शिशुओं को उठाने और लिटाने के लिए स्लीप ट्रेनिंग मेथड

शिशुओं को उठाने और लिटाने के लिए स्लीप ट्रेनिंग मेथड

बेबीज के लिए रूटीन बनना कोई आसान काम नहीं है, बच्चों को अटेंशन चाहिए होती है और उन्हें हर वक्त किसी न किसी चीज की जरूरत पड़ती रहती है। बच्चों को जब भूख लगती है तो वह रोने लगते हैं, उन्हें कोई परेशानी होती है, तो रोते हैं, जब वो बीमार होते हैं तब रोते हैं। ऐसे में उन्हें बिना किसी प्रॉप (चूसनी) या माँ के शरीर की गर्माहट के बगैर सुलाना मुश्किल होता है। इस सब के साथ, कई माएं बच्चों को लंबे समय तक सुलाने के लिए सही टेक्निक के बारे में सर्च करती हैं। हमने यहाँ उन ही टेक्निक के बारे में आपको बताया गया है जिसे अंग्रेजी में पिक अप, पुट डाउन  या पीयूपीडी टेक्निक के रूप में जाना जाता है, यह मेथड 1 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए अच्छी तरह से काम करता है, तो आइए जानते हैं, इस मेथड के बारे में  अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं।

पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड क्या है? 

इस टेक्निक में आप अपने बच्चे को सोन के दौरान बिस्तर पर लिटा देती हैं, जबकि बच्चा अभी भी जाग रहा होता है। यदि बच्चा रो नहीं रहा है या अगर बच्चा लगातार कुछ बड़बड़ा रहा है, तो आप कमरे से बाहर जाने की कोशिश करें। फिर बाहर दरवाजे के पास जाकर चेक करें और सुने कि कहीं आपका जाना परेशान तो नहीं कर रहा है। यदि बच्चा लगातार परेशान हो रहा है, तो आप उसे पालने से वापस उठा कर अपनी गोद में ले लें और उसे एक या दो मिनट के लिए शांत कराएं। अब बच्चे को फिर से पालने में या बेड पर लिटा दें भले ही वो अभी भी जाग रहा हो। आप इस प्रोसेस को तब तक दोहराएं जब तक बच्चा गहरी नींद में न सो जाए।

किस उम्र में आप अपने बच्चे के लिए पिक अप और पुट डाउन मेथड अपना सकती हैं? 

इस टेक्निक का उपयोग उन बच्चों के लिए किया जाता है जो 3 महीने या उससे ज्यादा उम्र के होते हैं। यह एक वर्ष तक की आयु वाले बच्चों के लिए बेस्ट मेथड है और कभी-कभी ये उन बच्चों के लिए काम करता है जो थोड़े बड़े हैं। यह एक टेक्निक है कि जो बच्चे को रिलैक्स करने के बजाय उत्तेजित कर सकती है, इसलिए ऐसा जरूरी नहीं है कि यह हर बच्चे के लिए काम करे। 

पीयूपीडी मेथड शुरू करने से पहले कुछ टिप्स पर ध्यान दें

इससे पहले कि आप पिक अप और पुट डाउन  मेथड को अपनाएं, आपको यहाँ बताई गई कुछ टिप्स को ध्यान में रखना चाहिए, जो इस प्रकार हैं:

  • बच्चे का एक बेड टाइम रूटीन बनाएं, जिसका हर हाल में पालन करें। बच्चों का शरीर समय के साथ मैच्योर होता  जाता है, जिससे  हमारे लिए उनका स्लीप पैटर्न समझना आसान हो जाता है। उनके स्लीप पैटर्न समझते हुए आप उसी के हिसाब से आप उनका स्लीप रूटीन सेट कर सकती हैं।
  • बच्चे को शांत करने वाले सिग्नल दें और उन्हें बताएं कि यह रात है और यह उनके सोने का समय है। सोने से पहले 20-30 मिनट के लिए लोरी गाएं और सुनिश्चित करें कि कोई आवाजें आसपास से न आ रही हों, या तेज लाइट न जल रही हो, जो उनकी नींद को डिस्टर्ब करे।
  • इससे पहले बच्चा सो जाए आप उसे धीरे से बिस्तर पर लिटा दें, जब वो नींद में हो, लेकिन जाग रहा हो।

पीयूपीडी मेथड शुरू करने से पहले कुछ टिप्स पर ध्यान दें

पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड को कैसे लागू करें?

