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ऑटिज्म बच्चे के विकास को प्रभावित करता है और अक्सर इसकी पहचान, बच्चे के 3 साल की उम्र तक पहुँचने के बाद होती है। यह किसी भी जाति या उम्र के बच्चे को हो सकता है, फिर चाहे उसका स्वास्थ्य कैसा भी हो या वह दुनिया के किसी भी कोने में रहता हो। ऑटिज्म किसी में भी भेदभाव नहीं करता है। हालांकि, थेरेपी के माध्यम से बच्चों में सुधार और फायदे देखे गए हैं, फिर भी इसे स्थाई माना जाता है। क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति है, जो कि व्यस्क होने के बाद भी रह जाती है।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) के कारण, बच्चे को सामाजिक रूप से इंटरैक्ट करने में परेशानी आती है, बात करने में दिक्कत आती है और वह एक ही बर्ताव को बार-बार दोहराते हुए नजर आता है। इन तीनों क्षेत्रों में लक्षणों की गंभीरता बड़े पैमाने पर अलग-अलग हो सकती है, लेकिन ये 3 प्रमुख फैक्टर ही ऑटिज्म के बारे में बताते हैं। कुछ बच्चों में ऐसी समस्याएं सौम्य रूप में होती हैं, लेकिन कुछ में इसके लक्षण काफी गंभीर दिखते हैं और इनके कारण बच्चे को बहुत कठिनाई होती है और वे ठीक तरह से बात नहीं कर पाते हैं एवं एक ही व्यवहार को बार-बार दोहराना उनके दैनिक जीवन में रुकावट डालता है।
औसतन हर 68 में से 1 बच्चे में ऑटिज्म पाया जाता है और लड़कियों की तुलना में यह लड़कों को अधिक प्रभावित करता है। ऐसा देखा गया है, कि ऑटिज्म लड़कियों की तुलना में लड़कों में 5 गुना अधिक आम होता है। अध्ययन दर्शाते हैं, कि जहाँ हर 42 से 1 लड़के में ऑटिज्म होता है, वहीं लड़कियों में हर 189 में से 1 लड़की इस स्थिति से ग्रस्त होती है।
शिशुओं में ऑटिज्म होने के कई कारण हो सकते हैं। हर व्यक्ति में ऑटिज्म होने का कारण भिन्न हो सकता है और इनकी गंभीरताएं भी अलग हो सकती हैं। शिशुओं में ऑटिज्म होने के तीन मुख्य कारण यहाँ दिए गए हैं:
विभिन्न क्रोमोसोम के अनगिनत जीन्स में से एक में भी, होने वाला एक म्यूटेशन भी, ऑटिज्म का कारण बन सकता है। विभिन्न जेनेटिक म्यूटेशन के साथ-साथ विशेष जेनेटिक म्यूटेशन भी ऑटिज्म का कारण हो सकता है।
कभी-कभी लोगों में ऑटिज्म से जुड़े जेनेटिक वंशानुगत म्यूटेशन के कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, क्योंकि ये निष्क्रिय प्रतीत होते हैं। वहीं, इन्फेक्शन या केमिकल जैसे पर्यावरण के कुछ खास तत्वों से संपर्क होने पर, ऑटिज्म अधिक एक्टिव होकर सामने आ सकता है। चूंकि, यह प्रतिक्रिया बिल्कुल उपेक्षित हो सकती है, वंशानुगत म्यूटेशन से ग्रस्त कुछ लोगों में पर्यावरण के ऐसे तत्वों से संपर्क होने के बाद भी ऑटिज्म के स्पष्ट संकेत नहीं दिखते हैं।
अगर एक शिशु न्यूरोलॉजिकल बीमारियों, ऑटोइम्यून बीमारियों, एक खराब मेटाबॉलिज्म या दिमाग के टिशूज के आवश्यकता से अधिक बढ़ने की स्थिति का शिकार है, तो बच्चे में अनायास ही ऑटिज्म के पैदा होने की संभावना हो सकती है। जो बच्चे डाउन सिंड्रोम और फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम से ग्रस्त होते हैं, उनमें भी ऑटिज्म हो सकता है।
