In this Article
- कहानी के पात्र (Characters Of The Story)
- मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा (A Tale Of Two Oxen In Hindi)
- मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा से सीख (Moral of A Tale Of Two Oxen In Hindi)
- मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा का कहानी प्रकार (Story Type of A Tale Of Two Oxen In Hindi)
- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- निष्कर्ष (Conclusion)
हिंदी के प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखक मुंशी प्रेमचंद ने 1931 में दो बैलों की कथा नामक कहानी लिखी थी। हीरा और मोती नामक दो बैल इस कहानी के मुख्य पात्र हैं। यह कहानी सांकेतिक भाषा में यह संदेश देती है कि मनुष्य हो या कोई भी प्राणी हो, स्वतंत्रता उसके लिए बहुत महत्व रखती है।
कहानी के पात्र (Characters Of The Story)
मुंशी प्रेमचंद की दो बैलों की इस कथा के मुख्य पात्र हैं –
- झूरी किसान
- झूरी की पत्नी
- हीरा बैल
- मोती बैल
मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा (A Tale Of Two Oxen In Hindi)
एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में झूरी नामक एक किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। झूरी के पास दो बैल थे जिनके नाम हीरा और मोती थे। झूरी गरीब था, लेकिन वह अपने बैलों से बहुत प्रेम करता था। हीरा-मोती उसके अपने बच्चों जैसे थे और उसके जीवन के अभिन्न अंग थे। दोनों बैल भी अपने मालिक की देखभाल और प्यार से खुश रहते थे और हमेशा उसकी आज्ञा का पालन करते थे।
हीरा और मोती को आपस में भी बहुत लगाव था। यदि कभी एक चारा न खाए तो दूसरा भी उसे मुंह नहीं लगाता था। एक दिन झूरी की पत्नी का भाई ‘गया’ दोनों बैलों को अपने साथ ले गया। झूरी के ससुराल में दोनों बैलों से बहुत काम करवाया गया। बैल इस बात से हैरान थे कि उन्हें गया के हवाले क्यों किया गया है।
शाम हुई तो दोनों नए घर और नए लोगों के बीच में थे, बैलों को बड़ा अटपटा लग रहा था। किसी तरह दोनों ने चारा खाया। जब रात हुई और सभी सो रहे थे तो दोनों बैल रस्सी तोड़कर अपने घर यानी झूरी के यहां दौड़ पड़े। सुबह झूरी ने जब हीरा-मोती को अपने आँगन में देखा तो उसने उन्हें गले से लगा लिया।
यह देखकर झूरी की पत्नी को बड़ा गुस्सा आया। उसने दोनों बैलों को खूब खरी खोटी सुनाई और तय किया कि दोनों को खाने में केवल सूखा भूसा ही दिया जाएगा। बाद में झूरी का साला ‘गया’ फिर आकर दोनों बैलों को अपने साथ ले गया।
गया पिछले दिन की घटना से बहुत क्रोधित था, इसलिए उसने भी दोनों को खाने के लिए सूखा चारा ही दिया। जैसे-तैसे रात कटी और सुबह गया दोनों बैलों को हल जोतने के लिए खेतों में ले गया। लेकिन हीरा-मोती ने तो मानो एक कदम भी न उठाने की कसम खा ली थी। गया ने दोनों की खूब पिटाई की और रात में फिर से भूसा ही खाने को दिया।
अपने प्यारे मालिक से दूर होकर दोनों बैल बड़े उदास थे। तभी वहां एक छोटी लड़की आई और उसने दोनों को एक-एक रोटी खिलाई। खाली एक-एक रोटी से दोनों का पेट तो भरा नहीं पर उन्हें सुकून बहुत मिला। वह लड़की पड़ोस में रहती थी और उसकी सगी माँ मर चुकी थी। लड़की की एक सौतेली माँ थी जो उसे बहुत मारा करती थी। इसीलिए शायद उसे बैलों से सहानुभूति थी।
