गर्भावस्था

गर्भ में बच्चे का विकास के 3 चरण

गर्भ में एक बच्चे की वृद्धि ज्यादातर कुछ महीने के बाद पता चलती है। पर एक भ्रूण का प्रीनेटल फेज भी बच्चे के विकास का एक मुख्य चरण होता है। इस चरण में बच्चे के मस्तिष्क का मूल विकास होता है और यह पूरे बचपन चलता रहता है। 

गर्भ में बच्चे का विकास के विभिन्न चरण

प्रीनेटल पीरियड को तीन मुख्य चरण में विभाजित किया गया है। ये तीन चरण एक बच्चे के संपूर्ण विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास के तीन मुख्य चरण, कुछ इस प्रकार हैं;

1. जर्मिनल स्टेज (विकास का पहला चरण)

यह वो समय होता है जब एक महिला गर्भधारण करती है। इस दौरान पिता का स्पर्म, माँ की फैलोपियन ट्यूब में अंडे से मिलता है। इसके बाद वह अंडा फर्टिलाइज्ड हो जाता है जिसे जायगोट कहते हैं। यह जयगोट कुछ सप्ताह में गर्भाशय तक पहुँचता है और तब से ही इसके विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस दौरान माइटोसिस की वजह से सेल्स विभाजित होते हैं और बच्चे के निर्माण का पहला चरण शुरू हो जाता है। 

आंतरिक हिस्से में मौजूद सेल्स की वजह से भ्रूण का निर्माण होता है और बाहरी हिस्से में मौजूद सेल्स प्लेसेंटा के निर्माण में मदद करते हैं। यह विभाजन चलता रहता है और इसकी वजह से ब्लास्टोसिस्ट का निर्माण होता है जिसके तीन भाग होते हैं। 

जिन सेल्स की मदद से बच्चे का नर्वस सिस्टम और त्वचा बनती है उसे एक्टोडर्म कहते हैं। जो सेल्स गर्भ में पल रहे बच्चे के रेस्पिरेटरी सिस्टम और पाचन तंत्र के निर्माण में मदद करते हैं उन्हें एंडोडर्म कहा जाता है। अन्य सेल्स को मेसोडर्म कहते हैं और यह स्केलेटल व मस्कुलर सिस्टम के निर्माण में मदद करते हैं। इस चरण के अंत में प्रत्यारोपण या इम्प्लांटेशन के दौरान ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की दीवार से जुड़ जाता है। 

यदि महिला में इम्प्लांटेशन सफलतापूर्वक होता है तो उसके पीरियड्स बंद हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप गर्भावस्था की जांच की जाती है।  

2. एम्ब्रयॉनिक स्टेज (अपरिपक्व अवस्था)

एक महिला के गर्भ में सभी सेल्स एकत्रित होकर भ्रूण के रूप में विकसित होते हैं। यह विकास तब तक होता है जब तक सभी सेल्स एक इंसान के शेप में न दिखने लग जाएं। इस समय मस्तिष्क के विकास का पहला चरण शुरू होता है। 

मुख्य रूप से न्यूरल ट्यूब का निर्माण सबसे पहले होता है। इसके बाद न्यूरल प्लेट्स के साथ अन्य सभी रिड्जेस या लकीरें बनना शुरू होती हैं जिससे ट्यूब्स जैसे आकार का निर्माण होता है। यह बाद में रीढ़ की हड्डी और दिमाग के रूप में विकसित होता है। यह ट्यूब बंद हो जाता है और सेल्स का निर्माण मस्तिष्क के अंदर होता है जिससे दिमाग का सबसे आगे वाला, बीच का और सबसे नीचे वाला भाग विकसित होना शुरू हो जाता है। 

इसके साथ ही बच्चे के सिर का भी निर्माण होने लगता है और उसके चेहरे की आकृतियों के शुरूआती संकेत दिखने लगते हैं। एक ब्लड वेसल भी होती है जो बाद में दिल के रूप में विकसित होती है और यह बहुत धीमे-धीमे धड़कना भी शुरू कर देता है। 

