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मातृ दिवस पर 30 सबसे नई कविताएं

पूरी दुनिया में माँ की उस भूमिका को सेलिब्रेट करने के लिए मदर्स डे मनाया जाता है जो हमारे जीवन को संवारती है और पूरे परिवार को एक साथ रखती है। यह दिन लगभग 46 देशों में एक वार्षिक उत्सव बन चुका है जिस लिस्ट में यूएस, यूके, जापान, इटली, कनाडा, भारत, बेल्जियम, चीन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं। मदर्स डे पर माँ के लिए हिंदी में एक छोटी सी कविता लिखना और उनके लिए एक प्यारा गिफ्ट खरीदना इस दिन की परंपरा है।

मदर्स डे के दिन माँ की मेमोरीज को अधिक स्पेशल बनाने के लिए आप उनका पसंदीदा गाना गा सकते हैं या हिंदी में एक छोटी सी कविता भी लिख सकते हैं। इस साल मदर्स डे 9 मई को सेलिब्रेट किया जाएगा जो महीने का दूसरा इतवार होगा।

मदर्स डे पर कविताएं – बेटों की तरफ से

माँ और बेटे का रिश्ता एक स्पेशल छाप छोड़ता है। जहाँ माँ बेटे के पीछे-पीछे लगी रहती है, उसकी हर जरूरत का ध्यान रखती है वहीं बेटा अपने कामों पर इतना व्यस्त रहता है कि माँ के प्यार को नजरअंदाज कर देता है। यदि आप अपनी माँ के उस प्यार को मानते हैं और उसके लिए कुछ स्पेशल करना चाहते हैं तो मदर्स डे से अधिक बेहतरीन दिन कोई भी नहीं है। आप कुछ प्रसिद्ध कवियों की कविताओं और प्यारे-प्यारे गिफ्ट्स से माँ के इस दिन को स्पेशल बनाएं और उसे सारी खुशियां दें। यदि आप माँ को डेडीकेट करने के लिए प्रसिद्ध कवियों की बेहतरीन कविताएं हिंदी में खोज रहे हैं तो यहाँ पर बेटों की तरफ से माँ के लिए विशेष हिंदी कविताओं की लिस्ट दी हुई है, आइए जानें;

1. मैं अपने छोटे मुख कैसे करूं तेरा गुणगान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..

माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया,
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया..
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..

दे मातृत्व देवकी को यशोदा की गोद सुहाई..
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई,
सारे ब्रज मंडल में गूंजी थी वंशी की तान..
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान..

तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई,
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई..
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान…

कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी..
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी,
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण..
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान…

‘विकल’ न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी,
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी..
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान,
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान…

– जगदीश प्रसाद सारस्वत ‘विकल’

2.  माँ तू एक पेड़ है
तेरी छांव में मैं रहूं उम्र भर
तेरी डाली से निकला हु मैं
तुझी से जिंदा हु मैं
कभी सूख जाउ पत्तो सा
फिर भी टूट कर तेरी गोद में रहू
धूप हो बारिश तुझसे लिपट जाउं मैं,
हवा जब मुझे उड़ा ले जाये तुझी में चिपक जाउ मैं,
तेरी जड़ मैं समा जाउ मैं,
तुझसे शुरू हु तुझ ही पर खत्म हो जाउं मैं ,
तेरे आँचल सा फैला है विस्तार तेरा,
मुझमे तू है तुझसे है पूरा सन्सार मेरा ,

माँ तू एक नदी है
तेरा एक कतरा हु मैं,
तुझमे बह रहा हु मैं,
तुझ से कह रहा हु मैं
की ऑक्सीजन हो तुम मेरी
पिता हाइड्रोजन है
तेरी भाप बन जाउं मैं
मिटने के बाद ,
कभी अलग न होउ
तुझमे सिमटने के बाद,
माँ धार का हिस्सा है प्यार तेरा
मुझसे तू तुझमे है पूरा संसार मेरा

– श्यामन्जु महावीर

3. मेरी ही यादों में खोई
अक्सर तुम पागल होती हो
माँ तुम गंगाजल होती हो!

जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आँसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों-सा
मन का सूना संवत्सर

जब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।

व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
संबंधों की डोर पकड़ कर
आजीवन झूला करती हो

तुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।

पल-पल जगती-सी आँखों में
मेरी ख़ातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियां बजाती

जब-जब ये आँखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।

हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारें

तुझ पर फूल चढ़ाएं कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।

– जयकृष्ण राय तुषार

4. खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से
माँ क्या सही होती, पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से

माँ की दुआ तो हर हाल में कबूल होती है
माँ के रहते जन्नत जमीन पर वसूल होती है
फरिश्ते भी जिसकी चाहत पाने को तरसते
माँ तो वो अद्भुत अनोखा प्यारा फूल होती है
तुम से ज्यादा है कौन चमकीला,पूछ लेना ये बात तुम सितारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से

माना माँ की बोली कभी कभी कड़वी,खारी होती है
पर माँ हर गुड़ शक्कर,हर मीठे से प्यारी होती है
चाहे अनपढ़ ही क्यूं ना हो कोई भी माँ जमीन की
पर उसकी सीखों में जीवन जीने की बात छुपी सारी होती है
सुंदर होती है हर माँ तो,जमीन के हसीन से हसीन नजारों से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर,अपनी आँख के इशारों से

माँ तो जीती है हजारों सदियों तक,वो कभी भी ना मरती है
माँ हर रूह में,हर धड़कन में जीवन जीने का हौसला भरती है
हर देवता से बहुत ज्यादा बड़ी होती है माँ की शख्सियत,समझो इसे
रब भी वो कर नहीं सकता, जो औलाद की खातिर माँ करती है
बचा लेती है माँ अपनी औलाद को दुःख दर्द के बेदर्द अंगारो से
खुशियाँ को बुला लाती है जमीन पर, अपनी आँख के इशारों से
माँ क्या सही होती पूछ लेना कभी ये बात तुम प्यारी बहारों से
नही जरूरत माँ के रहते किसी और चाहत की हमें जमाने में
भीगे रहते है हम तो सदा, माँ की ममता के हसीन आबशारों से

– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

5. माँ के होते कभी नहीं होती जीवन में कठिनाई है
माँ पूरी उम्र बनकर रहती हमारी परछाई है

दिखता है जिसमे केवल स्नेह माँ तो वो नजर है
कभी नहीं मरती कोई भी माँ, वो तो परी अजर अमर है

लोक परलोक की, माँ ही होती है सबसे खूबसूरत आत्मा
माँ के कदमों में सदा झुका रहता है पूर्ण परमात्मा

माँ ही धरा पर जीवन लिखने वाली अनोखी कलम है
समझो औरत का जन्म ही धरा पर जीवन का जन्म है

माँ राहत,माँ चाहत,माँ पहचान,माँ ही सम्मान है
माँ जरूरत,माँ मूरत, माँ निदान, माँ ही अभिमान है

माँ जमीन पर रहकर जन्नत का अहसास दिलाती है
माँ छोटे परिंदों को हौसलों का बड़ा आकाश दिलाती है

माँ सितार,माँ बहार माँ ही देवों की अद्भुत बोली है
माँ अधिकार,माँ प्यार, माँ कंगन, माँ ही चंदन रोली है

माँ सदा सुखों से करवाती अपनी औलाद की मुलाकात है
पहुँचाती जो रूह को सुकून माँ वो चांदनी रात है

जो महकाती सांसो को माँ की चाहत वो कस्तूरी है
जिस पर है सारी धरा आश्रित माँ ही वह धुरी है

माँ का प्रेम ही दुनिया का सबसे सुगंधित चन्दन है
नीरज की ओर से हर माँ को शत शत वंदन है

– नीरज रतन बंसल ‘पत्थर’

