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हम सभी जानते हैं, कि आमतौर पर बच्चों को हैंडल करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन कुछ खास बच्चे कुछ खास स्थितियों में दूसरे बच्चों से अधिक रिएक्ट करते हैं। वे पेरेंट्स की सख्ती या चीजें उनके अनुसार न होने को लेकर काफी सेंसिटिव यानी भावनात्मक तौर पर संवेदनशील होते हैं। इसके कारण उनमें बहुत अधिक प्रतिक्रिया दिख सकती है, जिसमें बहुत अधिक रोने से लेकर किसी बातचीत से पूरी तरह से अलग रहना शामिल है। जब बच्चा बहुत अधिक सेंसिटिव होता है, तब कुछ ऐसा ही महसूस होता है।
एक अत्यधिक सेंसिटिव बच्चे या हाइपर सेंसिटिव बच्चे के व्यवहार में उसकी सेंसिटिविटी के संकेत स्पष्ट दिखते हैं। ऐसे बच्चे कभी भी भनात्मक तौर पर टूट सकते हैं और इसके कारण वे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। बच्चे के व्यवहार में दिखने वाले इन संकेतों पर बच्चे का ध्यान खींचना सबसे बेहतर होता है, ताकि उसे भी इसकी जानकारी हो सके।
जब वे रोना शुरू करते हैं, तो वे लंबे समय तक रोते ही रहते हैं। फिर चाहे वे एक बार में जोर से रोएं या पूरा दिन धीमे धीमे (व्हीनिंग) रोते रहें।
जब किसी स्थिति को लेकर वे असंतुष्ट होते हैं, तब कुछ खास चीजों के साथ या फिर अपने साथ ही व्यस्त रहने की कोशिश करते हैं और लगातार बेचैन होकर इधर-उधर घूमते रहते हैं।
अगर उनकी मांगे पूरी नहीं होती हैं, तो वे उसके लिए गिड़गिड़ाना शुरू कर देते हैं, जिसके कारण आपके आसपास नाटकीय व्यवहार दिख सकता है।
उनके साथ कोई भी बातचीत करने पर आपको एक चिड़चिड़ा जवाब मिलता है या बिना किसी कारण ही कोई अटपटा उत्तर मिलता है। छोटी-छोटी बातों से भी वे अपसेट हो सकते हैं।
बच्चा आपसे सारे संपर्क बंद कर देता है। वह बात नहीं करता है, कोई जवाब नहीं देता है, आपकी आंखों में नहीं देखता है और वह किसी भी चीज में कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाता है और अलग-थलग रहता है।
ऐसी कुछ खास तकनीकें हैं, जिनके माध्यम से इसका निर्धारण किया जा सकता है, कि आपका बच्चा भावनात्मक रूप से कितना सेंसिटिव है। नीचे दिए गए कुछ सवालों के जवाब हां और ना में देकर आपको यह पता करने में मदद मिल सकती है, कि आपका बच्चा कितना सेंसिटिव हो सकता है।
जब कोई व्यक्ति परिवार से दुखी है या किसी अन्य स्थिति में है, तो क्या आपका बच्चा अंतर को पहचानने या उसे बता पाने में सक्षम है?
