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टेक्नोलॉजी के कारण जीवन पहले से बहुत ज्यादा आसान हो गया है। नए गैजेट्स से नवजात शिशु के सबसे पहले पलों की फोटो क्लिक करना सिर्फ कुछ ही देर की बात है। पेरेंट्स होने के नाते जाहिर है आप भी अपने बच्चे की फोटोज क्लिक करके उसकी मेमोरीज को संभाल कर रखना चाहती होंगी। पर हर पेरेंट्स के दिमाग में एक ही सवाल आता है कि क्या कैमेरे की फ्लैश लाइट बच्चे की आँखों के लिए सही है? खैर यह अक्सर पूछा जाने वाला सवाल है। यदि आप फोटोग्राफी के फ्लैश से बच्चे की आँखों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जानना चाहती हैं तो आगे पढ़ें।
न्यूबॉर्न बच्चे की आँखों पर कैमरे की फ्लैश लाइट के प्रभावों के बारे में कई तर्क व वितर्क हो चुके हैं। कई लोग मानते हैं कि न्यूबॉर्न बच्चे के सेंसिटिव अंगों पर तेज लाइट का प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ब्राइट लाइट के सामने आने से, जैसे कैमरे की फ्लैश लाइट से बच्चे की आँखें खराब हो सकती हैं। हालांकि इस विषय पर बहुत ज्यादा रिसर्च हुई है और यह ऑब्जर्व किया गया है कि कैमरा फ्लैश से बच्चे की आँखों पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है। अन्य लाइट के स्रोतों की तरह ही जैसे धूप या ट्यूबलाइट से बच्चे की आँखें कुछ देर के लिए चकाचौंध हो जाती हैं। पर इससे बच्चे के आँखों की रोशनी पर कोई भी हानि नहीं होती है।
हालांकि एक अंधेरे कमरे या कम लाइट में बच्चे की फोटो क्लिक करने के लिए फ्लैश फोटोग्राफी का उपयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह लाइटिंग इफेक्ट उत्पन्न करता है जिससे रेटिना में स्ट्रेस होता है और कुछ देर के लिए बच्चे की आँखों के आगे अंधेरा हो सकता है। हालांकि यह बच्चों के लिए ही नहीं है। अंधेरे कमरे में फ्लैश फोटोग्राफी का उपयोग करने से बड़ों की आँखों पर भी प्रभाव पड़ता है।
डॉक्टरों का मानना है कि फ्लैश लाइट का उपयोग करके न्यूबॉर्न बच्चों की फोटो क्लिक करने से उनकी समस्याओं का पता करने में मदद मिलती है। फ्लैश से फोटोज में रेड आई इफेक्ट होता है और जिस भी व्यक्ति कि आँखों के बीच का भाग बिलकुल सही होगा उसकी फोटोज क्लिक करने पर कॉर्निया की जगह पर लाल स्पॉट आ जाएगा। यह न्यूबॉर्न बेबीज में भी होता है और यदि एक आँख में रेड आई इफेक्ट दूसरी आँख से ज्यादा ब्राइट है तो इसका अर्थ है कि आपको डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
यह गलत कहा गया है कि कैमरे के फ्लैश लाइट से न्यूबॉर्न बच्चे की आँखें खराब हो जाती हैं। बहुत रिसर्च करने के बाद डॉक्टरों का कहना है कि कैमरा फ्लैश और बच्चे में कोई भी हानिकारक संबंध नहीं है। इसलिए बच्चों पर कैमरे के फ्लैश का उपयोग करने से आँखों की रोशनी में कोई भी डैमेज नहीं होता है।
ब्राइट लाइट के सामने आँखों की प्यूपिल सुरक्षा के लिए सिकुड़ने लगती है। एक महीने से कम उम्र के बच्चे या प्रीटर्म बच्चों का यह प्यूपिलरी रिएक्शन डेवलप नहीं होता है। इसलिए ब्राइट फ्लैश में प्यूपिल आँखों की सुरक्षा नहीं कर पाता है। ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर कैमरा में उतनी तेज फ्लैश लाइट नहीं होती है जिससे आँखें पूरी तरह से खराब हो जाएं। ज्यादातर रेटिना की प्रतिक्रिया होती है और बाद में नॉर्मल भी हो जाती है। पर नॉन-स्टैंडर्डाइज कैमरा या शादियों में उपयोग किए जाने वाले कैमरा में बहुत ज्यादा चमकने वाली फ्लैश लाइट होती है इससे संभावित डैमेज होने का खतरा है। पर एक महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों में यह सच नहीं है। कैमरे का उपयोग पूरी तरह से किया जा सकता है।
2015 में चीन के एक अखबार में यह खबर छापी गई थी कि एक वहाँ के एक परिवार में एक बच्चे की आँखें कैमरे के फ्लैश से खराब हो गई हैं। इस खबर के अनुसार कैमरा फ्लैश की वजह से 3 महीने के बच्चे की आँखें खराब हुई हैं जिसे डॉ एलेक्स लेविन ने चैलेंज किया था। वे फिलडेल्फिया के विल्स आई हॉस्पिटल में चीफ पेडिएट्रिक ऑफ्थैमोलॉजिस्ट और ऑक्युलर जेनेटिसिस्ट हैं। उनके अनुसार कैमरे के फ्लैश से किसी की आँखें खराब होना संभव ही नहीं है। इसके लिए नियमित रूप से आँखों की जांच होती है और आँखों की सर्जरी भी की जाती है जिसमें समस्या का पता लगाने के लिए मरीज की आँखों को तेज रोशनी के सामने लाया जाता है।
आँखें शरीर के सबसे सेंसिटिव अंगों में से हैं और न्यूबॉर्न बेबी की आँखें सबसे ज्यादा सेंसिटिव होती हैं। इसलिए पेरेंट्स होने के नाते आपको इस बात ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे की आँखों में बाहरी चीज से कोई भी हानि न हो। इसलिए बच्चे की आँखों को बचाने के लिए निम्नलिखित चीजों का पूरा ध्यान रखें, आइए जानें;
यद्यपि इस बारे में बहुत चर्चा हुई है कि कैमरा के फ्लैश से बच्चे की आँखों को हानि होने की संभावनाएं हैं पर ये सभी बातें मिथक प्रमाणित हुई हैं। इसे सुरक्षित माना जा सकता है क्योंकि नॉर्मल तरीके से बच्चों की फोटो क्लिक करने से उनकी नजर पर कोई असर नहीं पड़ता है।
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