इसके बाद गर्भावस्था के लगभग 5वें सप्ताह में लिंब्स बनने शुरू हो जाते हैं। 8वें सप्ताह तक भ्रूण के इंसान जैसे अंग बनने लगते हैं जिनका फंक्शन होना जरूरी है पर अभी तक इसके जेंडर का पता नहीं चलता है। गर्भावस्था के 6ठे सप्ताह में न्यूरल नेटवर्क बनना शुरू हो जाता है क्योंकि पहले न्यूरॉन्स दिखना शुरू हो जाते हैं और वे जुड़ने के लिए मस्तिष्क एक अलग-अलग भाग में घूमने लगते हैं। 

3. फीटल स्टेज (भ्रूण बनने की अवस्था)

गर्भावस्था का 9वां सप्ताह पूरा होते-होते एम्ब्र्यो का विकास उस चरण तक पहुँच जाता है जहाँ उसे फीटस का नाम दिया जाता है। 

यहाँ से बच्चे की डिलीवरी होने तक विकास होता है। इस दौरान बच्चे के शरीर का सिस्टम विकसित व मजबूत होना शुरू हो जाता है। चूंकि, अब से मस्तिष्क का विकास हर समय बहुत तेजी से होता है इसलिए न्यूरल नेटवर्क और सिनैप्सिस भी विकसित होने लगते हैं। धीरे-धीरे बच्चा लिंब्स की मदद से मूव करना शुरू कर देता है। 

गर्भावस्था के 3 महीने पूरे होते हैं बच्चे का जेनिटल अंगों का निर्माण होना शुरू हो जाता है और अंत तक सभी अंग पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं। इस पूरी अवधि में बच्चे की हाइट और वजन बढ़ता रहता है। 

जैसे ही गर्भावस्था की दूसरी तिमाही शुरू होती है बच्चे का दिल मजबूत हो जाता है और उसके दिल की धड़कन सुनी जा सकती है। इस समय तक बच्चे में छोटे-छोटे अंग दिखना शुरू हो जाते हैं, जैसे बाल, पलकें, नाखून। इस तिमाही में बच्चे का विकास तेजी से होता है और 6 महीने तक वह पहले से बड़ा हो जाता है।

इस पूरी अवधि में बच्चे के मस्तिष्क का विकास बहुत तेजी से होता है और नर्वस सिस्टम रिस्पॉन्ड करने लगता है। गर्भावस्था के 28वें सप्ताह में मस्तिष्क की एक्टिविटी से बच्चा सोता हुआ नजर आता है। इसके अलावा जन्म तक बच्चा बढ़ता है और उसके लंग्स एक्सपैंड और कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जो जन्म के बाद सांस लेने के लिए शरीर में तैयार होते हैं। 

गर्भ में बच्चे के विकास के दौरान आने वाली आम समस्याएं

गर्भावस्था के दौरान विकास के फीटल चरण में बच्चे की वृद्धि बहुत तेजी से होती है और इसलिए इस समय अन्य समस्याएं भी बहुत जल्दी हो सकती हैं। इस चरण के दौरान कुछ सामान्य समस्याओं को ऑब्जर्व किया जा सकता है, जैसे;

1. जेनेटिक समस्याएं (आनुवंशिक समस्याएं)

गर्भावस्था के दौरान बच्चे के विकास के साथ-साथ उसमें कुछ अब्नॉर्मल फॉर्मेशन या विकास से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। यह जेनेटिक उत्परिवर्तन, जीन में क्षति, क्रोमोसोमल असामान्यताएं और इत्यादि के कारण भी हो सकता है। हालांकि, कुछ मामलों में यह पता चला है कि यह समस्याएं गर्भावस्था के दौरान होना शुरू हो जाती हैं। 

यह अब्नॉर्मलिटीज बहुत कम होने से लेकर अत्यधिक खतरनाक भी हो सकती हैं। इस चरण में अब्नॉर्मलिटीज की वजह से मिसकैरेज की संभावनाएं 10-15% तक होती है। 

