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जब बच्चा रोता रहता है और खाने से बिलकुल मना कर देता है तो इससे आपका दिल टूट जाता है, हम समझते हैं ये। पेरेंट्स के लिए बच्चे के अत्यधिक रोने का कारण जान पाना कठिन है पर वह कुछ भी खाने से मना कर रहा है तो इसका अर्थ है कि उसके मुंह में कोई समस्या है। बच्चे को गले में टॉन्सिल होने के कारण कुछ भी खाने में दिक्कत हो सकती हैं जिसे मेडिकल भाषा में टॉन्सिलाइटिस कहते हैं और यह समस्या बड़ों को भी हो सकती हैं। बच्चों को टॉन्सिलाइटिस होने के बारे में पूरी जानकारी और आप इसके लिए क्या कर सकती हैं, इन सब चीजों के बारे में यहाँ बताया गया है, जानने के लिए पूरा पढ़ें।
हमारे लिम्फैटिक सिस्टम में टॉन्सिल के कुछ सेट होते हैं जिससे शरीर को शुरूआती समय पर सुरक्षा मिलती है। यह गले के ऊपरी व दाएं डोर्सल की तरफ मौजूद है जो दो पिंक ओवल शेप के टिश्यू के पैड्स होते हैं और यह खाने के साथ आने वाले किसी भी पैथोजन या बैक्टीरिया को फिल्टर करते हैं। समस्या यह है कि इसमें भी बहुत जल्दी इन्फेक्शन हो जाता है और जब हानिकारक बैक्टीरिया का प्रभाव पड़ता है तो इसमें सूजन आ जाती है जिसे टॉन्सिलाइटिस की समस्या कहते हैं।
आपको यह जानकार आश्चचर्य होगा कि बच्चों में टॉन्सिलाइटिस होना बहुत आम है और लगभग सभी बच्चों को यह समस्या कई बार होती है। हाँ बिलकुल, टॉन्सिलाइटिस की समस्या बड़ों में भी हो जाती है।
कई समस्याओं से बच्चों में टॉन्सिलाइटिस हो सकता है। यहाँ पर बच्चों में टॉन्सिलाइटिस होने के कुछ कारण निम्नलिखित हैं, आइए जानें;
टॉन्सिलाइटिस मुख्य रूप से जुकाम के कारण होता है क्योंकि इसमें कई वायरस शामिल हैं, जैसे इन्फुएन्जा, अडेनोवायरस, कोरोना वायरस और राइनोवायरस।
ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया एक सबसे आम बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जिसके परिणामस्वरूप बच्चों में टॉन्सिलाइटिस की समस्या हो सकती है। यह बैक्टीरिया उन लोगों के संपर्क में आने से फैलता है जिन्हें पहले से ही यह इन्फेक्शन हुआ है और यह स्किन में म्यूकस या इन्फेक्टेड जगह पर छूने से भी फैलता है।
ऐसे कई बैक्टीरिया हैं जिससे बच्चे को टॉन्सिलाइटिस हो सकता है, जैसे क्लैमाइडिया निमोनिया, स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया, स्टेफाइलोकोकस औरेअस और माइकोप्लाज्मा निमोनिया, फासोबैक्टीरियम, पर्टुसिस, सायफिलिस और गोनोरिया बैक्टीरिया।
बच्चों में टॉन्सिलाइटिस होने का समय विभिन्न स्वास्थ्य व वातावरण के कारकों पर निर्भर होता है। पहले यह बच्चे के स्वास्थ्य, उम्र, डायग्नोसिस का समय, पैथोजन के प्रकार और इन्फेक्शन के प्रभाव पर निर्भर करता है। ऐसा माना जाता है कि माइल्ड टॉन्सिलाइटिस लगभग 2 से 4 दिनों तक रहता है और टॉन्सिलाइटिस के गंभीर मामले लगभग 2 सप्ताह तक रहते हैं।
बच्चों में वायरल टॉन्सिलाइटिस के लक्षण बड़ों की तरह ही होते हैं जिनके बारे में यहाँ बताया गया है, आइए जानें;
चूंकि टॉन्सिल गले में लगते हैं जिससे बहुत ज्यादा दर्द होता है। बच्चा यह दर्द सहन नहीं कर पाता है और कुछ भी खाने या निगलने से मना करता है।
गले में बैक्टीरियल इन्फेक्शन होने से कंपाउंड के माध्यम से दुर्गंध आती है जिसके परिणामस्वरुप शरीर की एक्टिविटी में बदलाव होता है और बच्चे की सांसों से बदबू आने लगती है।