रोज-रोज की पिटाई से तंग हीरा-मोती ने एक रात सोचा कि वे अपने गले में बंधी रस्सी को चबा-चबा कर तोड़ देंगे और वहां से भाग जाएंगे। रात में जब दोनों रस्सी तोड़ने की कोशिश कर रहे थे तो वही छोटी लड़की आई और उसने दोनों की रस्सी खोलकर उन्हें आजाद कर दिया। दोनों बैलों ने छोटी लड़की से विदा ली और घर की ओर दौड़ने लगे।
लेकिन हीरा-मोती इतनी तेजी से भागे कि अपने घर का रास्ता भटक गए। दोनों को भागते-भागते भूख भी लग रही थी। तभी रास्ते में उन्हें मटर का एक खेत दिखा। दोनों खेत में घुस गए और जमकर मटर चरने लगे। अभी उनका चरना हुआ भी न था कि वहां एक सांड आ गया। दोनों बैलों ने सांड के साथ बड़ी हिम्मत से लड़ाई की और उसे वहां से भगा दिया। लेकिन तब तक खेत में काम करने वाले लोग हाथों में लट्ठ लेकर आ पहुंचे। हीरा बच-बचाकर भाग ही रहा था लेकिन उसने देखा कि लोगों ने मोती को पकड़ लिया है तो वह भी वहीं रुक गया।
अब लोगों ने दोनों बैलों को पकड़कर मवेशियों के एक बाड़े में डाल दिया। उस मवेशीखाने में पहले से ही कई बकरियां, घोड़े, भैंसे, गधे बंद करके रखे गए थे। उन्हें खाने को कुछ नहीं दिया जाता था इसलिए सारे जानवर कमजोर होकर जमीन पर बेजान पड़े हुए थे। हीरा-मोती को भी पूरा दिन बीत जाने के बाद भी जब खाने को कुछ नहीं मिला तो हीरा का सब्र खत्म हो गया। उसने बाड़े की कच्ची दीवार पर जोर से अपने सींग मारे तो वहां का थोड़ा सा टुकड़ा गिर गया। इससे हीरा को हिम्मत मिली व वह और जोर-जोर से अपने सींगों से दीवार की मिट्टी गिराने लगा।
तभी बाड़े का पहरेदार लालटेन लेकर जानवरों की गिनती करने आ पहुंचा। हीरा को दीवार पर सींग मारते देख उसने डंडे से बैल को मारना शुरू कर दिया और उसे एक मोटी रस्सी से बांध कर वहां से चला गया। हीरा की हालत देखकर मोती को बहुत गुस्सा आया और अब उसने दीवार में उसी जगह पर वार करना शुरू कर दिया। काफी देर की मेहनत के बाद दीवार का एक बड़ा हिस्सा टूटकर गिर गया। दीवार गिरते ही भैंसें, बकरियां और घोड़े वहां से भागने लगे लेकिन गधे वहीं खड़े रहे। जानवरों ने उन्हें बहुत उकसाया पर अपने डर की वजह गधे जगह से हिले ही नहीं। दूसरी ओर मोती अपने दोस्त हीरा की रस्सी तोड़ने की भरसक कोशिश करने लगा। थोड़ी देर में पौ फटने वाली थी। तब हीरा ने मोती से वहां से भाग जाने का इशारा किया। लेकिन अपने मित्र को छोड़कर जाने वालों में से मोती नहीं था। उसने वहां खड़े गधों को सींग मारकर बाड़े से भगा दिया और फिर हीरा के पास आकर बैठ गया।
जब सूरज उग आया तो पहरेदारों और बाड़े के मालिक को जानवरों के भागने की खबर लग गई। वे आए और मोती की खूब पिटाई करके उसे भी मोटी रस्सी से बांधकर चले गए।
दोनों बैल करीब एक सप्ताह तक वहीं बंधे रहे, और उन्हें कुछ भी खाने को नहीं दिया गया। बस एक तसले में रखा पानी पीकर ही दोनों जिन्दा थे। कमजोरी से बैलों की हड्डियां निकल आई। एक दिन बाड़े के मालिक ने उनकी नीलामी करवाई, लेकिन दोनों इतने कमजोर दिख रहे थे कि कोई उन्हें खरीदने के लिए सामने नहीं आ रहा था।
