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महाभारत में परीक्षित के जन्म की कथा बेहद विचित्र और रोचक है। महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ तब उसकी पत्नी उत्तरा गर्भवती थी। युद्ध में पराजित होने के बाद भी कौरवों के कुछ योद्धा जीवित थे, जिनमें से एक था अश्वत्थामा। अश्वत्थामा ने पांडवों के द्रौपदी से हुए पांच बच्चों की हत्या कर दी थी और साथ ही उत्तरा की संतान को भी गर्भ में ही मारकर पांडवों के कुल का नाश करने का घृणित विचार कर डाला था। यही परीक्षित के जन्म की कहानी है। पूरी कथा जानने के लिए आगे पढ़ें।
महाभारत की इस कथा के मुख्य पात्र इस प्रकार हैं –
जब महाभारत के युद्ध में कौरवों के सभी वीरों के साथ दुर्योधन भी गदा युद्ध में भीम से पराजित हो गया तब उसकी सेना के बचे हुए लोगों में से एक था द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा। अश्वत्थामा को अमर होने का वरदान प्राप्त था और वह माथे पर एक मणि लेकर जन्मा था। अश्वत्थामा ने दुर्योधन को अंतिम समय में वचन दिया कि वह पांडवों को मार देगा। लेकिन पांडवों को मारना इतना आसान नहीं था। इसलिए एक रात वह पांडवों के खेमे में चुपचाप घुस गया। एक जगह पर पांच वीर सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उनकी नींद में हत्या कर दी। लेकिन वे पांच पांडव न होकर द्रौपदी के गर्भ से जन्मे पांडवों के ही पांच पुत्र थे। जब यह बात द्रौपदी को पता चली तो उसने अपने पतियों से अश्वत्थामा का कटा हुआ सिर लाने को कहा। तब श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि अश्वत्थामा अमर है लेकिन वे सभी उसे द्रौपदी के पास लेकर जरूर आएंगे क्योंकि वह उसका अपराधी है।
सुबह पांडव अश्वत्थामा से युद्ध करने पहुंचे। अश्वत्थामा जानता था कि वह युद्ध में अर्जुन से जीत नहीं सकता। इसलिए उसने अपने पिता गुरु द्रोण से सीखे हुए ब्रह्मास्त्र नामक अस्त्र का प्रयोग किया। उसके जवाब में अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। इस भयंकर अस्त्र के प्रयोग से पूरे विश्व का नाश हो सकता था। तभी वहां व्यास मुनि पहुंच गए और उन्होंने दोनों योद्धाओं से ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। अर्जुन इसकी कला जानता था और उसने अपना अस्त्र वापस बुला लिया लेकिन अश्वत्थामा को यह ज्ञान नहीं था इसलिए उसने एक कुत्सित विचार करते हुए अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दी। उत्तरा युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की विधवा थी। पांडवों के पांचों पुत्रों के मरने के बाद उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान भी अगर मर जाती तो पांडवों के कुल का सर्वनाश हो जाता।
अश्वत्थामा के इस कृत्य पर श्रीकृष्ण ने उसे श्राप देते हुए कहा कि अपने इस घृणित कर्म का वह अगले कई वर्षों तक फल भोगेगा। कृष्ण ने उसके माथे से मणि निकाल ली और कहा कि माथे के घाव के साथ तुम पूरे विश्व में इसी तरह अकेले, दुर्गंध लेकर घूमते रहोगे। इसके बाद वे पांडवों को लेकर उत्तरा के पास पहुंचे। उत्तरा ब्रह्मास्त्र के वार से बुरी तरह पीड़ित थी और उसने अंततः एक मृत पुत्र को जन्म दिया। हालांकि श्रीकृष्ण तो भगवान थे उन्होंने अपने हाथों में उस बालक को लिया और उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा, बस बालक ने अपनी आँखें खोल दीं। कृष्ण ने बालक का नाम रखा परीक्षित। पांडवों की खुशी का ठिकाना न रहा। महाभारत के भीषण युद्ध में लाखों लोगों के मरने के बाद उनके परिवार में पोते ने जन्म लिया था। परीक्षित ने आगे जाकर कुरु वंश का नाम सार्थक किया और एक चक्रवर्ती सम्राट बना।
परीक्षित के जन्म की इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी छल करके कुछ भी हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अश्वत्थामा ने छल, कपट और घृणित विचारधारा के साथ उत्तरा के पुत्र को मारने का प्रयत्न किया लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे उसके कर्म की सजा दी।
महाभारत की कहानी: परीक्षित का जन्म कहानी महाभारत की एक महत्वपूर्ण कहानी है। यह महाभारत की कहानियों में आती है।
परीक्षित अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र था।
अश्वत्थामा के माथे पर एक मणि था।
अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ की ओर ब्रह्मास्त्र चलाया था।
महाभारत एक ऐसा महाकाव्य है, जिसकी हर कथा कोई न कोई शिक्षा देती है। महाभारत का प्रत्येक प्रसंग मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का चित्रण है। माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों को शुरू से ही रामायण और महाभारत की कहानियों से परिचित कराएं। ये उनके चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
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