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डिप्रेशन एक मूड डिसऑर्डर है, जो कि गर्भावस्था के दौरान किसी स्टेज पर कुछ महिलाओं को प्रभावित करता है। इसके लक्षण हार्मोनल इंबैलेंस से इतने मिलते जुलते हैं, कि अक्सर शुरुआती स्टेज पर सही तरह से इसकी जांच नहीं हो पाती है। प्रेगनेंसी के दौरान डिप्रेशन होने पर समय से पहले डिलीवरी, पेट में पल रहे शिशु का धीमा विकास और जन्म के समय वजन कम होना जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा कभी-कभी महिलाओं को बच्चे की डिलीवरी के बाद भी डिप्रेशन होता है जिसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। ऐसी महिलाओं को डिप्रेशन से जूझते हुए अपने बेबी का खयाल रखना होता है और उसे ब्रेस्टफीड कराना भी इसी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ब्रेस्टफीडिंग के दौरान, एंटीडिप्रेसेंट लेने से बच्चे में डिफेक्ट्स होने का खतरा संभव है। इसलिए डॉक्टर को किसी भी दवा के फायदे और खतरों के बीच संतुलन बनाते हुए इलाज का फैसला करना पड़ता है। कुछ अन्य स्टडीज से यह पता चला है, कि कुछ खास एंटीडिप्रेसेंट दवाएं लेने के लिए सुरक्षित होती हैं, क्योंकि इनमें दवा की बहुत ही कम मात्रा ब्रेस्ट मिल्क से होते हुए बच्चे तक जा पाती है।
तनाव, एंग्जायटी, हार्मोनल फैक्टर आदि पोस्टपार्टम डिप्रेशन को बढ़ावा देते हैं, जो कि महिलाओं में एक आम समस्या है। आमतौर पर ऐसा देखा गया है, कि तनाव और एंग्जायटी ब्रेस्ट मिल्क को प्रभावित कर सकते हैं। मां के मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव दूध के प्रोडक्शन पर पड़ता है और जो महिलाएं मिल्क प्रोडक्शन को लेकर चिंतित रहती हैं, उनमें दूध की सप्लाई को बड़ा धक्का लगता है। तनाव से ब्रेस्ट मिल्क का फ्लो भी धीमा पड़ जाता है और यह निश्चित रूप से बच्चे के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है।
एंटीडिप्रेसेंट, दूसरी दवाओं के साथ मिलकर कैसा रिएक्ट करेंगी, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। सावधानी के तौर पर प्रेगनेंसी के शुरुआती दौर में महिलाओं को विशेष रुप से एंटीडिप्रेसेंट दवाएं नहीं लेने की सलाह दी जाती है। स्तनपान कराने के दौरान एंटीडिप्रेसेंट लेने से यह खतरा और भी बढ़ जाता है। इससे जो संभावित कॉम्प्लिकेशंस आ सकते हैं, वे हैं – लॉस ऑफ प्रेगनेंसी या बर्थ डिफेक्ट्स, मिसकैरेज या प्रीमैच्योर बर्थ। डॉक्टर लक्षण, बच्चे की उम्र, मां के इमोशनल लगाव आदि के आधार पर एंटीडिप्रेसेंट प्रिस्क्राइब करते हैं।
डिप्रेशन के इलाज के लिए एंटीडिप्रेसेंट दवाओं को एकमात्र उपाय के तौर पर नहीं देखना चाहिए। एंटीडिप्रेसेंट और लेक्टेशन से संबंधित कई खतरे हैं, लेकिन सबसे बड़ा खतरा होता है, डिप्रेशन का इलाज न करना। कोई भी एंटीडिप्रेसेंट लेते समय सावधानियां बरतना बहुत जरूरी है। इनमें से कुछ टिप्स नीचे दी गई हैं:
डिप्रेशन का इलाज जटिल है और किसी महिला को एंटीडिप्रेसेंट देने से पहले मां और बच्चे को होने वाले खतरे के बारे में विश्लेषण कर लेना बेहतर है।
कभी-कभी माँओं में कुछ लक्षण दिखते हैं। ऐसे में बच्चे का कुछ दिनों के लिए सावधानी पूर्वक निरीक्षण करने की जरूरत होती है, ताकि बच्चे में मौजूद लक्षणों की पहचान और इलाज हो सके।
एंटीडिप्रेसेंट दूसरी दवाओं के साथ मिलकर रिएक्ट कर सकती हैं और इसलिए डॉक्टरों को इसे लेकर सावधान रहना चाहिए और मरीज को लगातार मॉनिटर करना चाहिए।
हर मरीज पर हर दवा का रिएक्शन अलग तरह से हो सकता है, ऐसे में ऐसी दवाओं के गलत प्रभावों के बारे में सावधान रहना जरूरी है।
स्टडीज से यह पता चला है, कुछ एंटीडिप्रेसेंट दवाएं ब्रेस्टफीडिंग के दौरान भी ली जा सकती हैं, क्योंकि इनमें दवा की बहुत ही कम मात्रा ब्रेस्ट मिल्क में जा पाती है।
डॉक्टर को एक सिंगल दवा (मोनोथेरेपी) के सबसे कम इफेक्टिव डोज को प्रिसक्राइब करना चाहिए, ताकि बच्चे तक उसकी पहुँच कम से कम हो सके, खासकर अगर महिला ब्रेस्टफीड कराने के साथ गर्भवती भी हो गर्भावस्था की पहली तिमाही में हो तो।
यहाँ पर समझने वाली मुख्य बात यही है, कि अगर एक महिला को डिप्रेशन महसूस हो रहा है, तो उसे डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। प्रेगनेंसी या डिलीवरी के बाद डिप्रेशन का इलाज करना आसान नहीं होता है। इस दौरान दवा लेने के खतरों और फायदों के बीच के संतुलन को देखना बहुत जरूरी है। ऐसे में डॉक्टर की मदद से सही निर्णय लेने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि लंबे समय के लिए अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित हो सके।
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