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भारत के पहले राष्ट्रपति को कौन नहीं जानता होगा, क्योंकि इतिहास के पन्नो पर इन्होंने अपने कार्य के बेहतरीन प्रदर्शन से अपना नाम हमेशा के लिए दर्ज करा लिया। इनका बहुत अच्छे से वर्णन किया गया है। डॉ राजेंद्र प्रसाद आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने थे और इनका शासन 1950-1962 तक चला था। इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सिवान जिले के एक छोटे गांव जीरादेई में हुआ था। इनके पिताजी का नाम महादेव सहाय था, जो कि एक श्रेष्ठ विद्वान और वैघ थे और माता का नाम कामेश्वरी देवी था। इनका अधिकांश जीवन राष्ट्रपति पद पर ही गुजरा है। प्रसाद जी बहुत ही शांत और साधारण स्वभाव के थे, जिसके कारण देश की जनता उन्हें बेहद पसंद करती थी। इन्होंने देश का सच्चा नागरिक होने की भूमिका निभाते हुए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था। इनके प्रभाव से देश के लोगों में एक अलग उत्साह और जोश आ गया था। भारत की आजादी की लड़ाई में इनका अहम योगदान रहा है। इन्होने अपने राष्ट्रपति शासन के दौरान कई अहम फैसले और घटनाओं का सामना किया है। 28 फरवरी 1963 में राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद पटना में इनका निधन हो गया था।
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डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के महत्वपूर्ण नेताओं में से प्रसिद्ध नेता है और इनका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान रहा है। भारत को आजादी मिलने के बाद 26 जनवरी 1950 में इन्हें देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में चुना गया था। इनका राष्ट्रपति शासन साल 1950-1962 तक चला था। प्रसाद जी एक समर्पित स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक और वकील थे। महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए कई स्वतंत्र आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया था। इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था, जो कि पेशे से एक विद्वान और वैध थे और माता का कामेश्वरी देवी था। छोटी उम्र में उन्हें मौलवी से घर पर शिक्षा प्राप्त की थी और बाद में उनका दाखिला छपरा हाई स्कूल में करवाया गया था। 1902 में उन्होंने स्नातक की पढाई के लिए कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया था। राष्ट्रपति बनने से पहले राजेंद्र प्रसाद ने एक शिक्षक और बेहतरीन वकील के रूप में भी कार्य किया है। इनके पास वकालत में डॉक्ट्रेट की उपाधि भी है जिसकी वजह से इनके नाम के आगे डॉ लगाया जाता है। भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए उन्होंने राजनीती में कदम रखा और 1934 में वह कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बने थे। इनके उत्कर्ष्ट कार्यों के लिए 1962 में भारत के सर्वोच्चम सम्मान ‘भारत रत्न‘ से सम्मानित किया गया था। 28 फरवरी 1963 में इन्होने देश को अलविदा कह दिया था।
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डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन बहुत ही उदार और सामाजिक था। 3 दिसंबर 1884 को बिहार के एक छोटे से जिले सिवान में हुआ था। वह भारत के पहले स्वतंत्र राष्ट्रपति बने थे और इनकी कारण देश की जनता में एक अलग जोश और उत्साह देखने को मिलता था। राजेंद्र प्रसाद को शुरू से शिक्षा में बेहद रूचि रही है और अपने जीवन के शुरूआती दौर में उन्होंने एक शिक्षक के रूप में कार्य भी किया है। बाद में वकालत में डॉक्ट्रेट का उपाधि भी हासिल की। इन सब के बावजूद भी इनका मन देश की स्वतंत्रता की लड़ाई और आंदोलन में लगा रहता था। इन्होने महात्मा गांधी के साथ मिलकर कई आंदोलनों में हिस्सा लिया जिसकी वजह से इन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। इनके सबसे अहम कार्यों में से एक था गांधी जी के साथ मिलकर सत्याग्रह के प्रस्ताव को प्रस्तुत करना। देश के लिए किए गए इनके योगदानों को आज भी कोई भूल नहीं पाया है। इन्होने अपनी आखिरी सांस 28 फरवरी 1963 में ली थी।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 में बिहार के जिले सिवान के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था। एक बड़े संयुक्त परिवार के सबसे छोटे बेटे होने के कारण इनका बचपन बहुत प्यार और दुलार से बीता है। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था, जो एक विद्वान और वैध थे। इनकी माता कामेश्वरी देवी गृहिणी थी। वह तीन भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे थे और उनका पारिवारिक एवं आर्थिक जीवन सुखी था। इन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव जीरादेई से ही हासिल की और इन्हे बचपन से ही पढाई करने का बहुत शौक था। उस समय बाल विवाह की प्रथा के चलते राजेंद्र प्रसाद का विवाह12 साल की उम्र में साल 1896 जून में राजवंशी देवी से कराया गया था। जिससे उन्हें एक बेटा है जिसका नाम मृत्युंजय प्रसाद है और वो भी एक राजनीतिज्ञ है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी शिक्षा में बहुत महत्व दिया था। 