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हमारी परवरिश के दौरान हमें क्या सिखाया जाता है? यही, कि ब्लू रंग लड़कों के लिए होता है, पिंक रंग लड़कियों के लिए होता है, है ना? पारंपरिक सोच में ऐसा ही होता है। लेकिन, आजकल कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों की परवरिश के दौरान जेंडर न्यूट्रल तरीका अपनाना पसंद करते हैं। यह एक गैर पारंपरिक प्रयास है, जिसे लेकर लगातार बहस होती रही है। अगर आप अपने बच्चे की परवरिश के लिए यही रास्ता अपनाने की सोच रहे हैं, तो यहां पर ऐसी कुछ बातें दी गयी हैं, जिनका आपको ध्यान रखना चाहिए। यहां पर, हम जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग के बारे में चर्चा कर रहे हैं, जिससे आपको यह तय करने में मदद मिलेगी, कि आपको अपने बच्चे के लिए यह तरीका अपनाना चाहिए या नहीं।
जब पेरेंट्स जेंडर पर आधारित पूर्वधारणा के बिना, अपने बच्चे की परवरिश करने का चुनाव करते हैं और बाकी के जीवन के लिए अपने मानदंड उन्हें खुद चुनने की आजादी देते हैं, तब उसे जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग कहते हैं। इससे बच्चे को जेंडर के पारंपरिक नियमों से आजादी मिल जाती है। उदाहरण के लिए, पेरेंट्स बातचीत के दौरान बच्चे को ‘बेटा’ या ‘बेटी’ के बजाय ‘बेबी’ कह कर पुकारते हैं। उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार कपड़े पहनने की आजादी देते हैं, फिर चाहे लड़के गुलाबी पहनना चाहें या लड़कियां नीला पहनना चाहें। कमरे की सजावट और खिलौनों को भी न्यूट्रल रखते हैं और जेंडर संबंधी किसी भी रूढ़िवादी सोच से बचते हैं। कुछ पेरेंट्स अपने बच्चे के जेंडर को करीबी रिश्तेदारों के अलावा बाकी लोगों से छुपाना भी पसंद करते हैं।
यह सवाल असल में लोगों की मानसिकता पर निर्भर करता है। एक नजरिया कहता है, कि जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग बहुत ही फायदेमंद है, क्योंकि बच्चा आजादी से बढ़ सकता है और उसे जेंडर के इर्द-गिर्द घूमते हुए समाज के मानव निर्मित नियमों के अनुसार चलने की जरूरत नहीं होती है। जेंडर मानदंड बच्चे को वैसा बनने का एहसास करा सकते हैं, जैसे वे असल में हैं नहीं। इससे उसके स्वास्थ्य और खुशी में अड़चन आ सकती है। एक पैरंट का कहना है, कि उनका 4 साल का बेटा जींस और ड्रेस पहनते हुए बड़ा हुआ है। उसने हर तरह के खिलौने के साथ खेला है और उसके बाल भी लंबे रहे हैं। उसने अपने पैरंट्स से कहा कि वह लड़का है, फिर भी वह लड़कियों के कपड़े पहनना चाहेगा।
वहीं, दूसरी ओर कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं, कि अगर बच्चे की परवरिश एक लड़के या एक लड़की की तरह ना हो, तो आगे चलकर वे अपनी पहचान को लेकर कन्फ्यूज्ड महसूस कर सकता है और वो असल में क्या है, इसके बारे में उनकी सोच स्पष्ट नहीं हो पाती है।
सबसे आम सवाल यह है, कि जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है। आइए कुछ बातों पर नजर डालते हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए:
देखा जाए तो, अगर आपका बच्चा प्ले स्कूल या डे केयर सेंटर में जाता है, तो पूरी तरह से जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग असंभव है। बच्चे का जेंडर न्यूट्रल ड्रेसिंग सेंस या खेलने का स्टाइल देखकर, उनके क्लासमेट या उनके पेरेंट्स अटपटे सवाल पूछ सकते हैं, जिसके कारण आपके या आपके बच्चे के लिए समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। यहां तक कि, इसके कारण दूसरे बच्चे आपके बच्चे को चिढ़ा सकते हैं।
जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग से प्ले टाइम पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि पेरेंट्स आमतौर पर अपने बच्चों को हर तरह के खिलौनों से खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं या वे जिन खिलौनों से खेलना चाहें, उनसे खेलने देते हैं।
सेक्सुअलिटी पर जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग का प्रभाव आपकी सोच से बहुत कम पड़ता है। रिसर्च दर्शाते हैं, कि होमोसेक्सुअलिटी, वातावरण के बजाय, बायोलॉजी और जेनेटिक्स के द्वारा अधिक प्रभावित होती है। बल्कि 85% जेंडर ननकंफर्मिंग बच्चे हेटेरोसेक्सुअल वयस्क बनते हैं।
अपने बच्चे की जेंडर न्यूट्रल परवरिश करने के फायदे और नुकसान क्या होते हैं?