6. आज मेरा फिर से मुस्कुराने का मन किया।
माँ की ऊंगली पकड़कर घूमने जाने का मन किया॥
उंगलियाँ पकड़कर माँ ने मेरी मुझे चलना सिखाया है।
खुद गीले में सो कर माँ ने मुझे सूखे बिस्तर पे सुलाया है॥
माँ की गोद में सोने को फिर से जी चाहता है।
हाथो से माँ के खाना खाने का जी चाहता है॥
लगाकर सीने से माँ ने मेरी मुझको दूध पिलाया है।
रोने और चिल्लाने पर बड़े प्यार से चुप कराया है॥
मेरी तकलीफ में मुझ से ज्यादा मेरी माँ ही रोइ है।
खिला-पिला के मुझको माँ मेरी, कभी भूखे पेट भी सोइ है॥
कभी खिलौनों से खिलाया है, कभी आंचल में छुपाया है।
गलतियाँ करने पर भी माँ ने मुझे हमेशा प्यार से समझाया है॥
माँ के चरणों में मुझको जन्नत नजर आती है।
लेकिन माँ मेरी मुझको हमेशा अपने सीने से लगाती है॥

– हरिवंश राय बच्चन

7. मोतियों सा भरा समंदर, लहरों सी उतार-चढ़ाव, माँ,
उम्मीदों से भरा शहर जैसे, कोई ठहरी झील सी गाँव, माँ,
शुभकामनाओं की लड़ी, आशीषों की बड़ी छांव, माँ,
सूरज माथे की बिंदिया, चाँद तेरे चेहरे का ताव, माँ,
भोर में उषा की लालिमा, गोधूलि में उड़ता ठहराव, माँ,
सावन में तेरा पल्लू छाता, सर्द ऋतु में बने अलाव, माँ
बाबुल आंगन की नाजुक परी मां की बगिया का पुष्पलता, माँ,
दुःख सहती, हँसती, बिना गम के, सुखों का बहाती दरियाव, माँ,
पुत्र, पति, परिवार की पालक, बिटिया संग रखे सखीभाव, माँ,
देना ही देना, कर्म आजीवन, तेरे आंचल में नहीं अभाव, माँ
मंज़िल की पथ प्रदर्शक, जीत का बड़ा उमहाव, माँ,
वात्सल्य करुणा की मूरत, प्रेम का अद्भुत अमिट स्राव, माँ,
आजीवन काम आया, एक मात्र तेरा ही सुझाव, माँ,
मरण के जग में पथ अनेक, जन्म का एक ही पर्याप्लाव, माँ।
मैं, तेरे आँचल का फूल, तुम हो, मेरे जीवन का पड़ाव माँ।।

– डी के निवातिया

8. माँ की ममता है अनमोल,
जीवन में उसका नहीं कोई मोल।
उसके नजरो से हमने दुनिया को देखा और जाना,
जीवन जीना सीखा और अपने-परायों को पहचाना।
मेरी गलतियों के बावजूद प्रेम माँ का हुआ ना कम,
मेरे तरक्की के लिए उसने प्रयास किया हरदम।
मेरे सुख मेरे दुख को उसने अपना माना,
मेरी हुनर और कार्यकुशलता को उसने ही पहचाना।
जब मेरे विफलताओं पर सभी ने किया उपहास,
मेरी माँ ने दी मुझे सांत्वना नही किया कभी निराश।
माँ की ममता ही है हमारे जीवन का आधार,
जो हजारों कष्ट सहकर भी करती हमारे सपनों को साकार।
उसकी ममता का ना कोई आरंभ है ना अंत,
वास्तव में हमारे प्रति माँ की ममता है अनंत।
इसलिए तो माँ की ममता का नही है कोई मोल,
यही कारण है कि सब कहते है माँ का प्रेम है अनमोल।
तो आओ इस मातृ दिवस शपथ ले सदा करेंगे माँ का सम्मान।
और गलत बातों से कभी नहीं करेंगे माँ की ममता का अपमान।

