गर्भावस्था

कार्डियोटोकोग्राफी (सीटीजी) – यह क्या है और आपको इसकी जरूरत क्यों है

प्रेगनेंसी की तीसरी तिमाही आपके लिए के मिक्स्ड इमोशन से भरी हो सकती है। एक तरह जहाँ आप बच्चे के आने से एक्साइटेड होंगी दूसरी तरह बच्चे की हेल्थ को लेकर चिंतित भी हो होंगी, आपको अजीब अजीब से खयाल आने लगेंगे जैसे अगर आखिरी समय में कुछ गलत हो गया तो? क्या सारी चीजें प्लान के अनुसार हो पाएंगी? ऐसे में कार्डियोटोकोग्राफी एक ऐसी तकनीक है जो आपके डर को कुछ हद तक दूर करने में मदद कर सकती है।

कार्डियोटोकोग्राफी क्या है?

कार्डियोटोकोग्राफी एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग गर्भाशय में होने वाले संकुचन पर नजर रखने के साथ-साथ फीटस के दिल की धड़कन चेक करने के लिए उपयोग किया जाता है। आप इसके नाम से ही इसके काम का पता लगा सकती हैं – कार्डियो (दिल) टोको (गर्भाशय में होने वाला संकुचन) और ग्राफ (रिकॉर्डिंग)। गर्भावस्था के दौरान सीटीजी टेस्ट आमतौर पर तीसरे तिमाही के दौरान और साथ ही लेबर के समय किया जाता है। इस टेस्ट का सही उपयोग करने से यह बच्चे में ऑक्सीजन की कमी के कारण होने वाली मृत्यु से रोकने में मदद करता है।

गर्भवती महिलाओं को सीटीजी की आवश्यकता क्यों होती है

सीटीजी टेस्ट कराना जरूरी नहीं होता खासकर जिन प्रेगनेंसी में रिस्क ज्यादा नहीं होता है। हालांकि, कुछ ऐसी मेडिकल कंडीशन हैं जहाँ बच्चे को खतरा हो सकता है, जैसे:

  • प्रेगनेंसी में ब्लड प्रेशर हाई रहने के वजह से
  • जल्दी लेबर के लिए दी गई दवाइयों की वजह से
  • संकुचन के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए एपिड्यूरल दिए जाने के वजह से
  • लेबर के दौरान नए खून के बहने की वजह से
  • यदि डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्या है
  • आपके एमनियोटिक फ्लूइड की मात्रा काफी कम है
  • आपके गर्भ में जुड़वां बच्चे पल रहे हों
  • प्लेसेंटा में कमी पाए जाने के कारण बच्चे तक रक्त पर्याप्त मात्रा न पहुंचने की वजह से
  • बच्चे का मूवमेंट पहले जैसा न होना या स्लो मूवमेंट होने की वजह से
  • बच्चे का असामान्य पोजीशन में होने की वजह से
  • यदि आपका तापमान बढ़ा हुआ है
  • बच्चे का एमनियोटिक फ्लूइड में मेकोनियम (बच्चे का पहला मल) पास होने की वजह से। हालांकि यह अपने आप में खतरनाक नहीं होता है, लेकिन अगर बच्चा इसे इन्हेल कर लेता है तो खतरनाक हो सकता है।

कार्डियोटोकोग्राफी में क्या होता है?