बुखार में तापमान बढ़ने से ही पता लगता है कि बच्चे के शरीर में कोई दिक्कत है। यदि पैथोजन्स लिफ्टिक सिस्टम को प्रभावित करते हैं तो बच्चे को बुखार आने लगता है जिसका स्पष्ट रूप से यही मतलब है कि उसे बैक्टीरियल इन्फेक्शन या टॉन्सिलाइटिस हुआ है।
यदि बच्चे ने अभी तक बोलना शुरू नहीं किया है तो उसमें टॉन्सिलाइटिस होने का सबसे सही तरीका है कि आप नोटिस करें कि बच्चे में कितनी बार और कितनी मात्रा में लार टपकती है या ड्रूल आता है। बच्चा कुछ भी निगलने से मना करेगा जिसकी वजह से उसके मुंह में बहुत ज्यादा बलगम उत्पन्न होगा और इससे बच्चे को बहुत ज्यादा लार आएगी जो टॉन्सिलाइटिस का एक संकेत है।
जब स्ट्रेप्टोकोकस ग्रुप ए बैक्टीरिया से शरीर में प्रभाव पड़ता है तो इन्फेक्शन होने के कारण गर्दन, पीठ, पेट और चेहरे पर लाल रंग के रैशेज होने लगते हैं और इसे आमतौर पर स्कारलेट बुखार के रूप में जाना जाता है। इसमें जीभ पर छोटे-छोटे घाव होते हैं जो दिखने में स्ट्रॉबेरी की तरह लगते हैं और बाद में इसका रंग गाढ़ा लाल हो जाता है और साथ ही सफेद रंग के पैचेज होते हैं।
यदि बहुत ज्यादा दर्द होने से बच्चे को बार-बार खांसी आती है तो यह भी टॉन्सिलाइटिस का ही संकेत है।
टॉन्सिल का दर्द कान तक पहुँच सकता है और इससे बहुत तेज दर्द होता है जिसकी वजह से इसमें खिंचाव भी महसूस होने लगता है। यदि बच्चे को कान में खिंचाव महसूस हो रहा है और सूजन होने के साथ बच्चा लगातार रो रहा है तो उसे टॉन्सिलाइटिस की समस्या हो सकती है।
यदि गर्दन के आसपास और जबड़े के नीचे सूजन होने लगती है तो यह टॉन्सिलाइटिस का एक लक्षण है और इन नोड्स में अलग-अलग साइज के फोड़े होते हैं।
यदि टॉन्सिल्स की समस्या का उपचार नहीं किया गया या इसे बहुत समय तक नजरअंदाज किया गया तो बच्चों में निम्नलिखित कॉम्प्लिकेशन हो सकती हैं, आइए जानें;
बच्चों में गंभीर रूप से टॉन्सिलाइटिस होने पर उनकी नींद का पैटर्न खराब हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दिन में नींद आती है। टॉन्सिल में सूजन आने से सांस लेने की नली में बाधा आती है और इससे सांस लेने में कठिनाई होती है। जब बच्चा सोते समय गहरी सांस लेता है तो इसे स्लीप एपनिया कहते हैं और इसमें बच्चा सोते समय सांस लेने के प्रोसेस में 5 से 30 बार रुकता है।
इन्फेक्टेड टॉन्सिल्स में चिपचिपा फ्लूइड निकलता है जिसमें वाइट ब्लड सेल्स, सेल डेब्रिस और मृत सेल होते हैं और इसे पस भी कहा जाता है। फोड़ा तब होता है जब पस टॉन्सिल के सॉफ्ट टिश्यू के बीच की जगह पर भर जाता है और इससे खून में लीकेज होता है और अन्य कई कॉम्प्लीकेशंस पैदा हो जाती हैं। फोड़े को सुखना संभव है पर यहाँ तक पहुँचना कठिन है इसलिए शारीरिक रूप से नहीं किया जा सकता है।
जब टॉन्सिलिटिस स्ट्रेप्टोकोकस ग्रुप ए बैक्टीरिया के कारण होता है तो बैक्टीरिया स्ट्रेन होने के परिणामस्वरूप किडनी में सूजन हो सकती है और इसे एक्यूट ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस के रूप में जाना जाता है। ग्लोमेरुली किडनी में पाए जाने वाले छोटे फिल्टरिंग स्क्रीन हैं जो खून से टॉक्सिक और वेस्ट पदार्थों को फिल्टर करते हैं। स्कार टिश्यू तब बनता है जब किडनी में सूजन होने से ग्लोमेरुली में इन्फेक्शन फैल जाता है और इससे खून में टॉक्सिक कम होने की क्षमता प्रभावित होती है जिस समस्या को एजीएन कहते हैं।
