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यह जानना कि आपके बच्चे को जन्मजात हृदय रोग (सीएचडी) है किसी भी माता-पिता के लिए एक झटका हो सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से यह 100 में 1 की दर से बच्चों में पाया जाता है, यह एक काफी नॉर्मल हेल्थ कॉम्प्लिकेशन होता है। गर्भावस्था की शुरुआत में सीएचडी (कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज) के बारे में पता करना ज्यादा बेहतर होता है। इससे फीटस की अब्नोर्मलिटी का निदान पहले हो जाने से डॉक्टर को बर्थ प्लान करने में आसानी होती है साथ ही अगर कोई कॉम्प्लिकेशन हैं तो उसे भी मैनेज करने में आसानी हो जाती है, साथ ही अगर बच्चे को किसी सर्जरी की जरूरत है तो उसे भी दिख जाता है।
फीटस इकोकार्डियोग्राम एक टेस्ट होता है, जो अल्ट्रासोनिक साउंड वेव का उपयोग करके के प्रेगनेंसी के दौरान बच्चे में मौजूद किसी भी हार्ट प्रॉब्लम की जाँच करता है। टेस्ट अक्सर गर्भावस्था के दूसरे तिमाही के दौरान लगभग 18 से 24 सप्ताह में किया जाता है और सीएचडी एक्जामिन करने के लिए बच्चे के दिल की पूरी तरह से जाँच की जाती है, साथ ही साथ केस कितना सीरियस है यह भी पता लगाया जाता है।
यह अल्ट्रासाउंड हाथ से पकड़ी जाने वाली डिवाइस जिसे प्रोब कहते हैं उसकी मदद से किया जाता है। प्रोब को मूव करते हुए सभी एरिया कवर करते हुए हाई फ्रीक्वेंसी साउंड वेव भेजते हैं। ये अल्ट्रासोनिक वेव फीटस के हृदय से बाउंस करती हैं, जिसे प्रोब की मदद से कैप्चर किया जाता है और एक मॉनिटर पर देखा जाता है, जो 3डी पिक्चर में हार्ट, उसका स्ट्रक्चर, वॉल और वाल्व दिखाता है। यह रूटीन टेस्ट नहीं है क्योंकि फीटल हार्ट डेवलपमेंट की जाँच करने के लिए रूटीन प्रीनेटल अल्ट्रासाउंड टेस्ट होता है और ज्यादातर प्रेगनेंसी में ज्यादा टेस्ट की जरूरत नहीं होती है।
फीटस इकोकार्डियोग्राफी का उपयोग उन मामलों में किया जाता है जहाँ फीटस किसी भी हार्ट प्रॉब्लम के होने का संदेह हो, क्योंकि यह जन्म से पहले बच्चे में हार्ट अब्नोर्मिलिटी का पता लगाने में मदद करता है ताकि इसके लिए जल्दी मेडिकेशन या सर्जरी की जा सके। निदान के जरिए सीवियर हार्ट डिफेक्ट वाले बच्चों में डिलीवरी के बाद सर्वाइव करने के चांसेस भी बढ़ जाते हैं।
प्रीनेटल चेकअप के दौरान होने वाले रेगुलर ओब्स्ट्रिक स्कैनिंग फीटस के हार्ट की काम भर जाँच करने में सक्षम होता है, यह उन महिलाओं के लिए जिनके बच्चे को सीएचडी का खतरा कम होता है। हालांकि, जिन महिलाओं के बच्चों में सीएचडी का हाई रिस्क होता है उन्हें फीटल इकोकार्डियोग्राम करवाने के लिए कहा जाता है:
फीटल इकोकार्डियोग्राम आमतौर पर दूसरी तिमाही के आसपास, लगभग 18 से 24 सप्ताह में किया जाता है। यह किसी अन्य समय पर भी किया जा सकता है, अगर डॉक्टर को रूटीन चेकअप के दौरान फीटस डेवलपमेंट में किसी भी प्रकार की अब्नोर्मलिटी दिखाई देती है, और फीटस की भलाई के लिए उसे मॉनिटर करना जरूरी होता है।