तभी एक आदमी सामने आया और मुंशी से थोड़ा मोल भाव करके उसने उन्हें खरीद लिया। हीरा-मोती डरे हुए थे और उनसे चला भी नहीं जा रहा था, लेकिन डंडे के डर से दोनों उस आदमी के साथ साथ चलने लगे।
चलते-चलते दोनों को अहसास हुआ कि यह तो वही रास्ता है जहां से गया उन्हें ले गया था। रास्ते की पहचान होते ही दोनों उत्साह से झूमने लगे। जैसे ही वे अपने घर के पास पहुंचे तो आदमी से रस्सी छुड़ाकर दौड़ने लगे। घर के दरवाजे पर ही झूरी बैठा हुआ था। जैसे ही मालिक और बैलों ने एक-दूसरे को देखा तो तीनों की खुशी का ठिकाना न रहा। झूरी ने हीरा-मोती को गले से लगा लिया। बैलों की आंखों से आंसू बहने लगे।
तभी वह आदमी वहां बैलों के पीछे-पीछे भागता आया और झूरी से बोला –
“ये मेरे बैल हैं। मैंने इन्हें मवेशीखाने की नीलामी में खरीदा है।”
झूरी ने झट से जवाब दिया –
“किसी को मेरे बैलों को बेचने का अधिकार नहीं है। ये तभी बिकेंगे जब मैं इन्हें बेचूंगा।”
आदमी ने ताव में आकर कहा –
“मैं तुम्हारे खिलाफ थाने में रपट दर्ज करा दूंगा।”
तब झूरी ने कहा –
“ये बैल मेरे ही हैं, जिसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि यह मेरे घर में खड़े हैं।“
आदमी चिढ़ गया और बैलों की रस्सी पकड़कर अपनी ओर खींचने लगा। लेकिन तब तक अपने मालिक से मिलकर हीरा-मोती में गजब की हिम्मत आ चुकी थी। दोनों ने आव देखा न ताव और उस आदमी को सींगों से खदेड़कर गांव से दूर भगा दिया।
बैल घर आए तो झूरी ने दोनों को उनका पसंदीदा भूसा, दाना और चारा दिया और प्यार से उन्हें सहलाने लगा। हीरा-मोती मिलकर चारा खाने लगे। तभी घर के अंदर से झूरी की पत्नी आई। बैलों के पास आकर मुस्कुराते हुए उसने उनका माथा चूमा और उन्हें ढेर सारा प्यार दिया।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा से सीख (Moral of A Tale Of Two Oxen In Hindi)
मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा से यह सीख मिलती है कि जानवरों में भी भावनाएं होती हैं और हमें उनके साथ प्रेम व सहानुभूति से पेश आना चाहिए।
मुंशी प्रेमचंद की कहानी: दो बैलों की कथा का कहानी प्रकार (Story Type of A Tale Of Two Oxen In Hindi)
दो बैलों की कथा मुंशी प्रेमचंद की बेहद प्रसिद्ध और लोकप्रिय कहानियों में से एक है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. मुंशी प्रेमचंद कौन थे?
मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महानतम लेखक थे।
2. मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था?
मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था।
3. मुंशी प्रेमचंद के नाम पर कितनी रचनाएं हैं?
मुंशी प्रेमचंद के नाम पर लगभग 300 कहानियां, 15 उपन्यास, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें और कई समाचार पत्र व पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का अलग स्थान है। दो बैलों की कथा में जानवरों की भावनाओं का मार्मिक वर्णन किया गया है। यह कहानी बच्चों और बड़ों सभी को यह संदेश देती है कि मनुष्य और पशुओं के संबंध भी मानवीय हो सकते हैं। इस कहानी में मित्रता, आत्मीयता, दया और प्रेम जैसे गुणों का बड़े ही अलग तरीके से प्रदर्शन हुआ है।