोसरी खरीदना सिखाया जाए, तो वो इसे पूरी तरह से अकेले कर सकते हैं।
10. घूमने जाने की योजना बनाना
बाहर जाने की योजना बनाना एक चुनौतीपूर्ण लेकिन मजेदार जिम्मेदारी है, खासकर टीनएजर्स के लिए। इसमें जगह चुनना, पिकअप-ड्रॉप का इंतजाम करना, जरूरी सामान खरीदना और सबकी सुरक्षा का ध्यान रखना जैसे काम शामिल होते हैं।
शुरुआत में बच्चों से बेहतर आउटिंग की उम्मीद न करें। वो गलतियां करेंगे, लेकिन इनसे सीखेंगे। बच्चों को यह करने दें और उनकी मेहनत और योजना बनाने की कोशिश की तारीफ करें। जब बच्चे खुद से एक सफल आउटिंग की योजना बनाते हैं, तो यह न सिर्फ उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है, बल्कि उनकी योजना बनाने की क्षमता और जिम्मेदारी निभाने का गुण भी बढ़ाता है।
पालन-पोषण आसान काम नहीं है, लेकिन यह एक सफर है जिसे माता-पिता और बच्चे मिलकर तय करते हैं। बच्चों को गलतियां करने का मौका देना जरूरी है, ताकि वे उनसे सीख सकें। इन जीवन कौशल (लाइफ स्किल) के जरिए वे न सिर्फ बेहतर इंसान बनते हैं, बल्कि अपने जीवन के हर पहलू को समझने में भी सक्षम होते हैं।