टॉडलर (1-3 वर्ष)

लड़कों के लिए पॉटी ट्रेनिंग

यदि एक माता-पिता के दृष्टिकोण से देखा जाए तो बच्चे का पालन-पोषण उतना भी सरल नहीं है। बच्चे का डायपर बदलने से लेकर उसकी पॉटी ट्रेनिंग तक के सफर में एक दंपति को कई विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि लड़कों और लड़कियों की पॉटी ट्रेनिंग अधिकांशतः समान ही होती है लेकिन लड़कों को यह प्रक्रिया सिखाना अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। 

पॉटी ट्रेनिंग क्या है

छोटे बच्चों को सुसु और पॉटी करने के लिए टॉयलेट का उपयोग सिखाने की प्रक्रिया को पॉटी ट्रेनिंग कहा जाता है। शिशु डायपर के आदी होते हैं किंतु जब वे बड़े होने लगते हैं तो उन्हें टॉयलेट का उपयोग सिखाना या पॉटी ट्रेनिंग देना आवश्यक है। बच्चों को उनकी सही आयु में टॉयलेट का उपयोग करना सिखाना जरूरी है।

पॉटी ट्रेनिंग से बच्चे तुरंत टॉयलेट का उपयोग करना नहीं शुरू करते हैं, वे इसे धीरे-धीरे सीखते हैं। बच्चों का डायपर के बजाय टॉयलेट का उपयोग करना सीखने की इस पूरी प्रक्रिया को पॉटी ट्रेनिंग कहते हैं। लड़कों की पॉटी ट्रेनिंग के दौरान क्या करें और क्या न करें, इस बारे में पूरी जानकारी नीचे दी गई है। 

लड़कों को पॉटी ट्रेनिंग देना कैसे शुरू करें

बच्चों को पॉटी ट्रेनिंग देते समय लड़कों के मामले में अधिक धैर्य रखने की आवश्यकता होती है और यह माना जाता है कि लड़कियों की तुलना में लड़के अधिक समय तक डायपर पहनते हैं। अपने छोटे से बेटे को पॉटी ट्रेनिंग के दौरान पॉटी सीट या कमोड का उपयोग सिखाने हेतु उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित करना सबसे मुख्य कामों में से एक है। बेटे को टॉयलेट ट्रेनिंग देने से पहले आपको निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी है। 

बच्चे की आयु उसे बिना किसी समस्या के टॉयलेट या कमोड का उपयोग करना सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। माता-पिता को अपने बेटे को पॉटी ट्रेनिंग देना तब शुरू करना चाहिए जब वह पूरी तरह से तैयार हो या इससे ज्यादा जब वह शारीरिक रूप से यह प्रक्रिया सीखने में सक्षम हो जाए। 

आपके बच्चे की आयु भी उसे बिना किसी झंझट के ट्रेनिंग देने में बड़ी भूमिका निभाती है। एक अभिभावक को ट्रेनिंग तब शुरू करनी चाहिए जब बच्चा सीखने के लिए तैयार हो या इससे भी अधिक, जब वह शारीरिक रूप से ट्रेनिंग लेने में सक्षम हो।

वैसे तो यदि लड़कों की बात की जाए तो कुछ बच्चे 2 वर्ष की आयु में पॉटी ट्रेनिंग के लिए तैयार हो जाते हैं बल्कि कुछ 3 वर्ष की आयु के बाद इसकी शुरूआत करते हैं। टॉयलेट ट्रेनिंग या पॉटी ट्रेनिंग के लिए 3 साल की आयु बहुत अधिक लगती है लेकिन यदि आपका बच्चा तैयार नहीं है तो आपको पॉटी ट्रेनिंग के लिए उससे जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। 

इसके अलावा यदि आपका बेटा अपने छोटे भाई या बहन के आगमन, स्कूल बदलने या यात्रा करने जैसे अन्य परिवर्तनों का अनुभव कर रहा है, तो जब तक वह भावनात्मक रूप से इन सभी बदलावों का सामना करने में सक्षम न हो तब तक इंतजार करना उचित है।

  • शुरूआत में अपने बेटे को पॉटी ट्रेनिंग देने के लिए छोटी पॉटी सीट लाएं, लेकिन इससे पहले आपको पॉटी ट्रेनिंग की एक योजना तैयार करनी होगी। आपको तय करना होगा कि आप इसे कैसे व कब शुरू कर सकती हैं और यदि इस दौरान कोई प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न होती है तो आप उसका सामना कैसे कर सकती हैं? किंतु यदि आपका बेटा इसके लिए अभी तैयार नहीं है तो इसे बंद करने के लिए तैयार रहें और कुछ समय के बाद आप दोबारा शुरुआत कर सकती हैं। बच्चे की पॉटी ट्रेनिंग शुरू करने से पहले डॉक्टर से या डे केयर प्रोवाइडर से सलाह अवश्य लें।

