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उत्तर भारत में दिवाली का त्योहार सबसे ज्यादा मनाया जाता है। दिवाली रोशनी व लाइट्स का त्योहार है और लोग इस दिन को पूरी उत्सुकता व ऊर्जा के साथ सेलिब्रेट करते हैं। बच्चे भी इस त्योहार को बहुत पसंद करते हैं और वे करें भी क्यों न? इस दिन वे पटाखे जलाते हैं, गेम्स खेलते हैं और दोस्तों के साथ एन्जॉय करते हैं। पर पेरेंट्स होने के नाते आपको अपने बच्चों को इस हिन्दू त्योहार का महत्व और अर्थ बताना चाहिए। आप अपने बच्चों को इस देश का परिपूर्ण इतिहास और परंपराएं इंट्रेस्टिंग तरीके से कैसे बता सकती हैं, यह जानने के लिए आगे पढ़ें।
बच्चों को पौराणिक कहानियां और उनके पात्रों के बारे में जानना बहुत अच्छा लगता है। बच्चों दिवाली की कहानियों के माध्यम से परंपराओं की परिपूर्णता और पवित्रता के बारे में बताना एक बेहतरीन तरीका है। दिवाली के इतिहास को जानने के लिए निम्नलिखित कुछ कहानियां हैं, आइए जानें:
दिवाली का त्योहार भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी के सम्मान में मनाई जाती है। भगवान राम राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे और उनका विवाह माता सीता के साथ हुआ था। जब महाराज ने अपने पुत्र राम को राज्य का राजा घोषित किया तो इससे रानी कैकेयी (राजा की तीसरी व सबसे छोटी रानी) रुष्ट हो गई और उन्होंने राजा से श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास अपने वचन के रूप में मांगा। इसी वचन का मान रखने के लिए भगवान राम, माता सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या छोड़कर वन में चले गए। इन 14 वर्षों में उन्होंने कई परेशानियों का सामना किया और इसमें से एक रावण के द्वारा सीता माता का हरण भी था। रावण माता सीता का अपहरण करके उन्हें लंका में ले गया था। अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए भगवान श्रीराम ने हनुमान और वानर सेना के सहयोग से लंका जाकर रावण का वध किया और फिर वनवास समाप्त करके अयोध्या लौट आए। भगवान राम के घर लौटने की खुशी में अयोध्या के लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए खूब खुशियां मनाईं। तब से आज तक भारत में यह त्योहार बड़े उल्लास और आनंद के साथ मनाया जाता है।
माँ लक्ष्मी के जन्म की कथा ऋषि दुर्वासा और भगवान इंद्र के मिलने से शुरू हुई थी। ऋषि दुर्वासा ने देव इंद्र को फूलों की माला अर्पित की थी जो उनके हाथी ऐरावत के गले में पहनाई थी। पर ऐरावत हाथी ने वह में माला धरती पर फेक दी थी। यह व्यवहार देखकर ऋषि बहुत नाराज हुए और उन्होंने इंद्र देव को यह श्राप दे दिया कि उनका राज्य भी वैसे ही नष्ट हो जाएगा जैसे यह माला नष्ट हुई है। जब इंद्र भगवान अपने राज्य अमरावती वापिस आए तो उन्होंने देखा कि उनका साम्राज्य नष्ट हो रहा है। सभी देव कमजोर हो रहे हैं और दुष्ट राक्षस उन्हें मार रहे हैं। युद्ध में हारने के बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास मदद के लिए गए और तब भगवान विष्णु ने देवताओं को यह सलाह दी कि यदि वे अपनी शक्तियों को पुनः प्राप्त करने के लिए अमृत चाहते हैं तो उन्हें समुद्र मंथन करना होगा। अमृत पाने के लिए सभी देवताओं व दानवों ने समुद्र मंथन करना शुरू कर दिया। इस मंथन से कमल पर विराजमान देवी लक्ष्मी का आगमन हुआ था। देवी लक्ष्मी अमावस्या के दिन ही समुद्र से प्रकट हुई थी और उसी दिन उन्हें वैकुण्ठ में भगवान विष्णु के साथ स्थान प्राप्त हुआ था। कई हिंदू संस्कृतियों में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के सम्मान में दिवाली का उत्सव मनाते हैं।
पारंपरिक मान्यताओं के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि पांडवों के 13 वर्ष का वनवास पूर्ण करके वापिस आने की खुशी में भी दिवाली मनाई जाती है। पांडव 5 राजकुमार थे जो चौपड़ के खेल में कौरवों से अपना राज्य हार चुके थे और उन्हें 13 वर्ष के लिए वन जाना पड़ा था। पांडव कार्तिक अमावस्या के दिन ही हस्तिनापुर वापिस आए थे और उनके आने की खुशी में लोगों ने अपने घर में दीये व लैम्प्स जलाकर रोशनी की थी।
दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में दिवाली मनाने के कारणों में यह कहानी बताई जाती है। हिरण्यकश्यप राक्षस ने कठोर तप के बाद भगवान ब्रह्मा से वरदान पाया था जिसके कारण वह लगभग अमर हो गया था। ऐसा इसलिए था क्योंकि भगवान ब्रह्मा से उसने ऐसा वरदान मांगा था कि उसे कोई मनुष्य या कोई जानवर न मार सके, वह न दिन में मरे और न रात में, और न ही उसे घर के भीतर मारा जा सकता है न ही घर के बाहर। इस वरदान के अहंकार में हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ गया था और वह भगवान नारायण के भक्तों को हानि पहुँचाने लगा था। तब वरदान की मान्यता को बनाए रखने के लिए श्री विष्णु भगवान ने आधे सिंह व आधे नर का अवतार लिया था जिन्हें भगवान नरसिंह के नाम से जाना जाता है। उन्होंने संध्याकाल में घर के चौखट पर बैठकर हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखकर उसका वध किया था। इससे ब्रह्म देव के वरदान का मान भी रहा और उस राक्षस का अंत भी हो गया। बस बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में इस दिन को याद करते हुए लोग दिवाली मनाते हैं।
भारत के गांव में लोग अपने खेतों व गायों की पूजा करते हैं क्योंकि यही उनके जीवन यापन एक महत्वपूर्ण स्रोत है। साथ ही उनका मानना है कि गौ माता देवी लक्ष्मी का स्वरूप होती हैं। जब उनके खेतों में फसलें होती हैं और उनके पशु भी खुशहाल व स्वस्थ रहते हैं तो वे इस त्योहार के दिन गायों की पूजा करते हैं।
दिवाली का महत्व क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है इस बारे में ऊपर कहानियों के रूप में विस्तार से दिया गया है। आप अपने बच्चों को त्योहारों का महत्व समझाने के लिए यह कहानियां सुना सकते हैं और उनमें इसके लिए उत्सुकता भी जागृत कर सकते हैं।
दिवाली का त्योहार सिर्फ एक दिन का नहीं होता है, यह लगभग 5 दिनों तक चलता है। दिवाली पर मिठाइयां बांटी जाती हैं, प्यार बरसाया जाता है, पटाखे जलाए जाते हैं और साथ ही लोग दो दिन पहले से ही इस त्योहार को मानना शुरू कर देते हैं और यदि दिवाली के दो दिन बाद तक चलता है। इन 5 पवित्र दिनों का क्या महत्व है, आइए जानें;
इन पांच दिनों में सबसे पहले दिन धनतेरस मनाई जाती है। इस दिन समृद्धि के लिए माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लोगों का मानना है कि इस पवित्र दिन में देवी के सम्मान में सभी को स्वर्ण, चांदी, घर, कार और कोई भी चीज खरीदनी चाहिए। इस दिन लोग अपने घर को सजाते हैं और शॉपिंग करते हैं।
यह दिन भी बहुत महत्वपूर्ण है और इस दिन भगवान कृष्ण व सत्यभामा की नरकासुर नामक राक्षस से जीत हुई थी। इस अवसर पर सकारात्मक ऊर्जा के लिए लोग सुबह जल्दी उठते हैं और पानी में सुगंधित तेल मिलाकर स्नान करते हैं। इस दिन लोग मिट्टी के दीये जलाते हैं और प्रार्थना करते हैं।
पांच दिनों के उत्सव में यह दिन सबसे मुख्य है क्योंकि इस विशेष दिन लोग दिवाली मनाते हैं। दीपावली में लोग अपने घर को दीयों, फूलों, रंगोली से सजाते हैं और अपने परिवार व दोस्तों में मिठाइयां बांटते हैं। दिवाली की शाम को लोग अपने घर में सुख व समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।
चौथे दिन में लोग गोवर्धन पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। इस दिन लोग एक छोटा सा पहाड़ बनाते हैं और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए पूजा व प्रार्थना करते हैं।
इस त्योहार के पांचवे व अंतिम दिन लोग भाई-बहन का उत्सव मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि नरकासुर का अंत करने के बाद भगवान कृष्ण अपनी बहन के पास गए थे। जीत की खुशी में भगवान कृष्ण की बहन ने उनके माथे पर तिलक किया था। इस पवित्र दिन में सभी भाई और बहन मिलते हैं व सेलिब्रेट करते हैं। भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं और भाई अपनी बहनों को तोहफे देते हैं।