– योगेश कुमार सिंह

9. माँ ममता की खान है, धरती पर भगवान!
माँ की महिमा मानिए, सबसे श्रेष्ठ-महान!
माँ कविता के बोल-सी, कहानी की जुबान!
दोहो के रस में घुली, लगे छंद की जान!
माँ वीणा की तार है, माँ है फूल बहार!
माँ ही लय, माँ ताल है, जीवन की झंकार!
माँ ही गीता, वेद है, माँ ही सच्ची प्रीत!
बिन माँ के झूठी लगे, जग की सारी रीत!
माँ हरियाली दूब है, शीतल गंग अनूप!
मुझमे तुझमे बस रहा, माँ का ही तो रूप!
माँ तेरे इस प्यार को, दूँ क्या कैसा नाम!
पाये तेरी गोद में, मैंने चारों धाम!

– सत्यवान सौरभ

10. ममता की मूरत
शक्ति की पूरक
हृदय में प्यार अपार
शांत शीतल मन
हमेशा तत्पर रहने का प्रण
श्रद्धेय, स्नेही, निश्चल, निर्मल
यद्यपि अति साधारण
मेरी माँ

जन्म दिया
उंगली पकड़ के चलना सिखाया
सिखा तुमसे देखना, समझना, परखना
इस दुनिया को
जीवन की नैया को, संभालना
दुख के भवसागर पार करना
सुख के अवसर मिल बांट करना
ये सब भी तो तुमने ही बताया
मेरी माँ

कहाँ तय कर पाता
जीवन का यह लम्बा सफ र
रातों को जागना
संयम रखना
हर मुश्किल में अपनों को संभालना
सभी कुछ तो तुम्हीं से समझा, सीखा, परखा
मेरा अस्तित्व तुझसे अर्जित
यह जीवन तुझको समर्पित
मेरी माँ

– मनीष मूंदड़ा

मदर्स डे पर कविताएं – बेटियों की तरफ से

परियों से पहचान लिए बेटियां माँ का एक सपना होती हैं जिसे पूरा करते हुए वो अपनी जिंदगी बिता देती है। अब बारी बेटियों की है मदर्स डे पर माँ के लिए हिंदी में एक कविता तैयार करके आप अपनी माँ को जरूर सुनाएं और उसके दिन को आनंद से भर दें। मदर्स डे पर विशेष प्रसिद्ध कवित्रियों की वो हिंदी कविताएं कौन सी हैं, आइए जानें;

1. मेरे सर्वस्व की पहचान
अपने आँचल की दे छाँव
ममता की वो लोरी गाती
मेरे सपनों को सहलाती
गाती रहती, मुस्कुराती जो
वो है मेरी माँ।

प्यार समेटे सीने में जो
सागर सारा अश्कों में जो
हर आहट पर मुड़ आती जो
वो है मेरी माँ।

दुख मेरे को समेट जाती
सुख की खुशबू बिखेर जाती
ममता की रस बरसाती जो
वो है मेरी माँ।

– देवी नांगरानी

2. मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे|

जिस उंगली को हाथों थामे
जीवन पथ पर चलना सीखा,
प्राण ऋणी हैं, जिस अमृत के
उस अमृत बिन जीवन फीका,
याद नहीं करने को कहते
बंधु- बांधव, हित में मेरे,
किन्तु भूलकर हर्ष मनाऊँ
इस से अच्छा जीवन छूटे।

बहुत कठिन है सूखे मरुथल
में पानी बिन प्यासे चलना,
मरीचिका से आस लगाए
अपने को ही खुद से छलना,
मेरा हृदय बना है तेरी
स्मृतियों से सुसज्जित एक आंगन,
जैसे चौबारा तुलसी का
पूजा का यह क्रम न टूटे

मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे।

– मानोशी

3. माँ की याद सुहानी सी
महिमा अकथ कहानी सी

ममता का पीयूष लिये
सरिता भरी रवानी सी

सुत का ही कल्याण रहे
सुविधा आनी जानी सी

आँचल में बहती माँ के
पय की धारा पानी सी

रहे निरक्षर चाहे पर
सन्तति के हित ज्ञानी सी

हो कुछ पास नहीं माँ के
पर है अविरल दानी सी

रहती है नित अधरों पर
वेद ऋचा की बानी सी

रुष्ट नहीं हो पाती माँ
लेकिन रहती मानी सी

सदा निवास करे उर में
माँ गंगा-कल्याणी सी

रिद्धि सिद्धियाँ सब माँ के
आगे भरती पानी सी

स्वयं ईश गोदी खेले
अचल लोक की प्राणी सी

– रंजना वर्मा

4. अम्मा, मम्मी, माँ कहो, मॉम कहो या मात।
धरती पर माँ ईश है, माँ अनुपम सौगात।।

दीपक, बाती, तेल है, माँ ही है उजियार।
बिजली, बादल, बूँद माँ, माँ बरखा की धार।।

नदिया, पानी, प्यास है, है माँ तृप्ति अशेष।
भक्त, भजन माँ भक्ति है, माँ भगवान का भेष।।

पंछी, पर, परवाज़ माँ, माँ नभ का विस्तार।
जग, जननी, माँ जीवनी, माँ जीवन का सार।।

क्यारी, कोंपल, पंखुड़ी, कोमल कुसुम अनूप।
माँ माटी निर्माण की, माँ ममता का कूप।।

कागज़, कलम, दवात माँ, माँ कविता माँ गीत।
माँ सुर, सरगम, साज़ है, माँ शाश्वत संगीत।।

रूपक, उपमा, श्लेष माँ, माँ अनुपम उपमान।
रामायण, गीता, शबद, माँ ही पाक क़ुरान।।

– आराधना शुक्ला

5. माँ तुम्हारा स्नेहपूर्ण स्पर्श अब भी सहलाता है मेरे माथे को
तुम्हारी करुणा से भरी आँखें अब भी झुकती हैं मेरे चेहरे पर
जीवन की खूंटी पर उदासी का थैला टाँगते
अब भी कानों में पड़ता है तुम्हारा स्वर, कितना थक गई हो बेटी
और तुम्हारे निर्बल हाथों को मैं महसूस करती हूँ अपनी पीठ पर
माँ, क्या तुम अब सचमुच नहीं हो
नहीं, मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा
सब यह कहते हैं कि माँ तुम हो
मेरी आंखों के दिपते उजास में
मेरे कंठ के माधुर्य में
चूल्हे की गुनगुनी भोर में
दरवाजे की सांकल में
मीरा और सूर के पदों में
मानस की चौपाई में
माँ! मेरे चारों ओर घूमती यह धरती
तुम्हारा ही तो विस्तार है।

– शीला मिश्रा

6. माँ! याद तो आता नहीं
तुम्हारा गोदी में वो मुझे झुलाना
दूध का अमृतरस चखाना
झुनझुने से मेरा दिल बहलाना
लोरी का वो गुनगुनाना
माथे को प्यार से चूमना
गुदगुदी से हँस हँस हँसाना
उंगली पकड़ चलना सिखाना

पर याद है, माँ मुझे
हाथ में उंगली थामे लिखवाना
खून पसीने से मेरे जीवन को सींचना
मुश्किलों में हौसले का बँधाना
प्यार में आंसुओं का छलकना
गम में रोऊँ तो सहलाना
आने चाहे तुफ़ानों को रोक लेना
अंधेरे में रोशनी को दिखाना
पास ना रहूँ, तो याद में रोना

और फिर वो पल जब-
माँ बेटी का रिश्ता बना दोस्ताना
माँ के इस प्यार की बेल का
चढ़ते ही जाना
इंद्रधनुषी रंग में जीवन को रंग देना
तुम्हारी हँसी में दुनिया पा जाना

जीवन की है यह ज्योति
जलती रहे निरंतर
आशीष रहे सदा मां का
असीम है माँ का प्यार!

– संध्या

7. हे माँ…..

