In this Article
एक शिशु जिसने माँ के गर्भ में 27 सप्ताह का समय पूरा होने से पहले जन्म लिया हो, या एक ऐसा शिशु जिसका वजन प्रीटर्म बर्थ के कारण काफी कम हो, उसे माइक्रो प्रीमि कहा जाता है। चूंकि माँ बनने वाली महिला, समय से पूर्व होने वाले लेबर के खतरों के बारे में जानती है, इसलिए उसे डिलीवरी की प्रक्रिया में देर करने के लिए और गर्भकाल की अवधि को बढ़ाने के लिए एक फीटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट से परामर्श लेना चाहिए। ओरली या वेजाइना के द्वारा ली जाने वाली दवाएं भावी माँ को लेबर में देर करने में मदद करती है।
एक प्रीमैच्योर शिशु, जिसमें 26 सप्ताह का गर्भकाल पूरा होने से पहले ही जन्म लिया हो या फिर जिस बच्चे का वजन 500 ग्राम से भी कम हो, उसे माइक्रो प्रीमि कहा जाता है। माइक्रो प्रीमि शिशु के ग्रोथ और डेवलपमेंट के लिए, आपको पहले से ही यह जानकारी होनी चाहिए, कि ऐसे शिशु फुल-टर्म शिशुओं से काफी अलग होते हैं और उनकी भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को अतिरिक्त देखभाल और सावधानी के साथ पूरा करना होता है।
जब समय से पहले डिलीवरी हो जाती है, तो उसके कारणों का पता लगाना मुश्किल होता है। लेकिन एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है, कि समय से पहले डिलीवरी होने के पीछे, कई तरह के मिश्रित कारण होते हैं। प्रीटर्म लेबर दो तरह के होते हैं, स्पॉन्टेनियस (सहज) प्रीटर्म बर्थ और मेडिकल कंपेल्ड डिलीवरी। इसके कुछ कारण नीचे दिए गए हैं:
माइक्रो प्रीमि बच्चे काफी कमजोर और नाजुक होते हैं और इसलिए उन्हें बहुत ज्यादा देखभाल और निगरानी की जरूरत होती है। बच्चे को जीवित रहने में मदद करने के लिए, काफी देखरेख की जरूरत होती है। नीचे दी गई टेबल बच्चे के जन्म के सप्ताह के आधार पर उसके सर्वाइवल दर को दर्शाता है:
26 सप्ताह | 90% से ज्यादा |
25 सप्ताह | 75% से 80% |
24 सप्ताह | 66% से 80% |
23 सप्ताह | 50% से 66% |
22 सप्ताह या उससे कम | केवल 10% |
एक माइक्रो प्रीमि शिशु काफी छोटा और कमजोर दिखता है। उसकी नसें शरीर पर दिख सकती हैं और उसकी त्वचा काफी पतली और चिपचिपी या जिलेटिन युक्त दिखती है।
जीवित रहने में मदद के लिए, उन्हें एनआईसीयू में विभिन्न प्रकार के उपकरणों, ट्यूब्स और तारों से भी जोड़ा जाता है। आप बच्चे के पैरों, हाथों, कलाई और छाती पर तारों वाले स्टीकर भी देख सकते हैं। अंबिलिकल आर्टरी आईवी लाइन के साथ जुड़ी एक मॉनिटर भी वहाँ हो सकती है, ताकि ब्लड प्रेशर को मापा जा सके। कुछ बच्चों के मुँह में नलियां भी लगी हो सकती हैं, जो कि एक वेंटिलेटर से जुड़ी होती हैं, ताकि सांस लेने में उन्हें मदद मिल सके या उन्हें कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (सीपीएपी) भी लगाया जा सकता है। ओजी/एनजी नलियां बच्चे के मुँह और नाक से जुड़ी होती हैं, ताकि फीडिंग में मदद मिल सके।
चूंकि माइक्रो प्रीमि बेबीज को बहुत सारे बाहरी सपोर्ट की जरूरत होती है, इसलिए उनका इलाज एनआईसीयू (निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट) में किया जाता है। उनकी हेल्थ से जुड़े कुछ अहम और तत्काल उपचार क्या होते हैं, जानिए:
प्रीमैच्योर शिशु का इम्यून सिस्टम अपरिपक्व होता है। उसके कमजोर शरीर में डाले गए इंट्रावेनस लाइंस के द्वारा उसे इंफेक्शन हो जाता है। कभी-कभी जुकाम से पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आने पर उसे भी जुकाम हो सकता है। इससे बचने के लिए अच्छी हाइजीन रखनी चाहिए।
प्रीमैच्योर शिशुओं के फेफड़े काफी कमजोर होते हैं और वे अपने आप सांस नहीं ले पाते हैं। उनकी मदद करने के लिए, डॉक्टर उन्हें इनट्यूबेट करते हैं या फिर एक सीपीएपी उपकरण का इस्तेमाल करते हैं, जो कि नॉन-इनवेसिव होता है और फेफड़ों के लिए भी कम खतरनाक होता है।
बच्चे की फीडिंग और विकास उन सबसे जरूरी बातों में से एक है, जिसका ध्यान एनआईसीयू में रखा जाता है। उसे बार-बार उल्टियां होने का खतरा होता है और इसलिए उसे बहुत ही कम मात्रा में दूध दिया जाता है, जिससे उनकी आंतों को परिपक्व होने में मदद मिल सके। जब उनकी आंतें परिपक्व हो जाती हैं, तब उन्हें फॉर्मूला फीड दिया जाता है।
