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हाल ही में हुई रिसर्च से पता चलता है कि कैसे फैट और प्रोटीन की तुलना में कार्बोहाइड्रेट आपके वेट गेन पर प्रभाव डालता है। इसकी वजह से कई महिलाएं लो कार्ब या किटोजेनिक डाइट लेना शुरू कर देती हैं जो एक्स्ट्राप्रेगनेंसी वेट कम करने में मदद करता है। इसके अलावा, लो कार्ब ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े जोखिम बहुत कम हैं, लेकिन प्रेगनेंसी वेट कम करने के लिए एक्सट्रीम डाइट लेने का कोई मतलब नहीं बनता है। इस दौरान आपके लिए हर समय खतरा बना रहता है, इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह से सोच विचार कर लें। यह लेख आपको कार्बोहाइड्रेट से जुड़े महत्व और जोखिमों को समझने में मदद करेगा, साथ ही इसमें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान लो कार्ब डाइट लेने से क्या परेशानियां हो सकती हैं, यह भी बताया गया है।
नर्सिंग करते समय आपको कितनी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट की जरुरत होती है
आपको डाइट में रोजाना लगभग 210 ग्राम कार्बोहाइड्रेट लेने के लिए कहा जाता है, आपके बच्चे की दूध की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह पर्याप्त होगा। नर्सिंग कराने वाली महिलाएं जो रेगुलर एक्सरसाइज करती हैं उन्हें ज्यादा कार्ब्स से लाभ होगा। यह बहुत जरुरी है कि हेल्दी सोर्स से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त करें, जैसे कि साबुत अनाज, ब्राउन राइस, ओटमील आदि और साथ ही रिफाइंड शुगर, पॉलिश गेन्स जैसे सफेद चावल, रोटी, बेक्ड आइटम और सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करने से बचें। आप फलियां, नट्स, डेयरी प्रोडक्ट के जरिए हेल्दी कार्ब्स भी प्राप्त कर सकती हैं।
ब्रेस्टफीडिंग के समय लो कार्ब डाइट लेने के जोखिम
लो कार्ब डाइट लेने की वजह से आपको कुछ जोखिमों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे ब्रेस्टफीडिंग पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है और यह कुछ इस प्रकार हैं:
1. मिल्क सप्लाई कम होने लगती है
अपने डाइट में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को कम करने से आपका वेट तेजी से घटने लगता है, जो ब्रेस्टफीडिंग के दौरान बिलकुल भी अच्छा नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके दूध की सप्लाई कार्ब्स द्वारा प्रदान की जाने वाली एनर्जी पर निर्भर करती है और इससे आपके बच्चे को मिलने वाले पोषण पर भी असर पड़ता है। लो कार्ब डाइट का पालन करने से ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली माओं को प्रोटीन और फैट से कार्ब्स लेने की सलाह दी जाती है।
2. दूध की गुणवत्ता में कमी
स्ट्रिक्ट डाइट लेने का मतलब है कि आपके शरीर से फैट बहुत तेजी से कम होने लगता है, जो टॉक्सिन रिलीज करते हैं और यह ब्रेस्ट मिल्क में स्टोर हो जाते हैं। यह विशेष रूप से किटोजेनिक डाइट के संबंध में है, जिसमें शरीर द्वारा कीटोन प्रोडूस होते हैं। हालांकि अभी इस बात का पता नही चला है कि ब्रेस्टमिल्क सप्लाई में प्रवेश करके बच्चे क नुकसान पहुँचा सकते हैं या नहीं, लेकिन फिर भी ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कीटो डाइट से बचना ज्यादा बेहतर है।
3. आर्टिफिशियल स्वीटनर का उपयोग
लो कार्ब डाइट लेने का मतलब है कि सभी कार्ब-आधारित स्वीटनर जैसे चीनी और शहद का बिलकुल भी सेवन न करना। इसकी वजह से जो लोग डाइट का पालन करते हैं वो आर्टिफिशियल स्वीटनर का उपयोग ज्यादा करने लगते हैं। हालांकि भले ही इसके ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े कोई ज्ञात जोखिम न हों, लेकिन आपको नेचुरल स्वीटनर का ही उपयोग करना चाहिए।
ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं के लिए टिप्स जो लो कार्ब डाइट का पालन करना चाहती हैं
यहाँ आपको ऐसी कई टिप्स दी गई हैं जो आपको हेल्दी रखने के साथ लो कार्ब डाइट में भी आपकी मिल्क सप्लाई को बनाए रखने में मदद करेगी।
- ब्रेस्टफीडिंग पीरियड के दौरान हर दिन लगभग पचास से साठ ग्राम कार्ब्स का सेवन करें।
- हाइड्रेटेड रहने के लिए दिन में कम से कम आठ से दस गिलास पानी पिएं।
- अचानक से डाइट का पालन करना शुरू न करें, बल्कि धीरे-धीरे शुरू करें और धीरे-धीरे और फिर अपनी इस गति को बढ़ाएं।
- इस बात का खयाल रखें कि हर दिन 1800 कैलोरी आपको प्राप्त करना ही है।
- यदि आपको मिल्क प्रोडक्शन या सप्लाई में कोई कमी दिखती है, तो डाइट करना बंद कर दें।
- जब आपका बच्चा तीन से छह महीने का हो जाए तभी डाइट करना शुरू करें।
- बच्चे के मल में होने वाले कोई भी बदलाव देखने के लिए बच्चे के डायपर को चेक करती रहें।
- अपने बच्चे के वजन बढ़ने की प्रक्रिया पर नजर रखें।
भले ही अपने डाइट में कार्बोहाइड्रेट हटाने से आपका प्रेगनेंसी वेट कम हो जाए, लेकिन बहुत कम कार्ब्स लेने से ब्रेस्ट मिल्क सप्लाई पर इसका बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए आपका बैलेंस में चलना बहुत जरुरी है। यह बहुत जरुरी है कि अपने कार्ब्स सोर्स को ट्रैक करें। कम मात्रा में अनहेल्दी कार्ब्स खाने से आपको वजन कम करने में मदद तो मिलेगी, लेकिन यह आगे चलकर आपके लिए बड़ी समस्या का कारण बन सकता है। इसलिए बेहतर है कि आप एक प्लान बैलेंस डाइट का पालन करें जिसमें सब्जियां, होल ग्रेन्स, फलियां, नट्स, ऑयल और लीन मीट शामिल करें ।
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