रूमेटिक बुखार के लक्षण जोड़ों में सूजन, रैश, पेट में दर्द, वजन कम होना और थकान हैं। यह तब होता है जब इम्यून सिस्टम किसी भी इन्फेक्शन के लिए देरी से प्रतिक्रिया देता है और इन मामलों में स्ट्रेप्टोकोकस ग्रुप ए बैक्टीरिया से टॉन्सिलाइटिस होता है। गंभीर मामलों में मेडिकल इमरजेंसी की जरूरत पड़ती है क्योंकि यह सूजन बच्चे के दिल के वॉल्व तक पहुँच जाती है। एंटीइंफ्लेमटरी व एंटीबायोटिक दवा से काफी प्रभावी होती है और इससे ऐसी समस्याओं में तुरंत आराम मिलता है।
बच्चों में टॉन्सिलाइटिस का डायग्नोसिस करने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट करने की सलाह देते हैं, आइए जानें;
डॉक्टर गले में देखकर भी टॉन्सिलाइटिस का पता करते हैं। डॉक्टर्स को इसका पता चल जाता है और वे आसानी से बता सकते हैं कि बच्चे को टॉन्सिलाइटिस हुआ है।
टॉन्सिलाइटिस के कारण गर्दन के लिम्फ नोड्स में सूजन होती है। डॉक्टर गले के पिछले हिस्से की त्वचा को छू कर और महसूस करते हैं और जबड़े के नीचे सूजन और टॉन्सिलाइटिस के अन्य लक्षणों का डायग्नोसिस करते हैं।
टॉन्सिलाइटिस होने पर बच्चे के गले के साथ-साथ कान और नाक में प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह इन्फेक्शन फैलने वाला होता है। इसका उल्टा भी सच है क्योंकि बैक्टीरियल इन्फेक्शन कान और नाक से गले में होता है और इसके परिणामस्वरूप टॉन्सिलाइटिस की समस्या होती है। इन जैसी सेकंडरी इन्फेक्शन की जांच से भी डॉक्टर टॉन्सिलाइटिस का पता लगाते हैं।
डॉक्टर कॉटन में टॉन्सिल से कई प्रकार के फ्लूइड सैंपल लेकर उसे लैब में टॉन्सिलाइटिस का पता करने के लिए भेजते हैं। लैब में टेस्ट के बाद पता लगता है कि वास्तव में टॉन्सिलाइटिस है या सिर्फ गले में खराश की समस्या ही है। गले में सूजन से बच्चों में टॉन्सिलाइटिस होने का वास्तविक कारण पता चलता है।
डॉक्टर बच्चे के खून की कई बार जांच कराने की सलाह दे सकते हैं ताकि वे खून में लिम्फोसाइट्स का पता कर सकें। खून के सैंपल में बहुत ज्यादा लिम्फोसाइट्स होने से टॉन्सिलाइटिस होने की संभावना अधिक होती है।
इस समस्या का डायग्नोसिस करने के बाद डॉक्टर बच्चे को कुछ दवा प्रिस्क्राइब करते हैं या सिर्फ घर में उसकी देखभाल करने की सलाह देते हैं। यह पूरी तरह से इन्फेक्शन की गंभीरता पर निर्भर करता है।
माइल्ड टॉन्सिलाइटिस, विशेषकर वायरल टॉन्सिलाइटिस के लिए ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है और यह उचित न्यूट्रिशन व घर में आराम करने से अपने आप ठीक हो जाता है। बैक्टीरियल टॉन्सिलाइटिस के माले में ट्रीटमेंट के लिए एंटीबायोटिक्स की जरूरत पड़ती है। गंभीर रूप से टॉन्सिलाइटिस होने के पर टौंसिलेक्टॉमी की सलाह दी जाती है जो एक सर्जिकल प्रोसीजर है और इसे गले के पीछे से टॉन्सिल को निकालने के लिए डिजाइन किया गया है। इस दौरान बच्चे को सिर्फ फ्लूइड दिया जाता है ताकि टॉन्सिलाइटिस होने की वजह से उसे डिहाइड्रेशन न हो।
यदि बच्चे को लगातार गंभीर रूप से टॉन्सिलाइटिस होता है और यह अपने आप ठीक नहीं होता है व इसके परिणामस्वरूप बच्चा स्लीप एपनिया, टॉन्सिल में ब्लीडिंग होने जैसी समस्याओं से ग्रसित हो जाता है तो टॉन्सिल्लेक्टोमी कराने की सलाह दी जाती है। यदि बच्चे को निम्नलिखित समस्याएं होती हैं तो डॉक्टर टॉन्सिल्लेक्टोमी की सलाह दे सकते हैं। वे समस्याएं कौन सी हैं, आइए जानें;