हमारे हर मर्ज की दवा होती है माँ….
कभी डाँटती है हमें, तो कभी गले लगा लेती है माँ…..
हमारी आँखोँ के आंसू, अपनी आँखोँ मेँ समा लेती है माँ…..
अपने होठों की हँसी, हम पर लुटा देती है माँ……
हमारी खुशियों में शामिल होकर, अपने गम भुला देती है माँ….
जब भी कभी ठोकर लगे, तो हमें तुरंत याद आती है माँ…

दुनिया की तपिश में, हमें आँचल की शीतल छाया देती है माँ…..
खुद चाहे कितनी थकी हो, हमें देखकर अपनी थकान भूल जाती है माँ….
प्यार भरे हाथों से, हमेशा हमारी थकान मिटाती है माँ…..
बात जब भी हो लजीज खाने की, तो हमें याद आती है माँ……
रिश्तों को खूबसूरती से निभाना सिखाती है माँ…….
लब्जोँ मेँ जिसे बयाँ नहीँ किया जा सके ऐसी होती है माँ…….
भगवान भी जिसकी ममता के आगे झुक जाते हैँ

– कुसुम

8. यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।

ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊंचे पर चढ़ जाता।।

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता।।

सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।
मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती।।

तुमको आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बजाता।।

गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती “नीचे आजा”।
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहती “मुन्ना राजा”।।

“नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूंगी।
नए खिलौने, माखन-मिश्री, दूध मलाई दूंगी”।।

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करती बैठी आँखें मीचे।।

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पाती।।

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।

– सुभद्रा कुमारी चौहान

9. जिंदगी की कड़ी धूप मे छाया मुझ पर कि
खड़ी रहती है सदा माँ मेरे लिये

माँ के आँचल मे आकर हर दुख भूल जाँऊ
हाथ रखे जो सर पे चैन से मै सो जाऊँ

वो जाने मुझे मुझसे ज्यादा, वो चाहे मुझे सबसे ज्यादा
मेरी हर खुशी को मुझे देने के लिये
खड़ी रहती है सदा माँ मेरे लिये

हर चोट का माँ है इकलौता मरहम
गोद में उसकी सिर रख के मिट जाए सारे गम

जिंदगी की हर घड़ी मे साथ उसका है जरूरी
माँ के साथ बिना हर खुशी है अधूरी

इस दुनिया के कांटों को फूल बनाए हुए
खड़ी रहती है सदा माँ मेरे लिए।

– कृतिका शर्मा

10. बस यही एक नाम गूंजता है इस अंधेरे में,
कैसे बताऊं माँ कितना सुकून है तेरे कलेजे में?
तू ही है माँ जिसने ऊँगली पकड़ मुझे चलना सिखाया,
बाहों के झूले में तूने झुलाया!
तूने ही समझाया क्या अच्छा क्या बुरा है इस जहाँ में,
मैं समझती हूँ कुछ तो फिर भी छुपा है तेरे कलेजे में!
पता नहीं मुझे, ये मेरे पाने का दर्द है या खोने का गम है माँ,
लेकिन जो भी है ये बड़ा ही खूबसूरत तेरा मेंरा संगम है माँ!
मैंने भगवान को नहीं देखा माँ लेकिन तू ही मेरा भगवान है,
जो मुझे इस दुनिया में लाया तू उस भगवान की पहचान है!
मेरे हर दर्द, हर आंसू को तूने अपनी आँखों में बसाया है,
इस दुनिया के हर रिश्ते को भी तूने बहुत खूब निभाया है!
तू है तो मैं हूँ और तू है तो ये संसार भी है माँ,
तेरे बिना सब कुछ अधूरा है और इस दुनिया में तेरे बिन कुछ भी नहीं है माँ!
शुक्रिया तेरा इस जहाँ में मुझे लाने के लिए और मुझे मेरी पहचान दिलाने के लिए,
मैं तेरी बेटी होने का हमेंशा फर्ज निभाऊंगी माँ और बेटे की तरह तुझे हंसाऊंगी माँ!
ज़िन्दगी बहुत हंसाएगी भी और रुलायेगी भी,
लेकिन मेरे पास वो माँ है जो अपना हर वचन निभाएगी भी!
हर माँ से बस यही गुजारिश है हर बेटी की, आना है माँ मुझे इस दुनिया में,
बचा ले न माँ मुझे मर जाने से, आ जाने दे न इस ज़माने में!
मुझे सोना है मां तेरे आंचल के झूले में,
कैसे बताऊं माँ कितना सुकून है तेरे कलेजे में?
मैं लड़की हूँ तो इसमें मेंरा क्या गुनाह है माँ,
तू तो जानती है न में तेरा ही साया हूँ माँ!
माँ क्यों तू इतनी प्यारी है मुझे बता दे न,
क्यों मेरी उम्मीद के धागे तुझसे बंधे हैं माँ!
कैसे बताऊं माँ कितना सुकून है तेरे कलेजे में?