माइक्रो प्रीमि बच्चों को ब्रेन-ब्लीडिंग का खतरा ज्यादा होता है। ब्लीडिंग की गंभीरता की जांच के लिए, ब्रेन अल्ट्रासाउंड किए जाते हैं। मस्तिष्क में गंभीर ब्लीडिंग होने से न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर या सेरेब्रल पाल्सी का खतरा होता है।
जब बच्चे गर्भ में समय पूरा होने से पहले जन्म ले लेते हैं, तो उनमें एक ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है, जो कि रेटिना के ब्लड वेसल्स को प्रभावित करती है। चूंकि उन्हें लंबे समय के लिए ऑक्सीजन के हाई अमाउंट पर रखा जाता है, तो इससे उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित होती है और साफ-साफ देखने के लिए उन्हें चश्मे की जरूरत हो सकती है।
जो शिशु 27 सप्ताह से पहले जन्म ले लेते हैं, उन्हें एनआईसीयू में तब तक रखा जाता है, जब तक वे अपने विकास की अवधि को पूरा नहीं कर लेते या कभी-कभी इससे अधिक समय के लिए भी उन्हें एनआईसीयू में रखा जाता है। अक्सर उन्हें वेंटीलेटर, सीपीएपी या नेजल कैनुला के साथ रेस्पिरेटरी सपोर्ट की जरूरत होती है। वजन बढ़ाने और अंगों के विकास के लिए भी, बच्चे को पोषण देने की कोशिश की जाती है। यह सपोर्ट घर पर मिल पाना असंभव होता है और इसलिए इस दौरान उन्हें एनआईसीयू में रखना निश्चित रूप से जरूरी है।
माइक्रो प्रीमि शिशुओं में स्वास्थ्य संबंधी कुछ लॉन्ग टर्म समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जो कि नीचे दी गई हैं:
ऐसे बच्चे शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से बाधित हो सकते हैं। उन्हें बोध ज्ञान समस्याएं, सीखने से संबंधित या व्यवहारिक समस्याएं हो सकती हैं।
कुछ बच्चों में खाने से मना करना, ठीक से भोजन न करना और कई तरह की डाइजेस्टिव समस्याएं हो सकती हैं।
चूंकि प्रीमैच्योर बर्थ के कॉम्प्लीकेशन्स कभी-कभी बहुत गंभीर हो सकते हैं और इससे उन्हें सुनने, देखने या इससे संबंधित समस्याएं स्थाई रूप से हो सकती हैं।
प्रीमि बच्चों को आर्टिफिशियल रेस्पिरेटरी सपोर्ट की जरूरत होती है, जिससे कभी-कभी अस्थमा या ब्रोन्कोपल्मोनरी डिस्प्लेशिया हो सकता है, जो कि फेफड़ों की एक क्रॉनिक बीमारी है।
कुछ प्रीमि बच्चों को गंभीर या मध्यम सेरेब्रल पाल्सी हो सकता है।
माइक्रो प्रीमि के विकास में माता-पिता एक सकारात्मक और महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और वे बच्चों को संभवतः सबसे बेहतरीन शुरुआत दे सकते हैं।
पेरेंट्स को शुरुआत से ही बेबी की कॉग्निटिव क्षमताओं पर काम करना चाहिए, ताकि प्रीमैच्योरिटी के बोध ज्ञान संबंधी प्रभाव को कम किया जा सके।
जैसे ही भावी माँ को प्रीटर्म डिलीवरी का एहसास होता है, उसे तुरंत मेडिकल मदद लेनी चाहिए।
आपको एक ऐसे अच्छे हॉस्पिटल के बारे में जानकारी लेनी चाहिए, जिसमें एक लेवल थ्री का एनआईसीयू हो और जो कि 24×7 सेवाएं देता हो, ताकि शिशु को जन्म के बाद सबसे बेहतरीन देखभाल मिल सके।
आपको प्रीनेटल देखभाल के माध्यम से, प्रीमैच्योर डिलीवरी के खतरे को कम करने का प्रयास करना चाहिए। समय से काफी पहले जन्म लेने वाले बच्चों को माइक्रो प्रीमि कहा जाता है और इसलिए उन्हें निओनेटल इंटेंसिव केयर की जरूरत होती है।
यह भी पढ़ें:
समय से पूर्व जन्मे शिशु का वज़न बढ़ाने के उपाय
घर पर प्रीमैच्योर बच्चे की देखभाल करने के 10 टिप्स
हिंदी वह भाषा है जो हमारे देश में सबसे ज्यादा बोली जाती है। बच्चे की…
बच्चों को गिनती सिखाने के बाद सबसे पहले हम उन्हें गिनतियों को कैसे जोड़ा और…
गर्भवती होना आसान नहीं होता और यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मिर्गी की बीमारी…
गणित के पाठ्यक्रम में गुणा की समझ बच्चों को गुणनफल को तेजी से याद रखने…
गणित की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए पहाड़े सीखना बेहद जरूरी है। खासकर बच्चों…
10 का पहाड़ा बच्चों के लिए गणित के सबसे आसान और महत्वपूर्ण पहाड़ों में से…