लगातार कान और साइनस का इन्फेक्शन होना जिसमें क्रोनिक टॉन्सिलाइटिस शामिल नहीं है और डॉक्टर इसमें सर्जिकल प्रोसीजर भी कर सकते हैं जिससे बच्चे के एडेनॉयड को निकाल देते हैं। जब टॉन्सिल में सूजन होने के साथ एडेनॉयड में सूजन होने लगती है तो स्लीप एपनिया होता है जिसमें सोते समय सांस लेने में दिक्कत होती है और कभी-कभी बंद भी हो जाती है जिससे बच्चे के सोने के पैटर्न और सांस लेने के पैटर्न में बाधा आती है।
बच्चे को बैक्टीरियल और वायरल टॉन्सिलाइटिस इन्फेक्शन से बचाने के लिए कई तरीके हैं। छोटे बच्चों में टॉन्सिल के इन्फेक्शन के लिए निम्नलिखित रेमेडीज का उपयोग करें, आइए जानें;
टॉन्सिलाइटिस के परिणामस्वरूप डिहाइड्रेशन हो जाता है क्योंकि बच्चों को निगलने में दिक्कत होती है और वे कुछ भी खाने या पीने से मना कर देता हैं। इस बात का ध्यान रखें कि आप बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पानी पिछले और उसे पूरा दिन डिहाइड्रेटेड रखें। आप बच्चे को कोल्ड ड्रिंक्स या आइस प्रॉप्स भी दे सकती हैं ताकि उसके गले को आराम मिले और यहाँ तक कि आप उसे पानी में शहद मिलाकर भी पिलाएं। यदि बच्चा एक साल से छोटा है तो उसे शहद न दें।
गर्दन या गले के दर्द को ठीक करने के लिए इसके आस-पास वॉर्म कंप्रेस का उपयोग करें और इससे काफी हद तक आराम मिलेगा। आप इसके लिए वॉर्म बोतल का उपयोग भी कर सकती हैं।
यदि बच्चा 3 से 6 महीने का है तो आप उसे टॉन्सिलाइटिस बढ़ने से रोकने के लिए अस्टमीनोफेन और आइबूप्रोफेन दे सकती हैं। यह सलाह दी जाती है कि 3 महीने के बच्चे को कोई भी दवा देने से पहले डॉक्टर से बात जरूर करें। एस्पिरिन देने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इससे रेये’स सिंड्रोम होने की संभावना है जो एक गंभीर व दुर्लभ समस्या है।
बच्चे के आस-पास स्मोकिंग न करें या घर में टोबैको का उपयोग न करें क्योंकि हवा में प्रदूषक होने से बच्चे के गले में इरिटेशन हो सकती है और उसे सांस लेने हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप बहुत ज्यादा दर्द होता है।
घर में ह्युमिडिफायर लगाने से हवा में नमी आती है जिससे बच्चे को रात में सोते समय आराम मिलता है। ह्युमिडिफायर में रोजाना पानी के यूनिट्स बदलने और इसे इंस्ट्रक्शन के अनुसार साफ करने से बैक्टीरिया बढ़ने व फैलने से रोकने में मदद मिलती है।
यदि बच्चा काफी बड़ा है और वह आपकी बातों को समझ सकता है तो आप उसे नमक के पानी से गरारा करना सिखाएं। एक कटोरे में आधा चम्मच सेंधा नमक या पिंक सॉल्ट और गुनगुना पानी डालकर अच्छी तरह से मिलाएं। अब आप बच्चे को गरारा करके दिखाएं और इस बात का ध्यान रखें कि जब बच्चा गरारा करे तो वह मुंह का पानी बाहर की ओर फेंक दे।
यदि बच्चा इंस्ट्रक्शंस समझ सकता है और कहने पर निगल नहीं पा रहा है तो आप उसे हार्ड कैंडी या थ्रोट लोंजेंज दें। इससे सलाइवा बढ़ता है जो गल के अलग-अलग भाग को साफ करता है।