– दर्शना

मदर्स डे पर स्पेशल व शॉर्ट कविताएं

मदर्स डे के इस पावन अवसर पर यहाँ माँ के लिए कविताओं की एक लिस्ट हिंदी में दी गई है। मदर्स डे पर माँ स्पेशल गिफ्ट देने के लिए आप उस पर लिखी एक कविता सुना सकते हैं। यहाँ अनेकों कविताएं दी गई हैं जिन्हें तैयार करके आप अपनी माँ को सुनाएं और उनका यह खास दिन और स्पेशल बनाएं, आइए जानें;

1. धीमी सी गुदगुदी पर जोरों की खिलखिलाहट जैसी माँ।
याद आती है वो निंदिया और लोरी जैसी माँ।
कोयल की कूंक और पपीहे की पीक गूंजे
दिन की भरी दुपहरी में इंतजार में डूबी रहती माँ।
हर नारी में बसी है वो हर शक्ति का प्रमाण है
हर मुश्किल का सामना करने को शेर की दहाड़ बनी रहती माँ।
बांट गई अपना सब कुछ, छांट गई मेरे सपनों को
हर पल प्यार बरसाती पुरानी यादों में ताजगी भरती माँ।

2. ईश्वर का स्वरूप है माँ
मेरे जीवन का रंग रूप है माँ
मुझे मिला है जीवन उनसे
उनके कदमों में बसा स्वर्ग और जहान
शुभ संस्कार वो हमें बताती है
अच्छे-बुरे का फर्क समझती है
गलती पर सुधार का पाठ पढ़ाती है
प्यार वो हम पर खूब बरसाती है।

3. माँ के बिन जीवन अधूरा है
हर जगह खाली और हर दिल सूना है।
अगर मैं पड़ जाऊं बीमार
तो माँ रात भर जागे बार-बार।
वो पहले हमें खाना खिलाती
बाद में जितना बचता उसे खुद खाकर सो जाती।
मेरी खुशियों में अक्सर माँ खुश हो जाती
दुःख में अपने ढेरों आंसू बहाती।
खुशनसीब हूँ मैं जिसे मिला माँ का प्यार
माँ के चरणों में मेरा सादर प्रणाम।

4. माँ की करुणा में है वो प्यार
जैसे शिथिल गगन ने ओढ़ी हो चादर
देती शक्ति हमें अपार
बनकर अमृत की गागर
माँ साए सा साथ निभाती है
मेरी चोट की पीड़ा खुद सह लेती है
वो अक्सर लोगों में खुशियां बांटे
अपने चरणों में रहती जन्नत समेटे
सुख की खिलखिलाहट है वो
एक प्यारी मुस्कुराहट है वो
चंचल है माँ का रूप सलोना
न आए कभी उसे किसी बात पर रोना।