इन समस्याओं में माँ की आयु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिन महिलाओं की आयु छोटी होती है उनका बच्चा भी काफी हेल्दी होता है। 35 वर्ष से 40 वर्ष से ज्यादा की महिलाओं के बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं और साथ ही गर्भावस्था से संबंधित अन्य कॉम्प्लीकेशंस भी हो सकती हैं।

यदि महिला में कोई और रोग या बीमारी है तो यह समस्या भी गर्भावस्था के दौरान हो रहे विकास में बाधा बन सकती है। अगर महिला एचआईवी पॉजिटिव है तो यह समस्या उसके बच्चे को भी हो सकती है। महिला को अन्य वायरस जैसे रूबेला होने की वजह से भी बच्चे के दिल में रोग हो सकता है या वह जन्म से ही बहरा हो सकता है। 

पूरी गर्भावस्था के दौरान महिला को बैलेंस्ड और न्युट्रिश्यस डायट लेनी चाहिए जिसमें उसकी आवश्यकता के अनुसार विटामिन और मिनरल होते हैं। गर्भावस्था के दौरान डायट में फॉलिक एसिड के कुछ सप्लीमेंट्स, कैल्शियम, आयरन, जिंक और अन्य न्यूट्रिएंट्स शामिल करने की सलाह दी जाती है ताकि माँ और बच्चा स्वस्थ रहे। 

गर्भवती महिला या बच्चे में किसी भी प्रकार की कमी से बच्चे का विकास पूरा नहीं होता है या उसकी न्यूरल ट्यूब में समस्याएं हो सकती हैं जिसके परिणामस्वरूप बच्चे मस्तिष्क पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। इसके अलावा गर्भवती महिला को अल्कोहल, इल्लीगल/अवैध ड्रग्स या किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ सीधे बच्चे को प्रभावित करते हैं और इससे कई सारी समस्याएं हो सकती हैं। 

2. प्रीमैच्योरिटी (अपरिपक्वता)

कई मामलों में बच्चा गर्भावस्था के 40 सप्ताह भी पूरे नहीं कर पाता है और प्रीमैच्योर पैदा हो जाता है। एडवांस मेडिकल साइंस होने की वजह से प्रीमैच्योर जन्मे बच्चे भी जीवित रहते हैं और जन्म के बाद उनका भी विकास होता है। जन्म के बाद बच्चे के बचने की संभावनाएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि वह कितने लंबे समय तक माँ के गर्भ में रहा है। 

अवधि (सप्ताह में) जीवित रहने का दर (प्रतिशत में)
21 से कम 0
21 – 22 0 – 10
22 – 23 10 – 35
23 – 24 40 – 70
24 – 25 50 – 80
25 – 26 80 – 90
26 – 27 और अधिक 90 से ज्यादा

प्रीनेटल पीरियड के दौरान होने वाले कॉम्प्लीकेशन्स

गर्भावस्था के दौरान निम्नलिखित कुछ खतरे हो सकते हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है, आइए जानें;