भारत को इसकी विभिन्न परंपराओं और संस्कृति के लिए जाना जाता है। हालांकि भारत में दिवाली को पूरी तैयारियों और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहाँ लोग दीपों के इस त्योहार को किस प्रकार से मनाते हैं, आइए जानें;
दीपावली में दीये और मोमबत्तियां जलाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। दीया जलाना संसार से अंधकार को मिटाने का प्रतीक है। इसलिए जब लोग दीया जलाते हैं तो वे भगवान से प्राथना करते हैं कि उनके जीवन से सभी प्रकार की नकारात्मकता, समस्याएं, कड़वाहट या अन्धकार दूर रहे। ऐसा भी माना जाता है कि दिवाली अमावस्या के दिन मनाई जाती है और इस दिन पूरा अंधकार रहता है और दीयों की रोशनी की मदद से माँ लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं।
दिवाली में माँ लक्ष्मी की पूजा करना भी महत्वपूर्ण है। हिन्दुओं की यह मान्यता है कि माँ लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख व समृद्धि आती है और सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। दिवाली के दिन सूर्यास्त के समय परिवार के सभी लोग एक साथ मिलते हैं और माता लक्ष्मी व भगवान गणेश की पूजा करते हैं।
मिठाइयां खाने व बांटने के बिना भारत का हर त्योहार अधूरा है और दिवाली में भी कोई अन्य विकल्प नहीं है। इस अवसर पर लोग अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के घर मिठाइयां व गिफ्ट्स लेकर जाते हैं। मिठाइयां रिश्तों में मिठास का प्रतीक हैं और मिठाइयां शेयर करते समय हर कोई अपने रिश्तों में मिठास बनाए रखने की प्रार्थना व आशा करता है।
बच्चों के लिए दिवाली का त्योहार बिना पटाखों के अधूरा है। हर चीज की तरह ही इस त्योहार में पटाखे भी काफी महत्वपूर्ण हैं और ऐसा माना जाता है कि यह नकारात्मकता व बुराई को जीवन से दूर रखता है। इस बात का ध्यान रखें कि पटाखे इको-फ्रेंडली होने चाहिए क्योंकि पटाखे जलाने से प्रदूषण होता है जो बहुत ज्यादा हानिकारक है।
पूरे देश के कई घरों में लोग अपने आंगन, मंदिर और दरवाजे पर रंगों से भरी सुंदर-सुंदर रंगोली बनाते हैं। यह माना जाता है कि लोग इस प्रकार से माँ लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। लोग अपने मेहमानों का स्वागत करने के लिए भी अपने घर में रंगोली बनाते हैं। इसे सुंदर तरीके से बनाने के लिए मार्केट में फूल, चावल का आटा और विभिन्न प्रकार के रंग मौजूद हैं।
भारत के दक्षिण क्षेत्र के कुछ गांव में लोग गाय का पूजन करते हैं। यह माना जाता है क्योंकि उनके लिए गाय माता लक्ष्मी का ही स्वरूप है।
जनसंख्या के मामले में पूरी दुनिया में भारत दूसरे स्थान पर आता है और कई पड़ोसी देशों में भी भारतीयों की आबादी बहुत ज्यादा है, जैसे सिंगापुर, नेपाल, श्रीलंका और इत्यादि। इन सभी देशों में भी दिवाली की ऑफिशियल छुट्टी होती है।
दिवाली एक ऐसा त्योहार है जिसे आप अपने प्रियजनों के साथ सेलिब्रेट करते हैं। हालांकि, यदि बात दीयों या पटाखों की हो तो आप अपने बच्चों के लिए सावधानी बरतें। त्योहार तभी आनंदमयी होते हैं जब इन्हें सुरक्षित और स्वस्थ तरीके से सेलिब्रेट किया जाता है। यहाँ दिवाली से संबंधित कुछ जानकारी दी हुई है जिसे आप अपने बच्चों के साथ शेयर कर सकते हैं, आइए जानें;
आप रोशनी के इस त्योहार को खुशियों, प्यार और पूरे उत्साह के साथ मनाएं। इसके साथ ही आप दिवाली के 5 दिनों के महत्व को अपने बच्चों के साथ जरूर शेयर करें। अपने पूरे परिवार के साथ दिवाली के उत्सव को पूरी खुशियों के साथ सेलिब्रेट करें।
इसके अलावा अगर आपको अपने बच्चों के लिए दिवाली से जुड़े गिफ्ट्स या कपड़े खरीदने हों तो आप फर्स्टक्राई की शॉपिंग साइट पर जाकर शॉपिंग कर सकती हैं।
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