हालांकि ऐसे कई फैक्टर होते हैं, जो शिशु के विकास को प्रभावित करके ऑटिज्म को पैदा कर सकते हैं, लेकिन इस बीमारी का गर्भावस्था के साथ हमेशा ही एक संबंध होता है। प्रीनेटल पीरियड के दौरान कुछ चीजें होती हैं, जिनके कारण आपके बच्चे को ऑटिज्म हो सकता है:
शिशु में ऑटिज्म के संकेत दिखने की शुरुआत, शुरुआती बचपन में ही हो सकती है और बच्चे की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, इन लक्षणों में भी तेजी आती जाती है। यहाँ पर शिशुओं में ऑटिज्म के कुछ शुरुआती लक्षण दिए गए हैं, जो कि जन्म से 1 साल की उम्र तक दिख सकते हैं:
स्क्रीनिंग की ऐसी कुछ प्रक्रियाएं होती हैं, जिनके इस्तेमाल से बच्चों में ऑटिज्म की पहचान की जाती है। यहाँ पर शिशुओं में ऑटिज्म का निदान करने के कुछ तरीके दिए गए हैं:
अगर ऑटिज्म आपके परिवार में पहले से ही मौजूद है, तो आपके बच्चे में इस स्थिति की संभावना अधिक हो सकती है। अगर आपके किसी बच्चे में ऑटिज्म की पहचान हो चुकी है, तो आपके दूसरे बच्चे में भी ऑटिज्म होने की संभावना 18% हो सकती है। हालांकि जुड़वां बच्चों के मामले में, अगर एक बच्चे को ऑटिज्म हुआ है, तो दूसरे बच्चे में भी इसके होने की संभावना 95% हो जाती है।
डॉक्टर बच्चे में ऑटिज्म का संकेत देने वाले व्यवहारिक लक्षणों की जांच करेंगे। एक शिशु में ऑटिज्म की पहचान कितनी जल्दी हो सकती है? एक स्टडी के अनुसार यह पाया गया है, कि जिन बच्चों को ऑटिज्म नहीं था और जिन बच्चों में आगे चलकर ऑटिज्म का पता चला, उन दोनों ही प्रकार के बच्चों के जीवन के पहले एक साल के दौरान, एक समान व्यवहार था। केवल 1 वर्ष के बाद ही बच्चों के व्यवहार में फर्क दिखने की शुरुआत हुई।
“मॉडर्न चेकलिस्ट फॉर ऑटिज्म इन टॉडलर्स” (एम-चैट) नामक एक प्रश्नावली है, जिसमें 23 सवाल होते हैं, जो कि ऑटिज्म के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं। इनमें व्यवहारिक समस्याएं, भाषा में देरी और व्यवहार में परिवर्तन शामिल है।
हालांकि, शोधकर्ता एक समाधान ढूंढने की कोशिशें कर रहे हैं, ताकि शुरुआती स्टेज में इस बीमारी से निपटा जा सके। लेकिन इसमें ज्यादा प्रोग्रेस नहीं देखी गई है और अब तक ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है। ऐसे कुछ तरीके हैं, जिनसे ऑटिज्म से ग्रस्त शिशुओं और बच्चों के पेरेंट्स इस समस्या को एक कंफर्टेबल और अंडरस्टैंडिंग तरीके से मैनेज कर सकते हैं।
अगर पेरेंट्स और डॉक्टर समेत देखभाल करने वाले सभी लोग अपनी-अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाते हैं, तो ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे को मैनेज करना थोड़ा आसान हो जाता है। यहाँ पर कुछ तरीके दिए गए हैं, जिनके द्वारा ऑटिज्म को मैनेज किया जा सकता है:
ऑटिज्म के बारे में जानना पेरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है। इससे, बच्चा जब चुनौतियां खड़ी कर दे, तो उन्हें सही तरीके से सुलझाने में आप सक्षम हो सकते हैं।