जेंडर न्यूट्रल पेरेंटिंग साइकोलॉजी मुश्किल हो सकती है। यहां पर इसके कुछ साइंस बेस्ड टिप्स दिए गए हैं:
‘जेंडर न्यूट्रल’ शब्द का इस्तेमाल ना करें। लेकिन, अपने बच्चे को जेंडर पर आधारित किसी भी तरह की पाबंदियों से आजाद रहने में मदद करें। इसके लिए, आप अपनी बोलचाल में से जेंडर पर आधारित शब्दों का इस्तेमाल ना करें। जैसे – ‘तुम कितनी स्मार्ट लड़की हो!’ के बजाय ‘तुम कितने स्मार्ट बच्चे हो!’ ऐसा कहें।
जेंडर पर आधारित रूढ़ीवादी तौर-तरीकों और लड़का और लड़की के बीच फर्क पर होने वाले फोकस पर नजर रखें। गुलाबी रंग को लड़की से और नीले रंग को लड़के से कभी न जोड़ें। इससे उनकी सोच और व्यवहार बदल सकता है। आप उन्हें जेंडर न्यूट्रल कपड़े पहना सकते हैं और उन्हें न्यूट्रल रंग पहनने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। हालांकि अगर आपका बच्चा स्वाभाविक रूप से गुलाबी या नीले रंग को पसंद करता है, तो उसे हतोत्साहित ना करें। उन्हें बताएं, कि सभी रंग बराबर होते हैं और वे अपने पसंदीदा रंग को चुन सकते हैं।
विपरीत जेंडर के साथ आराम से खेलना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे स्कूल में, घर पर या काम पर, भविष्य के रिश्ते निभाने के लिए वे तैयार हो पाएंगे। आप अपने बच्चे को मिक्स्ड जेंडर एक्टिविटी स्पोर्ट्स और प्ले ग्रुप में डाल सकते हैं।
जेंडर को खत्म करना आपका लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि जेंडर पर आधारित नियमों से आगे बढ़कर देखने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए और सभी इंटरेस्ट, करियर और हॉबी को जारी रखना चाहिए। अगर उनकी चुनौतियां और चुनाव जेंडर पर आधारित ना हों, तो आप इस बात पर आसानी से जोर डाल सकते हैं, कि समाज में जेंडर को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता है।
अपने बच्चों का परिचय रोल मॉडल से कराएं, जैसे पुरुष नर्स, महिला इंजीनियर और मैकेनिक, आदि। अगर आपका बच्चा जेंडर पर आधारित नियमों को चुनौती देने वाले लोगों के बारे में जानेगा, तो उसे भी इसके लिए प्रोत्साहन मिलेगा और वह खुद को आसानी से अभिव्यक्त कर पाएगा।
अध्ययन दर्शाते हैं, कि एक पुरुष के मस्तिष्क और महिला के मस्तिष्क में कोई अंतर नहीं होता है। हालांकि दोनों ही जेंडर्स में बायोलॉजिकल फर्क होते हैं, पर दूसरे पहलुओं में उनके मिक्स लक्षण होते हैं, जो कि दोनों ही जेंडर में पाए जाते हैं। इसलिए, अपने बच्चे को एक इंसान के रूप में देखना जरूरी है, ना कि लड़का या लड़की की तरह।
अपने बच्चे को यह सिखाना और समझाना बहुत जरूरी है, कि जेंडर न्यूट्रल होना दूसरों के लिए अजीब बात हो सकती है, लेकिन यह बिल्कुल सही है, सकारात्मक है और सामान्य है। इसमें कोई बुराई नहीं है।
रोल प्ले और ड्रेसिंग-अप जैसी एक्टिविटीज में एक सुरक्षित वातावरण में अपने बच्चे को एक्सपेरिमेंट करने की आजादी दें। वे जो भी चुनाव करें, उसमें उन्हें सपोर्ट करें। उनका चुनाव कुछ ऐसा हो सकता है, जो कि उनके बायोलॉजिकल जेंडर की खासियत से अलग हो। लेकिन आप उनकी संभावनाओं को खुला रहने दें।
अपने बच्चों को स्टीरियोटाइप और पक्षपात को पहचानने में मदद करें। उन्हें यह समझने में मदद करें, कि हम जिस समाज और दुनिया में रहते हैं, वह जेंडर आधारित भेदभाव का समर्थन करता है। इससे उन्हें भविष्य में आसानी होगी और यह समझने में मदद मिलेगी, कि जेंडर पर आधारित भेदभाव के पीछे का कारण क्षमता नहीं, बल्कि एक संस्कृति के कारण है, जो कि स्टीरियोटिपिकल है।
खिलौनों को लड़कों के और लड़कियों के खिलौने कहकर भेदभाव ना करें। अगर आप उन्हें जेंडर न्यूट्रल परवरिश दे रहे हैं, तो इससे उनके साइकोलॉजिकल और फिजिकल विकास पर प्रभाव पड़ सकता है। अपने बच्चे को विभिन्न खिलौनों से खेलने दें, जिनमें लड़कों और लड़कियों के खिलौने के तौर पर भेदभाव ना किया गया हो।
सबसे जरूरी बात यह है, कि बच्चे को जेंडर न्यूट्रल परवरिश देने का निर्णय, बच्चे को सामाजिक बदलाव का प्रतीक बनाने के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि यह बच्चे को अपनी पहचान तय करने के लिए आजादी देने के लिए होना चाहिए, जो कि जेंडर संबंधी किसी भी सीमा से आजाद हो।
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