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लोमड़ी और सारस यानी मूल रूप से ‘द फॉक्स एंड द स्टॉर्क’ नाम से प्रसिद्ध यह कहानी सबसे पहले ग्रीक कहानीकार ईसप द्वारा लिखी या संभवतः सुनाई गई थी। यह कहानी एक चालाक और धूर्त लोमड़ी और उसके दोस्त सारस की है। लोमड़ी जब सारस को अपने घर दावत के लिए बुलाती है तो उसके साथ अपमानजनक व्यवहार करती है। सरल स्वभाव का सारस फिर अपने घर लोमड़ी को दावत के लिए बुलाता है और ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाकर लोमड़ी के साथ उसी तरह का व्यवहार करता है। लोमड़ी और सारस की यह पूरी कहानी क्या है जानने के लिए आगे पढ़िए।
नैतिक शिक्षा देने वाली इस कहानी के 2 मुख्य पात्र हैं –
एक बार की बात है, एक जंगल में एक लोमड़ी और एक सारस रहते थे। दोनों जानवर पड़ोसी थे। लोमड़ी धूर्त और चालाक स्वभाव की थी जबकि सारस सरल स्वभाव का था। एक दिन लोमड़ी ने अपने मनोरंजन के लिए सारस के साथ चालाकी करने की एक कुटिल योजना सोची। लोमड़ी ने सारस से कहा –
“आज मैं तुम्हें अपने घर दावत के लिए आमंत्रित कर रही हूँ। शाम को हम दोनों साथ में खाना खाएंगे।”
लोमड़ी की किसी भी चाल से अनजान सारस ने खुशी-खुशी उसका यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। शाम को तय समय पर सारस खाना खाने के लिए लोमड़ी के घर पहुंचा। लोमड़ी ने खाने में सूप बनाया था। उसने बड़ी चालाकी से दोनों के लिए वह सूप उथले बर्तन में परोसा और सारस के सामने रखा। यह देखकर सारस को बहुत अजीब लगा।
अपनी लंबी चोंच के कारण सारस उस बर्तन से सूप पी ही नहीं सकता था। वहीं दूसरी ओर लोमड़ी सामने बैठकर बड़ी आसानी से सारा सूप पी गई। अपने पड़ोसी की निराशा को देखकर भी अनजान बनते हुए उसने सारस से कहा –
“अरे तुम तो सूप पी ही नहीं रहे, शायद तुम्हें अच्छा नहीं लगा। लाओ मैं ही इसे खत्म कर देती हूँ।”
यह कहकर लोमड़ी सारस को परोसा हुआ सूप भी चट कर गई। सारस समझ गया कि लोमड़ी ने जानबूझकर इस तरह के बर्तन का इस्तेमाल किया जिससे वह तो आसानी से सूप पी सकती थी लेकिन सारस की चोंच सिर्फ गीली होती। सारस लोमड़ी के इस व्यवहार से ठगा सा महसूस करने लगा। उसे यह सोचकर बहुत बुरा लगा कि अपने घर पर दावत के लिए बुलाकर भी लोमड़ी ने उसे भूखा रखा। पड़ोसी होते हुए भी लोमड़ी द्वारा इस तरह अपमानित होने से वह बहुत नाराज था लेकिन उसने लोमड़ी से कुछ नहीं कहा। सारस ने मन ही मन ठान लिया कि वह लोमड़ी से अपने इस अपमान का बदला जरूर लेगा और उसे सबक सिखाएगा।
कुछ दिनों बाद, सारस ने लोमड़ी को अपने घर पर साथ में भोजन करने के लिए आमंत्रित किया। लोमड़ी बहुत खुश हुई और सोचने लगी कि सारस कितना मूर्ख है जिसे खुद का अपमान भी समझ नहीं आया। तय दिन और तय समय पर लोमड़ी सारस के घर खाना खाने के लिए पहुँची। सारस ने अपनी पसंदीदा मछली की डिश बनाई थी। उसके घर में डिश की बेहतरीन सुगंध फैली हुई थी। लोमड़ी के मुंह में पानी आ गया।
सारस ने लोमड़ी के सामने मछली की डिश परोसी। लेकिन इस बार, सारस ने लोमड़ी की ही तरह चालाकी करते हुए खुद के हिसाब से बर्तन का इस्तेमाल किया था। उसने एक पतली गर्दन और छोटे मुंह वाले लंबे जार में डिश परोसी।
सारस ने जार में चोंच डाली और स्वादिष्ट मछली का आनंद लेने लगा। सामने बैठी लोमड़ी उसका मुंह ताकती रह गई क्योंकि उसे सिर्फ मछली की सुगंध ही मिल रही थी, वह जार से खाना खा ही नहीं सकती थी।
भूख से बिलबिलाई लोमड़ी ने अपना आपा खो दिया और वह सारस को बुरा भला कहने लगी। सारस ने एकदम शांत रहकर उसे जवाब दिया –
“किसी को अपने पड़ोसियों के साथ तब तक चालाकी नहीं करनी चाहिए जब तक कि वे स्वयं उसी व्यवहार को सहन न कर सकें।”
लोमड़ी समझ गई कि सारस ने उसे सबक सिखाने के लिए दावत पर बुलाया था। वह शर्मिंदा होकर और अपना सा मुंह लेकर घर को वापस लौट गई।
लोमड़ी और सारस की कहानी से यह सीख मिलती है कि जो हमारे साथ जैसा बर्ताव करता है उसके साथ वैसा ही करना चाहिए। ‘जैसे को तैसा’ यानी यदि कोई आपके साथ बुरा करे तो उसे उसकी ही तरह जवाब दें वहीं अगर किसी ने आपके साथ अच्छा व्यवहार किया है तो उसे भूले नहीं और उसके साथ अच्छे से रहें।
धूर्त लोमड़ी और होशियार सारस की यह कहानी नैतिक कहानियों के अंतर्गत आती है क्योंकि यह कहानी हमें जीवन में धूर्त और चालाक लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है यह बताती है।
लोमड़ी और सारस की कहानी ईसप फेबल्स से ली गई है।
लोमड़ी और सारस की कहानी में लोमड़ी चालाक स्वभाव की थी।
लोमड़ी और सारस की कहानी का नैतिक यह हमें दूसरे की सीमित क्षमताओं का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और जैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ करेंगे वैसा ही वे हमारे साथ करेंगे।
ग्रीक कहानीकार ईसप को उस शैली का आविष्कार करने का श्रेय दिया जाता है जिसे हम फेबल्स यानी दंतकथाएं कहते हैं। ईसप की दंतकथाएं, जिन्हें ईसपिका के नाम से भी जाना जाता है, में जानवरों की कहानियों के द्वारा बच्चों को नैतिकता के पाठ सिखाए गए हैं। ईसप की ये कहानियाँ मानव स्वभाव के हर महत्वपूर्ण पहलू को छूती हैं और सैकड़ों सालों से दुनिया भर की लगभग हर संस्कृति में ये बच्चों को सुनाई जाती रही हैं।
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