बच्चे की उम्र और उसकी स्थिति की गंभीरता के अनुसार, आपके डॉक्टर एक थेरेपी की सलाह दे सकते हैं, जो कि बच्चे के लिए सही होगी। अप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (एबीए) का पुरजोर रेकमेंडेशन किया जाता है, क्योंकि यह व्यावहारिक थेरेपी एक ऑटिस्टिक बच्चे में सामाजिक और व्यावहारिक विशेषताएं लागू करती है।
ऐसे बच्चों और शिशुओं को समान गति से सीखने में कठिनाई होती है। इसलिए एक आम शिक्षा पैटर्न इनके लिए सही नहीं है। ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे को कम्युनिकेशन के लिए थेरेपी करवाने से, आगे चलकर उनके जीवन में उन्हें मदद मिल सकती है।
ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे सुरक्षा का ध्यान नहीं रख पाते हैं और वे अक्सर ऐसी चीजें कर बैठते हैं, कि वे अपने आप को खतरे में डाल लेते हैं। अपने घर को चाइल्ड प्रूफ बनाए रखें, इससे बच्चे के विकास के सालों में आपको मदद मिलेगी।
ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों की मदद के लिए थेरेपी वाकई सबसे बेहतरीन है। हालांकि, कुछ गंभीर मामलों में डॉक्टर को कुछ ऐसी दवाएं देनी पड़ सकती हैं, जो कि बच्चे में कुछ खास लक्षणों (ओसीडी और डिप्रेशन) से राहत दिला सकती हैं।
शोधकर्ता ऑटिज्म को समझने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन चूंकि वे अब तक इसके सटीक कारण का पता लगाने में सक्षम नहीं हो पाए हैं, तो ऐसे में इससे बचने के लिए प्रेगनेंसी के कुछ बेसिक नियमों का पालन किया जा सकता है, जैसे – सही खान-पान, एक्सरसाइज और आम लाइफस्टाइल। ऑटिज्म से बचने का कोई पुख्ता तरीका अब तक सामने नहीं आया है।
अगर इसमें सही समय पर हस्तक्षेप किया जाए और कम उम्र से ही इस बीमारी से निपटने के तरीके सीखने के लिए, ट्रीटमेंट संबंधी उचित मापदंडों का पालन किया जाए, तो एक सामान्य जीवन जीने के लिए वे बहुत हद तक सक्षम हो सकते हैं। यूएस सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल के अनुसार ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों में से लगभग 44% लोगों की बौद्धिक क्षमता औसत या कभी-कभी औसत से भी अधिक होती है। ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों में अंकों और संगीत के संबंध में बेहतरीन याददाश्त भी देखी गई है।
छोटी उम्र में अपने बच्चे को बीमारियों से बचाना बहुत जरूरी है और यही कारण है, कि वैक्सीनेशन जरूरी होते हैं। लेकिन यह बात पक्की है, कि इन वैक्सीनेशन से नवजात शिशुओं में ऑटिज्म का खतरा पैदा नहीं होता है और न ही ये आगे चलकर बच्चे में ऑटिज्म को होने से रोक सकते हैं। इस स्थिति के पैदा होने के पीछे के कारण भिन्न हो सकते हैं।
सभी बच्चे अपनी गति से बढ़ते हैं। इसलिए अगर आपका बच्चा दूसरे बच्चों की तुलना में धीमी गति से बढ़ रहा है, तो फिक्र न करें। वह चलना या बोलना सीखने में थोड़ी देर कर सकता है, पर ऐसे में यह जरूरी नहीं है, कि बच्चे को ऑटिज्म ही हो। अधिकतर मामलों में यह सामान्य ही होता है। लेकिन अगर आपके बेबी को ऑटिज्म है, तो याद रखें यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक अक्षमता है और बच्चे के करीबी लोगों के प्यार, सहयोग और प्रोत्साहन के साथ इससे निपटा जा सकता है।
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