अगर आपके ज्यादातर जवाब पुरजोर तरीके से ‘हां’ या ‘ना’ हैं, तो आमतौर पर ये इस बात का संकेत देते हैं, कि आपका बच्चा भावनात्मक स्पेक्ट्रम के बिल्कुल छोर पर है। यह ‘बेहद संवेदनशील’ से लेकर ‘किसी की भावनाओं के प्रति बिल्कुल अनजान’ होने तक कुछ भी हो सकता है। ज्यादातर बच्चों में इन दोनों का एक संतुलन होता है। यहां पर हमारा लक्ष्य उनके एहसास की उपेक्षा करना नहीं है, बल्कि हमें यह समझना है, कि किसी स्थिति को पहले से ही कैसे ठीक किया जा सकता है और स्थिति हाथ से बाहर जाने से पहले सही संकेतों को कैसे पहचाना जा सकता है।
बच्चों में इमोशनल डिफिकल्टी ऐसी चीज है, जिसे हर पैरेंट को हैंडल करने की जरूरत होती है, क्योंकि बच्चे बढ़ रहे होते हैं और अपने आसपास के दुनिया को समझ रहे होते हैं। लेकिन इमोशनल डिस्टरबेंस या भावनात्मक अशांति की स्थिति में बच्चे को सामान्य तरीके से चीजों को प्रोसेस करने में कठिनाई आती है, जिससे उसका व्यवहार कुछ ऐसा हो जाता है, जो कि उसके लिए और दूसरों के लिए भी परेशानी का कारण बन सकता है।
आमतौर पर भावनात्मक अशांति तब होती है, जब एक बच्चा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सही तरीका नहीं समझ पाता है। ऐसे दौर आमतौर पर कुछ दिनों तक रहते हैं, लेकिन ये एक महीने या उससे अधिक समय तक भी रह सकते हैं। उचित मदद न मिलने पर बच्चा लंबे समय तक भावनात्मक रूप से परेशान रह सकता है, जिससे उसे चाइल्डहुड इमोशनल डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है।
यहां पर ऐसे 10 तरीके दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप इमोशनली डिस्टर्ब बच्चे के साथ डील कर सकते हैं:
बचाव ही सबसे अच्छा इलाज है। अपने बच्चे पर नजर रखें और उन संकेतों पर ध्यान दें, जिनसे यह पता चलता हो, कि उसे अपनी भावनाओं को कंट्रोल करने में कठिनाई महसूस होती है। बच्चों को उनके व्यवहार के प्रति जागरूक करने से उन्हें यह समझने में मदद मिल सकती है, कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है।
बच्चे को इमोशनल एंग्जायटी के एक फेज से बाहर आने में समय लगता है। वह गुस्सा दिखाएगा और शैतानियां भी करेगा। इसके लिए उसे समय और सुरक्षित जगह दें। धीरे-धीरे वह थक जाएगा और वास्तविकता की ओर वापस आ जाएगा और चीजों को समझने लगेगा।
ऐसे कुछ खास पैटर्न और परिस्थितियां हो सकती हैं, जो आपके बच्चे को भावनात्मक ट्रबल की स्थिति में डाल सकती हैं। उससे बात करें और पता करने की कोशिश करें, कि इसका क्या कारण हो सकता है। बच्चे की पूरी दिनचर्या पर नजर डालें और समझने की कोशिश करें कि वह आपको क्या बताने में कंफर्टेबल महसूस नहीं कर रहा है।
बच्चे को उसके ट्रिगर्स के बारे में जागरूक करना एक चीज है, लेकिन उससे निपटने के तरीके बताना और उसके मन में शांति पैदा करना कहीं बेहतर प्रयास है। इसके लिए बच्चे को अपनी भावनाओं को पेंटिंग के द्वारा या ड्राइंग के द्वारा व्यक्त करने के लिए कहा जा सकता है या फिर वह आपको कहानी के माध्यम से भी अपनी भावनाएं बता सकता है या फिर अगर उसका मन करे तो आप को गले लगा सकता है और जी भर कर रो सकता है।
दुनिया भर के वैज्ञानिक और थेरेपिस्ट डायरी लिखने या जर्नलिंग करने यानी अपने विचार और भावनाएं लिखने के मानसिक फायदों के बारे में बात करते हैं। बचपन से ही अपने बच्चे में ऐसी आदतें डालना सेंसिटिव बच्चे के पालन पोषण का एक अच्छा तरीका है। इससे बच्चे को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का एक माध्यम मिलता है। चीजों को ट्रैक करने के लिए अपना खुद का एक जर्नल भी मेंटेन करें।