  1. इंटरनल मॉनिटरिंग: इस मॉनिटरिंग में डिवाइस को योनि के डाला जाता है, जिसका मतलब है कि सर्विक्स में थोड़ा फैलाव की जरूरत होती है। डिवाइस (जो एक इलेक्ट्रोड है) इसे फीटस के स्कैल्प के करीब प्लेस किया जाता है, ताकि रीडिंग की जा सके। इस तरह की मॉनिटरिंग ज्यादा कॉमन नहीं होती है और इसका उपयोग तब किया जाता है जब एक्सटर्नल मॉनिटरिंग में भी बच्चे की हार्टबीट का पता नहीं चल पा रहा होता है। हालांकि,  एक्सटर्नल मॉनिटरिंग की तुलना में यह ज्यादा सटीक रिजल्ट देता है और इसलिए कॉम्प्लिकेटेड मामलों में यह तरीका ज्यादा पसंद किया जाता है।
  2. एक्सटर्नल मॉनिटरिंग: यह टेस्टिंग का बहुत कॉमन तरीका है, जिसमें डिवाइस को माँ के पेट पर रखा जाता है। यह एक इलास्टिक बेल्ट से बनती है जिसमें दो राउंड प्लेट होती हैं, जो क्रिकेट बॉल के साइज की होती है। एक प्लेट अल्ट्रासाउंड फ्रीक्वन्सी से बच्चे की हार्टबीट का पता लगाती है। वहीं दूसरी प्लेट का उपयोग, संकुचन के साथ माँ के पेट पर पड़ने वाले दबाव को रिकॉर्ड करती है। बेल्ट एक डिवाइस से जुड़ी होती है जिसका उपयोग उन सिग्नल को पढ़ने के लिए किया जाता है जो प्लेट के जरिए प्राप्त हो रही होती हैं। कभी-कभी एक स्ट्रोंग सिग्नल प्राप्त करने के लिए जेल का भी उपयोग किया जा सकता है। डिवाइस के जरिए मिलने वाली रीडिंग एक तेज बीटिंग साउंड होती है। कुछ गर्भवती महिलाओं को इसकी आवाज से परेशानी हो सकती है और उन्हें डिस्ट्रक्ट कर सकती है, इस डिवाइस में वॉल्यूम नॉब होती है जिसके जरिए आप इसके साउंड को कम करवा सकती हैं। लेबर में जाने से पहले, माँ को मशीन पर एक बटन दबाने के लिए कहा जाएगा, जब भी वो बच्चे के मूव को महसूस करेंगी।

कार्डियोटोकोग्राफी (सीटीजी) कैसे काम करता है?

सीटीजी साउंड वेव आपके बच्चे की हार्टबीट का पता लगाने और उसे मॉनिटर करने में मदद करता है। अल्ट्रासाउंड के रूप में साउंडवेव का उपयोग कई मेडिकल उद्देश्यों से किया जाता है, जैसे सॉलिड गालस्टोन  या ब्लड क्लॉट का पता लगाने के लिए किया जाता है। जब अल्ट्रासाउंड को एक दिशा में टारगेट किया जाता है, तो यह फ्लूइड और सॉफ्ट टिश्यू की मदद से फ्रीली मूव करता है। हालांकि, यह किसी भी सॉलिड ऑब्जेक्ट से टकराता है तो यह वापस बाउंस करता है और यह चीज  रिकॉर्डिंग डिवाइस पर दिखाई देती है। इसकी मदद से  डॉक्टर यह पता लगा पाते हैं कि शरीर के अंदर क्या है। इसके अलावा, यह डेंसिटी के बीच भी अंतर कर सकता है (मतलब यह हड्डियों, मांसपेशियों और शरीर के अन्य भागों के बीच अंतर को बता सकता है)। सीटीजी, अल्ट्रासाउंड में डॉपलर की मदद से मूविंग ऑब्जेक्ट को भी स्टडी किया जा सकता है। यह बच्चे की हार्टबीट का काफी हद तक सही पता लगाने में सक्षम होता है।

कार्डियोटोकोग्राफी की मदद से आप क्या देख सकती हैं?

बच्चे का हार्ट रेट एवरेज से ज्यादा होता है, हर मिनट में उसकी हार्टबीट 110-160 के बीच होती है। इस रेंज से बहुत ज्यादा होना या कम होना बच्चे में किसी हेल्थ प्रॉब्लम की ओर इशारा करता है। सीटीजी, संकुचन के दौरान होने वाली किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद करता है। इस समय हार्टबीट का एक सेट पैटर्न होता है और इसमें किसी विशेष प्रकार का बदलाव होना खतरे का संकेत हो सकता है। यदि आपके डॉक्टर को समस्या गंभीर लगती है, जो आपकी प्रेगनेंसी के लिए खतरा बन सकती है, तो डॉक्टर ऐसे हालातों में इमरजेंसी सी सेक्शन या असिस्टेड डिलीवरी कर सकते हैं।