अनुभव के आधार पर उनके महत्वपूर्ण सुझाव काफी मददगार साबित हो सकते हैं। अपनी योजना बना लेने के बाद इसे डे केयर प्रोवाइडर को भी दें और यह सुनिश्चित करें कि वे बच्चे से संबंधित आपको अन्य जानकारियां भी देते रहें। 

  • अलग-अलग बच्चों में पॉटी ट्रेनिंग का समय अलग-अलग होता है, इसलिए अभिभावक या माता-पिता को इसकी शुरूआत धीमी करनी चाहिए।रात की तुलना में अपने बेटे को दिन में पॉटी ट्रेनिंग दें इससे वह रात में गीला होने के कारण चिड़चिड़ा नहीं होगा और टॉयलेट का उपयोग करना सरलता से सीखेगा।

लड़कों को पॉटी ट्रेनिंग देना कब शुरू करें

किसी भी विशेषज्ञ ने पॉटी ट्रेनिंग शुरू करने के लिए कोई विशिष्ट समय निर्धारित नहीं किया है। यह लगभग 18 महीने से 3 साल की आयु के बीच किया जा सकता है और कुछ बच्चे ऐसे भी हो सकते हैं जो 4 साल के आसपास ही पॉटी ट्रेनिंग के लिए तैयार होते हैं। लेकिन पॉटी ट्रेनिंग शुरू करने से पहले आपको अपने बच्चे में कुछ ऐसे संकेतों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिनसे यह पता चलता हो कि वह इस प्रक्रिया के लिए तैयार है। 

लड़कों को पॉटी ट्रेनिंग शुरू करने के संकेत

पहली बार माता-पिता बनने वालों के लिए विशेषज्ञों ने कुछ विशिष्ट संकेतों का वर्णन किया है जिनकी मदद से आप अपने बच्चे की पॉटी ट्रेनिंग की योजना बना सकती हैं। इन संकेतों को आप शारीरिक, व्यावहारिक और संज्ञानत्मक रूप में विभाजित किया है, जो इस प्रकार हैं। 

  • शारीरिक संकेत: सबसे पहले आप यह देखना चाहेंगी कि आपका बेटा चलने के लिए शारीरिक रूप से विकसित हुआ है या नहीं। आप बच्चे के पर्याप्त मात्रा में सुसु करने तक भी इंतजार कर सकती हैं और साथ ही जब तक वह पॉटी आने के संकेतों को समझने और पहले से बताने में सक्षम नहीं हो जाता है तब तक आप इंतजार कर सकती हैं। यदि आपका लगभग 2 से 3 घंटों के दौरान या दिन में सोने के दौरान अपनी पैंट गीली नहीं करता है तो यह आपके बेटे के लिए पॉटी ट्रेनिंग की योजना बनाने में मदद कर सकता है।
  • व्यवहारिक संकेत: आपको तब तक इंतजार करना चाहिए जब तक कि आपका बेटा कम से कम पाँच मिनट तक एक स्थान पर चुपचाप न बैठने लगे। उसे अपनी पैंट को खुद से ऊपर और नीचे खींचना भी आना चाहिए। बच्चा जब डायपर के गीले होने पर चिड़चिड़ा होने लगे या फिर बोलकर अथवा हाव-भावों से पॉटी आने के संकेत देने लगे, तो यह पॉटी ट्रेनिंग शुरू करने का अच्छा संकेत है। इसके अलावा, यदि आप उसे दूसरे लोगों की बाथरूम संबधी आदतों में दिलचस्पी लेता देखें तो यही समय है जब आप उसके लिए टॉयलेट से जुड़ी आदतों की एक योजना तैयार कर सकती हैं। अन्य महत्वपूर्ण व्यावहारिक लक्षणों में आत्मनिर्भर होने की इच्छा, उपलब्धियों पर गर्व करना और सहयोगी होना शामिल हैं।
  • संज्ञानात्मक संकेत: 2 साल के बच्चे को पॉटी ट्रेनिंग देते समय कुछ संज्ञानात्मक (कॉग्निटिव) संकेतों पर भी ध्यान देना आवश्यक है।बच्चा, शारीरिक संकेतों को समझने में सक्षम होना चाहिए और जब भी आवश्यक हो, खुद से संकेत देने में भी सक्षम होना चाहिए। सरल और स्पष्ट निर्देशों का पालन करने में सक्षम होना, एक महत्वपूर्ण संज्ञानात्मक संकेत है जो किसी भी प्रशिक्षण को शुरू करने से पहले आवश्यक है। विशेषज्ञ इस बात पर भी जोर देते हैं कि बच्चों को खुद को साफ रखना सिखाने से ज्यादा, उन्हें अपने खिलौनों को साफ-सुथरा रखना सिखाएं। अपने बेटे को सुसु और पॉटी के बारे में बताने के लिए कुछ शब्दों का उच्चारण या हाव-भाव भी सिखाएं जिसे वह आवश्यकता पड़ने पर सरलता से उपयोग कर सके।