  1. ऐसे वाक्यांश का इस्तेमाल करें जो बच्चे को बताएं कि अब उनके सोने का समय है, जैसे यह सोने का समय है हम सोने चलते हैं! आप अक्सर बच्चे को शांत करने के लिए इसे एक सिग्नल के रूप में उपयोग कर सकती हैं, जब आप उसे सुलाने जा रही हों। हर बार उन्हें प्यार से बताएं की उन्हें सोना है।
  2. यदि बच्चा रोने लगता है तो उन्हें गोद में उठा लें और कई बार कहें कि यह उनके सोने का समय है, अब उन्हें सो जाना चाहिए।
  3. एक बार बच्चा रोना बंद कर देता है, लेकिन जाग रहा होता है, तो आप उसे वापस पालना में लिटा दें। अगर वो पालने में लेटने से पहले ही फिर से रोने शुरू कर दें, तब भी आप उसे पालने में लिटा दें।
  4. अगर बच्चा लगातार रोना जारी रखता है, तो बच्चे को एक बार फिर से उठाएं और वही वाक्यांशों फिर से दोहराएं और उन्हें शांत कराएं। ऐसा तब तक करें जब तक बच्चा शांत न जो जाए।
  5. एक बार जब बच्चा अच्छे से सेटल होने लगे, तो फिर उसे गोद में न उठाएं। अपने हाथ से उसकी छाती या पीठ थपथपाएं और धीरे उनसे कहें सो जा सो मेरा बच्चा सो जा
  6. अब आप बच्चे के कमरे से बाहर आ जाएं।
  7. अगर  वो आपके कमरा छोड़ने पर फिर से रोने लगता है, तो थोड़ा रुकें और ऑब्जर्व करें। यदि बच्चा बहुत जोर-जोर से रोने लगे, तो फिर वही स्टेप्स दोहराएं, जब तक कि बच्चा सो न जाए।

पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड को कैसे लागू करें?

पीयूपीडी टेक्निक को काम करने में कितना समय लेती है? 

बच्चे के स्लीप पैटर्न में चेंजेस देखने के लिए इस टेक्निक को 5 दिन तक का समय लग सकता है। सब कुछ बच्चे के स्वभाव और रेगुलर्टी पर निर्भर करता है जिसके साथ रूटीन का पालन किया जाता है।

बच्चे के लिए पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड के फायदे और नुकसान क्या हैं? 

पीयूपीडी टेक्निक मेथड में अपने कुछ फायदे और नुकसान हैं, जो आपको नीचे दिए गए हैं।

फायदे 

  • इस मेथड के साथ, पैरेंट बच्चे के साथ कमरे में रह सकते हैं जब तक कि बच्चा गहरी नींद में न सो जाएं।
  • पैरेंट बच्चे को कम्फर्ट देने के साथ उनके साथ खुद भी सोना सीखते हैं।
  • पीयूपीडी मेथड बहुत मुश्किल नहीं होता है, फिर भी इसमें दूसरे मेथड के विपरीत फीडिंग, मेथड शामिल होता है, जिसमें बच्चा अपने स्लीपिंग प्रॉप्स के बगैर लंबे समय तक सोना सीखता है।

नुकसान

  • पैरेंट और बच्चे के लिए यह मेथड शारीरिक रूप से बहुत थका देने वाला होता है।
  • यदि बच्चा रात को अच्छी तरह से नहीं सोता है, तो इस टेक्निक में आपको बच्चे के कई बार उठाना पड़ सकता है जिसमें बच्चा 2 घंटे से अधिक समय तक जाग सकता है। ऐसा लगातार बने रहने से आप बहुत थक सकती हैं।
  • कुछ बच्चों को उठाने से वो उत्तेजित होने लगता है, और सोचते हैं कि यह कोई खेल है। यह बच्चे और माँ दोनों के लिए हीबहुत फ्रस्ट्रेटिंग हो सकता है।
  • एक से अधिक बच्चे होने पर यह टेक्निक बहुत थका देने वाली हो जाती है क्योंकि आपको दूसरे बच्चे के साथ भी ऐसा करना पड़ता है।
  • पैरेंट कभी-कभी इस बात को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं कि वे बच्चे को कब और किस ड्यूरेशन में बारे में उठाएं।

बच्चे की उम्र के अनुसार पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड के टिप्स

पीयूपीडी मेथड को अलग-अलग आयु वर्ग के बच्चों के हिसाब से एडजस्ट किया जा सकता है, जो 4 महीने से 12 महीने तक बच्चों के लिए होता है।