सीटीजी से होने वाले कॉम्प्लिकेशन या साइड इफेक्ट्स

सीटीजी के दो मुख्य फायदे हैं जिसकी वजह से यह प्रसिद्ध है, नॉन आयनाइजिंग गुण और इसकी नॉन-इनवेसिव नेचर। एक्स रे की तरह अल्ट्रासाउंड में आयनाइजिंग रेडिएशन शरीर के अंदर नहीं जाती हैं। इसका मतलब है कि यह आप और आपके बच्चे के लिए कोई  जेनेटिक डैमेज का खतरा पैदा नहीं करता है। नॉन-इनवेसिव का मतलब है कि इस प्रक्रिया के दौरान शरीर के अंदर किसी इंस्ट्रुमेंट को नहीं डाला जाता है।

हालांकि, सीटीजी प्रक्रिया में कुछ कमियां भी पाई जाती हैं जैसे:

  • सीटीजी मशीन के कुछ मॉडल लेबर के दौरान खराब मोबिलिटी प्रदान करते हैं, जिससे असुविधा हो सकती है।
  • सीटीजी का बहुत ज्यादा उपयोग करने के ऐसी कंडीशन पैदा हो सकती हैं जहाँ सिजेरियन या असिस्टेड डिलीवरी की जरूरत न होते हुए भी इसे करना पड़ता है।
  • एचआईवी, हरपीज और हेपेटाइटिस बी जैसे संक्रामक बीमारी वाली गर्भवती महिलाएं से बच्चे को भी इन्फेक्शन होने का खतरा होता है। ऐसे मामलों में, इंटरनल मॉनिटरिंग करने के मना किया जाता है।
  • रीडिंग बिलकुल सटीक नहीं होती है और यहाँ तक ​​कि ये मृत फीटस को जिंदा भी दिखा सकता है। यह तब होता है जब सेंसर माँ के अब्डोमिनल एओर्टा की प्लस को कैपचर कर लेता है जिसे बच्चे की हार्टबीट समझा जाता है।

सीटीजी की रीडिंग कैसे करते हैं?

प्रेगनेंसी में सीटीजी मॉनिटरिंग के दौरान, किसी भी समस्या का पता लगाने के लिए बच्चे की हार्टबीट की  लगातार जाँच की जाती है। मशीन के साथ एक प्रिंटर होता है, जिससे आप बच्चे की हार्ट रेट को खुद देख सकती हैं। नीचे आपको एक टेबल दी गई हैं आपको इसके रेंज के बारे में बताता है।

रीडिंग हार्ट बीट प्रति मिनट
सेफ 110-160
वार्निंग 100-109 या 161-180
थ्रेटनिंग 100 से कम और 180 से ज्यादा

 

हालांकि, इन रीडिंग के आधार पर हमेशा इमरजेंसी सिजेरियन या असिस्टेड डिलीवरी करने के लिए नहीं कहा जाता है। आपका डॉक्टर आमतौर पर फीटस के एक बायोफिजिकल प्रोफाइल के साथ फॉलो अप लेते रहेंगे।

इस बात पर ध्यान दें कि अगर पहली बार में रीडिंग सटीक नहीं आती है, तो चिंतित न हों। इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे कि आपका बच्चा टेस्ट के दौरान सो रहा होता है। ऐसे मामलों में या तो बच्चे को जगाया जाता है या फिर उसके जागने का इंतजार किया जाता है और उसके टेस्ट किया जाता है। हालांकि, कुछ ऐसे भी मामले हो सकते हैं जो आपके डॉक्टर को अलर्ट करते हैं कि आपकी प्रेगनेंसी में कुछ समस्या आ रह है। ऐसे हालातों में इमरजेंसी प्रक्रिया की जा सकती है ताकि आपके बच्चे की जान बचाई जा सके।

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डॉप्लर सोनोग्राफी

समर नक़वी

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