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यह कहानी एक ऐसे बत्तख के बारे में हैं, जिसकी बदसूरती की वजह से कोई भी उससे प्यार नहीं करता था। यहाँ तक की उसकी माँ और सगे भाई-बहन भी उसका मजाक बनाते थे। वह लोग उसके साथ खेलना भी पसंद नहीं करते थे। कोई भी अनजान व्यक्ति उससे दोस्ती नहीं करना चाहता था। इस कहानी बताया गया है कि कैसे आगे उसने संघर्षों के साथ अपना जीवन जीया और अंत में उसके साथ अच्छा होता है या नहीं, ये आगे की कहानी पढ़कर आप जरूर जान पाएंगे।
गर्मियों की एक शाम में एक बत्तख ने झील के पेड़ के पास अपने अंडे देने के लिए बेहतर जगह ढूंढ ली थी। बत्तख ने वहां पांच अंडे दिए, लेकिन उन पांचों अंडों में से एक अंडा बहुत अलग था। उस अंडे को देखकर बत्तख परेशान हो गई और अंडों से बच्चों के बाहर निकलने का इंतजार करने लगी।
फिर एक दिन उसके चार अंडों से छोटे-छोटे चार बच्चे बाहर निकले। बत्तख के वो चारों बच्चे बहुत ही प्यारे और सुंदर थे। उसका पांचवा अंडा अभी तक फूटा नहीं था और बच्चा बाहर नहीं निकला था। ऐसे में बत्तख ने बोला कि उसका पांचवा बच्चा बाकी सबसे प्यारा और सुंदर होगा, इसलिए बाहर आने के लिए इतना वक्त लगा रहा है।
एक सुबह फिर वह पांचवा अंडा फूटा और उसमें से एक बहुत ही बदसूरत बच्चा बाहर आया। ये बच्चा अपने बाकी चार भाई-बहनों से बड़ा और खराब दिखता था।
अपने बदसूरत बच्चे को देखकर बत्तख बहुत निराश हो गई। उसे ये उम्मीद हुई कि आने वाले समय में ये बच्चा भी अपने भाई-बहनों की तरह सुंदर हो जाएगा।
जब काफी दिन निकल गए और वो बत्तख का बच्चा अभी भी बदसूरत ही दिख रहा था। उसकी बदसूरती की वजह से उसके अपने सगे भाई-बहन खूब मजाक उड़ाते थे और उसके साथ खेलते भी नहीं थे। ऐसे में वह बदसूरत बच्चा बहुत दुखी रहने लगा था।
एक दिन वो बदसूरत बच्चा झील के पास घूम रहा था, तभी उसने अपनी परछाई झील में देखी और सोचने लगा कि अगर वो घर छोड़कर कहीं दूर जंगल में चला जाए तो उसके घरवाले बहुत खुश होंगे। ऐसा सोचते-सोचते वह घने जंगल की ओर बढ़ गया। सर्दी का मौसम आ गया और चारों तरफ बर्फ ही बर्फ बिछ गई थी। अब बदसूरत बत्तख के बच्चे को ठंड लगने लगी और उसके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं था।
कुछ ही समय में बसंत का मौसम आ गया और वह बदसूरत बत्तख का बच्चा ही काफी बड़ा हो गया था। जब एक दिन वह नदी के किनारे घूम रहा था, तो वहां उसे एक खूबसूरत राजहंसिनी दिखी और उसे उससे प्यार हो गया। लेकिन उसके मन में ख्याल आया कि वह इतना बदसूरत है, ये राजहंसिनी उससे कभी बात नहीं करेगी। शर्म की वजह से उसने अपना सिर झुका लिया और वहां से जाने लगा।
वहां से जाते समय उसने नदी के पानी में अपनी परछाई देखी और आश्चर्यचकित हो गया। उसने देखा कि वह काफी बड़ा हो गया है और एक सुंदर राजहंस में बदल गया है। अब उसे अहसास हुआ कि वह हंस था इसलिए वह अपने भाई-बहनों से बिलकुल अलग था। वह अब बदसूरत बत्तख से राजहंस बन गया था, फिर क्या उसने हंसिनी से शादी कर ली और दोनों साथ में खुशहाल जीवन बिताने लगे।
बदसूरत बत्तख की इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि सही वक्त आने पर हर कोई अपनी पहचान बना सकता है और अपने आप को जान सकता है। तभी वह अपनी काबिलियत को परख कर अपने दुखों को कम कर सकता है।
बदसूरत बत्तख की यह कहानी नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती है। जिसमें यह जानने को मिलता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका रंग रूप कैसा है आप जहां के लिए बने हैं वहां आपको भाग्य पहुंचा देता है।
इस कहानी की नैतिकता ये है कि एक बदसूरत बत्तख के जीवन में कितना संघर्ष रहता है, क्योंकि न तो उसके घरवाले उसे पसंद करते हैं और न ही बाहर के लोग उससे बात करते थे। लेकिन इसके बावजूद भी उसने अपना जीवन जिया और आगे चलकर उसे बेहतर जिंदगी बिताने को भी मिला।
बत्तख और हंस दोनों ही सफेद होते हैं, देखने में लगभग एक जैसे होते हैं पर फर्क यह है कि हंस की गर्दन और पंख थोड़े बड़े होते हैं और उनका शरीर की बत्तख से थोड़ा बड़ा दिखता है।
हमें कभी भी किसी व्यक्ति को उसकी बाहरी खूबसूरती से आंकना नहीं चाहिए क्योंकि हम नहीं जानते बाहर से सुंदर दिखने वाला व्यक्ति का दिल अंदर से कितना काला हो और कभी-कभी बदसूरत दिखने वाला व्यक्ति दिल के साफ हो और आपकी मदद के लिए हमेशा आगे आए।
इस कहानी का निष्कर्ष ये है कि कभी भी किसी को उसकी शक्ल और सूरत या फिर बाहरी सुंदरता से नहीं आंकना चाहिए। हमें हर किसी से एक जैसा ही व्यवहार करना चाहिए, चाहे वो खूबसूरत हो या बदसूरत। किसी के चेहरे पर नहीं लिखा होता है कि वह व्यक्ति कैसा है, इसलिए व्यक्ति की सूरत नहीं बल्कि सीरत से उसकी पहचान करें।
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