4-6 महीने के बच्चों के लिए

यहाँ आप 4 महीने से 6 महीने के बच्चों के लिए कौन सा मेथड ट्राई कर सकती हैं।

  • पाँच मिनट तक बच्चे को पकड़े रहें। अगर आपको बच्चे में सोने के संकेत दिखाई नहीं देते हैं, तो बच्चे को पालने में लिटा दें। अगर वह रोने लगे तो उसे वापस अपनी गोद में उठा लें।
  • पिक-अप और पुट-डाउन के बीच आप बच्चे को थपथपाएं।
  • अगर आपके बार बार कहने पर भी बच्चा नहीं सो रहा है तो आप उसे दोबारा अपनी गोद में उठा लें।
  • जब बच्चा तेज रोने लगे तो उसे पालने में लिटा दें, इससे वह थक कर बच्चा नींद में आने लगेगा और खुद ही सेटल हो जाएगा, लेकिन ध्यान रहे लंबे समय तक रोने पर आप बच्चे को गोद में उठा लें।

6-8 महीने के बच्चों के लिए

अपने 6 से 8 महीने के बच्चे के लिए, आप नीचे बताई टिप्स का पालन करें, क्योंकि अब आपको बेबी स्पेस का खयाल रखना की आवश्यकता है।

  • अगर बच्चा रोने लगे तो आप उसे गोद में उठाने से इंकार करें। उसे अपना हाथ पकड़ने के लिए दें। यदि बच्चा बाहर आने के लिए रेस्पोंड करता है, तो उसे गोद में उठाएं।
  • इस उम्र में अपने बच्चे को बहुत जोर जोर से हिलाएं नहीं। उसे धीरे धीरे थपकी दें, उनके सामने यह मेरे बच्चे के सोने का समय है जैसे वाक्यांशों का उपयोग करें। बच्चे को शांत करने के बाद उनके जागते रहने में ही आप उसे पालने में लिटा दें।
  • जब बच्चे सेटल हो जाए, तो उसे शांत रखने के लिए उसे हलके से थपथपाएं। लेकिन पहले देख लें ऐसे करने से बच्चे को अच्छा लग रहा है या नहीं उसके हिसाब मैनेज करें।

बच्चे की उम्र के अनुसार पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड के टिप्स

8-12 महीने के बच्चों के लिए

8 महीने तक के बच्चों के लिए आपको नीचे बताए गए कुछ पॉइंट को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि इस उम्र में आपको बहुत ज्यादा बच्चे गोद में उठाने की जरूरत नहीं होती है।

  • जब बच्चा खुद से ऊपर उठने की कोशिश करता है, तो उसे बहुत आराम अपने पालने में लिटाएं, लेकिन आप अपने से दूर ही रखें।
  • ऊपर बताए गए वाक्यांशों को बच्चे के सामने रिपीट करें, क्योंकि अब तक बच्चा आपकी आवाज को पहचानना शुरू कर देगा।
  • उसे पालने में लिटा देने के बाद धीरे-धीरे कमरे से बाहर आ जाएं और देखें कि क्या ये मेथड आपके बच्चे के लिए काम करता है।

पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड के लिए कुछ एडिशनल टिप्स

पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड ठीक तरह से वर्क कर सके इसके लिए आपको पिक अप और पुट डाउन स्लीप मेथड के बारे में बताया गया है, तो आइए जानते हैं:

  • सुनिश्चित करें कि बच्चे के लिए शुरू से ही नैप टाइम और नाइट टाइम स्लीप का टाइमिंग सही रखें।
  • स्लीप रूटीन का स्ट्रिकली पालन करें साथ ही लोरी गाकर और लाइट डिम कर के बच्चे को सुलाने का प्रयास करें।
  • आप खुद भी अच्छी तरह से रेस्ट करें, क्योंकि आपको भी एनर्जी की जरूरत है।
  • बच्चे को ध्यान से नोटिस करें कि कब वो ऐसे ही रो रहा है और कब उसे सच में परेशानी हो रही है।
  • क्योंकि बच्चे को बार-बार उठाना और वापस पालने में लिटाना आपको थका सकता है, इसलिए आप अपने पार्टनर की हेल्प लें।

बताए गए स्लीपिंग मेथड ठीक तरह से काम कर सकें इसके लिए आपको स्ट्रिकली रूटीन का पालन करना होगा। यदि आपको लगता है कि आप अच्छी तरह से रूटीन फॉलो कर सकती हैं, तो बिना किसी तनाव और परेशानी के तो फिर काफी हद तक यह मेथड आपके बच्चे के लिए वर्क करेगा।

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