5 साल की उम्र से ही इन्होने पढ़ाई शुरू कर दी थी और एक मौल्व से उर्दू और पर्शिया सीख रहे थे। इसके बाद इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला विद्यालय से ही हासिल की थी। उच्च शिक्षा के लिए राजेंद्र प्रसाद ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया था और वहाँ उनको प्रथम स्थान मिला था। वकालत की पढ़ाई के दौरान उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में भी भाग लिया था। अपने एलएलबी और एलएलएम की परीक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया था। जिसके बाद उन्होंने वकालत में डॉक्ट्रेट की उपाधि पाने के लिए आगे की पढ़ाई की थी। डॉक्ट्रेट की डिग्री पाने के बाद उनके नाम के आगे डॉ राजेंद्र प्रसाद लगाया गया।
राजेंद्र प्रसाद शुरू से ही महात्मा गांधी के सिद्धांतों का अच्छे से पालन करते रहे हैं और देश की आजादि में इनका अहम योगदान रहा है। इन्होंने बिहार में असहयोग और नमक सत्याग्रह–जैसे आंदोलनों की शुरुआत की थी साथ ही लोगों को खादी पहनने और चरखे का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया। साल 1934 में राजेंद्र प्रसाद को भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया। नए भारत के निर्माण में इन्होंने अहम भूमिका निभाई है। 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हुआ था,लेकिन संविधान सभा का गठन उससे पहले ही कर लिया गया था, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद खुद थे। 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत ने अपने देश का पहला राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को चुना। साल 1950-1962 तक यानि कि पूरे 12 साल उनका राष्ट्रपति शासन रहा है और इतने लंबे समय तक देश की सेवा करने वाले पहले राष्ट्रपति थे। भारत के संविधान को तैयार करने में इनकी भी भूमिका रही है। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान इन्होंने देश को एकजुट करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए। इनके कार्यों को देखते हुए 1962 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। राजनीति से संन्यास लेने के बाद इन्होंने अपना जीवन पटना के एक आश्रम में बिताया, जहाँ 28 फरवरी, 1963 में इनका निधन हो गया।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत इ एक चहेते राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। देश के संविधान के निर्माण में इनकी अहम भूमिका रही है। प्रसाद जी ने अंग्रेजों के शासन से लेकर स्वतंत्रता तक देश में होने वाले महत्वपूर्ण बदलाव के के लिए बहुत मेहनत की है और संवैधानिक लोकतंत्र को आकार देने में भी इनका हाथ रहा है। राष्ट्रपति बनने के बाद प्रसाद जी ने साल 1947 में हुए भारत–पाकिस्तान युद्ध और 1962 में चीनी युद्ध सहित कुछ मुष्किल वक्त देश को संभालने और आगे बढ़ाने में मदद की। देश में शिक्षा और सामाजिक सुधार के विकास में इनका अहम योगदान रहा है। राष्ट्रपति बनने से पहले साल 1946 में वह भारत के खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया है। अपने राजनितिक कार्यकाल में उन्हें कई उपलब्धियां हासिल हुई हैं लेकिन इसके साथ ही वह एक प्रसिद्ध विद्वान और लेखक थे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत की सामान्य जनता के प्रतिनिधि थे, उनके कार्य से देश की जनता उनका बेहद सम्मान और उन्हें प्यार करती थी। उनके विचार हमेशा से भारतीय संस्कृति के विकास और बेहतर भारत के निर्माण से जुड़ा रहा है। वह काफी साधारण जीवन जीते थे और जिंदगी भर सिर्फ भारतीय कपड़े ही पहने हैं और अंग्रेजों के कपड़ों को हाथ भी नहीं लगाया है। वह जैसे ऊपर से थे उनका मन अंदर उतना ही साफ था। महात्मा गांधी उनके लिए प्रेरणाश्रोध थे और वह उनके बताए रास्तों का पालन करते थे। प्रसाद जी ने गांधी जी के साथ देश की आजादी के हिट में होने वाले कई आंदोलनों में हिस्सा लिया था। 28 फरवरी 1963 को उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी देशवासी उन पर गर्व करते है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद एक शांत और बड़े दिल वाले व्यक्ति थे, उन्होंने हमेशा ही भारत के हित में कई बड़े कार्य किए हैं जिसका आभार आज भी देश की जनता करती है। ऐसे प्रसिद्ध सैनानियों के बारें में बच्चों को जानकारी होना जरूरी है ताकि वह जान सकें कि आखिर उनके लीडर्स ने देश की आजादी और राजनीती में क्या योगदान दिया है। यदि आपके बच्चे से कोई भारत के पहले राष्ट्रपति के बारे में पूछेगा तो बच्चा इस निबंध को पढ़कर आसानी से सबके सामने बता सकेगा।
राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद वह बिहार के सदाकत आश्रम में रहते थे, जहाँ उनकी मृत्यु हुई थी।
नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान, कानून व्यवस्था का उल्लंघन करने के लिए उन्हें 6 महीने की जेल हुई थी।
‘इंडिया डिवाइडेड‘ डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा लिखी गई पहली पुस्तक थी।
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