  • न्यूट्रिशन की कमी: गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के लिए न्यूट्रिशन और बैलेंस्ड डायट का सेवन करना बहुत जरूरी है क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे का विकास हर समय हो रहा है। माँ के भोजन में किसी भी न्यूट्रिशन की कमी से बच्चे पर प्रभाव पड़ता है। इसका परिणामस्वरूप महिला के गर्भ में भ्रूण आकार में बहुत छोटा विकसित होता है जिससे बच्चे के विभिन्न अंग, इम्युनिटी सिस्टम और नर्वस सिस्टम के विकास में भी प्रभाव पड़ता है।
  • प्रदूषक: यदि एक गर्भवती महिला वातावरण के प्रदूषकों के संपर्क में भी आती है तो इससे बच्चे को समस्याएं हो सकती हैं। कुछ प्रकार के पेस्टिसाइड्स या ऐरोसोल्स में केमिकल्स होते हैं जो बच्चे की प्राकृतिक वृद्धि को हानि पहुँचा सकते हैं।
  • मारिजुआना: मारिजुआना का उपयोग चिकित्सीय कार्यों के लिए किया जा सकता है क्योंकि कुछ डॉक्टर कई जगहों पर इसका उपयोग करने की सलाह दे सकते हैं। हालांकि, मारिजुआना का सेवन करने के बाद यह लगभग 1 महीने तक शरीर में सेल्स के अंदर ही रहता है। गर्भधारण करने के बाद यदि यह शरीर में रहता है या गर्भावस्था के दौरान विकास के शुरूआती समय में इसका सेवन किया जाता है तो यह बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है।
  • अल्कोहल: गर्भावस्था के पहले से ही सभी महिलाओं को अल्कोहल से दूर रहने की सलाह दी जाती है और गर्भावस्था के दौरान किसी भी प्रकार की अल्कोहल का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि एक महिला गर्भवती होने पर अल्कोहल का सेवन करती है तो इसके परिणामस्वरूप फीटल अल्कोहल सिंड्रोम हो सकता है। इससे बच्चे में जन्म से संबंधित कॉम्प्लीकेशंस और दोष हो सकते हैं। इससे बच्चे का मानसिक विकास रुक सकता है और उसका वजन बहुत कम हो सकता है। बच्चे के चेहरे की आकृतियों का निर्माण ठीक से नहीं होता है, जैसे नाक चपटी हो जाती है, आँखें बहुत ज्यादा चौड़ी होती हैं, ऊपरी होंठ में फिलट्रम नहीं होता है या बच्चे एक होंठ बहुत ज्यादा पतले होते हैं।
  • कोकेन: आमतौर पर कोकेन बहुत ज्यादा प्रभावी ड्रग है और यह शरीर को लंबे समय तक हानिकारक रूप से प्रभावित करता है। यदि गर्भवती महिला कोकेन का उपयोग करती है या गलती से भी वह इसके संपर्क में आती है तो इसके परिणामस्वरूप बच्चे में व्यावहारिक समस्याएं हो सकती हैं। जन्म के बाद बच्चा बहुत ज्यादा हाइपरएक्टिव, बाहरी वातावरण के प्रति या किसी के पकड़ने पर भी ओवरसेंसिटव हो सकता है या उसे मानसिक बीमारी भी हो सकती है।
  • तम्बाकू: सभी महिलाओं को विशेष रूप से सलाह दी जाती है कि गर्भावस्था के दौरान स्मोकिंग न करें या किसी भी प्रकार के बाहरी स्मोक से दूर रहें। यदि एक गर्भवती महिला स्मोकिंग करती है तो इससे गर्भावस्था में समस्याएं होने का खतरा बढ़ सकता है और साथ ही मिसकैरेज भी हो सकता है। इससे बच्चे में जन्म से संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं।
  • आम्फेटामिइंस और ट्रानक्विलाइजर: यह गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है और इससे बच्चे को लंबे समय तक क्षति हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप बच्चे का मस्तिष्क गंभीर रूप से मंद हो जाता है या जन्म के दौरान कई कॉम्प्लिकेशन हो सकती हैं।

गर्भावस्था का समय गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए बहुत कठिन होता है। इस चरण में शारीरिक व मानसिक विकास होते हैं और बच्चा जन्म व दुनिया में स्वस्थ रहने के लिए खुद को तैयार करता है। यदि इस समय कोई भी समस्या होती है तो आपको उसका कारण समझ कर इन समस्याओं का ट्रीटमेंट करना चाहिए। किसी भी समस्या का ठीक करने के बजाय इसका बचाव करना ज्यादा बेहतर है। 

यहाँ तक कि जन्म के बाद भी बच्चे की वृद्धि व विकास होता रहता है और यह भी जरूरी है कि इस समय वह किसी भी समस्या के कारण के संपर्क में न आए। गर्भावस्था के दौरान बच्चे के मस्तिष्क का विकास भी हो रहा होता है और वह अपने पेरेंट्स की तरह ही स्ट्रॉन्ग बने इसलिए उसका यह विकास किसी भी समस्याओं के बिना होना चाहिए।  

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