यदि बच्चे की टौंसिलेक्टोमी कराइ जाती है तो उसे फ्लूइड देने की जरूरत पड़ती है, जैसे वॉर्म ब्रॉथ, पानी, एप्पल जूस, आइस पोप्स और जेलाटीन। कार्बोनेटेड जूस और बेवरेजेस में एसिड बहुत ज्यादा होता है जिसे देने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इससे गले में खराश और दर्द होने लगता है। यदि न्यूट्रिशन की बात की जाए तो हल्का खाना देने की सलाह दी जाती है जिससे गले में आसानी हो सके। सर्जिकल प्रोसीजर के बाद डॉक्टर कुछ प्रकार के खाद्य पदार्थ देने की सलाह देते हैं, जैसे व्हीट क्रीम, मैश किए हुए आलू, बटर के साथ पास्ता, पुडिंग, गुनगुना सूप, दही, स्क्रैम्बल किए हुए अंडे, फल का कस्टर्ड और जेलाटीन। ऐसे खाद्य पदार्थों का उपयोग करने से बचें जिससे गले में खराश हो सकती है, जैसे सर्जरी के बाद पहले दो सप्ताह में चिप्स, कच्ची सब्जियां क्योंकि इस समय में बच्चे को ब्लीडिंग होने की संभावना ज्यादा रहती है। आप बच्चे को लगातार खाना खिलाएं और कोई भी मील स्किप न करें या इसे कम भी न करें। यदि बच्चा निगलने में कठिनाई होने की वजह से नहीं खाना चाहता है तो आप उसे गले में आराम के लिए दर्द की दवा दें, जैसे फ्लूइड में हार्ड कैंडी और कोआक्स ताकि बच्चे को डिहाइड्रेशन से बचाया जा सके।
यदि बच्चे का इम्यून सिस्टम कमजोर है तो उसे घर में या बाहर जल्दी ही टॉन्सिलाइटिस हो सकता है। इस समस्या से बचने का एक बेहतरी तरीका यही है कि घर में किसी की भी प्लेट या कप से शेयर करके कुछ भी न खाएं और पिएं। बच्चे को बार-बार हाथ धोने के लिए प्रेरित करें और उसे हाइजीन बनाए रखने में मदद करें। बच्चे को उचित मात्रा में न्यूट्रिशन दें, फ्रेश हवा में रखें और धूप में ले जाएं क्योंकि इससे इम्युनिटी मजबूत होगी और टॉन्सिलाइटिस से बचाव होगा। फल और सब्जियां बेहतरीन एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं और यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में मदद करते हैं इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे को रोजाना फल और सब्जियां जरूर खिलाएं। यदि बच्चा ज्यादा खाता-पीता नहीं है तो आप उसके लिए जूस और स्मूदी भी बना सकती हैं।
जहाँ घर वहाँ चिंता तो रहती है इसलिए आप इस बात का ध्यान रखें कि आप कमरे को बार-बार साफ करती रहें ताकि उसमें बैक्टीरिया न पैदा हो सकें और घर के आस-पास हाइजीन बनाए रखें। विशेषकर यदि आप एयर ह्युमिडिफायर का उपयोग कर रही हैं तो फिल्टर को लगातार साफ करना और बदलना न भूलें। यह रूल बना लें कि बच्चों को बीमार लोगों या टॉसिल से ग्रसित लोगों के संपर्क में न लाएं। वैसे यह करने से ज्यादा कहना आसान है पर आप अपने कमरे को नियमित रूप से साफ करें और उसमें झाड़ू लगाएं क्योंकि बच्चे का इम्यून सिस्टम अब भी विकसित हो रहा है जिसकी वजह से उसे विशेषकर किंडरगार्टेन या डे केयर में जल्दी इन्फेक्शन हो सकता है।
आप बच्चे के खिलौनों को स्क्रब से साफ करें क्योंकि इसमें भी बैक्टीरिया हो सकते हैं। यदि बच्चे को माइल्ड बैक्टीरियल टॉसिलाइटिस हुआ है तो आप उसे एंटीबायोटिक देना शुरू कर दें और इस बात का ध्यान रखें कि वह ज्यादा से ज्यादा पानी पिए व फ्रेश फल व सब्जियों के जूस पाई ताकि उसकी इम्युनिटी बढ़ सके और वह हाइड्रेटेड रह सके।
यद्यपि माइल्ड टॉन्सिलाइटिस उतना ज्यादा हानिकारक नहीं है पर यदि बैक्टीरियल टॉन्सिलाइटिस का उपचार नहीं किया गया तो यह समस्या गंभीर भी हो सकती है। यदि आपको मसल कठोर होने, 39.5 डिग्री सेल्सियस बुखार, गले में कठोरता होने और गला खराब होने के लक्षण दो या तीन दिन से ज्यादा दिखाई देते हैं तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें क्योंकि इससे गंभीर कॉम्प्लिकेशंस हो सकती हैं।
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