ऊपर दिए हुए संकेतों की सहायता से अभिभावक लड़कों की पॉटी ट्रेनिंग की आयु निर्धारित कर सकते हैं।

लड़कों को पॉटी ट्रेनिंग देने के टिप्स

माता-पिता होने के नाते आपको बच्चे को आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने में मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। पॉटी ट्रेनिंग के निम्नलिखित उपाय आपके बच्चे की विकास यात्रा में आपकी मदद कर सकते हैं।

  • छोटे बच्चों को नकल करना बहुत पसंद होता है इसलिए प्रयास करें कि आपका बेटा पॉटी ट्रेनिंग के लिए अपने पिता की मदद ले और उनकी नकल करे। ऐसा करने से वह इसका आदि हो जाएगा और उसे अपनी दिनचर्या में आजमाना शुरू कर देगा।
  • पॉटी ट्रेनिंग को स्टेप बाई स्टेप ही करना आवश्यक है। विशेषज्ञों की राय है कि बच्चे को पॉटी ट्रेन करने के लिए, बच्चों वाली पॉटी सीट का उपयोग सिखाना सही रहता है जिस पर वह आराम से बैठ सके और वह अपने पांव जमीन पर रख सके। बच्चों वाली पॉटी सीट को वह अपना समझेगा और उसे एक खिलौने के रूप में लेगा। इसकी मदद से वह सरलता से पॉटी करने में सक्षम हो सकता है। यदि आप अपने बेटे की पॉटी ट्रेनिंग 18 महीने की आयु से शुरू कर रही हैं तो यह करना आवश्यक है।
  • हालांकि, यदि आप बच्चे की 3 साल या उससे अधिक उम्र में पॉटी ट्रेनिंग की शुरूआत कर रही हैं तो आप अपने टॉयलेट के लिए एक आरामदायक अडैप्टर सीट खरीद सकती हैं। हालांकि, इसके साथ आपको बच्चे के पैरों के नीचे एक स्टूल भी रखना होगा ताकि वह आराम से बैठ सके। इससे वह ठीक से बैठना और सही ढंग से चढ़ना व उतरना सीख सकता है।

एक अतिरिक्त सलाह यह है कि यदि आप चाहें तो एक बिना यूरिन गार्ड वाली पॉटी सीट भी खरीद सकती हैं।

  • पॉटी ट्रेनिंग का यह चरण आपके बेटे को इस प्रक्रिया के लिए सहज कर सकता है। अपने बच्चे की पॉटी सीट पर उसका नाम लिखें, उसके पसंदीदा स्टिकर लगाएं, ऐसा करने से वह अधिक सहज अनुभव करेगा। बच्चे के लिए खरीदी हुई नई पॉटी सीट से पहले उसे खेलने दें, बार-बार बैठने व उठने दें और फिर कुछ दिनों के बाद उसमें उसे पॉटी करना सिखाएं। पॉटी ट्रेनिंग देते समय अपने बेटे को कोई खिलौना पकड़ा दें और फिर उसे सिखाएं, इससे उसके लिए यह प्रक्रिया मनोरंजक और सरल हो जाएगी।
  • अपने बच्चे को पिता या बड़े भाई की तरह बनने के लिए प्रेरित करें। उसे बताएं कि वह अपना मनपसंद अंडरवियर चुन कर इसे अपने पिता और भाई की तरह पहन सकता है। यदि शुरूआत में उसे मुश्किल होती है, तो उसे डायपर के ऊपर अंडरवियर पहनने दें। धीरे-धीरे वह डायपर छोड़कर केवल अंडरवियर पहनने के लिए तैयार हो जाएगा।
  • इस प्रक्रिया को अपने व्यक्तिगत कार्यों और अपने बच्चे की समय सारणी के आधार पर निर्धारित करना बहुत आवश्यक है। यदि आपका बेटा किसी डे-केयर या फिर किसी प्री-स्कूल में जाता है, तो पॉटी ट्रेनिंग की योजना उन्हें भी बताएं। चूंकि आपके बेटे को सीखने में थोड़ा समय लग सकता है इसलिए रात के समय या यात्रा के लिए कुछ डायपर व डिस्पोजेबल पैंट संभाल कर रखें।