इसमें आपको ब्लैडर भरा होना चाहिए या पेट खाली होना चाहिए जैसे कोई भी करने की जरूरत नहीं होती है। चूंकि टेस्ट काफी लंबा चल सकता है और कुछ मामलों में 2 घंटे तक लग सकते हैं, इसलिए टेस्ट से पहले खाना खा लेना या नाश्ता कर लेना बेहतर रहेगा।
एक फीटस इकोकार्डियोग्राफी अल्ट्रासाउंड हाथ में पकड़े जाने वाले एक प्रोब की मदद से किया जाता है जिसे ट्रांसड्यूसर के रूप में जाना जाता है। एक अल्ट्रासाउंड सोनोग्राफर यह टेस्ट करता है, हालांकि कभी-कभी एक मैटरनल फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट या पेरिनेटोलॉजिस्ट भी यह टेस्ट कर सकते हैं। सीएचडी के स्पेशलिस्ट द्वारा इमेज की व्याख्या की जाती है। टेस्ट को अल्ट्रासोनिक ट्रांसड्यूसर प्रोब की मदद से फीटस के दिल के अलग अलग स्ट्रक्चर और लोकेशन की इमेज प्राप्त की जाती है। उपयोग की जाने वाली तकनीकें कुछ इस प्रकार हैं:
यह अल्ट्रासाउंड इमेजिंग का सबसे आम रूप है। फीटस के इकोकार्डियोग्राम प्रोसेस के दौरान, माँ के पेट पर एक क्लियर जेल लगाया जाता है और प्रोब को पेट पर मूव करते हुए अलग अलग एंगल से पिक्चर ली जाती है। फीटस के डेवलमेंट स्टेज के हिसाब से टेस्ट में 45 मिनट से 2 घंटे तक लग सकता है, इससे कोई किसी भी कॉम्प्लिकेशन या प्रॉब्लम के बारे में अच्छी तरह से पता चल पाता है।
जब फीटस के विकास के शुरुआती हफ्तों में किसी मुद्दे पर संदेह होता है, तो ट्रांसवैजिनल इकोकार्डियोग्राफी या इंडोवैजिनल इकोकार्डियोग्राफी जाँच का उपयोग किया जाता है, जब अविकसित फीटस से संबंधित इशू का पता लगाने के लिए करीब से निगरानी की जरूरत होती। बेस्ट रिजल्ट प्राप्त करने के लिए प्रोब को वजाइना में इन्सर्ट करके के अलग-अलग एंगल से इमेज ली जाती है।
यदि फीटल इको टेस्ट के रिजल्ट नॉर्मल होते हैं, तो पेशेंट को डिस्चार्ज कर दिया जाता है और अगले प्रीनेटल टेस्ट के लिए बुलाया जाता है अगर जरूरत पड़ी तो। यदि फीटस की ग्रोथ स्टेज के कारण इमेज क्वालिटी में प्रॉब्लम आती है तो बाद की डेट में इको टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है। अगर कोई हार्ट डिफेक्ट है, तो आपको टेस्ट रिजल्ट समझने के लिए और विस्तार से निदान के लिए डॉक्टर से परामर्श करनी की जरूरत है।
12-18 सप्ताह के बीच किए गए टेस्ट के मामलों में, फॉलो अप टेस्टिंग की जाती हैं ताकि अर्ली स्टडी में ही सपष्ट पिक्चर प्राप्त की जा सके। इसके लिए आपको और भी कई फॉलो अप टेस्ट कंसल्टेशन की जरूरत होती, जो कुछ इस प्रकार हैं:
कई सारे फीटल हार्ट डिफेक्ट डिलीवरी से पहले ही ठीक किए जाते हैं, इसलिए बेहतर यही है कि इसके बारे में शुरुआती स्टेज में ही पता लग जाए। पहले निदान हो जाने से बच्चे की बर्थ को शेड्यूल करने में मदद मिलती है और अगर सर्जिकल टीम को बच्चे की अच्छी हेल्थ और उसकी जीवन के लिए सर्जरी करने की जरूरत महसूस होती है तो वह ऐसा भी कर सकते हैं।
निष्कर्ष: इस प्रकार, फीटस की हार्ट प्रॉब्लम के बारे में पहले से पता लगने से इसका समय पर इलाज किया जा सकता है, इससे मिस्कैरज को होने से रोका जा सकता है। यह महत्वपूर्ण है कि आप पहले से ही इसका निदान कर लें ताकि आप आवश्यक सावधानी बरत सकें।
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