कई पेरेंट्स यह सोचते हैं, कि भावुक बच्चे को अनुशासन में रखना ही सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन बच्चे को जो बात परेशान कर रही है, उसे उसके दिमाग से निकालने के लिए किसी दूसरी एक्टिविटी की तरफ उसका ध्यान आकर्षित करना सबसे अच्छा तरीका है। इससे बच्चे को स्वतंत्र रूप से तनाव से बचने में मदद मिलती है।
बच्चे को आपके साथ और आपके आसपास होने पर सुरक्षित महसूस होना चाहिए। बच्चे की भड़ास निकलने के बाद उससे बात करें और उसे बताएं, कि वह जो सोच रहा है वह गलत नहीं है। खुद को और दूसरों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना वह इन चीजों को बेहतर ढंग से किस प्रकार हैंडल कर सकता है, इसके बारे में उसे सही सलाह दें।
बहुत सारे विकल्प होने पर बच्चे को कन्फ्यूजन हो सकता है और उसे हर चीज पाने की इच्छा हो सकती है। जैसे कि, वह मीठे में क्या खाना पसंद करेगा, यह पूछने के बजाय उसे आइसक्रीम या चॉकलेट में से किसी एक को चुनने को कहें।
योजना बेहतरीन तरीके से काम करती है। अगर आपको पता है, कि किसी चीज से आपका बच्चा गुस्सा दिखा सकता है, तो उसे सबसे अंत में बाहर लाएं, ताकि बच्चे को उस पर व्यक्त करने के लिए कम समय मिले या फिर उसका सारा ध्यान आपकी इच्छा के अनुसार काम करने में चला जाए।
ज्यादातर समय सबसे अच्छा यही होता है, कि बच्चों को उनकी इच्छा के अनुसार काम करने दिया जाए। उन्हें रोने दें और चिल्लाने दें, शर्त यही है, कि वे खुद को नुकसान न पहुंचाएं। जब वे ऐसा करते हुए थक जाएं, तो उन्हें गले से लगाएं और उन्हें बताएं कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं, यह आप समझ सकते हैं।
भावनात्मक रूप से सेंसिटिव बच्चे को इलाज की जरूरत केवल तभी होती है, जब डॉक्टर को ऐसा महसूस हो और वह भी तब, जब बच्चे में व्यवहार से संबंधित कुछ खास लक्षण देखे जाएं। इसके लिए इलाज के कई विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे:
सेशन बच्चे के साथ-साथ पेरेंट्स के लिए भी हो सकते हैं। बच्चा अपनी भावनाओं को समझना और मैनेज करना सीख जाता है।
कुछ खास गतिविधियां और प्रोग्राम बच्चों में सामाजिक और इंटरपर्सनल स्किल डेवलप करने में मदद कर सकते हैं, जो आगे चलकर उनके व्यवहार को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
कुछ बच्चे इसी प्रकार जन्म लेते हैं और उन्हें विशेष ध्यान और शिक्षा की जरूरत होती है, ताकि वे जीवन में आगे बढ़ सकें और खुद को संभाल सकें। ऐसी शैक्षणिक सुविधाएं और हॉस्पिटल बच्चों और पेरेंट्स दोनों को ही जीवन की वास्तविकता को समझने में और भविष्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं।
बच्चों की भावनात्मक संवेदनशीलता को समझना पेरेंटिंग का एक हिस्सा होता है। उनका व्यवहार उनके स्वभाव का एक हिस्सा है। बच्चे को उनकी भावनाएं व्यक्त करने के लिए कभी भी नकारात्मक रूप से बात न करें। उन्हें अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए केवल एक सही माध्यम और सही तरीके की जरूरत है, न कि चुप रहने की। हर बच्चा अपने आप में अनोखा होता है और पेरेंटिंग अपने बच्चे के लिए सबसे बेहतर चीज तलाशने की एक प्रक्रिया है। बच्चे के साथ मिलकर काम करें और उसे यह बताएं, कि चाहे जो भी हो जाए, आप उसे प्यार करते हैं। इससे आपके बीच का रिश्ता बेहद मजबूत और अटूट हो जाता है।
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