  • सुसु या पॉटी आमतौर पर एक ही समय आती है इसलिए, अपने बेटे को पहले ठीक ढंग से सीट पर बैठना सिखाएं। पॉटी के लिए उसे बहुत देर तक न बैठाएं अन्यथा वह अगली बार से बैठना नहीं चाहेगा। जब आपका बेटा बैठकर सुसु और पॉटी करना शुरू कर दे, तो उसे खड़े होकर सुसु करना सिखाएं, इसके लिए भी वह अपने पिता की मदद ले सकता है।
  • जब आपके बेटे को पॉटी लगे तो उसकी पैंट उतार दें और उसे कुछ समय के लिए ऐसे ही रहने दें। पॉटी सीट को पास ही रखें ताकि संकेत मिलते ही आप उसे पॉटी के लिए बैठा सकें।
  • कार्य को सफलतापूर्ण करने पर अपने बच्चे को कोई इनाम दें, इससे उसे प्रेरणा मिलती रहेगी। यदि आप पहली बार में सफल नहीं होती हैं, तो सफल होने तक बार-बार प्रयास करती रहें। परंतु इस दौरान अपने बच्चे के लिए ढेर सारा प्यार, धैर्य, नवीनता और इच्छाशक्ति बनाए रखें। पॉटी ट्रेनिंग में आप उसके लिए फोटो वाली किताबें और कार्टून सीडी खरीद कर रख सकती हैं। यह बहुत मजेदार होता है और बच्चे इससे बहुत मजे से देखते व सीखते हैं।
  • यब आपके छोटा सा बेटा दिनभर में एक बार भी पैंट गीली नहीं करता है तो उसे रात में पॉटी ट्रेनिंग देना शुरू करें। इस प्रक्रिया में अधिक समय लग सकता है क्योंकि उसे कुछ समय तक पेशाब को रोक कर रखना सीखना होगा। यदि आपका बेटा बिना डायपर के सोना चाहता है तो उसे ऐसा करने दें। पहले कुछ दिन प्रायोगिक होते हैं और शायद वह बिस्तर गीला भी कर सकता है लेकिन धीरे-धीरे वह सुसु करने के लिए उठने लगेगा और फिर कुछ समय बाद वह सुसु को रातभर के लिए रोकना भी सीख जाएगा। बच्चे की पॉटी ट्रेनिंग में एक सप्ताह से लेकर कुछ महीने भी लग सकते हैं।

लड़कों को पॉटी ट्रेनिंग देते समय क्या करें और क्या न करें

लड़कों को पॉटी ट्रेनिंग देने से संबंधित ऊपर दी हुई जानकारी नए माता-पिता के सभी संदेह को खत्म कर सकती है। इस प्रक्रिया में आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इसके बारे में जानने के लिए निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान दें। 

क्या करें:

  • असीमित धैर्य बनाए रखें।
  • पॉटी ट्रेनिंग शुरू करने से पहले शारीरिक, व्यवहारिक और संज्ञानात्मक संकेतों का निरीक्षण करें।
  • योजना तैयार करने से पहले उसके प्री-स्कूल अध्यापक या डे केयर प्रोवाइडर से सलाह जरूर लें।
  • विभिन्न नए तरीकों को आजमाकर अपने बच्चे के लिए पॉटी ट्रेनिंग को मजेदार और प्रेरक बनाएं। इसमें कुछ किताबें व सीडी को शामिल करें और उसे दिखाएं। साथ ही उसकी प्रत्येक उपलब्धि को पुरस्कृत करें।

क्या न करें:

  • पॉटी ट्रेनिंग की शुरूआत से ही उस पर अधिक दबाव न डालें और लगातार उससे जबरदस्ती न करें।
  • एक बार में सभी स्तरों को प्राप्त करने का कोशिश न करें।
  • उसे डांटे नहीं या उसकी तुलना किसी और से न करें।
  • उससे अपनी हताशा जाहिर न करें क्योंकि वह आपसे डरना या आपके सामने हिचकिचाना शुरू कर सकता है।

पालन-पोषण एक ऐसी प्रक्रिया है जो बिलकुल भी सरल नहीं होती है, लेकिन हम आशा करते हैं कि इस लेख में विस्तार से बताए गए लड़कों के लिए पॉटी ट्रेनिंग टिप्स, युवा अभिभावकों को इस चुनौतीपूर्ण समय को आसानी से पार करने में मदद करेंगे।

यह भी पढ़ें:

बच्चे के साथ भारतीय पब्लिक टॉयलेट उपयोग करते समय ध्यान रखने योग्य 11 बातें
बच्चों का बिस्तर गीला करना (नॉक्टर्नल एनुरेसिस)

सुरक्षा कटियार

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