5. चुपके चुपके माँ मेरे सब आंसू पी जाती
मुझे देती खुशियां अपने संग दुखों की पोटली ले जाती
बचपन की आँखों ने देखा का माँ का वो रूप सुहाना
जैसे दिन की ताजगी में याद आया कोई नगमा पुराना
दिन ढलते माँ की याद यूं सताती है
जैसे बारिश में चलते हुए आंसुओं की धारा बह जाती है
माँ की यादों ने न बंद किया कभी सताना
यूं झट से बीत गया बचपन का जमाना।

6. जुगनूं की तरह चमकूं मैं
हर पंछी संग उड़ चलूं मैं
बचपन की उन यादों में
माँ ने लुटाया है प्यार दोनों हाथों से
ऊबड़खाबड़ गलियों में
माँ ने थामी थी उंगली मेरी
चलना सिखाया था मुझे
संभाला था हर कठिन डगर पर
दूर न होने देती अपनी नजरों से
न गिरने देती कभी आंसू मेरी आंखों से
ख्वाबों के घरौंदों में माँ मुझे प्यार से सुलाती
मैं डर जाऊं तो खुद ही मेरी हिम्मत बढ़ाती
इस नन्हे से फूल को सींचा है माँ ने अपने हाथों से
कैसे मिटा दूं वो यादें प्यार की सौगातों से।

7. क्या सीरत क्या सूरत थी
माँ ममता की मूरत थी
पांव छुए और काम बने
अम्मा एक महूरत थी
बस्ती भर के दुख सुख में
एक अहम जरूरत थी
सच कहते हैं माँ हमको
तेरी बहुत जरूरत थी

– मंगल नसीम

8. अंधियारी रातों में मुझको
थपकी देकर कभी सुलाती
कभी प्यार से मुझे चूमती
कभी डांटकर पास बुलाती

कभी आँख के आँसू मेरे
आँचल से पोछा करती वो
सपनों के झूलों में अक्सर
धीरे-धीरे मुझे झुलाती

सब दुनिया से रूठ रपट कर
जब मैं बेमन से सो जाता
हौले से वो चादर खींचे
अपने सीने मुझे लगाती

– अमित कुलश्रेष्ठ

9. बचपन की गलतियों को चुटकी में भुला रही है
देख मेरे लिए माँ चूल्हे की आग में खुद को तपा रही है।
कभी दूध रोटी खिलाती तो कभी दुआएं मांगती
प्यार की चाशनी में माँ मेरे बचपन को नहला रही है।
अपनी आंखों का प्यार मुझपर लुटाती, वो मुझे हर मुश्किल से बचाती
बारिश में खुद गीली होकर वो कैसे मुझे छिपा रही है।
बिगड़ने का डर है उसे इसलिए गलतियों पर गुस्सा हो जाती
मुझे डांटकर माँ यूं खुद को रुला रही है।
रास्ते पर अंधेरे से डर न लगे मुझे इसलिए
कतरा-कतरा होकर माँ खुद को जला रही है।

10. वो माँ है जो हर पल मुझे हँसाती
मेरी खुशी के लिए वो कुछ भी कर जाती।
अक्सर वो सो जाए भूखे पेट
पर मुझे रोजाना भरपेट खाना खिलाती।
वो माँ है…
माँ की ममता नहीं है सीमित
उसके बिना न रह पाऊं मैं जीवित
मेरे दुःख में आंसू टपक पड़ते उसके
मेरी खुशी में हर पल ठहाके लगाती।
वो माँ है…
माँ की दुआओं में पले मेरी सफलता
और किसी से न माँ को कोई फर्क पड़ता
हर बार धूप में वो खुद को जलाती
मेरी पीड़ाओं पर खुद छाया बन जाती।
वो माँ है….

ऊपर बताई हुई हर कविता में माँ का एक महत्व छिपा है। माँ के आशीर्वाद से ही बच्चों का जीवन सफल बनता है और वे ऊंचाइयों को छूते हैं। यदि आप इस बार मदर्स डे के दिन अपनी माँ को हिंदी में एक प्यारी सी कविता डेडिकेट करना चाहते हैं तो ऊपर दी हुई लिस्ट से एक जरूर चुनें।

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सुरक्षा कटियार

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